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उत्तराखंड की शासन प्रणाली (Government of Uttarakhand)

    

उत्तराखंड की शासन प्रणाली
     भारतीय संविधान के अन्तर्गत उत्तराखण्ड में एक राज्यपाल तथा विधान सभा है, उत्तराखण्ड राज्य में विधान
परिषद् नहीं है. राज्य में एक उच्च न्यायालय है, जो नैनीताल में स्थित है. राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित है और उसका प्रयोग वह संविधान के अनुसार या तो स्वयं अथवा अपने अधीनस्य अधिकारियों के माध्यम से करता है. राज्यपाल, जो भारत का नागरिक हो तथा 35 वर्ष से कम आयु का न हो राष्ट्रपति के द्वारा नियुक्त किया जाता है. राज्यपाल राष्ट्रपति की सन्तुष्टि तक अपना पद धारण करता है, उसकी कार्यवाही पद ग्रहण करने की तिथि से पाँच वर्ष तक की होती है, किन्तु वह इस अवधि के समाप्त होने पर भी अपने उत्तराधिकारी के पद ग्रहण करने तक पदासीन रह सकता है, राज्यपाल न तो संसद के किसी सदन का और न ही राज्य विधान सभा का सदस्य होता है. वह संविधान की द्वितीय अनुसूची में उल्लिखित वेतन, भत्तों व विशेषाघिकारों का प्रयोग कर सकता है. राज्यपाल अपना पद ग्रहण करने स पहले राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष संविधान और विधि के परीक्षण और संरक्षण के लिए तथा जनकल्याण के लिए अपनी सेवाएँ अर्पित करने की शपथ लेता है. राज्यपाल को राज्य कार्यपालिका शक्ति के अन्तर्गत किसी अपराध में अथवा किसी विधि के विरुद्ध सिद्ध दोष व्यक्ति के दण्ड को क्षमा, प्रतिलम्बन, विराम या परिहार करने का अथवा दण्डादेश के निलम्बन, परिहार या लघुकरण का अधिकार है.

          राज्यपाल को उसके कार्य संचालन में सहायता अथवा मंत्रणा देने के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित एक मन्त्रिपरिषद् होती है. यह परिषद् ऐसे मामलों को छोड़कर जिनमें विधान के अन्तर्गत राज्यपाल को स्वविवेक से निर्णय लेना हो, शेष सभी कार्यों में उसकी सहायता करती है. यदि कभी यह प्रश्न उठता है कि कोई मामला ऐसा है अथवा नहीं जिसमें राज्यपाल को संविधान के अन्तर्गत स्वविवेक से निर्णय लेना चाहिए, तो इस विषय पर राज्यपाल द्वारा स्वविवेक से लिया गया निर्णय ही अन्तिम माना जाता है. इस सम्बन्ध में उसके कार्य के औचित्य पर आपत्ति नहीं उठायी जा सकती है.

    राज्य का मुख्यमंत्री राज्यपाल द्वारा तथा अन्य मंत्रीगण मुख्यमंत्री के परामर्श पर राज्यपाल द्वारा नियुक्त किए जाते हैं. सभी मंत्री राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त अपना पद धारण करते हैं. मंत्रिपरिषद् राज्य की विधान सभा के प्रति सामूहिक रूप से उतरदायी होती है. राज्यपाल किसी मंत्री को पद ग्रहण करने से पहले संविधान की तीसरी अनुसूची में दिए हुए परिपत्रों के अनुसार पद और गोपनीयता की शपथ दिलाता है. यदि कोई मंत्री निरन्तर छह माह की अवधि तक राज्य के विधान सभा का सदस्य न रहे, तो उस अवधि की समाप्ति पर वह मंत्री पद पर नहीं रह सकता. मन्त्रियों को समय- समय पर राज्य के विधान सभा द्वारा विधि के अन्तर्गत निर्धारित वेतन तथा भते देय होते हैं. राज्य की कार्यपालिका से सम्बन्धित सारी कार्यवाही राज्यपाल के नाम से की जाती है. मुख्यमंत्री राज्य के प्रशासन सम्बन्धी मन्त्रिपरिषद् के समस्त निर्णयों तथा विधान के लिए प्रस्तावित सभी मामलों की सूचना राज्यपाल को देता है साथ ही मुख्यमंत्री राज्य के प्रशासन सम्बन्धी तथा विधान के लिए प्रस्तावित उन मामलों की जानकारी भी राज्यपाल को देता है, जिनकी सूचना राज्यपाल स्वयं माँगते हैं. यदि किसी मामले में किसी एक मंत्री ने एक पक्षीय निर्णय ले लिया है, तो राज्यपाल मन्त्रि- परिषद् से उस पर पुनर्निर्णय लेने के लिए कह सकता है. 


