men and women associated with the historical figures and varied activities of Uttarakhand part 2 उत्तराखंड की ऐतिहासिक विभूतियाँ एवं विविध गतिविधियों से जुडे शिखर पुरुष एवं महिलाएं पार्ट 2


वास्तुकार, चित्रकार, मूर्तिकार एवं छायाकार

अनूप साह
जन्म 6 अगस्त, 1949 नैनीताल में हुआ था. आप स्वतन्त्र छायाकार, पर्वतारोही एवं लेखक हैं. हिमालय का अकेला चितेरा जिसने हिमालय के विभिन्न दृश्यों, पर्वतीय जनजीवन, प्रकृति के रंगों के हजार से अधिक मनमोहक चित्र अपने कैमरे से कैद किए हैं. ये चित्र न केवल राष्ट्रीय स्तर पर वरन् अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके हैं.

अवतार सिंह पंवार
ग्राम धान्यो, पट्टी लस्या टिहरी गढ़वाल में जन्मे श्री पवार अद्भुत कला प्रेमी, मूर्तिकार, प्रकृति प्रेमी पार्वत्य प्रदेश
अनुरागी, महान् कलाकार और मौन साधक हैं. मौलाराम के बाद उत्तराखण्ड के प्रतिभा सम्पन्न कलाकार है।

अर्ल एच. बूस्टर
स्व्गीय अर्ल एच. बूस्टर एक ऐसे सर्वमान्य दार्शनिक चित्रकार थे जिन्होंने हिमालय की आत्मा को पहचान लिया या. आपके बहुमूल्य चित्र आने वाली पीढ़ियों को उत्साहित व प्रेरित करते रहेंगे. वह जीवन प्र्यन्त बौद्ध दर्शन के प्रति निष्ठावान रहे. मृत्यु के अंतिम क्षण तक हिमालय के बदलते हुए परिवेशों, उसके शिखरों के गौरवमय अहं को अपने अंतर में आत्मसात कर लिया था.

आनंद सिंह बिष्ट
ग्राम कोलसी, उदयपुर, गढ़वाल में 1913 में जन्म श्री विष्ट राष्ट्रीय स्तर के ख्याति प्राप्त वास्तुशिल्पी, स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं समाजसेवी रहे हैं. गढ़वाली संस्कृति के उत्थान के लिए सर्वदा प्रयासरत् रहे. 30 जनवरी, 1948
को गोली से घायल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को काँपते हुए उठाया था. 8 अक्टूबर, 1977 को ओसिन टू स्काई अभियान में एडमण्ड हिलेरी के साथ वरद्रीनाथ से कुछ आगे तक पर्वतश्रेणी अभियान में सम्मिलित रहे.

इफ्तिखार मोहम्मद खाँ
महाकाय दियंगत व्यक्तित्व कुमाऊँ में अपना स्नेह और सेवाएँ बाँटता रहा. कला महाविद्यालय, लखनऊ तथा कुमाऊँ की यह वरद कला प्रतिभा जीवनपर्यन्त अभाव और संघर्ष के अनेक रंग जीते हुए संघर्षरत रहे. दृश्य चित्रण से लेकर कला की अधुनातम शैलियों पर बने उनके चित्र, उनकी अमूर्त विम्ब योजना रंगों का रहस्यमय समिश्रण, रेखाओं की अनगढ़ पुष्टता लोक मानव को सदैव साकार करती रही. हिमालय की माटी का यह पुत्र केवल अपनी स्मृति छोड़ गया है.

गंगा सिंह राणा
बचपन से ही शौकीन रहे श्री गंगा सिंह राणा का जन्म 1892-1969 (मृत्यु) ग्राम पखोलापट्टी अजमेर बल्ला गढ़वाल
में हुआ था. आगे चलकर आप 'वोटेनिकल आर्टिस्ट' के रूप में प्रसिद्धि पाई. भारत के वायसराय लॉर्ड लिनलियगो व उनकी पत्नी ने आपसे कई चित्र बनवाए.

श्रीमती चमेली जुगराण
17 मार्च, 1939 ग्राम गंडासू, गढ़वाल में जन्मी श्रीमती   जुगराण चित्रकारी केक्षेत्र में प्रसिद्धि पाई है. नेशनल गैलरी
ऑफ मॉडर्न आर्ट, काबुल एवं व्यक्तिगत कला संग्रहों में कई कलाचित्र अपनी प्रतिभा की छटा बिखेर रहे हैं. बच्चों के लिए कई लेख प्रकाशित हुए.

श्रीस कपूर
अल्मोड़ावासी श्री कपूर मन और कर्म से विशुद्ध उत्तराखण्डी हैं. अपने कैमरे के साथ आपने सम्पूर्ण कुमाऊँ गढ़वाल की सौन्दर्य स्थालियों की दुर्गम यात्राएँ की हैं. कैलाश  मानसरोवर की अपनी यात्रा के भव्यतम चित्र इनके संग्रह में हैं. इन्हें कई सम्मानित पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है. उसमें आई.आई.पी.सी. नई दिल्ली से प्राप्त पुरस्कार सर्वोपरि है.

दाऊ कृष्ण बर्मा
कुमाऊँ को समर्पित एक व्यक्तित्व, एक अनूठटी काव्य- कलामय प्रतिभा, व्यवसाय से कृषि रसायनज्ञ होते हुए भी साहित्य की विभिन्न विद्याओं के मर्मज्ञ है. हिन्दी, उदर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओं के लेखक, सम्पूर्ण हृदय से कवि एवं चित्रकार श्री वर्मा की अल्मोड़ा नगर में साहित्य एवं कलामय वातावरण को प्रारम्भ करने का श्रेय प्राप्त है.

द्वारिका प्रसाद धूलिया (प्रो.)
वर्ष 1923 ग्राम मदनपुर, लैन्सडौन, गढ़वाल में जन्मे प्रो. धूलिया राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाविद्, प्रोफेसर एवं लेखक हैं. प्रसिद्ध अजंता की गुफाओं पर आधारित 'चित्रदर्शन' पुस्तक को उ.प्र. शासन द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है.

द्विजेन्द्र सेन
पश्चिमी बंगाल के मूलवासी अब देहरादून में स्थायी प्रवासी श्री सेन दून घाटी के प्रसिद्ध मूर्तिकार और शिक्षाविद्त था ललितकला अकादमी के सदस्य हैं. सर्वे ऑफ इण्डिया में श्री सेन के द्वारा बनाई गई मूर्तियाँ शोभा वढ़ा रही हैं. इनकी कला को अनेक लोगों ने सराहा है जिसमें कन्हैयालाल, मणिकलाल मुंशी प्रमुख हैं. काँसे की मूर्तियाँ बनाने में दक्ष श्री सेन को आल इण्डिया फाइन आर्ट्स एण्ड क्राफ्ट सोसाइटी की तरफ से पुरस्कृत किया जा चुका है, आप 'बसन्तश्री पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं.

दीवान सिंह कुम्मैयां
(1934-1976) रानीखेत अल्मोड़ा. समकालीन भारतीय छायाकारों में विशिष्ट स्थान रखने वाले श्री कुम्मैयां अपने जीवनकाल में एक हजार से अधिक चित्रों का प्रकाशन किया है. अफगानिस्तान में वामियाना परियोजना के प्रथम भारतीय विशेषज्ञ दल में आप सम्मिलित थे. 'इलुस्ट्रेटेड वीकली' के आपने कई पुरस्कार जीते हैं.

बसंत कुमार पंत
पिथौरागढ़ वासी श्री पंत का चित्रकला के क्षेत्र में एक सुपरिचित नाम है. भारत तथा विदेशों में कई एकल प्रदर्शनियाँ तथा महत्वपूर्ण राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्ीय प्रदर्शनियों में प्रमुख 'आर्ट ग्रुप शो' आयोजित किए हैं.

भैरवदत्त जोशी
चित्रकार और कवि श्री भैरवदत्त का जन्म 1918 में रानीखेत में हुआ था. ललित कला अकादमी की अनुशंसा पर भारत के संस्कृति विभाग से 1500 रुपया प्रतिमाह पेंशन पाने वाले कलाकार हैं, ऑल इण्डिया फाइन आर्र्स एण्ड
कफ्ट सोसाइटी से पुरस्कार प्राप्त जोशी जी भारतीय कला जगत् में स्थान रखने के साथ लेखक क्षेत्र में भी सिद्धहस्त हैं,

महेशचन्द्र
ग्राम खाँकरगाँव, वागेश्वर, जिला अल्मोड़ा का वासी बेजोड़ हस्तशिल्पी था. पत्थरों को मूर्तियों का आकार देने वाला यह गुमनाम शिल्पी अब तक मैसूर, गोहाटी, तिरुवनन्तपुरम और गोआ के ऐतिहासिक संग्रहालयों में जीर्णोद्धार का काम कर चुका है. सोप स्टोन, सैण्डलवुड से लेकर कठोर पत्थरों की मूर्तियाँ बनाने से लेकर पेंटिंग और हीरा तराशी में आपको महारय हासिल है. कुछ दिन वैरागी जीवन विताने के कारण आप महेशचन्द्र से महेशानंद नाम से पहचाने जाने लगे हैं.

मित्रानंद मैठाणी
18 अक्टूबर, 1933, ग्राम वैग्याड़ीपट्टी नंदलस्यूँ, में जन्म हुआ था. चित्रकारी के क्षेत्र में अभूतपूर्व गढ़वाल योगदान दिया है. 1952 में पांचाल कला समिति में प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया. ललितकला अकादमी सूचना एवं प्रसारण निदेशालय, रेल मंत्रालय भारत सरकार, वार्शिंगटन, न्यूयार्क, मानचेस्टर, जर्मनी, टोकियो ओसाका में कला
गैलरियों में इनके कला चित्र लगे हुए हैं.

मुकुल पंवार
৪ अप्रैल, 1950 ग्राम धान्यों, पट्टी लस्या, टिहरी गढ़वाल में जन्म हुआ. आप मूर्तिकला के माने-जाने सिद्धहस्त व्यक्ति हैं. यू.पी. आर्टिस्ट एसोसिएशन ने 1970 में, आईफेक्स द्वारा 1978 में 1981 और 1990 में नेशनल अवार्ड से सम्मानित किए जा चुके हैं.

