लाल सिंह
भारत की आजादी के लिए अपना सर्वस्व का त्याग करने वाले स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी श्री लाल सिंह परथोली का जन्म ग्राम जाख तहसील चम्पावत, जिला पिथीरागढ़ के एक निर्धन परिवार में हुआ था. लाल सिंह ने स्वतन्त्रता आन्दोलन में कई वार जेल की यात्रा की. 1942 के आन्दोलन में भी जेल की यातना भुगतनी पड़ी. वे आजीवन राष्ट्र की आजादी के लिए संघर्ष करते रहे. इस देशभक्त का स्वर्गवास दिसम्बर 1971 को हो गया. लाल सिंह उत्तराखण्ड में हमेशा याद किए जाते रहेंगे.
नैनसिंह धीनी
नैनसिंह धीनी कुमाऊँ के प्रमुख स्वतन्त्रता सेनानियों में से एक थे. इनका जन्म ग्राम धीनी शिलंग तहसील चम्पावत में 2 अक्टूबर, 1900 में हुआ था, 20 वर्ष की आयु में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए. सन् 1930-32 ई. तक जंगलात सत्याग्रह में अपनी प्रमुख भूमिका निभाई तथा लम्बे समय तक अल्मोड़ा व बरेली जेलों में बंद रहे. 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में लोहापाट में विशाल जुलूस का नेतृत्व किया, उन्हें 19 अगस्त को गिरफ्तार कर अल्मोड़ा जेल भेज दिया गया. वे महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, गोविंद बल्लभ पंत, हर्षदेव ओली के सम्पर्क में रहे तथा आजीवन कांग्रेस से जुड़े रहे.
मंगलेश डबराल
मंगलेश डबराल का जन्म 16 मई, 1948 को ग्राम काफल पानी, टिहरी गढ़वाल में हुआ था, साहित्य के प्रति बचपन से लगाव ही है. आप उत्तराखण्ड में सर्वाधिक प्रचलित एवं प्रसिद्ध कवि हैं. आपकी कई रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं. डबरालजी को साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.
सतपाल महाराज
सतपाल महाराज का जन्म 21 सितम्बर, 1951 को हरिद्वार के उपनगर कनखल में हुआ. सतपाल महाराज उत्तराखण्ड को राजनैतिक व आध्यात्मिक क्षेत्र में उन्नत शिखर पर आलोकित करने हेतु समर्पित है. उत्तराखण्ड आन्दोलन में घायलों एवं पीड़ित परिवारों की चिकित्सा का प्रबन्ध व आर्थिक सहयोग व भूकम्प त्रासदी में राहत सामग्री वितरण में सतपाल महाराज की भूमिका अग्रणी रही. महाराजजी आध्यात्मिक क्षेत्र में एक शिखर पुरुष हैं. देश-विदेश में लाखों अनुयायी मानव धर्म के विस्तारक हैं. राजनीतिक क्षेत्र में भी सतपाल महाराज की भूमिका अग्रणी रही है. 11वीं लोक सभा में संसदीय क्षेत्र पौड़ी से निर्वाचित हुए. देवगौड़ा सरकार में केन्द्रीय रेलमंत्री तथा गुजराल सरकार में केन्द्रीय सरकार में केन्द्रीय वित्त राज्य मंत्री पद को सुशोभित किया. वेतन के रूप में एक रुपया प्राप्त कर सतपालजी ने आदर्श राजनैतिक व्यक्तित्व का उदाहरण प्रस्तुत किया. सतपालजी ने अपने मन्त्रित्व काल में अनेक उल्लेखनीय कार्य किए. उत्तराखण्ड में रेलवे सुविधाओं का विस्तार हुआ तथा अनेक कल्याणकारी योजनाएँ क्रियान्वित हुईं. इन्होंने देश-विदेश में अपने अलौकिक आध्यात्मिक ज्ञान के प्रकाश से उत्तराखण्ड व भारत का नाम रोशन किया है.
डॉ. मुरली मनोहर जोशी
डॉ. मुरली मनोहर जोशी का जन्म 1934 में दिल्ली में हुआ था, लेकिन पैतृक गाँव मल्ली, जनपद अल्मोड़ा है. उच्च शिक्षा एम. एस-सी. (भौतिकी) एवं डी. फिल. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1958 में प्राप्त की. इलाहाबाद विश्व- विद्यालय में ही लेक्चरर से प्रोफेसर पद तक सुशोभित किया. जोशीजी ने लगभग दर्जन शोध छात्रों को अपने निर्देशन में शोध कराया. राजनीतिक क्षेत्र में उनकी उपलब्धियाँ उल्लेखनीय हैं. 1944 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य बने. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर लगे प्रतिबन्ध हटाने के लिए सत्याग्रह किया. इस हेतु अनेक बार जेल की भी यात्रा की. आपात काल के दौरान मीसा के अन्तर्गत 26 जून, 1975 से 1977 तक बन्दी रहे. प्रख्यात भीतिकविद् डॉ. जोशीजी ने कई संगठनों के सदस्य एवं उच्य पद को सुशोभित किया. 1953-56 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, उत्तर प्रदेश शाखा के महासचिव वने. भारतीय जनसंघ के इलाहाबाद के संगठन सचिव पद को सुशोभित किया. उच्चस्तरीय शिक्षा कमेटी. उत्तर प्रदेश के 1968 में सदस्य बने. इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बंगलौर के 1977-79 तक प्रबन्ध समिति के सदस्य रहे हैं. 1977-79 तक रेलवे एक्सीडेंट कमेटी के सदस्य रहे. जनता पार्टी में विलय से पहले 1977 में जनसंघ पार्टी, उत्तर प्रदेश के सचिव एवं उपाध्यक्ष रहे. अखिल भारतीय जनता पार्टी के 1991-93 तक अध्यक्ष पद को सुशोभित किया, भारतीय जनता पार्टी के कोषाध्यक्ष एवं महासचिव पद को भी सुशोभित किया है. वर्तमान में केन्द्र मं मानव संसाधन मंत्री पद पर कार्यरतु हैं. डॉ. जोशीजी ने न केवल राजनैतिक व विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलता अर्जित की है, वरनु लेखन कार्य में सफलता अर्जित की है. हिन्दी में दो पुस्तकें 'विकल्प' तथा प्रज्ञाप्रभा' प्रकाशित हुई हैं. लगभग 100 शोधपत्रों एवं लगभग 100 लेख विभिन्न वैज्ञानिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं. आपके कार्यों की सूची लम्बी है. आप सदैव अति- विस्मरणीय रहेंगे.
खड्गसिंह बाल्दिया
खड्गसिंह वाल्दिया का जन्म 1937 में पिथौरागढ़ जिले में हुआ था. प्रारम्भिक शिक्षा मिशन स्कूल, पिथौरागढ़ से हुई तथा उच्च शिक्षा लखनऊ से ग्रहण की. वाल्दियाजी एक प्रतिभावन छात्र थे. अपनी प्रतिभा तथा योग्यता की वदौलत लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रवक्ता पद प्राप्त हुआ. 1976 में वाल्दियाजी कुमाऊँ विश्वविद्यालय में भू-विज्ञान विभाग में प्रोफेसर और अध्यक्ष रहे. भू-विज्ञान और पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए वाल्दिया को कई उपाधियाँ और पुरस्कार प्राप्त हुए. 1976 में डॉ. शान्तिस्वरूप भटनागर पुरस्कार प्राप्त हुआ. इसके अतिरिक्त वर्ष 1992-93 के लिए राष्ट्रीय खनिज पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.
डॉ. आदित्यनारायण पुरोहित
डॉ. आदित्यनारायण पुरोहित का जन्म 30 जुलाई, 1940 को ग्राम किमनी जनपद चमोली में हुआ था, पादप रोग विज्ञान में एम. एस-सी. करने के पश्चात् 1968 में पंजाब विश्यविद्यालय से पी-एच. डी. की उपाधि ग्रहण की. डॉ. पुरोहित कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं. वन अनुसन्धान संस्थान, देहरादून में शोध सहायक रहे. ब्रिटिश कोलम्बिया विश्वविद्यालय, वेनकुवर में भी अनुसन्धान सहायक रहे. गढ़वाल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर रहे. गोविन्द बल्लभ पंत पर्यावरण संस्थान, कोसी में निदेशक के पद को सुशोभित किया.
भवानीदत्त पुनेठा
काली कुमाऊँ के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में भवानीदत्त पुनेठा का विशिष्ट स्थान रहा है. तहसील चम्पावत के भुमलाई नामक ग्राम में घनश्याम पुनेठा के पुत्र के रूप में 5 सितम्बर, 1908 को इनका जन्म हुआ था. श्री पुनेठा कुशाग्र बुद्धि के व्यक्ति थे. अपनी सरकारी नौकरी त्याग कर स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े तथा गांधीजी द्वारा संचालित आन्दोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया. बढ़ती लोकप्रियता के कारण धारा 26 डि. आई. आर. के तहत गिरफ्तार करके लोहायाट जेल में रखा गया पुनः अल्मोड़ा जेल में स्थानान्तरित किया गया. देश की स्वाधीनता के वाद एक सफल चिकित्सक के रूप में देश की सेवा की.
नैनसिंह
ग्राम बाराकोट के नैनरसिंह पुत्र श्री माधोसिंह का जन्म 25 अगस्त, 1898 को हुआ था. उन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम में सन् 1942 में 12 अगस्त, 1942 से 12 फरवरी, 1944 तक 1 वर्ष की नजरवंदी जिला जेल अल्मोड़ा व वरेली में काटी.