          प्रत्येक सामान्य निर्वाचन के पश्चात् तथा प्रत्येक वर्ष विधानमण्डल के प्रथम सत्र के आरम्भ होने के पूर्व राज्यपाल विधान सभा को सम्बोधित कर उन्हें अवगत कराता है कि  विधान सभा किन कार्यों के निष्पादन के लिए वुलायी गयी है. राज्यपाल विधान सभा द्वारा पारित विधेयकों पर अपनी स्वीकृति के लिए सुरक्षित रखता है. जब तक ऐसी स्वीकृति नहीं मिल जाती तब तक कोई विधेयक अधिनियम नहीं बन सकता. वह विधान सभा के लिए एक ऐंग्लो इण्डियन को मनोनीत करता है. विधान सभा सत्र में न होने के समय यदि वह सन्तुष्ट है की स्थिति होती है की तुरन्त कार्यवाही करने की आवश्यकता है, तो उसे अध्यादेश जारी करने का भी अधिकार प्राप्त है. इस प्रकार जारी किया हुआ अध्यादेश विधान सभा की बैठक होते ही उसके समक्ष रखा जाता है. विधान सभा चाहे, तो उसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है.


विधान सभा
उत्तराखण्ड विधान सभा में मनोनीत ऐंगलो इण्डियन सदस्यों को मिलाकर 71 सदस्य हैं (70 विधान सभा सदस्य + 1 ऐग्लो इण्डियन सदस्य) विधान सभा का कार्यकाल उसकी पहली बैठक से 5 साल तक का होता है बशर्ते कि वह उससे पहले न विघटित कर दी जाए, निर्वाचन 'एक वयस्क एक वोट' के आधार पर किया जाता है.