रमेश बिष्ट
गढ़वालवासी श्री रमेश विष्ट एक ख्याति प्राप्त मूर्तिकार हैं. 1965-70 के मध्य उ.प्र. ललितकला अकादमी ने सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकार घोषित किया है. आपके शिल्प के अनुपम कृतियाँ इलाहाबाद में स्थापित सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, भीमराव अम्बेडकर की मूर्तियाँ, मेरठ विश्वविद्यालय में चीधरी चरण सिंह की 10 फीट ऊँची और वीरचन्द सिंह गढ़वाली की मूर्तियाँ स्वयं ही आपकी गाथा गा रही हैं. श्री रमेश विष्ट प्रख्यात कलाकार पदुमश्री स्व. रणवीर सिंह विष्ट के भाई हैं.


रणवीर सिंह बिष्ट (1928-1998)
चित्रकला के क्षेत्र में गौरवशाली नाम करने वाले संवेदन- शील कलाकार श्री विष्ट चित्रों में मुख्यतः पर्वतीय जन जीवन का अंकन किया है. रंगों के मिश्रण में सिद्धहस्त अकेला कलाकार जिसमें कल्पना और यथार्थ का अनुठा संगम है "पदमश्री' से सम्मानित होने वाला उत्तराखण्ड का अकेला चित्र-कार है.

ली. गौतमी
आपकी कुशल प्रतीकात्मक कला शैली बौद्ध दर्शन को चित्रित करती है. ली. गौतमी संसार प्रसिद्ध दर्शन के प्रकाण्ड पण्डित एवं योगी श्री लामा गोविन्दा की पत्नी हैं. अल्मोड़ा के निकट कसार देवी स्थित अपने निवास स्थान पर यह दम्पति साहित्य कला एवं दर्शन को समृद्ध बनाने में कृतसंकल्प हैं.

सुधीर रंजन खास्तगीर
पद्मविभूषण से सम्मानित देहरादून का शिल्पी एवं चित्रकार कोलकाता चला गया. देहारादून प्रवास के दौरान
कला क्षेत्र में हिमालय की अनेक चित्रकारी की.

सुषमा अग्रवाल
लैण्डस्केप (दृश्यांकन) में आज देशभर के कला प्रेमियों में अपनी अलग पहचान बनाने वाली सुपमा ने वृक्ष, झरने,
समुद्र का किनारा, हिमाच्छादित पर्वत शिखर और वर्षा से भीगे वन जैसी अनगिनत को जलीय रंगों के माध्यम से एक अनूटी काव्यात्मक संवेदना प्रदान की है.

हरिराम कोहली
जन्म 13 जून, 1953, अल्मोड़ावासी हरिराम कोहली उतराखण्ड का पहला 'माउथ एण्ड फुट पेटिंग आर्टिस्ट' है. दर्जनों पुरस्कारों से सम्मानित उत्तराखण्ड का अकेला हाथ पैरों से विकलांग चित्रकार है. हायों और पाँवों के अभाव में हरिराम ने मुँह से कूची पकड़कर चित्रकारी आरम्भ की और एक दिन उनकी यह मेहनत रंग लाई. हरिराम के बनाए ग्रीटिंग काईस और तेल चित्रों की देश में ही नहीं वरन्इं गलैण्ड, डेनमार्क, जर्मनी और जापान में भी माँग बढ़ गई. डरिराम धीरे-धीरे सफलता की सीढ़ी पर चढ़ता गया और एक दिन जर्मनी की 'माउथ एण्ड फुट पेटिंग संस्था का सदस्य वन गया. अपार लोकप्रियता अर्जित करने का हरिराम ने कीर्तिमान स्थापित कर दिया.

पर्वतारोहण/अन्वेषण से जुड़े शिखर पुरुष एवं महिलाएं
किशन सिंह (1850-1921 ई.)
उन्नीसवीं शताब्दी के महान अन्वेषक जिन्होंने वेश बदलकर तिब्बत और मध्य एशिया के वर्जित क्षेत्रों का सर्वेक्षण
किया. 1867 में इन्हें सर्वे ऑफ इण्डिया में नियुक्ति मिली. लगभग 9 वर्षों की अवधि में इन्होंने चार वार सर्वेक्षण यात्राएँ कीं जो भारतीय सर्वेक्षण के इतिहास में महत्वपूर्ण हैं. किशन सिंह को इन साहसिक अन्वेषणों के लिए 'रायबहादुर का खिताब देकर सम्मानित किया गया.

चन्द्रप्रभा ऐतवाल
'पदमश्री' से सम्मानित चन्द्रप्रभा का जन्म 24 दिसम्बर, 1941 धारचूला, पिथौरागढ़ में हुआ था. 1972-78 की अवधि में कई पर्वतीय अभियानों में प्रशिक्षक, सदस्य लीडर की हैसियत से सम्मिलित हुई. शिखर राष्िंटग ट्रैकिंग में आपने कीर्तिमान बनाया है. इनकी उपलब्धियों को दृष्टिगत रखते भारत सरकार ने 1981 में 'अर्जुन अवार्ड', 1990 में पद्मश्री, 1993 में रंगरल्न अवार्ड और 1994 में नेशनल एडवेंचर अवार्ड से अलंकृत किया है.

चन्द्रशेखर पाण्डेय
2 जुलाई, 1961 जिला अल्मोड़ा में जन्मे श्री पाण्डेय हिमालयन रन एण्ड ट्रैक के क्षेत्र में एक अकेला स्वर्णाक्षरों में अंकित नाम है. अन्तर्राष्ट्रीय हिमालयन रन एण्ड ट्रैक स्पर्धा- आयोजित कराने वाले पहले भारतीय हैं.

जयवर्द्धन बहुगुणा
(1947-1985 ई.) देहरादून में जन्मे श्री बहुगुणा एक अनोखे पर्वतारोही थे. असम की पहाड़ी कंचनजंघा और दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका अभियान दल के सदस्य रहे. 1985 में एवरेस्ट के दूसरे अभियान में अपने अन्य चार साथियों के साथ हिम समाधि ली. 1980 में इन्हें वी. एस.पी. से सम्मानित किया गया.

नरेन्द्रधर जुयाल (1926-1958)
नरेन्द्र नगर टिहरी गढ़वाल के वासी नरेन्द्रधर अदम्य साहसी और संकटों से जूझने वाले अनोखे पर्वतारोही थे. आपने हिमालय की कई दुरुह, अविजित चोटियों पर अभियान दलों के साथ आरोहण किया. 1958 में एवरेस्ट से लगी विश्व की. छटी सबसे ऊँची चोटी चो- ओयू, 26867 फीट पर आरोहण करते समय न्यूमोनिया के कारण 28 अप्रैल को निधन हो गया.

नैन सिंह
उन्नीसवीं शताब्दी के विलक्षण खोजी अद्भुत साहस के धनी, धैर्यवान और खतरों से खेलकर लक्ष्य को प्राप्त करने वाले अकेले वीर पुरुष थे.

बछेन्द्रीपाल
24 मई, 1954 को ग्राम नाकुरीपट्टी वरसाली जिला उत्तरकाशी में जन्मी विश्व की सर्वोच्च पर्वत शिखर एवरेस्ट पर सफल आरोहण करने वाली देश की प्रथम महिला पर्वतारोही का गौरव हासिल है. अटूट साहस और संकल्प की धनी बछेन्द्रीपाल को भारत सरकार ने अनेक पुरस्कार देकर सम्मा- नित किया है. पुरस्कारों में पद्मश्री 1985, अर्जुन पुरस्कार 1986, उ.प्र. सरकार का नेशनल यूथ अवार्ड (1985), उ.प्र. सरकार का यश भारती पुरस्कार 1985, लिम्का वुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस् सदृश अनेक पुरस्कार हासिल हैं.

मानी सिंह
19वीं शताब्दी के विश्वविद्यालय अन्वेषक थे. हिमालय के क्षेत्र में अनेक सर्वेक्षण कार्य किया. 1863 में उन्हें सर्वे ऑफ इण्डिया देहरादून में वैज्ञानिक विधि से सर्वेक्षण का प्रशिक्षण दिया गया. बाद में उन्हें तिब्वत तक सर्वेक्षण कार्य सौंपा गया.

रतन सिंह विष्ट
युवा पर्वतारोही जो मैकतोली शिखर आरोहण में 21 सितम्बर 1992 को विशाल हिमालय की गोद में हिम समाधि
ले लिया.

रतन सिंह चौहान
पर्वतारोहण के क्षेत्र में रतन सिंह चौहान का एक चर्चित नाम है. इन्होंने कई अभियान में सफलतापूर्वक अपने लक्ष्य को प्राप्त किया. पर्वतारोहण, राक क्लाइम्बिंग स्की जैसे साहसिक कार्यों में वेहतर प्रदर्शन के लिए कई पुरस्कार मिले हैं. उ.प्र. सरकार ने 1981 में प्रशंसा पत्र दिए हैं. आई एम एफ से 1993 में स्वर्ण पदक प्राप्त किया है.

लबराज सिंह धर्मसक्तू
पियौरागढ़वासी श्री धर्मसक्तू को उत्तरमार्ग (तिब्बत के रास्ते) से एवरेस्ट पर अकेले ही चढ़ने में सफलता पाने वाले प्रथम भारतीय हैं. 19 मई, 1998 को विश्व की सर्वोच्च पर्वत शिखर हिमालय पर अकेले ही चढ़कर तिरगा फहराने का गौरव हासिल किया.

एस. पी. चमोली
पर्वतारोहण के क्षेत्र में इनकी असाधारण उपलब्धियों हैं.

सुमन कुटियाल दाताल
1 सितम्बर, 1968 को जन्मी श्री कुटियाल उत्तरकाशी की निवासिनी हैं. इनके प्रमुख अभियानों में बंदरपूंछ, सासेर
कांगरी, कंचनजंगा आदि प्रमुख हैं.



हरोशचन्द्र सिंह रावत
पर्वतारोहण में एक गौरवशाली नाम है. इनकी उपलब्धियों पर भारत सरकार ने पद्मरी' व अर्जुन अवार्ड
से सम्मानित किए हैं.

हर्षमणि नौटियाल
पर्वतारोहण के क्षेत्र में एक परिचित नाम है. 1969- 1995 की अवधि में 21 पर्वतारोहण अभियानों में सम्मिलित
होकर उत्तराखण्ड का नाम रोशन किया है.

हर्षबर्द्धन बहुगुणा
(1937-71) देहरादून में जन्मे श्री वहुगुणा 1971 में एवरेस्ट अभियान हेतु भारत- ब्रिटिश संयुक्त अभियान में
एकमात्र भारतीय सदस्य के रूप में चयनित हुए. अभियान के दौरान उनका निधन हो गया. भारत सरकार ने मरणोपरांत  पद्मशी व स्वर्ण पदक से विभूषित किया.