शेरसिंह व गणेश सिंह
आजादी के दो दीवाने भाई शेरसिंह व गणेश सिंह का जन्म बाराकोट के एक गरीब कृषक परिवार में हुआ था. इन दोनों भाइयों ने 1930 के जंगलात आन्दोलन के दौरान स्वतन्त्रता संग्राम के महासमर में भाग लिया. भारत छोड़ो आन्दोलन में दोनों भाइयों ने महती भूमिका अदा की. गौरव के प्रतीक
सुरजीत सिंह बरनाला
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री एवं तमिलनाडु के पूर्व राज्यपाल श्री सुरजीत सिंह बरनाला को नवसृजित राज्य उत्तराखण्ड का प्रथम राज्यपाल नियुक्त होने का गौरव हासिल हुआ है, अपने गृह प्रदेश पंजाब से राजनीतिक सफर शुरू करने वाले बरनाला मोरारजी देसाई की सरकार में कृषि मंत्री थे. चरम आतंकवाद के दौर में राजीव गांधी-संत हरचंद सिंह लोंगोवाल समझीते के बाद पंजाब में हुए चुनाव के बाद अकाली दल को विजय हासिल हुई जिसमें श्री बरनाला को पंजाब के मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ. वर्ष 1998 में गठित अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में पुनः उन्हें कृषि मंत्री बनने का सुअवसर प्राप्त हुआ. काँग्रेस के समर्थन से वनी चन्द्रशेखर द्वारा तमिलनाडू के राज्यपाल पद पर विराजमान तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि की सरकार को वरखास्त करने के दवाव में न आने के कारण उन्हें लोकतान्त्रिक मूल्यों पर अडिग रहने के कारण शोहरत व प्रशंसा मिली. यद्यपि उन्हें पद से हटना पड़ा. मूदुभाषी सुरजीतसिंह बरनाला को जरूरत पड़ने पर कठोर कदम उठाने वाला भी माना जाता है,
नित्यानंद स्वामी
देश के 27वें राज्य उत्तराखण्ड के प्रथम ऐतिहासिक मुख्यमंत्री निर्वाचित होने का गौरव हासिल हुआ. 75 वर्षीय नित्यानंद स्वामी 1942 ई. की आजादी की लड़ाई में जेल गए थे. वे उ. प्र. विधान सभा के 1969 से 1974 तक सदस्य रहे. वे 1984 से लगातार तीन वार पर्वतीय अंचल के स्नातक क्षेत्र से विधान परिषद् के लिए चुने जाते रहे. 27 दिसम्बर, 1928 को देहरादून में जन्मे श्री स्वामी 1950-51 के दौरान डी. ए. वी. कॉलेज देहरादून के छात्र संघ के अध्यक्ष रहे. इसी कालेज से उन्होंने 'वैचलर ऑफ लॉ की डिग्री हासिल की. पढ़ाई के दौरान ही वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक भी रहे. जनसंघ के उम्मीदवार के रूप में 1957, 62, 67 और 1969 में देहरादून क्षेत्र से विधान सभा चुनाव लड़े.
अजय विक्रम सिंह
नवसृजित राज्य उत्तराखण्ड के पहले मुख्य सचिव अजय विक्रम सिंह 1967 वैच के आई. ए. एस. अधिकारी हैं. राजस्थान के अजमेर जिले के मूल निवासी ए. वी. सिंह की पहली नियुक्ति असिस्टेण्ट मजिस्ट्रेट के रूप में इलाहाबाद में हुई थी. जिलाधिकारी के रूप में उन्हें पहली तैनाती गाजीपुर में 1971 में मिली. वह मुरादाबाद और हाथरस के जिलाधिकारी तथा लखनऊ के आयुक्त रहे. भारत सरकार में वह कैबिनेट सेक्रेटरी के अनुसचिव, ओ. एस. डी. और डिप्टी सेक्रेटरी, नेशनल डिफेंस कॉलेज के निदेशक होते हुए वाद में संयुक्त सचिव और अपर सचिव के पद पर रहे. अक्टूबर, 1999 में वह प्रदेश सरकार के औद्योगिक विकास आयुक्त और प्रमुख सचिव बने, इस पद पर रहते हुए 55 वर्षीय अजय विक्रम सिंह को उत्तराखण्ड के पहले मुख्य सचिव बनने का गौरव हासिल हुआ. प्रदेश में निर्यात निगम के प्रबन्ध निदेशक सहित अन्य औद्योगिक उपक्रमों के प्रमुख रह चुके अजय विक्रम सिंह की अधिकांश तैनाती उद्योग से जुड़े विभागों में रही और इन्हें इस क्षेत्र का विशेषन्ञ माना जाता है. उत्तराखण्ड के मुख्य सचिव के रूप में उनके सामाने इस राज्य को औ्योगिक दृष्टि से समर्थ और स्वावलम्बी वनाने की भी मुख्य जिम्मेदारी है. अशोक कान्त शरण को उत्तराखण्ड के पहले पुलिस महानिदेशक होने का गौरव हासिल हुआ है. इस नए दायित्व को वहन करने से पूर्व वह उत्तर प्रदेश पुलिस में होमगार्ड और नागरिक सुरक्षा के महानिदेशक पद पर थे. प्रतिष्ठित पारिवारिक भूमि के ए. के. शरण का जन्म 30 अप्रैल, 1942 को हुआ था. अपराध अन्वेषण के क्षेत्र में अनुभवी अधिकारी 1965 वैच के यू. पी. कैडर के आई. पी. एस. अधिकारी श्री शरण की शिक्षा-दीक्षा पटना में हुई. उन्होंने राजनीतिशास्त्र में एम. ए. करने के अलावा विधि स्नातक की डिग्री भी हासिल की. इसके बाद वह भारतीय पुलिस सेवा में आ गए. प्रारम्भ में कानपुर के अपर पुलिस अधीक्षक रहे. पुलिस कप्तान के रूप में मुरादाबाद, वॉदा, आजमगढ़ व फतेहपुर में कानून व्यवस्था की कमान सम्भाली. इसके बाद वह गढ़वाल और लखनऊ रेंज के अलावा अपराध अन्वेषण शाखा में डी.आई.जी. रहे. अपर पुलिस महानिदेशक के रूप में दो बार अपराध अनुसन्धान इकाई में मुखिया रहे.
यशपाल आर्य
उत्तराखण्ड की पहली नवनिर्वाचित विधान सभा के अध्यक्ष यशपाल आर्य निर्विरोध चुने गये. आर्य का जन्म नैनीताल जिले के राजगढ़ विकास खण्ड के गाँव न्यूनरा (वोहराकोट) में एक साधारण परिवार में हुआ था. दलित समुदाय से जुड़े आर्य 1989 ई. में खटीमा विधान सभा क्षेत्र से पहली वार उत्तर प्रदेश विधान सभा के रूप में निर्वाचित हुए. वे 1993 में फिर से खटीमा से काँग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गये. वे उत्तराखण्ड की पहली निर्वाचित विधान सभा के लिए नैनीताल जिले की मुक्तेश्वर विधान सभा (आरक्षित) सीट से चुने गये.
भगतसिंह कोश्यारी
पृथक् उत्तराखण्ड आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले भगत सिंह कोश्यारी को उत्तराखण्ड के दूसरे मुख्यमंत्री होने का गौरव हासिल हुआ. 17 जून, 1942 को अल्मोड़ा में जन्मे कोश्यारी की प्राथमिक शिक्षा मेहरगढ़ी और माध्यमिक शिक्षा कपकोट में पूरी हुई. उन्होंने 1964 ई. में आगरा विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक डिग्री हासिल की. कुछ दिन तक एटा में अध्यापन कार्य भी किया, लेकिन अन्ततः कर्मभूमि पर्वत की वादियों को ही बनाया. आपातकाल के दौरान श्री कोश्यारी अल्मोड़ा व फतेहगढ़ जेल में निरुद्ध रहे. पृथकू राज्य के सन्दर्भ में उन्होंने कुछ पुस्तकें भी लिखी हैं.
हेमवती नंदन बहुगुणा
धरती पुत्र के नाम से विख्यात श्री हेमवती नंदन बहुगुणा का जन्म सन् 1919 को ग्राम बुधाणी, पट्टी चलणस्थें जिला पौड़ी गढ़वाल में हुआ था. छात्र जीवन से ही देश के राजनीतिक अवस्था के प्रति चिन्तित रहे. छात्र होते हुए भी भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया और जेल गए. 1943- 45 के वर्षों में उत्तर प्रदेश छात्र फेडरेशन के सचिव तथा 1941। में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र संघ की कार्यकारिणी के सदस्य रहे. बुहुगुणाजी ने अनेक मजदूर यूनियन की स्थापना की. उन्होंने मजदूर सभा इलाहाबाद, यू. पी. इण्डिया नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस के सचिव, इण्डियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य, अखिल भारतीय विद्युत् कर्मचारी संघ के अध्यक्ष रहे. इस प्रकार बहुगुणाजी ने मजदूरों की समस्याओं को समझने एवं सुलझाने में जीवनपर्यन्त संघर्ष किया. बहुगुणाजी ने अनेक महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित किया. बहुगुणाजी (1952-69) इलाहाबाद से विधायक चुने गए. 1958-60 तक उत्तर प्रदेश के श्रम एवं उद्योग राज्यमंत्री रहे. 1967 में वित्त एवं यातायात मंत्री रहे. इसके पश्चात् 1971- 74 तक इलाहाबाद लोक सभा के सदस्य बने. जनवरी 1980 में गढ़वाल से लोक सभा के सदस्य चुने गए. 1973-75 तक बहुगुणाजी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. 1977-79 तक भारत सरकार में पेट्रोलियम मंत्री रहे. जुलाई 1979 से अक्टूबर 1979 तक भारत सरकार के वित्त मंत्री रहे. बहुगुणाजी जीवनपर्यन्त संघर्षशील और कर्मटी रहे. उत्तराखण्ड के विकास के लिए वे सतत् प्रयत्नशील रहे. उन्होंने विभिन्न योजनाओं, उद्योगों की उत्तराखण्ड में स्थापना करके यहाँ के विकास मार्ग को आगे बढ़ाया. उतराखण्डवासी उनके अमूल्य योगदान को सदैव याद रखेंगे.
सुमित्रानंदन पंत
प्रकृति और सौन्दर्य के सुकुमार कवि, छायावाद के प्रमुख स्तम्भ, अरविन्द दर्शन के व्याख्याता सुमित्रानंदन पंत हिन्दी साहित्य की एक महान् विभूति थे. प्रकृति चित्रण के अमर गायक कविवर सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई, 1900 को अल्मोड़ा के निकट कौसानी नामक ग्राम में हुआ था. पंतरजी की उच्च शिक्षा का पहला चरण अल्मोड़ा में पूरा हुआ, यहीं पर उन्होंने अपना नाम गुसाई दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया. 28 दिसम्बर 1977 को इनका देहावसान हो गया. पंतजी बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार थे. इनकी रचनाओं में लोकायतन, वीणा, पल्लव, गुंजन, ग्रंथि, स्वर्ण धूलि, स्वर्ण किरण, युगपथ आदि प्रमुख हैं, पंत जी महर्षि अरविन्द के नवचेतनावाद से प्रभावित थे. युगान्त, युगवाणी और ग्राम्या में कवि समाजवाद और भौतिक दर्शन की ओर उन्मुख हुआ है. इन रचनाओं में कवि ने दीन-हीन और शोषित वर्ग को अपने काव्य का आधार बनाया है.
लीलाधर जगूड़ी
लीलाधर जगूड़ी का जन्म । जुलाई, 1944 से टिहरी जिले के धंगण गाँव में हुआ था. जगूड़ीजी का परिवार आर्थिक रूप से सम्पन्न नहीं था इसलिए आजीविका के लिए संघर्ष करना पड़ा. सेना में भी कार्य किया, लेकिन वहुत दिन तक सेना में नहीं रहे. 1966-1980 तक शासकीय विद्यालय में सेवा की. साहित्य से अनुराग होने के कारण अनेक रचनाओं का सृजन किया. इसके लिए जगूड़ीजी को साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. उनकी रचनाओं में-शंखमुखी शिखरों पर नाटक जारी है, रात अब भी मौजूद प्रमुख है 'महाकाव्य के विना' लम्बी कविताओं का संग्रह है. साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत श्री जगूड़ी ने उत्तर प्रदेश के सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में उपनिदेशक पद को सुशोभित किया है. वह राज्य के मुख्यमंत्री के सूचना सलाहकार रहे हैं और उन्हीं के परामर्श से राज्य का सूचना एवं जनसम्पर्क निदेशालय गठित किया गया है.