उत्तराखण्ड के विधान सभा क्षेत्रो का विवर
 क्र. सं. विधान सभा क्षेत्र का नाम जिला 
 1.  पुरोला (अनुसूचित जाति)  उत्तरकाशी
 2गंगोत्री  उत्तरकाशी
 3 यमुनोत्री उत्तरकाशी
 4 प्रतापनगरनयी टिहरी/ टिहरी
 5 टिहरी टिहरी
 6 धनशाली टिहरी
 7 देव प्रयाग टिहरी
 8  नरेन्द्र नगर टिहरी
 9 धनोल्टी (अनुसूचित जाति) टिहरी
 10 चकराता (अनुसूचित जाति) देहरादून 
 11 विकास नगर देहरादून 
 12 सहसपुर (अनुसूचित जाति) देहरादून 
 13 लक्ष्मण चौक देहरादून 
 14 देहरादून (देहरखास) देहरादून 
 15 राजपुर देहरादून 
 16 मसूरी देहरादून 
 17 ऋषिकेश देहरादून 
 18 डोईवाला देहरादून 
 19 भगवानपुर (अनुसूचित जाति)  हरिद्वार
 20 रुड़की  हरिद्वार
 21 इकबालपुर  हरिद्वार
 2 मंगलौर  हरिद्वार
 23  लंढौरा (अनुसूचित जाति)  हरिद्वार
 24 लक्सर  हरिद्वार
 25 बहादराबाद  हरिद्वार
 26 हरिद्वार  हरिद्वार
 27 लाल ढाँग  हरिद्वार
28  यमकेश्वरपौड़ी गढ़वाल 
 29 कोटद्वार पौड़ी गढ़वाल 
 30 घूमा कोट पौड़ी गढ़वाल 
 31 बीरो खाल पौड़ी गढ़वाल 
 32 लैन्सडाउन पौड़ी गढ़वाल 
 33 पौड़ी पौड़ी गढ़वाल 
 34 श्रीनगर (अनुसूचित जाति) पौड़ी गढ़वाल 
 35 थैली  सैंण पौड़ी गढ़वाल 
 36 रुद्रप्रयाग रुद्रप्रयाग
 37 केदारनाथ रुद्रप्रयाग
 38 बद्रीनाथ  चमोली 
 39 नन्दप्रयाग  चमोली 
 40 कर्णप्रयाग  चमोली 
 41 पिण्डर (अनुसूचित जाति)  चमोली 
 42 कपकोट बागेश्वर 
 43 काण्डा बागेश्वर 
 44 बागेश्वर (अनुसूचित जाति) बागेश्वर 
 45 द्वाराहाट अल्मोड़ा
 46 भिकियासैण अल्मोड़ा
 47 सल्ट अल्मोड़ा
 48रानी खेत अल्मोड़ा
 49 सोमेश्वर (अनुसूचित जाति) अल्मोड़ा
 50 अल्मोड़ा अल्मोड़ा
 51 जागेश्वर अल्मोड़ा
 52 मुक्तेश्वर (अनुसूचित जाति)नैनीताल 
 53 धारी नैनीताल 
 54 हल्द्वानी नैनीताल 
 55 नैनीताल नैनीताल 
 56 रामनगर नैनीताल 
57 जसपुर ऊधमसिंह नगर
58 काशीपुर  ऊधमसिंह नगर
 59 वाजपुर ऊधमसिंह नगर
 60 पंतनगर-गदरपुर ऊधमसिंह नगर
 61रुद्रपुर-किच्छा ऊधमसिंह नगर
 62 सितारगंज (अनुसूचित जाति) ऊधमसिंह नगर
 63 खटीमा (अनूसूचित जनजाति)  ऊधमसिंह नगर
 64 चम्पावत  चम्पावत 
 65 लोहाघाट  चम्पावत 
 66 पिथौरागढ़   पिथौरागढ़  
 67 गंगोलीहाट (अनुसूचित जाती) पिथौरागढ़ 
 68 डीडीहाट  पिथौरागढ़ 
 69 कनालीछीना पिथौरागढ़ 
 70 धारचुला (अनुसूचित जनजाति) पिथौरागढ़ 

न्यायपालिका
दीवानी और फीजदारी के मामलों से सम्बन्धित राज्य में एक उच्च न्यायालय है, जो नैनीताल में स्थिति है इसके प्रथम मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए. ए. देसाई हैं. राजस्व के मामलों के लिए सबसे बड़ा न्यायालय राजस्व परिषद् है. संविधान के अनुच्छेद 127 के अन्तर्गत उच्च न्यायालय को अन्य अधीनस्थ न्यायालयों तथा न्यायाधिकारियों के अधीक्षण का पूरा अधिकार है. उच्च न्यायालय एक अभिलेखी न्यायालय है जिसका तात्पर्य यह है कि इसके कार्य तथा कार्यवाहियाँ शाश्वत साक्ष्य हैं. इसके अभिलेखों को इतना उच्च  स्थान प्राप्त है कि उनकी सत्यता को नीचे की किसी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती, अभिलेख न्यायालय के रूप में इसे अपनी अवमानना के दौषी व्यक्तियों को दण्ड देने का अधिकार है, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को भारत के सर्वोच्य न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और राज्यपाल के परामर्श से राष्ट्रपति नियुक्त करता है, अन्य न्यायाधीशों को यह मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से नियुक्त करता है, म्यायाधीश पद के लिए ऐसे ही व्यक्ति योग्य माने जाते हैं, जो भारत के नागरिक हों तथा जिन्होंने भारत के किसी उच्च न्यायालय के सामने अधिवक्ता के रूप में या किसी न्यायिक सेवा के पद पर कम-से-कम दस वर्ष कार्य किया हो. उच्च न्यायालय किसी व्यक्ति या अधिकारी को संविधान के उल्लिखित मूल अधिकारों की रक्षा करने के ध्येय  से आदेश देने में सक्षम है.
            उत्तराखण्ड में अधीनस्थ न्यायिक सेवा का गठन कर दिया गया है इसके अन्तर्गत मुन्सिफ और लघुवाद न्यायाधीश को मिलाकर सिविल जज आते हैं. जिले के स्तर पर जिला  न्यायाधीश अधीनस्त नयिक सेवा का नियंत्रण होता है।  
         दीवानी के मामले में सबसे नीचे का न्यायालय मुंसिफ का न्यायालय होता है।  उसके बाद सिविल जज और जिले में सबसे उच्च न्यायालय जिला जज होता है। 
        राजस्व के मामले में सहायक कलेक्टर और उसके ऊपर अतिरिक्त कलेक्टर और कलेक्टर होते हैं, जो अपीलों के मामलों की सुनवाई करते हैं. राजस्व के मामलों में राजस्व परिषद् ही सर्वोच्च न्यायालय है.