हर्षवन्ती विष्ट
10 नवम्बर, 1954 को जन्मी उत्तरकाशी वासिनी हर्यवन्ती जी पर्यतारोहण के विधा में एक सुपरिचित नाम है. साहस और संकल्प की धनी उत्तराखण्ड की अग्रणी महिलाओं में एक. 1984 एवरेस्ट अभियान दल की सदस्य रही हैं. पर्वतारोहण के क्षेत्र में इनकी वुलन्दियों का स्वागत करते हुए भारत सरकार ने 1981 में इन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया है.

हुकुम सिंह रावत
(1938-1998) पर्वतारोहण के क्षेत्र में एक गौरवशाली नाम है. 1963-66 में लडाख में बीस हजार फीट तक की ऊँदाई वाले आधे दर्जन से अधिक पर्दत शिखरों पर चढ़ने में सफलता अर्जित की. पर्वतारोहण में उल्लेखनीय योगदान के लिए भारतीय पर्वतारोहण संस्थान ने इन्हें स्वर्णपदक देकर सम्मानित किया. 26 जनवरी, 1992 को राष्ट्रपति ने इन्हें पद्म्री' सम्मान से अलंकृत किया उ.प्र. सरकार 'यशभारती" सम्मान से भी सम्मानित किया है.  ने पर्यावरण से जुड़े शिखर पुरुष एवं महिलाएँ

गौरादेवी 
(जन्म 1925 के आसपास) नंदा देवी अभ्यारण्य के अंतिम गाँव लाता जिला चमोली में जन्मी गौरादेवी अन्त- राष्ट्रीय जगत् में 'चिपको दूमन' नाम से प्रसिद्ध है. वन संरक्षण से पर्यायरण की शुद्धि और मानव के अस्तित्व की सुरक्षा के लिए विश्व स्तर पर चलाई जा रही जनचेतना की शुरूआत 'चिपको' के माध्यम से करने वाली गौरादेवी उन। चन्द गुमनाम सेवियों में से है जिनकी पहल भविष्य में मानव। जाति के लिए प्रेरणा वनी रहेगी. पेड़ को काटने से बचाने के निए पेड़ पर चिपक कर कुल्हाड़ी की मार को अपने शरीर पर झेलने का साहसिक उपक्रम ही 'चिपको' है.

चण्डीप्रसाद भट्ट
(23 जून, 1934) गोपेश्वर गढ़वाल में जन्मे श्री चण्डी प्रसाद अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के पर्यावरणविद् और समाजसेवी हैं. 1955 में गोपेश्वर में अध्यापन से जीवन संघर्ष की शुरूआत की. आचार्य विनोवा भावे और जयप्रकाश नारायण से प्रेरणा पाकर सर्वोदय आन्दोलन में सम्मिलित हुए. चिपको आन्दोलन के प्रणेता 'डाल्यों का दगड्या' स्वयंसेवी संस्था के जनक हैं श्री भट्टजी. वृक्षों के रक्षण से पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए भारत सरकार ने 1986 में 'पद्मश्री", पद्मभूषण (2005) और एशिया के सबसे वड़े पुरस्कार 'रेमन मेगसेसाय' (1982) पुरस्कार से सम्मानित किया है. आपको वर्ष 2013 का भारत सरकार का गांधी शांति पुरस्कार भी दिया गया है.

दामोदर राठौर
पियौरागढ़वासी श्रीराठीरजी को 90 लाख वृक्ष लगाने वाला उत्तराखण्ड का अनोखा व्यक्तित्व है. इनका सम्पूर्ण जीवन वनों को समर्पित है.

जगतसिंह
एक अनाम वृक्षप्रेमी जिसने भारतीय सेना से सेवानिवृत्ति के पश्चात् अपना जीवन पर्यावरण संरक्षण को समर्पित कर दिया है.

नारायण सिंह नेगी
विगत 30 वर्षों से वृक्षारोपण करते आ रहे इस दिशा में कीर्तिमान स्थापित किया है. 'पर्यावरण सम्मान से सम्मानित श्री नेगी ने थराली गाँव की 27 हेक्टेयर भूमि में 75 प्रकार की प्रजातियों वाले 70 हजार से अधिक वृक्ष
लगाकर मिश्रित वन लगाया है. 

विशेश्वर दत्त सकलानी
अनन्य प्रकृति प्रेमी, वृक्ष मित्र, पर्यावरण संरक्षक, स्वाधीनता सेनानी विशेश्वर दत्त सकलानी 'वृक्षमित्र' सम्मान से सम्मानित हैं, पर्यावरण के प्रति अगाध प्रेम को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 19 नवम्बर, 1986 को্न्दि रा प्रिय दर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार से सम्मानित किया.

सच्चिदानंद भारती
'हिमश्री' सम्मान से सम्मानित सच्चिदानंद भारती सामा- जिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद् हैं. दूधातोली लोकविकास संस्थान, डाल्यों का दगड्या, विनसर मंदिर समिति और वीर चन्द सिंह गढ़वाली स्मारक निर्माण समिति के संस्थापक,संयोजक और महामंत्री हैं.

सुन्दर लाल बहुगुणा
विश्वप्रसिद्ध पर्यावरणविद, लेखक और समाजसेवी श्री सुन्दर लाल वहुगुणा का जन्म 9 जनवरी, 1927 को गाँव मरोडा पट्टीजुवा उदयपुर, टिहरी गढ़वाल में हुआ था. विश्व विख्यात वन्य जीवन के पक्षधर रिचर्ड सेन्ट वार्ब वेकर से मेंट कर 'वृक्षमानव' संस्था की स्थापना की प्रकृति संरक्षण और पर्यावरणीय संतुलन की दिशा में विश्व समुदाय को जाग्रत करने और उल्लेखनीय कार्यों के लिए विश्वस्तरीय संगठनों द्वारा सम्मानित किए गए. रचनात्मक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए 'जमनालाल वजाज' पुरस्कार से सम्मानित हुए.

 पुरातत्व से जुड़े शिखर  पुरुष

प्रो. जी. एन. पन्त
7 जुलाई, 1940 ई. में ग्राम तामली जिला चम्पावत में जन्मे प्रो. जी. एन. पंत आर्कियोलॉजी के क्षेत्र में एक सुपरिचित नाम है. 1978-1982 तक आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया में डिप्टी सुपरिन्टेण्डेंट रहे. प्रो. पंत रॉयल एशियाटिक सोसाइटी लंदन के फेलो (1988) रहे हैं. फ्यूचर एजुकेशन, अमरीका के भी आप वर्ष 1990 में फेलो रह चुके हैं. प्रो. पंत ने एक सिद्धहस्त लेखक भी हैं. प्रो. पंत ने 'स्टडीज इन इण्डियन वीपन्स एण्ड वारफेयर' (1970), इण्डियन आर्चरी (1978) इण्डियन आमर्म्स एण्ड आरमर्स (तीन खण्ड) (1978-84), इण्डियन सील्डस (1980), इण्डियन वीपन्स इन बाबरनामा (1989) नामक अनेक पुस्तकों का सृजन किया है. अपने क्षेत्र में की गई सराहनीय सेवाओं के लिए प्रो. पंत को 'आचार्य नरेन्द्रदेव पुरस्कार' (1982) एवं प्रियदर्शिनी पुरस्कार (1995) पुरस्कार से अलंकृत किया गया है.

प्रो. धर्मपाल अग्रवाल
प्रो. धर्मपाल अग्रवाल (15 मार्च 1933) अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के पुरातत्वविद् हैं, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में सहायक अन्वेषक (1958-60) के रूप में अपने कार्यक्षेत्र का शुभारम्भ किया तथा फिर से पीछे मुड्कर कभी नहीं देखा. टाटा इन्स्टीट्यूट ऑफ फण्डामेंटल रिसर्च, बम्बई में शोध फेलो, भौतिकी शोध प्रयोगशाला में प्रोफेसर (1985 92) के पद को सुशोभित किया. अन्तर्राष्ट्रीय फेलोशिप में स्मिथ- सोनियन (USA, 1975), केरोकिएन (USA, 1988) की फेलोशिप प्राप्त की. आपकी विविध एवं उल्लेखनीय सफलताओं के लिए मौलाना आजाद गोल्ड मेडल (1962). उ.प्र. ग्रंथ अकादमी पुरस्कार 1977, से विभूषित किया जा है.अब तक आपकी 10 पुस्तकें एवं लगभग 200 लेख चुका एवं शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं.

वृजमोहन पाण्डेय
2 अक्टूबर, 1938 को पाण्डेय खोला जनपद अल्मोड़ा  में जन्मे श्री पाण्डेय एक सुपरिचित पुरातत्ववेत्ता हैं. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पुरातत्व संस्थान से 1961 में पी.जी. डिप्लोमा किया तथा इसी वर्ष भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग में सहायक नियुक्त हुए. 1976 में अधीक्षक और 1988 में निदेशक पद पर प्रोन्नत हुए. आपकी पुस्तक 'पुरातत्व प्रसंग के लिए शंकर पुरस्कार (1993) से सम्मानित किया गया. 

मुनीश चन्द्र जोशी
30 मार्च, 1935, ग्राम विटौरिया हल्द्वानी, नैनीताल में श्री मुनीशजी का जन्म हुआ था. 1955-56 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में गाइड लेक्चरर पद पर अरजंता में नियुक्त रहे. 1993 में महानिदेशक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पद से अवकाश ग्रहण किया. इतिहास एवं पुरातत्व पर आपने कई शोध लेखों और पुस्तकों का प्रणयन किया है.

डॉ. यशोधर मटपाल
ललित कलाचार्य डॉ. मठपाल का जन्म ग्राम नीला बल्ला, नया पट्टी अल्मोड़ा में सन् 1939 को हुआ था. डॉ. वहुमुखी प्रतिभा के धनी मठपालजी अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के पुरातत्वविद्, चित्रकार कला समीक्षक, हिन्दी और कुमाऊँनी के स्थापित लेखक गुफा कला, काप्ठ कला के अकेले विशेषज्ञ हैं. आपके लगभग 200 राष्ट्रीय एवं अन्तर्गाष्ट्रीय शोध प्रपत्र प्रकाशित हो चुके हैं. आपकी रचनाओं में प्रीहिस्टोरिक रॉक पेटिंग्स ऑफ भीमवेटका, सेन्ट्रल इण्डिया 1984, रॉक आर्ट इन कुमाऊँ हिमालय उत्तराखण्ड का काष्ट शिल्प, कुमाऊँ की सूर्य एवं कार्तिकिय प्रतिमाएँ महत्वपूर्ण हैं. गुफा कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए आपकी 1959 में ललित कला स्वर्ण पदक, 1964 में कलाश्री सम्मान, उज्जैन में अखिल भारतीय कालिदास पुरस्कार से अलंकृत किया जा पुका है,

डॉ. सतीश चन्द्र काला
(जन्म 1916, ग्राम सुमाड़ी, श्रीनगर गढ़वाल) अन्त- रष्ट्रीय ख्याति के संग्रहालय विशेषज्ञ, पुरातत्ववेत्ता लेखक एवं पत्रकार हैं. आपने म्यूजियम्स पर आयोजित कई राष्ट्रीय- अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनी में देश का प्रतिनिधित्व किया है. उ प्र. सरकार ने यूरीपीय देशों के संग्रहालयों के अध्यकयनार्थ विशेष ग्रांट स्वीकृत किया. अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवाओं के लिए वर्ष 1985 में आपको 'पदमश्री' विभूषण से अलंकृत किया गया.

