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Folklore of uttarakhand ,उत्तराखण्ड का लोकसाहित्य

                                                            उत्तराखण्ड का लोकसाहित्य

    लोकसाहित्य में किसी देश अथवा क्षेत्र के जनजीवन की सभी भावनाएं आदिकाल से लेकर वर्तमान काल तक विना किसी कृत्रिमता के सहज रूप में समाविष्ट रहती है. किसी क्षेत्र की संस्कृति की समग्र अध्ययन के लिए वहाँ के लोकसाहित्य का अवलोकन आवश्यक हो जाता है. लोकसाहित्य जनमानस की वह मौखिक और सहज अभिव्यक्ति है जो किसी व्यक्ति विशेष की रचना होते हुए भी सम्पूर्ण क्षेत्र विशेष की सामूहिक निधि होती है. सुनकर फिर यादकर जीवंतता प्राप्त करने वाला साहित्य का यह प्रकार अनेक कण्ठों से विभिन्न रूप धारण करते हुए अन्ततोगत्वा एक सर्वमान्य रूप में प्रचलित हो जाता है. यद्यपि लोकसाहित्य मौखिक रूप में जन्म लेता है
परन्तु अब लोकसाहित्य लिखित रूप में भी प्रकट होने लगा है. लोकसाहित्य को जनसमूह के मनोरंजन के माध्यम के रूप में लोकप्रियता मिलती है. लोकसाहित्य परिनिष्ठित साहित्य का पूर्वज है.

कुमाऊँनी लोकसाहित्य की प्रमुख चार विधाएँ हैं-

1. लोकगीत
2. लोकगाथा
3. लोककया
4. प्रकीर्ण.

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