स्वायत्त शासन

        देश के संविधान में वर्णित कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना को साकार करने हेतु नवसृजित उत्तरांचल (अब उत्तराखण्ड) में स्वायत्त शासन को अत्यधिक महत्व दिया गया है, राज्य में जनसंख्या के आधार पर नगरीय एवं ग्रामीण स्वायत्त संस्थाओं एवं संगठनों का वर्गीकरण ग्राम पंचायत, न्याय पंचायत, नगर परिषद् तथा नगर निगम के रूप में किया गया है.

नगरीय स्वायत्त शासन
उत्तराखण्ड में नगरों की व्यवस्था तथा विकास हेतु त्रिस्तरीय स्वायत्त शासन प्रबन्ध किया गया है. इन त्रिस्तरीय नगरीय निकायों को नगर क्षेत्र एवं जनसंख्या के अनुरूप (5000 से 50,000 जनसंख्या तक) नगर पंचायत, 50,000 से 2,00,000 जनसंख्या तक नगरपालिका परिषद् तथा 2,00,000 से अधिक जनसंख्या तक नगर निगम के नाम से वर्गीकृत किया गया है, उत्तराखण्ड राज्य में 38 नगर पंचायत, 31 नगरपालिका परिषद् एवं 3 नगर निगम हैं.

प्रशासनिक इकाई
नवगठित उत्तरांचल (अब उत्तराखण्ड) राज्य में दो मण्डल कुमाऊँ व गढ़वाल के अन्तर्गत 13 जनपदों में 78 तहसीलें, 95 विकास खण्ड, 73 विभिन्न नगर, 7555 ग्राम सभा, 16,606 राजस्व ग्राम, 16,793 ग्राम सम्मिलित किए
गए हैं.

कुमाऊँ भण्डल के जनपद
1, अल्मोड़ा, 2. बागेश्वर, 3. चम्पावत, 4, नैनीताल, 5.पिथोड़ागढ़, 6. ऊधमसिंह नगर,

गढ़वाल मण्डल के जनपद
1. चमोली, 2. देहरादून, 3. गढ़वाल, 4. हरिद्वार, 5. रुद्रप्रयाग, 6. टिहरी गढ़वाल, 7. उत्तरकाशी.

शासन के विभाग एवं कार्यालय
उत्तराखण्ड सरकार ने राज्य में 38 विभागों को गठित किया है, जिनमें से 15 विभागों के मुख्यालय राजधानी
देहरादून में तथा 6 विभागों के मुख्यालय नैनीताल में रखे गये है. कई प्रमुख शहरों में एक या दो विभागों के मुख्यालय बनाए गए हैं.
 देहरादून-सम्पत्ति, खाद्य, बांट-माप एवं उपभोक्ता संरक्षण, चुनाव कार्यालय, पुलिस, सतर्कता, सिंचाई, जल निगम, कोषागार चिकित्सा, मुद्रणालय, नगर एवं ग्राम्य निदेशालय.
श्रीनगर-    विकास आयुक्त उद्योग एवं हथकरघा खादी वस्त्रोद्योग, चीनी उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं  खनिज विभाग.
नैनीताल-    वन संरक्षक, ऊर्जा निगम, विद्युत सेफ्टी. 
हल्दवानी (नैनीताल)-    श्रम, सेवायोजन, समाज कल्याण परिवहन एवं आवास.
पौड़ी   -    विभागीय विशेषज्ञ संवर्ग.
नरेन्द्र नगर (टिहरी)-    होमगाई कमांडेंट ,
ऊधमरसिंह नगर-    महानिरीक्षक कारागार, उप गन्ना आयुक्त.
अल्मोड़ा-    लोक निर्माण विभाग, निदेशक वैकल्पिक ऊर्ज सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार.
रानीखेत-    कृषि एवं उद्यान, सैनिक कल्याण.
गोपेश्वर-    पशुधन एवं मत्स्य विकास.
रामनगर -     शिक्षा.