खेलकूद से जुड़े शिखर पुरुष एवं महिलाएँ

करम चन्द सिंह
'बाबा' उपनाम से चर्चित करम चन्द सिंह का जन्म 29 मार्च, 1947 को काशीपुर राजघराने में हुआ था. 1984 में
एशिया पाँवर लिफि्टिग प्रतियोगिता में 2 रजत और कांस्य पदक जीते हैं, वाडी विल्डिंग और पावर लिफि्टिंग में
इनकी विशिष्ट रुचि रही है.

जसपाल राणा
28 जून, 1976 को जन्मे जसपाल राणा प्रारम्भ से ही निशानेवाजी में अनेकानेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं. मात्र ग्यारह वर्ष की उम्र में राज्यस्तरीय शूटिंग चैम्पियनशिप में मेडल प्राप्त कर एशियन शूटिंग चैम्पियनशिप प्रतियोगिता में जूनियर सदस्य के रूप में देश का प्रतिनिधित्व किया. 1992 में कोलम्बो में आयोजित साउथ एशिया फेडरेशन शूटिंग चैम्पियनशिप प्रतियोगिता में स्वर्ण, 1993 में पैंगयोंग (उत्तरी कोरिया) में सम्पन्न अन्तर्राष्ट्रीय शूटिंग टूर्नामेंट में रजत और 1994 में मिलान (इटली) में हुई. 46वीं विश्व शूटिंग चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक प्राप्त किया. 1994 में नया कामनवेल्य रिकॉर्ड वनाया. विक्टोरिया (कनाडा) में खेले गए 15वें राष्ट्रमण्डल खेलों में दो स्वर्ण एक रजत, एक कांस्य पदक और हिरोशिमा में 12वें एशियाई खेल में एक स्वर्ण और एक कांस्य पदक प्राप्त कर अपनी श्रेष्ठता का परिचय दिया. 1987 से 1996 तक जसपाल राणा 24 नेशनल रिकॉर्ड्स, 3 नेशनलस गेम्स रिकॉर्डस् स्थापित कर 140 स्वर्ण, 59 सिल्वर और 56 ब्रॉज मेडल स्टेट, नेशनल शूटिंग चैम्पियन में अर्जित कर चुके हैं. निशानेबाजी के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियों पर इन्हें कई सम्मान प्राप्त हुए हैं. वथा-अर्जुन पुरस्कार (1984), उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदत्त यशभारती (1984), एफ.आई.ई. फाउण्डेशन पुरस्कार, अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी द्वारा 1995-96 के लिए स्कालरशिप मिला है. उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नारायण दत्त तिवारी ने कामनवेल्य खेलों में स्वर्ण पदक जीतने पर डाई लाख रुपए का चेक पुरस्कार स्वरूप प्रदान किया.

दिनेश असवाल
पौड़ी गढ़याल के इस श्रेष्ठ बॉडी विल्डर ने 'मिस्टर दिल्ली' खिताब से खेलों में अपना अभियान शुरू किया. धीरे- धीरे रेलवे, राष्ट्रीय और 'सैफ" चैम्पियनशिप में भी अपना स्थान बना लिया. दिनेश का अगला लक्ष्य 'मिस्टर एशिया
और 'मिस्टर यूनिवर्स' का खिताव हासिल करना है.

देवी चन्द
ग्राम जजुराली (पियौरागढ़) में जन्मे देवी चन्द अन्त- र्राष्ट्रीय स्तर के बॉक्सर हैं. इन्होंने राष्ट्रीय वॉकिसिंग प्रतियोगिता क्रमशः 1986, 1987 व 1988 (सिकन्दराबाद, बंगलौर, संगरूर) में स्वर्ण पदक प्राप्त किया. एशियन गेम्स 1986 में देश का प्रतिनिधित्व किया. दक्षिण एशियाई खेल 1987 कलकत्ता में स्वर्ण पदक हासिल किया. एशियाई बॉक्सिंग 1987, किंग्स कप 1987 बैंकाक में क्रमशः रजत व कांस्य पदक प्राप्त किया.

धरमचन्द
ग्राम भरतुबाकोट, पियौरागढ़ में जन्मे धरमचन्द राष्ट्रीय स्तर के मुक्केबाज हैं 1982 में किंग्स कप, वैंकाक में कांस्य पदक प्राप्त किया. 9वीं एशियन बॉक्सिंग चैम्पियनशिप सिओल (दक्षिण कोरिया) 1982 और एशियाड 1982 नई दिल्ली भारतीय बॉक्सिंग टीम का प्रतिनिधित्व किया 1979  से 1982 तक सेना टीम का प्रतिनिधित्व कर राष्ट्रीय चैम्पियन रहे.

धर्मेन्द्र प्रकाश भट्ट
जनपद पिथौरागढ़वासी धर्मेन्द्र प्रकाश भट्ट राष्ट्रीय स्तर के बॉक्सर हैं. इन्होंने वॉक्सिंग में अनेक उपलब्धियों अर्जित
की हैं. इण्डो-एशिया मीट नई दिल्ली, 1986 में रजत पदक, किंग्स कप दॉक्सिंग चैम्पियनशिप बैंकाक 1993 और 17वीं एशियन बॉक्सिंग चैम्पियनशिप तेहरान, 1994 में प्रशिक्षक, साउय एशियन गेम्स कोलकाता 1987 में कांस्यपदक 13वीं एशियन बॉकिंसग चैम्पियनशिप कुवैत, 1988 में कास्य पदक प्राप्त कर देश का नाम रोशन किया है, सम्प्रति जिला क्रीड़ा अधिकारी हैं.

नारायण सिंह राणा
श्री नारायण सिंह राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त निशानेबाज हैं. इनका जन्म ग्राम चिलामू, पट्टी सिलवाड़ जौनपुर टिहरी गढ़वाल में 15 सितम्बर, 1951 को हुआ था. 1967 में इंडो -तिव्वत बाईडर पुलिस में प्रवेश किया तथा 1991 में सोवानियृत्त हुए. सेवाकाल में विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण प्राप्त किए तथा 1985 में एस.पी.जी. में नियुक्त हुए. 31 चीं व थीं राष्ट्रीय शूटिंग चैम्पियनशिप में दिल्ली टीम के मैनेजर সर कोच बने. आल इण्डिया पुलिस हपूटी मीट हैदराबाद ট76 में दो रजत पदक और एशियन गेम्स (1982) में उत्कृष्ट सेवाओं  के लिए पदक से सम्मानित किया गया. दिल्ली स्टेट शूटिंग 1987, 88 में 4 स्वर्ण और 4 रजत पदक प्राप्त किए. सम्प्रति गढ़वाल से एम.एल. सी. और उत्तराखण्ड मंत्रिपरिषद् में राज्यमंत्री हैं.


पदम बहादुरमल्ल
अर्जुन पुरस्कार विजेता पदम वहादुर का जन्म 1938 में देहरादून में हुआ था. इन्हंने वॉक्सिंग के क्षेत्र में राष्टरीय स्तर की ख्याति प्राप्त की है. इन्होंने अपने खेल जीवन की शुरूआत 1959 में शुरू की तथा फिर पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा. 1963 तक लगातार राष्ट्रीय चैम्पियन रहे. 1962 में इण्डोनेशिया के जकात्ता शहर में हुए चौथे एशियाई खेलों में हिस्सा लिया और स्वर्ण पदक जीता. उन्हें सर्वश्रेष्ठ बॉक्सर का खिताव मिला तथा अर्जुन पुरस्कार से भी नवाजा गया.

मीनू
सुश्री मीनू तालों की नगरी नैनीताल की वासी हैं. राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय जूडो प्रतियोगिताओं में कई पदक प्राप्त किए तथा देश का गौरव वढ़ाया है. मार्च 1997 में अन्तर्राष्ट्रीय जूडो के लिए पहली भारतीय महिला रेफरी चुने
जाने का गौरव हासिल है.

रमेश चन्द्र फत्त्याल
पिथौरागढ़वासी श्री फत्याल राष्ट्रीय स्तर के हॉकी व फुटबाल खिलाड़ी रहे हैं. 1990 में बंगलौर में मॉस्को ओलम्पिक में भाग लेने वाली भारतीय हॉकी टीम के प्रशिक्षण शिविर में रहे. जुलाई 1985 में भारत-रूस अन्तर्राष्ट्रीय हॉकी मैच में देश का प्रतिनिधित्व किया. जून 1985 में हॉलैण्ड में खेले गए चार राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिताओं में देश का प्रतिनिधित्व किया.

राजेन्द्र पुनेड़ा
ग्राम लुन्टयूडा, पियौरागढ़ में सन् 1955 में जन्मे श्री राजेन्द्र पुनेड़ा राष्ट्रीय स्तर के मुक्केबाज रहे हैं. 19 वर्ष की आयु में सेना में प्रवेश किया. 1990 में कमाण्ड और सर्विसेज मुक्केबाजी प्रतियोगिता में प्रथम रहे. 1991-92 में अपने वर्ग का 'देश का सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज ' घोषित हुए. 1982 में बैंकाक में आयोजित 'किंग्स कप बॉकिसग चैम्पियन- शिप' में भारत का प्रतिनिधित्व किया. नवे एशियाई खेलों में रजत पदक प्राप्त कर देश का नाम रोशन किया. 1983 में राष्ट्रपति द्वारा 'सोई आफ आनर' देकर सम्मानित किए गए.

राजेन्द्र सिंह राबत
हॉकी औलम्पियन राजेन्द्र सिंह रावत का जन्म 30 जनवरी, 1964 को नैनीताल में हुआ था . इन्होंने हॉफी के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियों हासिल की हैं तथा देश का गौरव बढ़ाया है. 1984 में हांगकांग और 1985 में लंदन में आयोजित क्रमशः 10 और 4 राष्ट्रों के हॉकी दूर्नमेंट में सीनियर वर्ग से खेले. 10वें एशियाई खेल, प्रथम इन्दिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हॉकी टूर्नमेंट, नई दिल्ली तथा छठे वर्ल्ड कप में खेल कर उत्कृष्ट खेल प्रतिभा का परिचय दिया है. सम्प्रति स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया नैनीताल में सेवारत हैं.