मृणाल पाण्डेय
दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर समाचार वाचिका के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाली मृणाल पाण्डेय का जन्म 26 फरवरी, 1946 को टीकमगढ़ (मध्य प्रदेश ) में हुआ. सुविख्यात लेखिका शिवानीजी की पुत्री हैं. मृणालजी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की. आप शुरू से ही साहित्यिक गतिविधियों से जुड़ी रहीं, आपने कई एक कहानी-संग्रह, उपन्यास तथा नाटक लिखे. कहानी-संग्रहों में दरम्यान, शब्दवेधी, एक नीच ट्रेजडी महत्वपूर्ण हैं. उपन्यासों में विरुद्धा पटरंगपुर पुराना महत्वपूर्ण है नाटकों में काजर की कोठरी, चोर निकल के भागा, जो राम रचि राखा उल्लेखनीय हैं. मृणालजी सम्पादन का भी कार्य किया. 'वामा', 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' व दैनिक हिन्दुस्तान की सम्पादक रह चुकी हैं.
डॉ. पार्थसारथि डबराल
डॉ. पार्थसारथि का जन्म 25 फरवरी, 1936 को ग्राम निमली डबरालस्यूँ गढ़वाल में हुआ था. इनकी शिक्षा ग्राम तिमली से प्रारम्भ होकर दुगडा एवं देहरादून में हुई तथा शोधकार्य प्रयाग विश्वविद्यालय में सम्पन्न हुआ. डॉ. डबराल की साहित्यिक शुरूआत कक्षा 9 से ही प्रारम्भ हो गई थी. 18 वर्ष की किशोरावस्था में ही इनकी पहली कविता 'कर्मभूमि' में छपी. अध्ययनकाल में ही इनकी प्रथम कविता-संग्रह 'रेत की छाया' 1962 में छपी. इनकी सर्वाधिक लोकप्रिय कविता-संग्रह 'लंगड़ी किरण' 1971 में प्रकाशित हुआ. 'दो वैल एक ट्रेक्टर' इनकी अन्य कविता- संग्रह है, 1979 में डबराल की खण्डकाव्य 'धरती से पृथ्वी" प्रकाशित हुआ. 1980 में खण्डकाव्य 'नारीतार्य' प्रकाशित हुआ. 'उत्तस्यांदिशी' कृति उत्तराखण्ड के जनजीवन पर लिखी गई कृति है, डबराल ने 11 संगीतपरक भी लिखे. संगीत और कथ्य की दृष्टि से इन काव्य नाटिकाओं का अत्यन्त सम्मान हुआ. डबराल को उनकी साहित्यिक कृतियों के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा निराला पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
सुभाष धूलिया
सुभाष धूलिया का जन्म 23 जून, 1952 में ग्राम मदनपुर पौढ़ी गढ़वाल में हुआ था. प्रारम्भिक शिक्षा ग्राम में हुई. उच्च शिक्षा इन्होंने देहरादून से प्राप्त की. 1977 में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ जर्नलिज्म बुडापेस्ट से किया. इसके अलावा 1987 में फिल्म एवं दूरदर्शन संस्थान पूना से टेलीविजन प्रोडक्शन कोर्स किया. आपने अनेक स्क्रिप्ट्स का लेखन एवं सम्पादन किया. दूरदर्शन कार्यक्रम के लिए अनेक कार्यक्रमों का निर्माण किया. वर्तमान समय में धूलियाजी मास कम्युनिकेशन के भारतीय संस्थान में एसोसिएट प्रोफेसर हैं तथा अनेक पत्र- पत्रिकाओं में लेखन कार्य करते हैं.
डॉ. डबराल
डॉ. डबराल की साहित्यिक शुरूआत कक्षा 9 से ही प्रारम्भ हो गई थी. 18 वर्ष की किशोरावस्था में ही इनकी पहली कविता 'कर्मभूमि' में छपी. अध्ययनकाल में ही इनकी प्रथम कविता-संग्रह 'रेत की छाया' 1962 में छपी. इनकी सर्वाधिक लोकप्रिय कविता संग्रह 'लंगड़ी किरण' I971 में प्रकाशित हुआ. 'दो बैल एक ट्रेक्टर' इनकी अन्य कविता- संग्रह है. 1979 में डबराल की खण्डकाव्य धरती से पृथ्वी' प्रकाशित हुआ. 1980 में खण्डकाव्य 'नारीतार्थ' प्रकाशित हुआ. 'उत्तस्यांदिशी' कृति उत्तराखण्ड के जनजीवन पर लिखी गई कृति है. डबराल ने ॥ संगीतपरक भी लिखे. संगीत और कथ्य की दृष्टि से इन काव्य नाटिकाओं का अत्यन्त सम्मान हुआ. डबराल को उनकी साहित्यिक कृतियों के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा निराला पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
सुभाष धूलिया
सुभाष धूलिया का जन्म 23 जून, 1952 में ग्राम मदनपुर पौढ़ी गढ़वाल में हुआ था. प्रारम्भिक शिक्षा ग्राम में हुई. उच्च शिक्षा इन्होंने देहरादून से प्राप्त की. 1977 में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ जर्नलिज्म बुडापेस्ट से किया. इसके अलावा 1987 में फिल्म एवं दूरदर्शन संस्थयान पूना से टेलीविजन प्रोडक्शन कोर्स किया. आपने अनेक स्क्रप्ट्स का लेखन एवं सम्पादन किया. दूरदर्शन कार्यक्रम के लिए अनेक कार्यक्रमों का निर्माण किया. वर्तमान समय में धूलियाजी मास भारतीय संस्थान में एसोसिएट प्रोफेसर हैं तथया अनेक पत्र- पत्रिकाओं में लेखन कार्य करते हैं.
मेजर जनरल भुवनचन्द खंडूरी
भुवनचन्दजी का जन्म 1 अक्टूबर, 1933 को देहरादून में हुआ था. इनका पैतृक गाँव महरगाँव, जिला पीड़ी गढ़वाल में है. प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में तथा हाईस्कूल व इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा मेसमोर इण्टर कॉलेज, पीड़ी से उत्तीर्ण की. बी. एस-सी. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से तथा वी. ई. (सिविल) मिलिट्री इंजीनियरिंग कॉलेज पूना से उत्तीर्ण की. इनका भारतीय सेना के लिए चयन हुआ तथा सेना के उच्चतम पद तक पहुँचे. सेना से अवकाश प्राप्त करने के पश्चात् सक्रिय राजनीति से मोर्चा सँभाला और भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश शाखा के उपाध्यक्ष नियुक्त हुए. इसके साथ ही भाजपा उत्तराखण्ड, सदस्य राष्ट्रीय कार्यकारिणी भाजपा अध्यक्ष, पूर्व सैनिक सेवा परिषद् जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर रहे हैं. डूरीजी एक कुशल सैनिक, सफल प्रशारक के साथ- साथ खेल से भी अप्रतिम लगाय पा. मिलिडदी इंजीनियरिंग कॉलेज, पुणे से फुटवाल, हांकी, र्वयैश और टेनिस में कलर होल्डर भी हैं. खडरी को 1982 में अति विशिष्ट सोवा मेडल से सम्मानित किया गया. सन् 1991-96 की लोक सभा में गढ़वाल से विजय प्राप्त की. न्यायप्रियता, मिलनसार स्वभाव व स्व 8वि के कारण उत्तराखण्ड में विशेष लोकप्रिय हैं, आप उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रह चुके है.
हिमांशु जोशी
हिमांशु जोशी का जन्म 4 मई, 1935 में उत्तराखण्ड में हुआ. हिन्दी के अग्रणी कथाकार एवं पत्रकार विगत चालीस वर्षों से लेखन तथा पत्रकारिता क्षेत्र में सकिय हैं आपने कई वर्षों तक देश की अग्रणी पत्रिका साप्ताहिक हिन्दुस्तान में भी कार्य कर चुके हैं. साहित्यिक क्षेत्र में हिमांशु जोशी ने अनेक उल्लेखनीय कार्य किया है. आपकी अनेक रचनाएँ, उपन्यास, कहानी- संग्रह, कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. उपन्यासों में अरण्य, महासागर, छाया मत छूना, मन कगार की ओर और सूराज महत्वपूर्ण हैं. कहानी-संग्रह में संघर्ष गाथा, चर्चित कहानियाँ, आंचलिक कहानियाँ, श्रेष्ठ प्रेम कहानियाँ प्रमुख हैं. जोशीजी हिन्दी साहित्य जगत् के श्रेष्ठ कथा लेखक हैं. उन्होंने प्रचुर मात्रा में लेखन कार्य किया है, जोकि संख्यात्मक होने के साथ साथ गुणात्मक दृष्टि से भी बहुत श्रेष्ठ है. उन्हें साहित्यिक दृष्टि से भी वहुत सम्मान मिला है. उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से पुरस्कार से नवाजा गया है. इसके अलावा हिन्दी अकादमी से तथा राजभाषा विभाग, विहार से पुरस्कृत किया गया है. पत्रकारिता के लिए केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
विद्यासागर नौटियाल
विद्यासागर नौटियाल का जन्म 29 सितम्बर, 1933 को टिहरी गढ़वाल जिले के भागीरथी तट पर वसे गाँव मालीदेवल में हुआ था. नीटियालजी छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय हो गए थे, मात्र 14 साल की किशोरावस्था में टिहरी रियासत के सामंती शासन (1947) के विरुद्ध जनसंघर्ष करते हुए पहली बार जेल गए. प्रखर कम्युनिस्ट नेता नरेन्द्र साकलानी की जनक्रान्ति से प्रेरित होकर वामपंथी आन्दोलन में सक्रिय हो गए. राजनीति में सक्रिय भागीदारी के साथ-साथ साहित्य में भी सक्रियता बाल्यावस्था से ही रही. 1953 में पहली कहानी भैंस का कट्या' प्रकाशित हुई जिसने नौटियालजी को साहित्य जगत् में प्रसिद्धि दिला दी. 1980 में नौटियालजी टिहरी जिले के देवप्रयाग क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधान सभा के लिए चुने गए. नौटियालजी सक्रिय राजनीति में रहने के साथ साथ साहित्य से भी जुड़े रहे. इनकी अनेक कहानियाँ व उपन्यास प्रकाशित हुए हैं. राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कहानियाँ प्रकाशित होती रहती हैं. सोना (नय) कहानी का नाट्य रूपान्तरण दूरदर्शन पर भी प्रसारित हो चुका है. नौटियालजी व्यवसाय से एक प्रतिष्ठित वकील हैं, एक साहित्यकार, वामपंथी आन्दोलन और वकालत तीनों विपरीत जीवन के कोणों को नौटियाल ने अपनी प्रतिभा, लगन व निष्ठा से एक कर दिया है. वे युवकों के प्रेरणा ग्रोत हैं.
