उत्तराखण्ड में सहकारिता आन्दोलन की वहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है. सहकारिता की भावना सहयोग पर आधारित है, दूसरे शब्दों में इसकी व्याख्या करें, तो सहकारिता एक सबके लिए और सब एक के लिए की भावना पर आधारित एक जीवन पद्धति है. इस प्रकार सहकारी संगठन परस्पर मिल-जुलकर कार्य करने वाले व्यक्तियों का ऐसा ऐच्छिकसंगठन है जो समानता के आधार पर आर्थिक हितों की अभिवृद्धि के लिए संगठित किया जाता है. सहकारी संस्थाओं की स्थापना किसी भी क्षेत्र में पारस्परिक समस्याओं का समाधान करने हेतु की जाती है. इसलिए विभिन्न क्षेत्रों को लाभान्वित करने के उद्देश्य से विभिन्न प्रकार की सहकारी समितियों की स्थापना की जाती रही है. उत्तराखण्ड में विविध प्रकार की सहकारी समितियों को देखा जा सकता है. इसमें कुछ अधोलिखित प्रकार की हैं-
1. सहकारी विपणन समितियाँ
सहकारी विपणन समितियों से आशय उन समितियों से है, जोकि अपने सदस्यों द्वारा उत्पादित माल को सामूहिक रूप से बेचने का कार्य करती हैं. इसकी स्थापना लघु कृषक, दस्तकार एवं कारीगरों द्वारा की जाती है. यदि यह लोग अपने उत्पादित माल को पृथक्-पृथक् बेचें, तो इनको उनका उचित मूल्य प्राप्त नहीं हो पाता. अतः यह सभी एकत्रित होकर सहकारी विपणन समितियों का निर्माण करते हैं. सहकारी विपणन समिति अपने सदस्यों का माल एकत्रित करके उसका सामूहिक रूप में विक्रय करती है ताकि उनका अच्छा मूल्य प्राप्त हो सके.
2. सहकारी साख समितियाँ
इन समितियों का उद्देश्य अपने सदस्यों की आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करना होता है. इसके सभी सदस्य अपने आर्थिक साधन इसमें लगाते हैं तथा आवश्यकतानुसार सदस्यों का उनको आवंटन किया जाता है. यह एक प्रकार से सदस्यों का बैंक है. इन समितियों के दो भेद हैं- (क) प्राथमिक ग्रामीण साख समिति-इनकी स्थापना ग्रामीण क्षेत्रों में की जाती है, कृपकों व कारीगरों की आवश्यकताओं की पूर्ति इनके माध्यम से की जाती है.
(ख) शहरी प्राथमिक साख समिति-शहर के निर्धन. कारीगर, मजदूर, दस्तकार आदि मिलकर इसकी स्थापना करते हैं.
3. औद्योगिक सहकारी संस्थाएँ
औद्योगिक सहकारी समितियों की स्थापना छोटे-छोटे उत्पादकों अथवा निर्माताओं द्वारा औद्योगिक उत्पादन प्रणाली में से पूँजीपति रूपी शोषणकर्ता वर्ग को निकालने हेतु की जाती है. इसके दो प्रकार हैं-(1) कच्चा माल उपलब्ध कराने वाली सहकारी संस्थाएँ: (2) सहकारी उत्पादन अथवा निर्माण समिति.
4. उपभोक्ता सहकारी भण्डार
यह सहकारी संगठन उपभोक्ताओं के आर्थिक हितों की रक्षा के लिए बनाया जाता है. उपभोक्ता मध्यस्थों के शोषण
से मुक्ति पाने के लिए इसकी स्थापना करते हैं. ये भण्डार उत्पादक से या थोक व्यापारी से सीधा माल क्रय कर अपने सदस्यों व अन्य व्यक्तियों को उचित मूल्य पर वस्तुएँ उपलब्ध कराते हैं.
5. अन्य सहकारी संगठन
इन संगठनों के अतिरिक्त कई अन्य प्रकार के सहकारी संगठन भी प्रचलन में हैं. इसमें गृह निर्माण सहकारी समितियाँ, दुग्ध एवं डेयरी सहकारी समितियाँ एवं मत्स्य सहकारी समितियाँ आदि. उत्तराखण्ड में सहकारी आन्दोलन तीव्रगति से प्रगति की और अग्रसर है. इस आन्दोलन को जनता का सहयोग मिल रहा है तथा इनको काफी सफलता मिल रही है.