ललित प्रसाद
लाइट मिडिल वेट के राष्ट्रीय स्तर के बॉक्सर श्री ललित प्रसाद भारतीय रेल विभाग नई दिल्ली में चेकिंग स्टाफ में सेवारत हैं, हल्द्वानी में मुक्केबाजी की शुरूआत करने वाले ललित प्रसाद अब तक दर्जनों क्षेत्रीय, राज्य स्तरीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में मेडल जीत चुके हैं. वर्ष 1997 में इण्डोनेशिया प्रेसीडेंट कप में कांस्य पदक जीता. इसी वर्ष चीन में आयोजित इगाना कप में कांस्य पदक जीता. मुक्के- बाजी में श्रेष्ठ प्रदर्शन करने पर इण्डियन रेलवे द्वारा इन्हें 'बेस्ट स्पोर्टस् परसन 1998' एवार्ड देकर सम्मानित किया गया.

बीणा चन्दोला
श्रीमती वीणा चन्दोला को 1976 में देश की सर्वश्रेष्ठ महिला खिलाड़ी चुना गया था. 1987 में 33 वर्ष की अवस्था
में इनका निधन हो गया.

सीता गुसाई
सीता गुसाई पिछले एक दशक में देश की सर्वश्रेष्ठ महिला हॉकी खिलाड़ी हैं. देश की एकमात्र महिला खिलाड़ी जिसे विश्व इलेवन में स्थान मिला है. एशियाई खेलों और एशियन चैम्पियनशिप में सीता गुसाई ने देश का नाम रोशन किया है.

सुभाष राणा
25 सितम्बर, 1978 ग्राम चिलामू, टिहरी गढ़वाल में जन्मे सुभाष राणा राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त निशानेबाज हैं, मात्र 9 वर्ष की उम्र में 31वीं राष्ट्रीय निशानेबाजी प्रतियोगिता 1988 में प्रतिभागी बने और सातवाँ स्थान प्राप्त किया. तब से लगभग सभी राष्ट्रीय निशानेबाजी प्रतियोगिताओं में भाग लेकर स्वर्ण पदक, रजत पदक और कांस्य पदक प्राप्त करते चले आ रहे हैं. दिल्ली राज्य निशानेबाजी प्रतियोगिता में (1988-89 में सम्मिलित) 7 स्वर्ण, 2 रजत और 2 कांस्य प्राप्त कर रिकॉर्ड बनाया. सुभाष राणा जसपाल राणा के भाई है,

सुरेन्द्र सिंह बल्दिया
उत्तराखण्ड के मात्र अकेले सपूत जिन्होंने नौकायन खेल में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व किया. इन्होंने अनेक पुरुस्कार अर्जित किए तथा देश का गौरव वढ़ाया. सन 1984 में कलकता राष्ट्रीय नौकायन प्रतियोगिता में स्वा पदक अर्जित किया. हांगकांग में आयोजित प्रथम एशिया नौकायन चैम्पियनशिप में कांस्य पदक हासिल किया स्विट्जरलैण्ड में आयोजित इण्टरनेशनल प्रतियोगिता में  पदक प्राप्त कर देश का गौरव बढ़ाया. सरकार ने इनको अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित किया है.

सुरेश पाण्डेय
राष्ट्रीय ख्याति के मैराथन थावक और प्रशिक्षक श्री सुरेश पाण्डेय 200 से अधिक स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले देश के पहले एथलीट हैं. 7 कुमाऊँ रेजीमेंट, में सेवारत श्री पाण्डेय राष्ट्रीय/अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मैराथन दौड़ में 200 से अधिक स्वर्ण पदक प्राप्त कर देश का नाम रोशन किया है. 21वीं राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में भी स्वर्ण पदक प्राप्त कर देश और अपनी रेजीमेंट का नाम रोशन किया है. कारगिल युद्ध में आपके प्रशसनीय सेवा के लिए दो बार प्रशंसा- पत्र दिया जा चुका है. सम्पूर्ण उत्तराखण्ड व देश को आपके ऊपर गर्व है.

सैयद अली
अन्तर्राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी श्री सैयद अली 1975 से 1985 तक (1982 को छोड़कर) उत्तर प्रदेश टीम से राष्ट्रीय
हॉकी में हिस्सा लिया. वर्ष 1975 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 'लक्ष्मण पुरस्कार' से सम्मानित किया गया. इसी वर्ष प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी पुरस्कार दिया गया है.

हरी सिंह थापा
राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मुक्केबाज हरी सिंह थापा 1957 में दक्षिण-पूर्व एशियन बॉक्सिंग चैम्पियनशिप रंगून में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया और स्वर्ण पदक प्राप्त किया. 1957, 58, 59, 60 में राष्ट्रीय बॉक्सिंग प्रतियोगिता में सेना की टीम का प्रतिनिधित्व किया और प्रत्येक बार सर्वश्रेष्ट बॉक्सर घोषित हुए और प्रत्येक में स्वर्ण पदक प्राप्त किया.

हरीश तिबाड़ी
प्रतिभावान धावक श्री हरीश तिवाड़ी ने एथेलेटिक्स खेलों में हिस्सा लेकर प्रदेश का नाम गौरवान्वित किया है.
गांधीनगर में आयोजित आल इण्डिया ओपन एथेलेटिक्स प्रतियोगिता में 10 हजार मीटर दौड़ में रजत पदक व 5 इजार मीटर दौड़ में कांस्य पदक लेकर प्रदेश का नाम रोशन किया. बंगलीर में आयोजित अन्तर्राज्यीय आल इण्डिया ओषन एयेलेटिक्स में दस हजार मीटर दौड़ में त्वर्ण पदक और पोच हजार मीटर दौड़ में रजत पदक प्राप्त कर चुके हैं. सम्प्रोति भारतीय जीवन बीमा निगम हल्द्वानी में सेवारत् हैं.

हरिदत्त कापड़ी
पिथौरागढ़वासी श्री हरिदत्तजी वास्केटवाल के देश के शीर्ष खिलाड़ी रहे हैं. इस खेल में सर्वश्रेष्ठ खेल प्रदर्शन पर
भारत सरकार ने 1969 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया तथा वे देश के पहले खिलाड़ी बने. राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय खेलों में अनेक पदक हासिल किए तथा प्रदेश का नाम रोशन किया है.

त्रिलोक सिंह बसेड़ा
त्रिलोक सिंह ग्राम भण्डारी गाँव जनपद पिथौरागढ़ के वासी हैं. 1952 में जकात्ता में आयोजित एशियन फुटवाल
चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक प्राप्त किया तथा देश-प्रदेश का नाम रोशन किया


प्रदेश के अन्य खिलाड़ी

सरदार हरदयाल सिंह
मूलतः पंजाब के निवासी हैं, लेकिन लम्बे समय से देहरादून में निवास कर रहे हैं. साठ के दशक में हॉकी
ओलम्पियन रहे. वर्तमान में हॉकी के कोच हैं. राजेन्द्र सिंह व सैयद आली इन्हीं के शिष्य हैं.

सत्यभूषण विश्नोई ऊर्फ नन्हा
1950 के दशक के हॉकी खिलाड़ी व मैराथन धावक रहे हैं.

बलवीर सिंह
काशीपुर जिला ऊधमसिंह नगर के रहने वाले वलवीर सिंह हॉकी के राष्ट्रीय कोच हैं.

हरिप्रिया रौतेला
मास्को में आयोजित हॉकी ओलम्पिक में भारतीय टीम में देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं.

नंदकिशोर बम्बू (मसूरी)
हॉकी के ओलम्पिक रेफरी हैं.

श्रीमती हंसा शर्मा
पिथीरागढ़वासिनी श्रीमती हंसा भारोत्तोलन में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतिनिधि खिलाड़ी हैं. 1994 में विश्व महिला  रोतोलन और 1995 में एशियन महिला भारोत्तोलन में देश  का प्रतिनिधित्व किया. भारतीय टीम की कोच भी रही हैं.

कुमारी हेमलता काला
पौड़ी गढ़वाल की निवासिनी कुमारी हेमलता भारतीय महिला क्रिकेट की खिलाड़ी हैं, कई अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में
अपनी प्रतिभा का परिचय दे चुकी हैं.

उम्मेद सिंह
प्राम जलगूरी, जनपद पिधीरागढ़ के रहने वाले हैं, वाटर पोलो खेल में देश के प्रतिनिधि खिलाड़ी है,

अरुण कुमार सूद
देहरादून के वासी श्री सूद वॉलीवाल के नेशनल चैम्पियन हैं,

तलित मोहन जोशी
पिथौरागढ़वासी श्री ललित मोहन टेवल टेनिस के कोच रहे हैं. कजाकिस्तान में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय जृनियर टेकिल
टेनिस प्रतियोगिता में भारतीय टीम के कोच रहे.

कुमारी गीता मनराल
पियौरागढ़वासिनी सुश्री मनराल ने क्रांसकन्ट्री रेस में देश की चोटी की धाविका हैं, दक्षिण अफ्रीका में आयोजित
क्रासकंट्री रेस में देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं,

कुमारी मंजू विष्ट
पिथौरागढ़ की रहने वाली सुश्री विष्ट ने दक्षिण कोरिया में आयोजित 10वें एशियन गेम्स में भारतीय हॉकी टीम में
देश का प्रतिनिधित्व किया.

मधुमिता विष्ट
गढ़वालवासिनी मधुमिता विष्ट 'वैडमिंटन क्वीन' के नाम से प्रसिद्ध हैं, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय वैडमिंटन चैम्पियनशिप में प्रदेश तथा देश का नाम रोशन किया है.

संतोषी खड़ायत
पियौरागढ़वासिनी संतोषी खड़ायत को उत्तराखण्ड की पहली अन्तर्राष्ट्रीय धाविका वनने का श्रेय प्राप्त हुआ है,
प्रदेशवासियों को आपके ऊपर गर्व है.