मोहनलाल बाबुलकर
बाबुलकरजी का जन्म 1931 को ग्राम मुद्दियाली, देवप्रयाग, गढ़वाल में हुआ था. मोहनलालजी उच्चकोटि के आँचलिक साहित्यकार हैं. आंचलिक साहित्यकार मोहनलाल वाबुलकरजी ने अनेक रचनाओं का सृजन किया. इन रचनाओं में हिमालय के वरदान, मिट्टी में सोना, लड़खड़ाते कदम, सही रास्ता, दक्षिण भारत, अनीपचारिक शिक्षा, दहेज, पशुधन, अँधेरे से उजाला, सूरजमुखी की खेती, ग्रामीण उद्योग प्रमुख हैं. बाबुलकरजी कई पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादक भी हैं. इनमें देवप्रयाग, सांस्कृतिक सम्मेलन पत्रिका, पय कादम्बरी, नवज्योति मासिक पत्रिका प्रमुख हैं. राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत लेखक श्री बाबुलकरजी विविध पत्र-पत्रिकाओं में स्वतन्त्र लेखन कार्य में संलग्न हैं. उत्तराखण्ड की उन्नति ही इनके जीवन का लक्ष्य है. यही कारण है कि सभी रचनाओं की विषय-वस्तु उत्तराखण्ड ही रहता है. इनकी रचनाओं में क्षेत्र के विषय में चिन्ता य आशावादिता की झलक दिखाई देती है.
डॉ. नीलाम्बर पंत
डॉ. नीलाम्बर पंत का जन्म 25 जुलाई, 1931 को अल्मोड़ा में हुआ था. इण्टरमीडिएट की परीक्षा अल्मोड़ा कॉलेज के पास करने के बाद सन् 1948 में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रवेश किया. सन् 1952 में उन्होंने भौतिकी में स्नातकोत्तर किया. 1965 में उन्हें उस दल में शामिल किया गया, जिसे भारत का प्रथम प्रयोगात्मक उपग्रह संचार पृथ्वी स्टेशन स्थापित करने का कार्य सींपा गया था. पूना के निकट आर्वी में यह स्टेशन स्थापित किया गया जिसके निर्माण तथा प्रबन्धन में डॉ. पंत का विशेष योगदान रहा. इसके अतिरिक्त अहमदाबाद, दिल्ली और अमृतसर के पृथ्वी केन्द्रों में सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरीमेंट साइट स्थापित करने में इनका सराहनीय योगदान रहा. हॉ. नीलाम्बर पंत 1977 में भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन के अन्तरिक्ष प्रायोगिक केन्द्र, अहमदाबाद के अध्यक्ष विपक्त किए गए. भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन के केन्द्र का निदेशक के पद को भी सुशोभित किया. सन 95 में भारतीय अन्तरिक्ष उपग्रह केन्द्र, बंगलौर का निदेशक नियुक्ता किया गया. इनके दिशा निर्देश में तीन वड़ी उपग्रह परियोजनाएँ आई. आर. एस. और एस. आर. ओ. एस. एवं इन्सैट-2 सफलतापूर्वक तैयार किया गया. अन्तरिक्ष के क्षेत्र में किए गए अमूल्य योगदान के लिए डॉ. पंत को अनेक पुरस्कारों से पुरस्कृत किया गया है. सन् 1976 में इलेक्ट्रॉनिक्स और दूरसंचार के क्षेत्र में 1975 का श्री हरिओम आश्रम प्रीति, डॉ. विक्रम साराभाई अनुसन्धान पुरस्कार प्रदान किया गया. भारत सरकार द्वारा 1984 में पदुमश्री" से अलंकृत किया गया. 'पद्मश्री' प्राप्त करने वाले डॉ. पंत पहले वैज्ञानिक हैं. 1985 में डॉ. विरन राय अन्तरिक्ष पुरस्कार भी उन्हें प्रदान किया गया. वर्तमान समय में भी डॉ. नीलाम्बर पंत अन्तरिक्ष एवं दूरसंचार क्षेत्र में अपनी बहुमूल्य सेवा दे रहे हैं. एस.
डॉ. दिनेश चंद बलूनी
राष्ट्रीय अध्यापक पुरस्कार से सम्मानित कोटद्वार के शिक्षक डॉ. दिनेश चंद बलूनी की पुस्तक 'उत्तराखण्ड की लोक गाधाएँ' को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा वर्ष 2000 के डॉ. पीताम्बर दत्त वड़ध्याल पुरस्कार से नवाजा गया है.
रमेश चन्द्र शाह
हिन्दी के सुप्रसिद्ध आलोचक, कवि व कथाकार रमेश चन्द्र शाह को वर्ष 2001 का प्रतिष्ठित व्यास सम्मान दिया गया. 65 वर्षीय शाह को यह सम्मान उनकी चचित पुस्तक आलोचक का पक्ष' के लिए दिया गया. के. के. विड़ला फाउण्डेशन द्वारा प्रदत्त इस पुरस्कार में ढवाई लाख रुपये की राशि और एक प्रशस्ति पत्र दिया जाता है. अल्मोड़ा में जन्मे शाह हमीदिया कॉलेज भोपाल में अग्रेजी विभाग में विभागाध्यक्ष रह चुके हैं. वह निराला सूजन पीठ, भोपाल के निदेशक भी रहे. उनके अव तक पाँच कविता संग्रह, छह उपन्यास, छह साहित्यिक आलोचना के ग्रंथ और कहानी तया निवन्ध के कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं,
श्रीश डोभाल
राज्य के जाने माने रंगकर्मी श्रीश डोभाल को वर्ष ম0] का 'लक्ष्मी प्रसाद नौटियाल स्मृति पुरस्कार' से सम्मानित किया गया है. गढ़वाल क्षेत्र में आधुनिक रंगमंचीय गतिविधियों को नई दिशा देने वाले डोभाल ने उत्तरकाशी सहित टिहरी, कोटद्वार आदि अनेक स्थानों में एक-एक माह की कार्यशालाएँ आयोजित कीं. इसके अतिरिक्त स्थानीय संस्कृति कर्मियों एवं युवाओं को प्रशिक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. श्रीश डोभाल ने 'शैलनर संस्था' की स्थापना की है, जो रंगमंचीय गतिविधियों में नयी चेतना जागृत कर रहा है.
कलावती रावत
बछेर महिला मंगल दल की अध्यक्षा सुश्री कलावती रावत को वर्ष 2000 का ग्राम जीवन में रचनात्मक पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. चमोली जिले में जन आन्दोलनों में सक्रिय भूमिका निभाने वाली सुश्री रावत को लगातार दूसरे वर्ष इस पुरस्कार से नवाजा गया है.
पदम बहादुर मल
देहरादून निवासी पदम वहादुर मल ने एशियाई खेलों में मुक्केबाजी में स्वर्ण पदक जीता था.
सुन्दरलाल बहुगुणा
चिपको आन्दोलन के अग्रणी नेता श्री सुन्दरलाल वहुगुणा का जन्म सन् 1927 को ग्राम मरोड़ा, जुवापट्टी जिला टिहरी गढ़वाल में हुआ था. वहुगुणाजी ने आपना सम्पूर्ण जीवन ही वृक्षों के प्रति अपने प्रेम के लिए समर्पित कर दिया. उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए भारत सरकार द्वारा 1981 में 'पद्मश्री' पुरस्कार से अलंकृत किया गया जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया. बहुगुणाजी को सिंधवी ट्रस्ट द्वारा 1984 में राष्ट्रीय एकता पुरस्कार और वृक्ष मित्र संस्था, बम्बई द्वारा 1985 में वृक्ष मानव पुरस्कार प्रदान किया गया. सादगी की प्रतिमूर्ति बहुगुणाजी ने सम्पूर्ण उत्तराखण्ड का कई वार पैदल भ्रमण किया है. वे आज युवाओं के प्रेरणा स्रोत बने हैं. हिन्दी, अंग्रेजी भाषा में उनका समान अधिकार है. राष्ट्रीय व अनेक अन्तर्राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में उनके द्वारा लिखे लेख प्रकाशित होते रहते हैं. चिपको संदेश' पत्रिका का सम्पादन भी कर रहे हैं. केन्या, जापान, अमरीका, मैक्सिको, इंगलैण्ड, फ्रांस, डेनमार्क, हॉलैण्ड, जर्मनी, स्वीडन, स्विट्जरलैण्ड और आस्ट्रेलिया आदि देशों में जाकर वृक्षों एवं चिपको आन्दोलन के विषय में विश्व समुदाय को अवगत कराया. संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्थाओं, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा लंदन में जून 1982 में आयोजित सम्मेलन तथा विश्व कृषि एवं खाद्य संगठन द्वारा मैक्सिको में सभाओं को सम्बोधित किया. प्रख्यात पर्यावरणविद् सुन्दरलाल वहुगुणाजी आज अपनी पदयात्राओं, भाषणों एवं लेखों द्वारा आज भी चर्चित हैं.
हिमालयन इंस्टीट्यूट हॉस्पीटल ट्रस्ट, जौलीग्रांट के संस्थापक स्वामी रामजी का जन्म ग्राम तोली रिखणीखाल व्लॉक जनपद पौड़ी गढ़वाल में हुआ था. शिक्षा-दीक्षा वंगाल ने निवासी एक महान् संत और योगी के संरक्षण में हुई. गुरु योग के विभिन्न रीतियों और तरीकों को जानने की प्रेरणा दी. स्वामी जी वचपन से ही योग तथा दर्शनशास्त्र का अभ्यास किया. महर्षि रमण, श्री अरविन्द, आनन्दमयी माँ तथा रवीन्द्रनाथ टैगोर के साथ रहकर भी आपने अध्ययन किया, 21 वर्ष की अवस्था में तिब्बत यात्रा की तथा अपने गुरु के गुरुजी से परकाया प्रवेश की शिक्षा ली. स्वामीजी ने प्रयोगशाला की देख-रेख में सत्रह सेकण्ड तक अपना हृदय स्पंदन और अपनी हथेली के अलग-अलग भागों में 10 डिग्री तापमान का अन्तर प्रकट करना सिद्ध कर दिखाया. स्वामी रामजी एक वहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे. योग, वेदान्त, विज्ञान, चिकित्सा विद्या, मनोविज्ञान, आध्यात्म विद्या आदि क्षेत्रों में इनकी उपलब्धियाँ उल्लेखनीय हैं. उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं, जिनमें से कई पुस्तकों का विश्व की विभिन्न भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है. स्वामीजी एक अच्छे चित्रकार और कुशल संगीतज्ञ भी थे. स्वामीजी ने कानपुर तथा अमरीका में 'हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ योगा एण्ड फिलोसफी' नाम की संस्था स्वापित की, जिसकी शाखाएँ इंगलैण्ड , जर्मनी, मलेशिया, ट्रिनिडाड, सिंगापुर और कनाडा में भी हैं. स्वामीजी ने देहरादून में हिमालयन इंस्टीट्यूट हॉस्पीटल ट्रस्ट की स्थापना की. यह संस्था मानवता की विशेष रूप से विपन्व मानवता की बहुविध सेवा कर रही है. 13 नवम्बर, 1996 को स्वामीजी ब्रह्मलीन हो गए, किन्तु उनके द्वारा स्थापित हिमालयन इंस्टीट्यूट ट्रस्ट उत्तरोत्तर प्रगति की ओर अग्रसर है. आज यह एक विश्वस्तरीय अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मानव कल्याण संस्था वन गई है. स्वामी रामजी न केवल उत्तराखण्ड के वरनु विश्व की एक महान् विभूति थे.