राज्य योजना आयोग उत्तराखण्ड 
उत्तराखण्ड राज्य हेतु विकास एवं भविष्य के लिए योजनाओं के नवनिर्माण एवं उन योजनाओं के क्रियान्वयन एवं धन के आकलन हेतु राज्य योजना आयोग का गठन किया गया है. इसका मुख्यालय राज्य की राजधानी देहरादून
में स्थित है.

उत्तराखण्ड : विशिष्ट श्रेणी प्राप्त राज्य
केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने उत्तरांचल (अब उत्तराखण्ड) राज्य को 1 अप्रैल, 2001 से विशेष राज्य की श्रेणी प्रदान कर दी है, इस प्रकार उत्तराखण्ड देश के उन 1 राज्यों में सम्मिलित हो गया है, जिन्हें यह विशिष्ट दर्जा हासिल है, विशिष्ट श्रेणी प्राप्त राज्य हैं-सिक्किम, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, असम, नागालैंड , मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम अरुणाचल प्रदेश एवं उत्तराखण्ड.

            सामान्यतया विशिष्ट दर्जा प्राप्त पर्वतीय प्रदेश है, लेकिन केन्द्रीय सरकार ऐसे राज्यों को भी विशिष्ट श्रेणी प्रदान करती है जिनका आर्थिक विकास ठीक ढंग से नहीं हुआ है जनसंख्या घनत्व कम है तथा रक्षा की दृष्टि से संवेदनशील सीमावर्ती राज्य है. केन्द्र सरकार उन राज्यों को भी विशिष्ट श्रेणी प्रदान कर सकती है जिनका वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है.

                    विशिष्ट दर्जा प्राप्त राज्यों को केन्द्रीय सहायता एक विशेष रियायत पर मिलती है. उत्तराखण्ड को अब केन्द्रीय सहायता के रूप में 90 प्रतिशत हिस्सा अनुदान का और 10 प्रतिशत हिस्सा ऋण का होगा, जबकि अन्य राज्यों को मिलने वाली सहायता में अनुदान का भाग 70 प्रतिशत और ऋण को हिस्सा 30 प्रतिशत होता है. इस सुविधा से उत्तराखण्ड विकास में गति मिलेगी तथा उसके चहुँमुखी विकास का मार्ग प्रशस्त होगा.

उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग, हरिद्वार
राज्य सरकार ने उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग का गठन हरिद्वार में किया गया है. इसके प्रथम अध्यक्ष एन.पी. नवानी थे. राज्य लोक सेवा आयोग में अध्यक्ष के अतिरिक्त तीन सदस्य हैं. राज्य लोक सेवा आयोग को राजकीय विभागों के अतिरिक्त बेसिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा से सम्बन्धित चयन का अधिकार प्रदान किया गया है.



मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष
उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष की स्थापना कर दी गई है. यह कोष मुख्यमंत्री के अधीन होगा. उनके द्वारा नामित अधिकारी ही इस कोष से धन निकालने के अधिकारी होंगे इसमें आपदा प्रबन्धन मंत्री की संस्तुति आवश्यक होगी राहत कोष का रख-रखाव आपदा प्रबन्धन विभाग करेगा. जनता और समाजसेवी और स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा दिया गया धन इसमें जमा होगा.
            सरकार ने राज्य की भौगोलिक स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए आपदा राहत कोष का दायरा बढ़ाया है अब राज्य सरकार पेड़ व पहाड़ी से गिरने से घायल हुए लोगों को उचित मुआवजा देगी.