इलाचन्द जोशी
इलाचंद जोशी का जन्म 13 सितम्बर, 1902 को अल्मोड़ा के एक सुसंस्कृत मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था वचपन से ही इनकी रुचि साहित्य की ओर थी. जब वे कक्षा 7 के विद्यार्थी थे तभी वे अल्मोड़ा में 'सुधाकर' नाम से एक हरतलिखित साहित्यिक मासिक पत्रिका निकालते थे, इस पत्रिका में सुमित्रानंदन पंत गोविन्द वल्लभ पंत की रचनाएँ भी प्रकाशित होती थीं, सन् 1914 में बारह वर्ष  की age  में इनकी पहली कहानी 'सजववा' शीर्षक से   कर की 'हिन्दी अल्प माला' में प्रकाशित हुई. ओोशी जी अंग्रेजी, संस्कृत, बंगला, मराठी, उर्दूफ्रें और जर्मन भाषाओं के प्रकाण्ड पंडित थे. बाल्यावस्था में उनकी भेंट बंगला के श्रेष्ठ उपन्यासकार शरत्चन्द्र चटोपाध्याय से हुई. कलकत्ता में रहते हुए इन्हें जीवन के यथार्थ का सामना करना पड़ा जो वाद में इनकी रचनाओं में परिलक्षित होता है. प्रेमचन्द के वाद परवर्ती हिन्दी कथा साहित्य को नया भोड़ देने वाले प्रतिष्ठित कथाकारों में इलाचंद जोशी का नाम अग्रगण्य है हिन्दी में मनोवैज्ञानिक उपन्यासधारा के प्रवर्तन का श्रेय जोशी जी को ही है. इलाचंद जोशी के उपन्यासों ने मनोवैज्ञानिक क्षेत्र में एक क्रान्ति का सूत्रपात किया. उन्होंने मनोविज्ञान का सहारा लेकर अपने पात्रों के चरित्र का मनोविश्लेषण किया है. जहाज का पंछी, प्रेम और छाया, संन्यासी भूतों की बारात, लज्जा और अन्य उपन्यासों में जोशीजी ने मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का सहारा लेकर पात्रों की परिस्थितियों की विवेचना की. इलाचंदजी मुख्य रूप से कथाकार हैं, कविताएँ भी लिखीं. विजनवती' उनका एकमात्र कविता संग्रह है. ऐतिहासिक दृष्टि से संक्रान्ति युग के समस्त कहानीकारों में जोशीजी अग्रगण्य हैं. इनके साहित्य विविधता का पुट दिखाई देता है. 14 दिसम्बर, 1982 को इलाचंद का देहावसान हो गया, तेकिन हिन्दी साहित्य में सदा अमर रहेंगे.

डॉ. पीताम्बर दत्त बड़व्वाल
डॉ. पीताम्बर दत्त वड़थ्वाल का जन्म लैन्सडाऊन के निकट कौड़ियापट्टी के पालीग्राम में दिसम्बर 1901 को हुआ
था. पिता श्री गौरीदत्त वड़्वाल ज्योतिष के विद्वान् ये. पिता का स्वर्गवास इनके वाल्यकाल में ही हो गया था. प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई. गवर्नमेंट हाईस्कूल श्रीनगर में प्रवेश लेकर आगे की शिक्षा ग्रहण की. पुनः लखनऊ से  लीचरण हाईस्कृल से सम्मान सहित मैट्रिक की परीक्षा पास की. वहीं इनका परिचय हिन्दी के विद्वान् श्री श्यामसुन्दर दासजी से हुआ. पुनः कानपुर के डी ए.वी. कॉलेज से एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की. शुद्ध रूप से हिन्दी विषय को लेकर 'डॉक्टरेट' पाने वाले सर्वप्रथम व्यक्ति ये. इनकी रचनाओं में प्राणायाम विज्ञान और कला, ध्यान से आत्मचिकित्सा, कबीर ग्रंथावली सम्पादन, राम चन्द्रिका- सम्पादक, गय सौरभ श्री रामचन्द्र शुक्ल के साथ रूपक रहस्य इत्यादि प्रमुख हैं, तड़्वाल ने अनेक निवंधों की रचना की है. प्रत्येक निबंध पर इनके परिपूर्ण अध्ययन और मनन की छाप है. डॉ. बड़्वाल ने गम्भीर साहित्य के साय साय काव्य रचना भी की है. श्री गिरिजादत्त नैयानी द्वारा सम्पादित 'पुरुषार्य' में समय समय पर उनकी कविताएँ प्रकाशित होती रहीं हं. इनका जीवन बहुत अभाव में गुजरा, अभावों में ही 24 जुलाई, 1944 को हिन्दी का यह विद्वान् स्वर्गवासी हो चला. उनकी मृत्यु के पश्चात् इनकी स्मृति को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए डॉ. वड़ध्वाल स्मारक ट्रस्ट बनाया गया. लैसडाउन में 'बड़ध्वाल सांस्कृतिक संघ' की स्थापना की गई, कोटद्वार स्थित राजकीय महाविद्यालय के साथ डॉ. बड़ख्वालजी का नाम जोड़ दिया गया है. उत्तराखण्ड में इस सरस्वती पुत्र का नाम सदा आदर के साथ लिया जाता रहेगा. उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान इनके नाम पर एक पुरस्कार देने की घोषणा की है.

मुकुन्दराम बड़थ्वाल
महान् संस्कृत कवि एवं ज्योतिषी श्री मुकुन्दराम बड़थ्वालजी का जन्म ग्राम खण्ड, विचला ढाँगू पौड़ी गढ़वाल में 9 नवम्बर, 1887 को संस्कृत ज्योतिष कर्मकाण्ड के प्रकाण्ड विद्वान् पिता श्री रघुवरदत्त जी के घर में हुआ था. प्रारम्भिक शिक्षा गढ़वाल व लाहौर में प्राप्त की. साहित्य साधना ग्राम खण्ड व देवप्रयाग में हुई, एक साधारण परिवार में जन्मे श्री मुकुन्दराम को ज्योतिषशास्त्र में एक लाख से अधिक श्लोक लिखने का गौरव प्राप्त है. उन्होंने 44 महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की जिनमें से केवल 22 ग्रंथों का ही प्रकाशन हुआ है. उत्तर प्रदेश शासन ने इनके कुछ ग्रंथों का प्रकाशन किया तथा आर्थिक सहायता भी मासिक रूप में प्रदान की. भारतीय ज्योतिष अनुसंधान संस्थान ने इन्हें अभिनव बाराहमिहिर की उपाधि से अलंकृत किया.

मुकुन्दराम द्वारा प्रकाशित ग्रंथों में कुछ प्रमुख हैं-
ज्योतिष शब्द कोश, ज्योतिष रत्नाकर, ज्योतिषसार संग्रह, ज्योतिष शास्त्र प्रवेशिका, जातक सार, जातक पारिजातीय संग्रह, जातक सूत्रम, जातक भूषणम, मुकुन्द विनोद सारिणी, मुकुन्द कोष, पचांग मंजूषा, आयुर्दाय संग्रह अष्टवर्ग संग्रह इत्यादि. जीवनपर्यन्त अभावों में रहते हुए कई विद्यार्थयों को शिक्षा दी, लेकिन कभी भी ज्योतिष को व्यवसाय के रूप में नहीं अपनाया. ज्योतिषशास्त्र का यह प्रकाण्ड विद्वान् 30 सितम्बर, 1979 को गंगातट पर बने मुकुन्दाश्रम में ही स्वर्गवासी हुए.

नैनसिंह रावत उर्फ मौलिक पण्डित
नैनसिंह रावत का जन्म 1830 में पिथौरागढ़ की मुनस्यारी तहसील के मिलम में हुआ था. इनका परिवार गरीब एवं कृषि व्यवसायी था, इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में हुई. नैन सिंह को वचपन से ही पहाड़ों पर पूमने की रुचि थी. शिक्षा पूरी होने पर अध्यापक की नौकरी करने लगे, तभी से उन्हें पंडित कहा जाने लगा. ब्रिटिश सरकार को तिब्वत और रूस के दक्षिणी भागों का सर्वेक्षण कराने के लिए एक साहसी व्यक्ति की आवश्यकता थी. ब्रिटिश अधिकारियों ने नैनसिंह से सम्पर्क किया. नैनसिंह ने साहसिक कार्य को पूरा करने के लिए सहर्ष समर्थन दे दिया. वे एक व्यापारी के छद्म वेश में सन् 1866 में नेपाल सीमा से ल्हासा तक उन्होंने सर्वेक्षण किया. सर्वेक्षण का यह कार्य अत्यंत कठिन था तथा कई दिनों तक भूखों रहना पड़ा. इस यात्रा में उन्होंने सेक्सटेंट (कोण नापने वाला यंत्र) से 99 स्थानों के अक्षांशों का अंकन किया. इसके अतिरिक्त वायु- मण्डल तापक्रम आदि के बारे में महत्वपूर्ण विवरण लिए,आर्थिक, सामाजिक जीवन के प्रति भी महत्वपूर्ण जानकारियाँ लीं.

सन् 1867 में मौलिक पंडित ने तिब्बत की थोकजातुंग नामक सोने की खान की यात्रा की. ल्हासा से वापसी मेंत्साडपो (ब्रह्मपुत्र नदी) के 600 मील तक के वहाव पथ का भी सर्वेक्षण किया. जुलाई 1873 में लद्दाख से होते हुए अपनी सर्वेक्षण यात्रा में उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तर में स्थित एक वड़े हिमाच्छादित पर्वत शृंखला की भी खोज की.
नैनसिंह एक महान् अन्वेषक वैज्ञानिक होने के साथ- साथ हिन्दी के कदाचित पहले विज्ञान लेखक भी हैं. थोकज्यालुंक की यात्रा, यारकंद की यात्रा का वृतांत लिखा.ब्रिटिश सरकार ने उनके अथक परिश्रम व महत्वपूर्ण सर्वेक्षणों के लिए ब्रिटिश शासन ने उन्हें 'कम्पोनियन ऑफ इण्डियन एम्पायर' अलंकार से अलंकृत किया. 1877 में ज्योग्राफिकल सोसाइटी ने अतिविशिष्ट पेट्रेनस गोल्ड मेडल प्रदान किया. यह मेडल प्राप्त करने वाले भारतीय मूल के प्रथम नागरिक थे इसके अलावा तत्कालीन वायसराय ने रुहेलखण्ड की मुरादावाद गाँव की जागीर दी.