\ शिब्बनलाल नैथानी 'सुमन'
श्री शिव्वनलाल नैथानी का जन्म 6सितम्बर, 1919 को ग्राम चमोली असवालस्यूँ जिला पौड़ी गढ़वाल में हुआ था. सन् 1938 में हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् इण्टरमीडिएट एवं हिन्दी साहित्य की परीक्षाएँ व्यक्तिगत रूप से दीं और एक सफल अध्यापक के रूप में जीवन व्यतीत किया. मैथिलीशरण गुप्त की कविताओं की राष्ट्रीय भावनाओं ने उन पर बहुत अधिक प्रभाव डाला. सुमनजी की कविताओं में वही राष्ट्रीय भावना कूट-कूट कर भरी है. उत्तराखण्ड अपनी नैसर्गिक सुन्दरता के लिए विख्यात है. उत्तराखण्ड की नैसर्गिक छटा ने उनको वहुत प्रभावित किया. सुमित्रानन्दन पंत की तरह उन्हें भी प्रकृति के हर रूप अपनी ओर आकृष्ट किया. अपनी युवावस्था की जागृति व संघर्ष करने की बलवती इच्छा ने उनको जीवन-पर्यन्त जीवन्त रखा. उनकी कविताएँ आज भी प्रेरणा देती हैं. 5 जनवरी, 1983 को यह संघर्षशील कवि सदा के लिए चिरशांत हो गया.
शिवानी
शिवानी का जन्म 1923 में विजयादशमी के दिन राजकोट (सौराष्ट्र) में हुआ था. इनकी प्रारम्भिक शिक्षा रवीन्द्रनाथ टैगोर की छत्र छाया में शान्ति निकेतन में हुई. पिताजी सरकारी सेवा में थे इसलिए उनके स्थानान्तरण होने पर घूमने का अवसर मिला. कलकत्ता विश्वविद्यालय से विशेष सम्मान के साथ बी. ए. की परीक्षा उतीर्ण की. इसके अलावा शिवानीजी ने संगीत का भी अध्ययन किया. शिवानी हिन्दी कथा साहित्य की प्रमुख लेखिका हैं. उनकी रचनाओं में नगरीय व पहाड़ों जनजीवन का सामाजिक परिवेश झलकता है. शिवानी ने सशक्त उपन्यासों व कहानियों की रचना की. उनकी कवाकृतियाँ नारी संवेदना के धरातल पर बुनी गई हैं. शिवानीजी की प्रमुख रचनाएँ-पूतों वाली, कैंजा, श्मशान चम्पा, कृष्णावेणी रति विलाप, चीदह फेरे इत्यादि हैं. इसके अलावा पुष्पहार, लाल हवेली कहानी- संग्रह हैं. शिवानी ने कई वर्षों तक 'वामा' पत्रिका में 'भूलभुलैया के अन्तर्गत विभिन्न विषयों पर लेख लिखे. उनकी प्रथम कहानी 1951 में 'धर्मयुग' में 'जरमींदार की आयु' नाम से प्रकाशित हुई. वे रवीन्द्रनाथ टैगोर, हजारीप्रसाद द्विवेदी से विशेष प्रभावित रहीं, शिवानीजी चार दशक से निरन्तर लिखती आ रही हैं, उनकी हर नई कथाकृति नारी के नवीन आयामों को लेकर प्रस्तुत होती है, उन्होंने हर वर्ग की नारी वर्ग को अभिव्यक्त किया है,
चन्द्रकुंवर बड़्वाल
20 अगस्त, 1919 को जनपद चमोली की केदारघाटी स्थित पट्टीतल्ला नागपुर ग्राम मालकोटी में जन्मे श्री चन्द्रकुंवर बड़ध्वाल गद्य लेखक के साथ साथ एक सफल कवि भी थे. आपकी कविताएँ सन् 1930 से 'कर्मभूमि ' में नियमित प्रकाशित होने लगी थीं. आपकी कविताएँ जीवन के विभिन्न प्रसंगों, आशा, निराशा, उल्लास, प्राकृतिक सौन्दर्य आदि पर प्रकाश डालती हैं, 'काफल पाऊू' कविता को हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ गीत के रूप में स्वीकार किया गया. 'नंदिनी' गीत कविता की भी बहुत सराहना की गई. कंकड़-पत्थर, जीतू, गीत माधवी, प्रणयिनी आदि शीर्षकों से कई अन्य काव्य संग्रह प्रकाशित हुए. "नागिनी' शीर्षक से इनके फुटकर निवन्धों का संग्रह प्रकाशित किया गया. 28 वर्ष की अल्पायु में ही 14 सितम्बर, 1947 को आप स्वर्गवासी हो गए, चन्द्रकुवर वड़ध्वाल साहित्य जगत् में अपनी रचनाओं के माध्यम से सदैव याद किए जाते रहेंगे.
बी. डी. पाण्डेय
श्री वी. डी. पाण्डेय का जन्म मार्च 1917 में हल्द्वानी में हुआ था. उनके पिताजी स्वर्गीय चन्दुदत्त पाण्डेय पोस्टल विभाग के डिप्टी डायरेक्टर ये. श्री पाण्डेय ने हाईस्कूल तक की पढ़ाई अल्मोड़ा राजकीय इण्टर कॉलेज से पूरी की. इसके पश्चात् इलाहाबाद से एम. एस-सी. की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा आगे की पढ़ाई के लिए कैम्ब्रिज कॉलेज , लंदन चले गए. 1938 में उनका चयन आई. सी. एस. में हो गया. उन्होंने प्रशासनिक सेवाएँ विहार प्रदेश से प्रारम्भ कीं. राज्यपाल से नियुक्ति के पूर्व वे आयुक्त, वित्त सचिव, जीवन दीमा निगम के चेयरमैन इत्यादि पदों पर रहे. 1948 में राज्यपाल के पद से त्यागपत्र देकर अपने गृह नगर अल्मोड़ा आ गए. भारत सरकार ने उनकी श्रेष्ठ सेवा के लिए उन्हें पद्म विभूषण से अलंकृत किया.
महंत इन्द्रेश चरणदास
श्री गुरुराम राय दरबार साहिब के गद्दीसीन श्री महंत इन्द्रेश चरणदास का जन्म 14 नवम्बर, 1919 को ग्राम खमाणा पट्टी ढाँगू जिला गढ़वाल के एक निर्धन परिवार में हुआ था. पिता पण्डित दयाधर और माता श्रीमती माहेश्वरी देवी (माड़ी देवी) के एकमात्र पुत्र थे. महंतजी का प्रारम्भिक नाम श्रीधर प्रसाद था. पास के ही ग्राम तिमली से प्राइमरी परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् पीरवाल मिडिल स्कूल से मिडिल परीक्षा प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त कर उत्तीर्ण की और छात्रवृत्ति मिली. अग्रिम पढ़़ाई हेतु मिशन स्कूल देहरादून में प्रवेश लिया. श्री महंत लक्ष्मणदासजी इनकी प्रतिभा तथा गुणों से प्रभावित होकर 11 मई, 1938 को अपना शिष्य पोषित किया तया इनका नाम इन्द्रेश चरणदास रखा. उच्च शिक्षा इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ग्रहण की. सन् 1945 में श्री महंत लक्ष्मणदास जी के दिवंगत हो जाने पर इन्द्रेश चरणदास दरबार साहिब के नवीं महंत के रूप में गहदी पर वैठे. महंत इन्द्रेशजी ने राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में भी महती भूमिका अदा की. महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए भारत छोड़ो आन्दोलन (1942) में भाग लिया और वड़़े वड़े नेताओं के साथ नैनी जेल में रहे, नैनी जेल में गांधीजी एवं लालवहादुर शास्त्री से सम्पर्क हुआ. महंतजी शिक्षा के क्षेत्र में अनेक उतल्लेखनीय कार्य किए. सर्वप्रथम गुरु महाराज श्री लक्ष्मणदास के नाम पर संस्कृत विद्यालय तथा इण्टर कॉलेज की स्थापना की. उच्च शिक्षा के लिए देहरादून में ही श्री गुरु रामराय पी. जी. कॉलेज की स्थापना की. इन दोनों संस्थाओं में छात्र छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा दी जाती है. 1950 में भोगपुर, 1952 में श्री गुरु रामराय एजुकेशन मिशन, 1954 में हिमाचल में डिग्री कॉलेज की स्थापना की. आपने अपनी विपन्नता का जीवन हमेशा याद रखा और लक्ष्य बनाया कि कम से कम व्यय पर अच्छी- से-अच्छी शिक्षा गरीब से गरीव परिवार का वच्चा ग्रहण कर सके. इस लक्ष्य को साकार रूप देने के लिए 1965 में सबसे पहले अंग्रेजी माध्यम का पब्लिक स्कूल श्री गुरु रामराय पब्लिक स्कूल देहरादून में खोला. अन्तिम सॉँस छोड़ने तक महंतजी ने रामराय एजुकेशन मिशन द्वारा संचालित विद्यालयों की संख्या 104 तक पहुँच गई, जो देश के विभिन्न नगरों में चल रहे हैं. अन्तिम दिनों में उन्होंने श्री गुरु रामराय इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस तथा टेक्नोलॉजी की स्थापना की. महंत चरणदास जी ने 10 जून, 2000 को अन्तिम साँस ली. महंत चरणदास जी न केवल एक विद्वान् दार्शनिक, लेखक, उपदेशक, चिन्तक एवं कर्मयोगी ही थे वरन् एक अच्छे खिलाड़ी भी थे. आपके द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किए कार्य अविस्मरणीय रहेंगे.
श्रीमती तारा पाण्डेय
श्रीमती तारा पाण्डेय का जन्म सन् 1915 को हुआ था. उनके पिता श्री मनमोहन जोशी थे. तारा पाण्डेय का जीवन अल्पायु या, परन्तु इस अल्पायु में भी उन्होंने हिन्दी साहित्य में स्वयं के लिए एक विशिष्ट स्थान वनाया. 14 वर्ष की आयु में विवाह हुआ तथा 16 वर्ष की आयु में क्षय रोग से पीड़ित हो गई, जीवन और मृत्यु के वीच झूलते हुए उन्होंने श्रेष्ठ गीतों और कविता की रचना की. उनकी रचनाओं में 'सीकर' शुकपिक, बेगुकी आभा अतरंगिणी तथा गोधूली प्रमुख हैं, तारा पाण्डेय की कविताएँ भारतीय परम्परा की कविताएँ है. उनकी कविताओं पर छायावाद और रहस्यवाद का प्रभाव लक्षित होता है.