उत्तराखण्ड में सहकारिता विभाग की अद्यतन उपलब्धियाँ
उत्तराखण्ड राज्य में सहकारिता विभाग का मुख्य कार्य कृषि ऋण समितियों के माध्यम से कृषकों को उचित मूल्य पर कृषि निवेशों की आपूर्ति, फसली ऋण एवं उचित मूल्य पर उपभोक्ता वस्तुओं की आपूर्ति कराना है. राज्य में 763 प्रारम्भिक कृषि ऋण समितियाँ, 66 दीर्घाकार बहुउद्देशीय सहकारी समितियाँ, 9 जिला सहकारी बैंक, 9 जिला सहकारी संघ, 6 केन्द्रीय उपभोक्ता भण्डार 32 क्रय-विक्रय सहकारी समितियाँ, 8 नगरीय सहकारी बैंक कार्यरत् हैं. उक्त के अतिरिक्त अन्य प्रकार की समितियाँ जैसे वेतन भोगी, सहकारी समितियाँ, श्रम समितियाँ, यातायात एवं पर्यटन सहकारी समितियाँ, औद्योगिक सहकारी समितियाँ, रेशम एवं मत्स्य पालन सहकारी समितियाँ आदि भी कार्यरत् हैं.
वित्तीय वर्ष 2002-03 में सहकारिता विभाग के लिए मु. 1104-35 लाख रुपए सापेक्ष मु. 761-29 लाख रुपए की स्वीकृतियाँ प्राप्त कर व्यय की गई.
भौतिक प्रगति के अन्तर्गत सहकारी समितियों के माध्यम से वित्तीय वर्ष 2002-2003 में 13022 लाख रुपए का कण वितरण, 15153 नए सदस्य बनाकर 176 लाख रुपए का अंश धन वृद्धि की गई. सहकारी समितियों के माध्यम से 5659 क्विटल उन्नतशील बीज, 516 लाख रुपए का कृषि उपजों का विक्रय, मूल्य समर्थन योजना के अन्तर्गत 133446 मैट्रिक टन गेहूँ खरीद एवं 10,847 मैट्रिक टन धान खरीद की गई. उपभोक्ता व्यवसाय के अन्तर्गत ग्रामीण जनता को सुचारुरूप से उचित मूल्य पर उपभोक्ता सामग्री प्राप्त हो इस उद्देश्य से विभाग की सहकारी समितियों द्वारा 3370 लाख रुपए का व्यवसाय किया गया. भेषज एवं जड़ी-बूटी योजना के अन्तर्गत 328 लाख रुपए का व्यवसाय किया गया. इसी योजनान्तर्गत 365 कृषकों को जड़ी-बूटी कृषिकरण हेतु 16 लाख रुपए का ऋण वितरण किया गया. योजनान्तर्गत 4499 नाली क्षेत्रफल में जड़ी-बूटी कृषिकरण कार्य कराया गया. योजना के माध्यम से कृपकों को जड़ी-वूटी कृषिकरण हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है. राज्य में सभी क्षेत्रों में सामान दरों में उर्वरक, खाद सहकारी समितियों के माध्यम से उपलब्ध कराई गई, जिसके अन्तर्गत 92398 मैट्रिक टन उर्वरक वितरण कर ग्रामीण क्षेत्र की जनता का लाभान्वित किया गया.
वित्तीय वर्ष 2008-09 में सहकारी समितियों के माध्यम से 22,625 लाख रुपयों का ऋण वितरण लक्ष्य के सापेक्ष माह दिसम्बर 2008 तक 923 लाख रुपए का ऋण वितरण किया गया. 19,600 नए सदस्य बनाए गए 223 लाख रुपए अंशधन में वृद्धि किए जाने के लक्ष्य के सापेक्ष माह दिसम्बर 2008 तक 1122 नए सदस्य बनाकर 13 लाख रुपए अंशधन में वृद्धि की गई. उन्नतशील बीज वितरण के लक्ष्य 8300 क्ंविटल के सापेक्ष माह दिसम्बर 2008 तक 399 किंविटल बीज वितरण कृषकों को किया गया.
सहकारिता क्षेत्र के राज्यस्तरीय सहकारी बैंक का निबन्धन कर दिया गया है भारतीय रिजर्व बैंक से लाइसेन्स प्राप्त होने के पश्चातु बैंक द्वारा विधिवत् कार्य प्रारम्भ कर दिया जाएगा. दूसरी शीर्ष सहकारी संस्था उत्तराखण्ड राज्य सहकारी विपणन संघ का गठन कर दिया गया है, जिसके द्वारा अक्टूबर 2002 से विधिवत् कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है विपणन संघ द्वारा उर्वरक, बीज वितरण, उपभोक्ता व्यवसाय, कृषि रक्षा रसायन वितरण, गेहूँ खरीद आदि का कार्य सुचारु रूप से किया जा रहा है.
राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम द्वारा एकीकृत सहकारी विकास परियोजना के अन्तर्गत हरिद्वार, चमोली तथा पिथौरागढ़ में आई.सी.डी.पी. परियोजना सुचारु रूप से चल रही है. अन्य जनपदों में परियोजना लागू करने हेतु कार्यवाही चल रही है.
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