गुमानी पंत
लोकरत्न पंत के नाम से भी चर्चित गुमानीपंत को कुर्माचल का सबसे प्राचीन कवि माना जाता है. गुमानीपंत के पूर्वज चन्द्रवंशी राजाओं के राजवैद्य थे. गुमानीजी का जन्म 27 फरवरी, 1790 में काशीपुर जनपद ऊधरमसिंह नगर में हुआ था. इनके पिता उपराड़ाग्राम, पिथौरागढ़ के निवासी थे. गुमानी की शिक्षा-दीक्षा मुरादाबाद के पण्डित राधाकृष्ण वैद्यराज तथा पंडित हरीक्षत ज्योतिर्वेद की देख-रेख में हुई थी. 24 वर्ष तक विद्यारध्ययन करने के बाद विवाह हुआ लेकिन मन में वैराग्य भाव उत्पन्न होने के कारण गृहस्य आश्रम इनको आकृष्ट नहीं कर सका. घर छोड़कर प्रयागराज गए तथा वहाँ गायत्री जप प्रारम्भ किया. कुछ दिन तक वरद्रीनाथ के समीप भी निवास किए तथा दुर्वा रस पीकर तपस्या की. अपनी माता देवमंजरी के आग्रह पर पुनः गृहस्य जीवन शुरू किया. राजकवि के रूप में गुमानीजी सर्वप्रथम काशीपुर नरेश गुमानसिंह देव की राजसभा में नियुक्त हुए. गुमानीपंत तत्कालीन अनेक राजाओं द्वारा सम्मानित हुए. पटियाला के राजा श्री कर्ण सिंह, अलवर के नरेश बने सिंह देव और नहान के राजा फतेह प्रकाश आदि राजाओं ने इनका विशेष सम्मान किया. टिहरी नरेश सुदर्शन शाह की सभा में भी मुरक कवि के रूप में रहे. गुमानीजी अपने शिल्प वैचित्र्य और प्रत्युत्पन्नमति के लिए प्रसिद्ध थे. विहार राज्य तक इनकी प्रसिद्धि फैली हुई थी. उनकी रचनाओं में प्रमुख रूप से निम्नलिखित रचनाएँ उपलब्ध हैं-
1. रामनाम पंचपंचासिका 
2. राममहिमा वर्णन
3. गंगा- शतक 
4. जगन्नाथाप्टक 
5. कृष्णाष्टक 
6. रामसहस्र गणदण्डक
7. चित्रपदावली इत्यादि.
गुमानीजी ने अधिकांश काव्य सृजन संस्कृत में किया इन्होंने किसी महाकाव्य की रचना नहीं करके शतक सतसई तथा मुक्तक पदों की रचना की. शतक संस्कृत में है, परन्तु कुमाऊँनी, नेपाल ब्रज, खड़ी बोली में मुक्तक पदों की रचना की. हिन्दी साहित्य के इतिहास में जिस काल में खड़ी बोली को काव्य के अनुपयुक्त ठहराया गया था. उससे बहुत पहले गुमानी खड़ी बोली में काव्य रचना प्रारम्भ कर चुके थे. गुमानी की कविताओं में तत्कालीन समाज का चित्रण मिलता है, देश व जाति के उत्थान की भावना मिलती है. गुमानीजी ने अपने जीवनकाल में गोरखाओं के अत्याचार और अंग्रेजों के द्वारा भारतीय समाज का शोषण देखा. उनकी रचनाओं में दोनों ही पीड़ा परिलक्षित होती हैं. गुमानीजी द्वारा प्रवाहित राष्ट्रीय भावना की पावन धारा को अंग्रेजी सरकार भी न रोक सकी. कुर्मांचल के प्रथम समाचार-पत्र 'अल्मोड़ा अखवार' (1871 ई.) में इस प्रकार की अनेक रचनाएँ मिलती हैं. गुमानीजी उत्तराखण्ड के ही नहीं, अपितु हिन्दी जगत् के प्रथम व श्रेष्ठ कवि हैं, अपनी राष्ट्रीय भावना व देशप्रेम के कारण वे एक श्रेष्ठ व सच्चे राष्ट्रकवि कहे जा सकते हैं.

कवि मौलाराम (1743-1833)
कवि मौलाराम का जन्म श्रीनगर (गढ़वाल) में सन् 1743 ई. में हुआ था. इनके पिता श्री मंगतरामजी थे. माता रामोदेवी ने मौलाराम को बचपन से ही रामभक्ति का पाठ  पढ़ाया. इनके गुरु रायसिंह थे. गुरु रायसिंह ने मौलारामजी को चित्रकला में पारंगत किया. चंडिका उपासना की विधि भी गुरुराय सिंह ने सिखाया. मौलारामजी ने श्रीनगर में अपनी चित्रशाला बनाई थी. उसी चित्रशाला में वे कलासाधना में रत रहते थे. चित्रकार और कवि के अतिरिक्त वे एक अच्छे दार्शनिक और राज- नीतिक कला में प्रवीण थे. मौलारामजी हिन्दी, फारसी और संस्कृत के अच्छे विद्वान्थे . उनकी रचनाएँ तीनों ही भाषाओं में मिलती हैं. उनकी रचनाओं में 'गढ़राजवंश', 'श्रीनगर दुर्दशा' एवं मन्मथसागर इत्यादि महत्वपूर्ण हैं. मौलारामजी ने अपनी रचनाओं के लिए ब्रजभाषा का प्रयोग किया. 'गढ़राजबंश' ब्रजभाषा की श्रेष्ठ रचना है.  मौलाराम ने मन्मथ पंथ चलाया जिसमें उनकी आध्यात्मिक अनुभूतियों का वर्णन है. प्रकृति के संयोग व वियोग रूपों का चित्रण करके प्रेम व विरह के चित्रों का वर्णन में पूर्ण कुशलता के साथ मौलाराम ने अपनी कविताओं में किए हैं.

पुरिया, नैथानी जैसे वीरों की प्रशंसा करके उन्होंने अपने मानवीय गुणों का परिचय दिया है, उनके कवि हृदय ने मान की प्रेरणा, भावना, सौन्दर्य प्रियता को शब्दों में अभिव्यक्ति दी, तो उन्हीं भावों को उनके चित्रकार हाथों ने चित्रों में अंकित कर दिया.

साहित्य से जुड़े शिखर पुरुष

श्रीयुत श्रीकृष्ण जोशी (1884-1965)
चीनखाना, अल्मोड़ा के मूल निवासी श्रीयुत जोशीजी बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे. जोशीजी घधर्मशास्त्र के
विद्वान् थे. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में धर्माचार्य पद को सुशोभित किया. साहित्य और धर्म में पाण्डित्य के साथ
कानूनविद् भी थे. अनेक विपयों पर आपने 20-21 ग्रन्थों की रचना की, किन्तु कुछ ही प्रकाशित हुए.

बद्रीदत्त पाण्डेय (1882-1965)
स्वनामधन्य कुमाऊँ केसरी, पाटिया ग्राम के श्री बद्रीदत्त पाण्डेयजी अपने समय के उच्चकोटि के राजनीतिज्ञ, प्रखरवक्ता, निर्भीक पत्रकार सम्पादक और ग्रन्यकार हुए हैं. हिन्दी के प्रथम साप्ताहिक 'अल्मोड़ा अखबार' के आप सम्पादक रहे. आपकी लिखित कालजयी कृति 'कुमाऊँ का इतिहास' ग्रन्यों का पितामह है. राष्ट्रभाषा हिन्दी में लिखा उस युग का यह सर्वप्रथम ग्रन्थ है.

लीलाधर जोशी
सेलाखोला, अल्मोड़ा के श्री लीलाधर जोशी ब्रिटिशकाल में जज थे. तत्कालीन कुमाऊँ के कुछ ही उच्च शिक्षित
व्यक्तियों में से थे. जज साहब ने गीता, मेघदूत और हर्षचरित का कुमाऊँनी में छन्दवत्ध्ध अनुवाद किया.

बद्रीशाह टुलघरिया (1879-1949)
राजनीतिक विषयक ग्रन्थकारों में अल्मोड़ा निवासी श्री वद्रीशाह ठुलघरिया का अपना विशिष्ट स्थान है. इनका लिखा 'देशिकशास्त्र' की भूमिका महात्मा गांधी ने लिखी है, लोकमान्य तिलक ने इस ग्रन्थ की भूरि-भूरि प्रशंसा की है, यह ग्रन्थ आज भी उतना ही प्रासंगिक है.

गौरीदत्त पाण्डेय 'गौर्दा' (1872-1939)
ग्राम पाटिया अल्मोड़ा वासी श्री गौरीदत्त पाण्डेयजी स्वाधीनता संग्राम काल के राष्ट्रवादी विचारों के लोककवि थे.
बदलती विचारधारा और स्वराज्य के नवीन संदेश को कुमाऊँनी कविताओं के माध्यम से घर-घर पहुँचाने का श्रेय प्राप्त है,

सुमित्रानंदन पंत
हिन्दी साहित्य में छायावाद के जनक और प्रकृति के चितेरे कवि कौसानी अल्मोड़ावासी श्री सुमित्रानंदन पंत अपनी शैली और श्रेणी के अकेले साहित्यकार हुए है. हिन्दी में लिखे आपके लगभग 20 काव्य हैं. कुमाऊँनी में भी आपने खूब लिखा है. प्रकृति के सुकुमार कवि श्री पंत को साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ तथा कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. आपको देश का प्रतिष्ठित पुरस्कार 'पद्म- भूषण' से भी अलंकृत किया गया है. कुछ समय आकाशवाणी से भी सम्बद्ध रहे. आल इण्डिया रेडियो का 'आकाशवाणी' नामकरण पंतजी के सुझाव पर ही हुआ.

गोबिन्द बल्लभ पंत (1898-1996)
ग्राम मालीज अल्मोड़ा निवासी स्व. श्री गोविन्द बल्लभ पंत हिन्दी साहित्य में विशिष्ट श्रेणी के नाटककार हुए. इन्होंने लगभग 40 नाटकों और उपन्यासों का प्रणयन किया है. साहित्य की दूसरी विधाओं पर भी इन्होंने खूब कलम चलाई.

दुर्गादत्त त्रिपाटी (1906-1979)
कुमायेँ के हिन्दी लेखकों कथाकारों में एक नाम चन्दौसी जिला मुरादाबाद में स्थायी प्रवास कर रहे श्री दुर्गादत्त त्रिपाटी का एक विशिष्ट स्थान है. त्रिपाठी जी ने महाकाव्य, छन्दकाव्य, काव्यसंग्रह, उपन्यास व कथा के रूप में 50 के लगभग ग्रन्थ लिखे हैं. इनमें केवल 5 प्रकाशित है.

श्रीमती गौरापंत (शिवानी)
हिन्दी जगत् में मूर्धन्य कथाकार के रूप में प्रतिष्ठित शिवानी जी का जन्म 17 अक्टूबर, 1923 कसून, अल्मोड़ा- वासी उत्तराखण्ड की ही नहीं वरन् राष्ट्र की धरोहर है. शिवानीजी ने उपन्यास, लघु उपन्यास, कहानी, निबन्ध, संस्मरण, रिपोर्ताज, वालसाहित्य आदि विभिन्न विषयों पर 44 से अधिक रचनाओं का सृजन किया है. विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित शिवानीजी "पद्मश्री' से भी विभूषित है.