प्रो. देवीदत्त पंत
देवीदत्त पंत का जन्म सन् 1919 में पिथीरागढ़ जनपद के दुयोराड़ी ग्राम में हुआ था. प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ग्रहण करने के पश्चात् आगे की शिक्षा अल्मोड़ा तथा वनारस से ली. सन् 1942 में भौतिकी से एम. एस-सी. की परीक्षा उत्तीर्ण की. सन् 1951 में देवासिंह विष्ट राजकीय कॉलेज में अध्यक्ष पद (भौतिकी विभाग) पर शिक्षण कार्य शुरू किया. वहाँ उन्होंने फोटोफिजिक्स प्रयोगशाला की स्थापना की. यहाँ उन्होंने अनेक शोध कार्य किए. डॉ. पंत नैनीताल कॉलेज के प्राचार्य पद को सुशोभित किया. 23 दिसम्बर, 1973 को वे कुमाऊँ विश्वविद्यालय के संस्थापक उप कुलपति नियुक्त हुए. डॉ. पंत एक सफल वैज्ञानिक एवं प्रशासक के रूप में सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में प्रख्यात हैं.
स्वामी श्रद्धानन्द
स्वामी श्रद्धानन्द महाराज का जन्म संवतु 1913 विक्रमी को जिला जालंधर के ग्राम तलवन में एक संस्कारी परिवार में हुआ था. भगवत भक्ति उस कुल की परम्परागत धरोहर थी. स्वामीजी वाल्यावस्था से ही वड़े कुशाग्र बुद्धि के ये. एक वार महर्षि दयानन्द का बरेली में आगमन हुआ. पिताजी ने सत्संग के उद्देश्य से अपने वेटे मुंशीराम को, जो बचपन का नाम धा, सुनने के लिए भेजा. महर्षि के व्याख्यानों का मुंशीराम के मन पर अमिट प्रभाव पड़ा. हरिद्वार के पास गुरुकुल कांगड़ी में गुरुकुल खोलने की इच्छा स्वामी श्रद्धानन्दा की वहुत समय पहले से थी जिसकी क्रियान्विती 24 मार्च,1902 को हुई. आर्य जनता के महात्मा मुंशीराम आगे चलकर श्रद्धानन्द कहलाने लगे. आम जनता की इनमें वहुत श्रद्धा थी. स्वामीजी ने 1917 को मायापुर वाटिका- कनखल में सन्याश्रम में प्रवेश किया. उन्होंने 'आर्य समाज का इतिहास' भी लिखा. दलितों के उद्धार व देश की आजादी के लिए भी श्रद्धानन्द ने अनेक प्रशंसनीय कार्य किए. उनको कई जेलों की भी यात्रा करनी रड़ी. महात्मा गांधी से उनकी अभिन्न मित्रता थी. आर्य समाज के द्वारा हिन्दुओं को संगठित करने, भेदभाव मिटाने तथा साम्रदायिक सद्भाव वनाने के लिए जीवनभर प्रयत्न किए. 2.3 दिसम्बर, 1926 को इस संसार को त्याग दिया.
डॉ. शिवप्रसाद डबराल
डॉ. शिवप्रसाद डवराल का जन्म 12 नवम्बर, 1912 को ग्राम गहली जिला पीड़ी गढ़वाल में हुआ था. इनकी प्राथमिक शिक्षा प्राइमरी विद्यालय में हुई तथा मिडिल परीक्षा वर्नाक्यूलर एंग्लो स्कूल से उत्तीर्ण की. हाईस्कूल से वी. ए तक की परीक्षा मेरठ शहर से प्राप्त की. एम. ए. की परीक्षा आगरा विश्वविद्यालय तथा वी. एड. हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी से की. डॉ. डवराल पंजाब व लाहौर के शिक्षा विभाग में कार्य करने के अतिरिक्त सन् 1948 से लगातार डी. ए. वी. कॉलेज, दुगड़डा में प्रधानाचार्य रहे, जहाँ से वे 1975 में सेवानिवृत्ति के पश्चात् पूर्णतः साहित्यिक सेवा में लग गए. डॉ. डबराल का पहला काव्य संग्रह 'जन्माष्टमी' 1931 में प्रकाशित हुआ. वे दैनिक प्रयाग मंच, इलाहाबाद और दैनिक नवयुग दिल्ली के सहायक सम्पादक भी रहे. उन्होंने राष्ट्रभक्तों पर काव्य नाटक प्रकाशित किया, जिसके अन्तर्गत दो काव्य और नौ नाटक लिखे. आठ वालोपयोगी पुस्तकें भी प्रकाशित कीं. उन्होंने कवि भोलाराम के काव्य की दुर्लभ पाण्डुलिपियों को पुनः प्रकाशित किया. डॉ. डवराल द्वारा लिखित प्रमुख ग्रन्थ व पुस्तकें हैं-श्री उत्तराखण्ड यात्रा दर्शन, अलकनन्दा उपत्यका, उत्तराखण्ड के भोटांतिक, उत्तराखण्ड के पशुचारक, उत्तराखण्ड का इतिहास (12 भागों में), उत्तराचंल के अभिलेख एवं मुद्रा, टिहरी गढ़वाल राज्य का इतिहास (दो भाग). इसके अलावा गढ़वाली भाषा में अनेक नाटक तथा अनेक दूर्लभ काव्य प्रकाश्शित हुए हैं. डॉ. डबराल को 'इनसाइक्लोपीडिया ऑफ उत्तराखण्ड" कहा जाता है. दुगड़डा जैसे छोटे से साधनविहीन स्थान पर इतनी अधिक पुस्तकें लिखकर और स्वयं प्रकाशित कर डॉ. डबराल ने अनूठा कार्य किया है. उत्तराखण्डवासी आपके साहित्यिक कृति के ऋणी रहेंगे.
डॉ. भक्तदर्शन
डॉ. भक्तदर्शन का जन्म 12 फरवरी, 1912 को उत्तर प्रदेश के वस्ती जनपद के वाँसी तहसील के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ या. डॉ. भक्तदर्शन जी की प्रारम्भिक शिक्षण दातागंज (बदायूँ) तथा डी. ए. वी. कॉलेज, देहरादून में हुई. छात्र जीवन से ही भारत की पराधीनता की पीड़ा उन्हें सालती रही. महात्मा गांधी के सत्याग्रह आन्दोलन का डॉ. भक्तदर्शन पर काफी प्रभाव ५ड़ा तथा उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य ही देश की आजादी के लिए कार्य करना वना लिया. 1929 में लाहौर कांग्रेस में स्वयं सेवक के रूप में सम्मिलित हुए. उस समय वे कक्षा 10वीं के छात्र थे. 1930 में नमक आन्दोलन में पहली वार जेल यात्रा की तथा देश के लिए जेल की कठोर यातना को सहा. इसके अलावा वे 1941, 1942 एवं 1944 में कई बार जेल गए तथा अनेक कटोर यातनाओं को झेला. डॉ. दर्शन की लोकप्रियता, स्पष्टवादिता एवं कार्यकुशलता के कारण 30 सितम्बर, 1972 से 1977 तक दो बार कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति रहे. सन् 1978 में उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें हिन्दी संस्थान का उपाध्यक्ष नियुक्त किया. जीवन पर्यन्त उच्च आदर्शों एवं अनुकरणीय सिद्धान्तों पर चलने वाले डॉ. दर्शन जी का निधन 30 अप्रैल 1991 को देहरादून में हुआ. उत्तराखण्डवासी इस महान् विभूति को सदैव याद करते रहेंगे.
कैप्टन शूरवीर सिंह पंवार
कैप्टन शूरवीर सिंह पंवार का जन्म 1907 में गढ़वाल के पंवार राजवंश में टिहरी नगर में हुआ था. सन् 1933 में लखनऊ से उच्चशिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् पंवार टिहरी गढ़वाल राज्य में शासकीय सेवाओं में नियुक्त हुए, 1943 में द्वितीय विश्वयुद्ध में इमरजेंसी कमीशन में इनको भारतीय सेना में कैप्टन का पद मिला. कैप्टन शूरवीर सिंहजी गढ़वाली संस्कृति साहित्य के प्रख्यात विद्वान्, सफल लेखक, इतिहासकार के साथ योग्य प्रशासक भी रहे. उनकी रचनाओं में 'फतेप्रकाश', अलंकार प्रकाश, गढ़वाली के प्रमुख अभिलेख एवं दस्तावेज प्रमुख हैं. कैप्टन पंवार का गढ़वाल की संस्कृति एवं भाषा के प्रति रागात्भक सम्बन्ध है, इसका प्रमाण इसकी पुस्तकों से चलता है. इनके ऐतिहासिक शोध-पत्रों को भारतीय विश्वविद्यालयों ने अपनी शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित किया. इनके महत्वपूर्ण शोध-पत्र है मेहरीली के लौह स्तम्भ का ऐतिहासिक महत्व, पलेठी ग्राम के प्राचीन शिलाभिलेख तथा उत्तरकाशी के शक्ति स्तम्भ का अभिलेख गढ़वाल की सांस्कृतिक सम्पदा को उजागर करने वाला लेख गढ़वाल का प्राचीन लोककल्याणकारी यश देदवति' महत्वपूर्ण है. कैप्टन पंवार की साहित्यिक एवं ऐतिहासिक सेवाओं के लिए उन्हें अनेक सम्मान प्राप्त हुआ है. पुरुषोत्तम दास टण्डन हिन्दी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद द्वारा वर्ष 1983 में इटावा सम्मेलन में मानपत्र प्रदान किया. इसी प्रकार 19 जून, 1983 को गढ़वाल अकादमी मसूरी द्वारा 'अभिनंदन पत्र प्रदान किया गया. निःसंदेह रूप से पंवारजी की प्राचीन गढ़वाल संस्कृति की खोज करके एक नई दिशा दी है. उनके योगदान अविर्मरणीय रहेंगे.
उत्तराखण्ड : नींव के पत्थर व चर्चित व्यक्तित्व
धर्मानन्द भट्ट
धर्मानन्द ने कभी सीमा पर दुश्मनों की गोलियों की वौछार का वीरतापूर्वक सामना किया था, लेकिन अपनी ही पुलिस उनका काल बन गई. । सितम्वर 1994 को खटीमा में शहादत का गौरव हासिल करने वाले धर्मानन्द भट्ट पिथौरागढ़ के ग्राम किमतोली के मूल निवासी थे.
गोपीचंद
भूतपूर्व सैनिक गोपीचंद खटीमा तहसील परिसर में T सितम्बर, 1994 को पुलिस की गोली खाकर शहीद हुए.
मुहम्मद सलीम
खटीमा निवासी मुहम्मद सलीम एक गरीव परिवार का चिराग था. पुलिस की अंधाधुंध गोलियों की बौछार में 22 वर्षीय सलीम शहीद हो गया.
भवान सिंह सिरोला
देश की रक्षा में अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष गुजारने वाले भवान सिंह सिरोला भी पुलिस की क्रूरता के शिकार हुए. सात पुत्रियों के पिता भवान सिंह खटीमा गोलीकाण्ड के शिकार तो हुए ही, लेकिन बदनसीबी ने उनके परिवार को उनके अन्तिम दर्शन भी नहीं होने दिया.
परमजीत सिंह
1 सितम्बर, 19,4 को शहीद होने वाले 25 वर्षीय परमजीत सिंह पाँच माह पूर्व ही पिता बने थे कि नवजात शिशु के ऊपर से पिता का साया उठ गया.
प्रताप सिंह
प्रताप सिंह एक भूतपूर्व सैनिक थे जो आताताई पुलिस के जुल्म के शिकार हुए. सितम्बर 1994 को खटीमा में शहीद हुए 55 वर्षीय पूर्व सैनिक प्रताप सिंह खटीमा तहसील के ग्राम झनकट के निवासी थे.
श्रीमती बेलमती चौहान
श्रीमती वेलमती चौहान पत्नी धर्मसिंह चौहान 2 सितम्बर, 1994 को मसूरी में पुलिस की गोली का शिकार वनीं.
मनमोहन ममगाई
सामाजिक जीवन में सक्रिय मनमोहन ममगाई उत्तराखण्ड आन्दोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया. 2 सितम्बर को उन्होंने अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया.
धनपत सिंह
नगरपालिका मसूरी के कर्मचारी धनपत सिंह ने दो सितम्बर को राज्य आन्दोलन में अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया.
उमाकान्त त्रिपाठी
उभाकान्त त्रिपाठी एकमात्र पुलिस अधिकारी ये, जिन्होंने राज्य आन्दोलन में शहीद होने का गौरव प्राप्त किया.
जेठ सिंह विष्ट
टिहरी गढ़याल के विकास क्षेत्र योलघार के ग्राम गोदी- सिराई निवासी जेठू सिंह विष्ट विचारों से वामपंथी थे, लेकिन वे एक सच्चे उत्तराखण्डी थे.
गिरीश भदी
देहरादून में अजवपुर खुर्द निवासी वाचस्पति भट्ी के पुत्र गिरीश ने 21 वर्ष की आयु में मुजफ्फर नगर में वीरगति प्राप्त की,
रवीन्द्र रावत
मुजफफर नगर में 22 वर्षीय रवीन्द्र सिंह रावत पुत्र कुंवर सिंह रावत ने भी शहीदों की सूची में अपना नाम दर्ज कराया था. विविध गतिविधियों से जुड़े चर्चित व्यक्ति
इन्दिरा इृदयेश
तीन दशक से शिक्षक आन्दोलन में सक्रिय इन्दिरा हृदयेश को उत्तर प्रदेश विधान परिषद् के इतिहास में सर्वाधिक मतों से जीतने वाली महिला सदस्य होने का गर्व हासिल है. वह 1974 ई. में गढ़वाल-कुमाऊँ शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से विधान परिषद् में शामिल हुई और उसी सीट से चौथी वार जीतने के वाद परिषद् की सदस्य होने के नाते उत्तराखण्ड राज्य की अन्तरिम विधान सभा की सदस्य हैं. इन्दिरा हृदयेश का जन्म पं. टीकाराम पाठक के पर में 7 अप्रैल, 1941 को हुआ. हिन्दी, राजनीतिशास्त्र से एम. ए. के अलावा वी. एड. एवं पी-एच-डी. की उपाधि भी हासिल की है. वह हल्द्वानी स्थित ललित आर्य महिला इण्टर कॉलेज हल्द्वानी की प्रधानाचार्य हैं. वह अनेक शैक्षिक संस्थाओं के अलावा गढ़वाल और कुमाऊँ विश्वविद्यालय की प्रवन्ध व कार्यपरिषद् से जुड़ी हैं. नारायण दत्त मंत्रिमण्डल में संसदीय कार्य लोक निर्माण, विज्ञान प्रीद्योगिकी मंत्री रह चुकी है.
नारायण दत्त तिवारी
"विकास पुरुष' के नाम से विख्यात श्री तिवारी का जन्म 18 अक्टूबर, 1924 को हल्द्वानी में हुआ था. प्रारम्भिक शिक्षा गृह जनपद में प्राप्त की. 1939 में हाईस्कूल परीक्षा सम्मान सहित उत्तीर्ण की. आर्थिक विवशता के बावजूद उच्च शिक्षा इलाहाबाद से प्राप्त की. नारायण दत्त तिवारी वचपन से ही संघर्षशील व्यक्तिक के धनी थे. देश के प्रति सम्मान, सेवाभाव एवं स्वतन्त्रता की चाह ने स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूदने की प्रेरणा दी. 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया, जिसें 15 माह की सजा हुई. इसके अलावा स्वाधीनता आन्दोलन में कई वार जेल गए. भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी एवं कांग्रेस के प्रमुख नेता के रूप में अपने गुरुतर दायित्व का निर्वहन किया. श्री तिवारीजी वर्ष 1976 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 1980 तथा 1985 में केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में अपना सम्मानजनक स्थान बनाया. 1984 में पुनः उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद का दायित्व सँभाला. पहाड़ में तिवारीजी को विकास पुरुष कहा जाता है. उन्होंने तराई भावर का स्वरूप ही वदल दिया. हल्द्वानी क्षेत्र के लिए रानीवाग में एच. एम. टी. फैक्ट्री लाल कुआँ में सेंचुरी पेपर मिल, गौरापड़ाव में राजकीय विद्यालय की स्थापना करवाने के साथ-साथ रुद्रपुर में निजी क्षेत्र में उद्योग और रोजगार को बढ़ावा दिया. नवगठित उत्तराखण्ड के प्रथम विधान सभा में कांग्रेस को विजयश्री दिलाने पर उत्तराखण्ड की बागडोर मुख्यमंत्री के रूप में सौंपी गई है. प्रदेश जनता प्रदेश के विकास के लिए आशाभरी नजरों से देख रही है. आप सदैव विकास के लिए अग्रसर रहे हैं, इसलिए जनता विकास पूरुष के रूप में देखती है.
निरुपमा गौड़
जनसंघ के जरिये अपना राजनीतिक जीवन शुरू करने वाली निरुपमा गौड़ तीस वर्ष से सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हैं. निरुपमा गौड़ उत्तराखण्ड अन्तरिम विधान सभा की सदस्य हैं. काशी के प्रतिष्ठित विश्वनाथ उपाध्याय परिवार में 12 अगस्त, 1944 को जन्मी निरुपमा गौड़ स्नातक डिग्रीधारी हैं. अवधी वोली का अच्छा अभ्यास होने के कारण वह दूरदर्शन और आकाशवाणी के कार्यक्रमों में निरन्तर शामिल होती रही हैं, आपातकाल के दौरान सत्याग्रह करके जेल भी गई. रामपुर तिराहा काण्ड को लेकर मुजफ्फर नगर से दिल्ली का पदयात्रा के अलावा रामजन्म भूमि आन्दोलन में जेल यात्रा की.
नारायण सिंह
अन्तर्राष्ट्रीय निशानेवाज जसपाल राणा के पिता नारायण सिंह स्वयं इस कला में माहिर होने के साथ विशेषज्ञ भी हैं, सन् 1963 में भारत तिब्बत सीमा पुलिस मं सुरक्षा नियुक्त हुए श्री राणा ने सीमा सुरक्षा के साथ-साथ कई मंचों। पर देश की सेवा की. टिहरी गढ़वाल के सुदूर चिलामू ग्राम में 15 सितम्बर, 1951 को जन्मे श्री राणा ने प्राथमिक शिक्षा गृह जिले के घोड़ाखुरी में प्राप्त की और गढ़वाल विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की. प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए विशेष रूप से गठित एस. पी. जी. में निशानेवाजी और वम निरोधक प्रशिक्षक रहे और इसके लिए उन्होंने मास्को और जर्मनी में विशेष कमाण्डो प्रशिक्षण भी प्राप्त किया. श्री राणा 1998 ई. में भाजपा के टिकट पर टिहरी गढ़वाल स्थानीय प्राधिकारी निर्वाचन क्षेत्र से जीतकर विधान परिषद् में दाखिल हुए.
तीरथ सिंह रावत
छात्र आन्दोलन के जरिये राजनीति में आने वाले तीरथ सिंह रावत उत्तराखण्ड अन्तरिम विधानसभा के सदस्य हैं. पिता कलम सिंह और माँ गौरा देवी के घर में अप्रैल, 1964 में जन्मे तीरथ सिंह किशोरावस्था में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े और कई वर्षों तक प्रचारक रहे. गढ़वाल विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे श्री रावत ने पूरे पर्वतीय क्षेत्र में विद्यार्थी परिषद् की कमान सँभाल ली. उत्तराखण्ड के लिए आन्दोलन में छात्रों की सक्रियता में श्री रावत की काफी भूमिका रही.
प्रकाश पंत
कभी पियौरागढ़ जिला चिकित्सालय में फार्मासिस्ट रहे प्रकाश पंत सरकारी सेवा से त्यागपत्र देकर राजनीति में प्रवेश किया और जनवरी, 1998 में कुमाऊँ स्थानीय प्राधिकारी निर्वाचन क्षेत्र से विधान परिषद् के लिए निर्वाचित हुए. वह राम जन्म भूमि आन्दोलन में जेल भी गए. वे स्वयंसेवी संस्था मित्र' के संस्थापक भी हैं.
ईसम सिंह
भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड में तकनीकी कर्मचारी रहते हुए दलितों के उत्थान के लिए विशेष कार्य किया है. अनुसूचित जनजाति फेडरेशन के जरिये सक्रिय रहे ईसम सिंह को गुरु रविदास समिति और वाया साहव भीमराव अम्बेडकर समाज सुधार समिति से भी जुड़े रहे हैं. श्री सिंह 1997 ई. में विधान परिषद् के लिए मनोनीत किए गए.
लाखीराम जोशी
व्यवसाय के रूप में कृषि के साथ साथ पत्रकारिता में भी सक्रिय लाखीराम जोशी ने पृथक राज्य के लिए आन्दोलन में दढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. वह लगभग तीन महीने टिहरी जेल में रहे. दो दशक पहले उन्होंने धनौल्टी में कृषक संघर्ष समिति वनाकर आन्दोलन किया. इसके अतिरिक्त वह मजदूर संघर्ष समिति के भी संस्थापक रहे. हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से साहित्य रत्न लाखीराम जोशी धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन में रुचि रखने वाले श्री जोशी आध्यात्मिक आयोजनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं.
मातवर सिंह कण्डारी
मातवर सिंह कण्डारी उत्तर प्रदेश सरकार में कई बार उत्तराखण्ड विकास मंत्री रहे. विधि स्नातक और अर्थशास्त्र से एम. ए. श्री कण्डारी का जन्म 2 जनवरी, 1942 को टिहरी गढ़वाल के जाख गाँव में हुआ. सबसे पहले 1991 में देवप्रयाग क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी के रूप में विधायक चुने गए. श्री कण्डारी जीवन ज्योति बहुउद्देशीय समिति, ऋषिकेश उत्तराखण्ड महिला उत्थान समिति के प्रवन्धक और कुक्कुट उत्पादन बहुउद्देशीय समिति ऋषिकेश के संरक्षक हैं. 'गुन- गुनाहट' शीर्षक से एक पुस्तक प्रकाशनाधीन है.
मोहन सिंह राबत 'गाँववासी'
आपातकाल छात्र आन्दोलन, उत्तराखण्ड संघर्ष जैसे विविध आन्दोलन से जुड़े मोहन सिंह रावत, गॉाँववासी, संघर्षशील प्रवृत्ति के व्यां त हैं. आर. एस. एस. के प्रचारक रहे विज्ञान स्नातक मोहन सिंह रावत विद्यार्थी परिषद्, युवा मोर्चा, विवेकानंद विचार केन्द्र, मांक पार्लियामेंट सहित कई शैक्षणिक संस्थाओं से जुड़े रहे हैं. पत्रकारिता में सक्रिय होने के कारण वह हिन्दी, अंग्रेजी और गढ़वाली में विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में नियमित रूप से लिखते रहे हैं. गाँव वसाओ आन्दोलन व सामाजिक पर्यटन अभियान के कर्णधार रहे गाँववासी साप्ताहिक 'योगभूमि' के अर्से तक सम्पादक भी रहे.
रमेश पोखरियाल निशंक
सन् 1957 को गढ़वाल के पिनानी गाँव में जन्मे रमेश पोखरियाल बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. राजनीति में निरन्तर सक्रियता के बावजूद वह साहित्य, संगीत और संस्कृति से जुड़ी गतिविधियों में प्रमुखता से हिस्सा लेते रहे हैं. संगीत नाटक अकादमी, पर्यटन समिति, गढ़वाल विश्वविद्यालय कार्यपरिषद् के सदस्य रहे श्री पोखरियाल नयी चेतना संस्था के निदेशक, गढ़वाल पत्रकार परिषद् के उपाध्यक्ष, पर्वतीय विकास परिषद् के महासचिव, उत्तराखण्ड लेखक मंच के सचिव और साहित्यिक संस्था 'परिबेश' के भी अध्यक्ष रहे हैं. 'समर्पण', 'नवांकुर', 'खड़े हुए प्रश्न' और 'भीड़ साक्षी है। आदि दर्जन साहित्यिक कृतियों के रचनाकार डॉ. निशंक दैनिक 'सीमान्त वार्ता' के सम्पादक एवं उत्तराखण्ड के 5वें मुख्यमंत्री (27 जून, 2009 से 11 सितम्बर, 2011 तक) भी रह चुके हैं.
केदार सिंह फोनिया
पर्यटन विशेषज्ञ केदार सिंह फोनिया का जन्म चमोली जिले के जोशीमठ में 6 अक्टूबर को हुआ था. इलाहादाद विश्वविद्यालय से एम. ए. करने के बाद प्राग विश्वविद्यालय चेकोस्लोवाकिया से पर्यटन में डिप्लोमा हासिल किया. उत्तर प्रदेश सरकार के कल्याण सिंह मन्त्रमण्डल में पर्यटन व सांस्कृतिक कार्य मन्त्री भी रहे. उत्तराखण्ड आन्दोलन के सिलसिले में वह जेल भी गए. उन्होंने लोकतन्त्र वचाओ आन्दोलन का नेतृत्व भी किया. केन्द्रीय पर्यटन मंत्रालय में सह-निदेशक, पर्यटन निगम के क्षेत्रीय प्रवन्धक, गढ़वाल मण्डल विकास निगम व स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन के जनरल मैनेजर रहे श्री फोनिया ने यूरोप, अफ्रीका, श्रीलंका, मध्य- पूर्व, दक्षिण-पूर्व एशिया का भ्रमण भी किया.
विशन सिंह चुफाल
एक साधारण जीवन बीमा एजेण्ट से उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य होने का सफर तय करने वाले विशन सिंह चुफाल का जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा. उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के प्रमुख स्तम्भ काशी सिंह ऐरी को हराकर डीडीहाट क्षेत्र से विधायक चुने गए. वह उत्तराखण्ड आन्दोलन और रामजन्म भूमि आन्दोलन में भी सक्रिय रूप से भाग लिया.
कृष्ण चन्द्र पुनेठा
कृष्ण चन्द्र पुनेठा वैडमिण्टन के कुशल खिलाड़ी हैं. पिथौरा विधान सभा से दो वार भाजपा सदस्य के रूप में विधायक चुने गए. उन्होंने रामजन्म भूमि आन्दोलन, वन अधिनियम विरोधी आन्दोलन, उत्तराखण्ड आन्दोलन और पार्टी द्वारा विभिन्न समय पर छेड़े गए संधर्ष के सिलसिले में कई बार जेल यात्रा की. वह वद्रीनाथ-केदारनाथ मन्दिर समिति के उपाध्यक्ष भी रहे हैं,
नारायण रामदास
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित वागेश्वर सीट से पहली वार जीतकर विधायक बने नारायण रामदास उत्तर प्रदेश के उत्तराखण्ड विकास राज्य मंत्री रहे. पेशे से अधिवक्ता श्री रामदास का जन्म बागेश्वर के पास खोली गाँव में 26 मई, 1945 को हुआ. उत्तराखण्ड आन्दोलन के सिलसिले में दिल्ली और अल्मोड़ा जेल में कई दिनों तक बंद रहे. नारायण रामदास भूमिहीन संघर्ष समिति के अध्यक्ष, शिल्पकार संगठन स्यून के कानूनी सलाहकार, ग्रामोत्यान छात्र संगठन के अध्यक्ष, वार एसोसिएशन वागेश्वर के उपाध्यक्ष और हरिजन एकता परिषद् के अध्यक्ष भी रहे हैं.
अजय भट्ट
पेशे से अधिवक्ता अजय भट्ट पहली वार विधान सभा में दाखिल होने वालों में हैं, 1 मई, 1961 को जन्मे अजय भट्ट अल्मोड़ा जिले के रानीखेत विधायी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. अमिक संघ को-ऑपरेटिव ड्रग फैक्ट्री रानीखेत के आध्यक्ष, वात्मीकि समाज के संरक्षक अजय भट्ट कई संस्थाओं के निःशुल्क कानूनी सलाहकार हैं. पृथक् राज्य के लिए लगातार संघर्षरत रहे श्री भट्ट तीन वर्ष संघर्ष समिति के केन्द्रीय सदस्य रहे. रामजन्म भूमि आन्दोलन को लेकर वह आत्मोड़ा व फैजावाद जेलों में रहे.
बंशीधर भगत
1 जनवरी, 1951 को नैनीताल के भक्यूड़ा ग्राम में पैदा हुए वंशीधर भगत पहली बार वर्ष 1991 में नैनीताल विधान सभा से चुने गए. उन्हें मार्च 1997 में खाद्य एवं रसद विभाग का राज्यमंत्री वनाया गया था. रामजन्म भूमि आन्दोलन और किसान आन्दोलन से जुड़े रहने वाले श्री भगत विधान सभा की आश्वासन समिति तथा विधान सभा पुस्तकालय परामर्श- दात्री समिति के सदस्य भी रहे हैं.
के. सी. सिंह बाबा
एक स्थानीय राज परिवार में 29 मार्च, 1947 को जन्मे के. सी. सिंह वावा राजनीति के साथ अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी भी रहे हैं. राजा हरीशचन्द्र राजसिंह के पुत्र के. सी. सिंह बादा ने सन् 1984 में एशिया पावर लिफ्टिंग प्रतियोगिता में दो रजत पदक और दो कांस्य पदक जीते. उन्होंने खेल की दुनिया में भले ही वाडी विल्डिंग और पावर लिफ्टिंग को अपनाया, लेकिन राजनीति में वे शक्ति प्रदर्शन से दूर रहे. बाबा उत्तर प्रदेश पावर लिफ्टिंग कुमाऊँ, वाडी विल्डिंग एसोसिएशन और भारोत्तोलन संघ के पदाधिकारी भी रहे हैं.
रामसिंह सैनी
राजनीति और शिक्षा जगत में समानान्तर सक्रियता बनाये रखते हुए रामसिंह सैनी ने कई जन आन्दोलनों का नेतृत्व किया. 15 जुलाई, 1931 को जन्मे श्री सैनी के. वी. इण्टर कॉलेज, लक्सर के तीस साल प्रधानाचार्य रहे. छः वर्षों तक जिला सहकारी वैंक के उपाध्यक्ष रहने के साथ वह मेरठ विश्वविद्यालय कार्य परिषद् और माध्यमिक शिक्षा परिषद् के सदस्य रहें.
काजी मोहम्मद मोहिउद्दीन
इनका जन्म 25 दिसम्बर, 1940 को हरिद्वार के मंगलीर में हुआ था. माया त्यागी काण्ड में अदालत के कार्य में बाधा डालने के कारण एक महीने जेल में रहे. स्नातक स्तर तक शिक्षित काजी जामिया मिलिया दिल्ली के उपाध्यक्ष, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के काबीना सदस्य, नेशनल काउंसिल ऑफ यूनिवर्सिटी के महासचिव भी रहे. उन्होंने रामनरेश यादव, बनारसी दास और मायावती सरकार में मंत्री पद का दावित्व चिभाया. उन्होंने उर्दू में एक पुस्तक 'उमंग भी लिखी है जिसे जाभिया मिलिया ने प्रकाशित किया है.
राजेन्दर सिंह
पहली बार मसूरी विधान सभा से निर्वाचित हुए थे. रामजन्म भूमि आन्दोलन से लेकर उत्तराखण्ड आन्दोलन तक इनकी सक्रिय भागीदारी रही. विधान सभा की नियम समिति और प्रश्न सन्दर्भ समिति के सदस्य रहने के साथ-साथ कल्याण सिंह मनत्रिमण्डल में उपमंत्री भी रहे हैं,
हरबंश कपूर
देहरादून विधान सभा से लगातार चौथी वार निर्वाचित हुए हरवंश कपूर 1986 से लेकर 1996 तक विविधा आन्दोलन से जुड़े रहे. कल्याण सिंह मन्त्रिमण्डल में ग्राम्य विकास राज्य मंत्री भी रहे. इसके अलावा 1993 से 1995 तक विधान सभा की याचिका समिति और 1997-1998 में लोक लेखा समिति में रहे. पेशे से वकील श्री कपूर विक्रीकर अधिवक्ता संघ, आयकर अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष भी रहे. सनातन धर्म इण्टर कॉलेज के आजीवन सदस्य हैं.
तिलकराज बेहड़
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