जनार्दन पाण्डेय (21 जनवरी, 1920)
संस्कृत, पाली, हिन्दी के वयोवृद्ध विद्वान् एवं पुराण तथा बौद्ध साहित्य के विशेषज्ञ श्री पाण्डेय की साधना स्थली
काशी रही है. आपकी लगभग 40 कृतियाँ प्रकाशित हैं, परमार्थ दर्शनम, वौद्ध स्रोत संग्रह शीर्षक ग्रन्थ अन्तर्राष्ट्रीय
महत्व के हैं

यमुनादत्त वैष्णव 'अशोक' (2 अक्टूबर, 1915)
कौसानी के निकट धोलरा गाँववासी, खोजी, इतिहास- कार, कथाकार एवं उपन्यासकार होने के साथ कुमाऊँनी के
मजे हुए लेखक हैं.

अशोक कौशिक (10 अगस्त, 1926)
ग्राम सूरी, सालम अल्मोड़ावासी श्री अशोक कौशिक का नाम अनजाना सा है. इनका मूल नाम मथुरादत्त शर्मा है,
कौशिकजी ने अपने जीवन काल में 19 जीवनी साहित्य, 14 दाल साहित्य, 4 आयुर्विज्ञान, 6 धार्मिक और पौराणिक और 'मधुकर' छद्म नाम से 15 उपन्यास लिखें. कई ग्रन्थों का सम्पादन किया और संस्कृत व अंग्रेजी भाषा की कुछ पुस्तकों का अनुवाद भी किया. आप कुशल सभ्पादक भी हैं.

शैलेश मटियानी (1931-2001)
वाड़ेछीना, अल्मोड़ा श्री शैलेश मटियानी प्रतिभा सम्पन्न कथा शिल्पी, उपन्यासकार, चिन्तक और विचारक हुए हैं.
यशपाल के शब्दों में 'हिन्दुस्तान के गोर्की' मटियानीजी के 25 उपन्यास, 19 कहानी संग्रह, 10 वैचारिक लेख संग्रहों के अतिरिक्त दर्जन से अधिक वालोपयोगी पुस्तकें प्रकाशित हैं.

डॉ. हेमचन्द जोशी (1894-1974)
मल्ला दन्या, अल्मीड़ावासी डॉ. हेमचन्द जोशीजी अन्तरष्ट्रीय ख्याति के भाषाविद् हुए हैं डॉ. जोशी संस्कृत,
फारसी, हिन्दी, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, ग्रीक और लैटिन भाषा के विद्वान् थे, इनका डी. लिट. का शोध प्रवन्ध फ्रेंच भाषा में था, यह ग्रन्थ पेरिस में प्रकाशित हुआ था और यूरोप में इसकी | लाख प्रतियाँ विकी. भाषाशास्त्र पर इनके और भी कई ग्रन्थ हैं, हिन्दुस्तान में जीविकोपार्जन के लिए भाषाविज्ञान के इस भीष्म पितामह को साधारण मास्टरी और ड्राईक्लीनरी तक करनी पड़ी थी.

इलाचन्द्र जोशी (1902-1982)
श्री इलाचन्द्रजी हिन्दी साहित्य के कीर्ति स्तम्भ हुए है, आप सशक्त कथाकार, उपन्यासकार, सम्पादक और पत्रकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं, आपके 13 उपन्यास, 6 कहानी संग्रह और 2 अनदित कृतियाँ प्रकाशित हैं.

तारादत्त पाण्डेय (1903-1965)
कसून, अल्मोड़ावासी श्री ताराचन्द पाण्डेय भाषाविद्औ र विद्वान् थे. कुमाऊँनी, हिन्दी, अंग्रेजी संस्कृत, उर्दू पर इनका समान अधिकार था. इन्होंने अनेक विषयों पर ग्रन्यों की रचना की. उमर खय्याम की रुवाइयों का कुमाऊँनी में छन्दानुवाद किया. इनके लिखे कुमाऊँनी शब्दकोश व लोकोक्ति संग्रह पर कई व्यक्तियों ने शोध सम्पन्न किए हैं,

लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' (1 जनवरी, 1918)
बगस्थाड, जैन्ती, तल्ला सालम, अल्मोड़ावासी श्री शर्मा एक मूर्धन्य लेखक और सम्पादक हैं. आप कई विभिन्न
विषयक श्रेष्ठ कृतियों के रचनाकार हैं. इनके लेखन पर शोध हो चुके हैं.

डॉ. देवीदत्त शर्मा (1928)
गाँव जंगलिया, भीमताल, नैनीताल वासी श्री शर्मा हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी तिब्बती कुमाऊँनी के आधिकारिक विद्वान् हैं. भाषाशास्त्री के रूप में स्थापित डॉ. शर्मा के उत्तराखण्ड की भाषाओं पर अब तक आधे दर्जन से अधिक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं. इनके अंग्रेजी में सोलह और हिन्दी में अनूदित दो ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं.

पट्मशास्त्री (17 दिसम्बर, 1935)
ग्राम व पोस्ट सिंगोली, पियौरागढ़ वासी श्री पद्मशास्त्री संस्कृत साहित्य के मूर्धन्य विद्वान् हैं. काव्यतीर्थ, साहित्यायुर्वेदाचार्य, साहित्यरत्न, विद्याभूषण और आशुकवि की उपाधियों से श्री शास्त्री अलंकृत हैं. संस्कृत में आपके शतक खण्डकाव्य, महाकाव्य, व्यायोग, यात्रा संस्मरण हास्यव्यंग्य एवं बालकथा सम्बन्धी दर्जन से ऊपर श्रेष्ठकृतियाँ प्रकाशित हैं.

डॉ. नारायणदत्त पालीवाल (3 मई, 1929)
ग्राम पाली, पोस्ट दौला, अल्मीड़ा वासी डॉ. पालीयाल हिन्दी साहित्य की कई विधाओं में कई पुस्तकों के लेखक है. कुमाऊँनी भाषा साहित्य और उत्तराखण्ड पर आपने वहुत लिखा है. 23 कृतियाँ प्रकाशित और 7 प्रकाशनाधीन है. आपने 10 पुस्तकों का सम्पादन भी किया है.

आचार्य भाष्करानंद लोहानी (8 सितम्बर, 1922)
मनार, पट्टी बोरारी, अल्मोड़ावासी आचार्य लोहानी सन् 1956 से पत्रकारिता और साहित्य सृजन से जुड़े हैं, अब तक आप विभिन्न विषयक 30 उत्कृष्ट श्रेणी की पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं. इनमें संस्कृत और ज्योतिष की आठ कृतियाँ पुरस्कृत हैं.

मनोहर श्याम जोशी (6 अगस्त, 1933)
जाखन देवी, अल्मोड़ावासी श्री जोशीजी राष्ट्रीय ख्याति के उपन्यासकार, पत्रकार, सम्पादक, वृत्त चित्र, लेखक, पटकथा लेखक और कापी राइटर हैं, इनके उपन्यासों पर आधारित कई टी. वी. धारावाहिक बने हैं.

रमेशचन्द्र शाह (1937)
जौहरी मोहल्ला, अल्मोड़ावासी श्री रमेशचन्द्र शाह एक बहुआयामी साहित्यकार है. शाहजी के अव तक 4 काव्य संग्रह, 6 आलोचनात्मक कृतियाँ, 3 वाल कविता संग्रह, 5 उपन्यास, 6 निवन्ध संग्रह और 3 कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके है.

हरिशंकर जोशी
गंगोलीहाट, पिथौरागढ़ निवासी श्री हरिशंकर जोशी  प्रसिद्ध भाषाशास्त्री थे. कुमाऊँनी की ध्वनि प्रक्रिया में व्याकरण और अर्थतन्त्र में इनकी गहरी पैठ थी. भाषा के विशेष अध्ययन हेतु जोशीजी विदेश भी गए.

हिमांशु जोशी (4 मई, 1935)
जोस्यूड़ा, पिथौरागढ़ वासी श्री हिमांशु जोशी ने उपन्यास, कहानी, कविता, वाल साहित्य पर लगभग 30 पुस्तकों का प्रणयन कर चुके हैं. इनका लिखा साहित्य देशी और विदेशी भाषाओं में रूपान्तरित है.


शम्भु प्रसाद शाह (1 जुलाई, 1929)
नया वाजार, नेनीताल में जन्मे श्री शाह एक सम्पादक और साहित्यकार हैं. इसके अलावा आप वृत्तचित्र लेखक भी
हैं. विभिन्न विषयक 4 रचनाएँ प्रकाशित हैं.

हरिसुमन विष्ट (1 जनवरी, 1958)
नैनीताल के निवासी श्री विष्ट एक सम्पादक, पत्रकार और साहित्यकार हैं. उपन्यास, कथा साहित्य, सम्पादन में इनकी विशिष्ट पहचान है,

डॉ. अम्बादत्त पाण्डेय (9 मई, 1937)
चौरठा मल्ला कत्यूर, अल्मोड़़ावासी डॉ. पाण्डेय अवकाश प्राप्त अध्यापक हैं, आपने तीन मौलिक, तीन अनूदित तथा एक सम्पादित ग्रन्थ का प्रणयन किया है. आंग्ल भाषा में तीन और हिन्दी में एक कृति प्रकाशनाधीन है.

डॉ. पानू खोलिया (13 जून, 1939)
डॉ. खोलिया हिन्दी साहित्य के चर्चित, कथाकार और उपन्यासकार हैं. अब तक आपकी 6 कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं.

पंकज बिष्ट (20 जनवरी, 1946)
नौगाँव, पट्टी वल्ला नया, अल्मोड़ा के पंकज बिष्ट कया साहित्य और पत्रकारिता के नामीगिरामी हस्ती हैं.

महेशचन्द्र पाण्डेय
ग्राम पल्यूं, अल्मोड़ा के महेश चन्द्र पाण्डेय कथा लेखन, आलोचना और पत्रकारिता में विशेष चर्चित हैं.

मृणाल पाण्डेय
ख्याति प्राप्त कथाकार, शिवानीजी की सुपुत्री हैं. रचनाकार, सम्पादक और पत्रकार हैं. अब तक 3 कहानी संग्रह 2 उपन्यास तथा 5 नाटक लिख चुकी है. अंग्रेजी और कुमाऊँनी में साधिकार लिखती हैं. 'इण्डियन विएटर टुडे" इनकी चर्चित कृति है.

जानकी बल्लभ डालाकोटी-(12 अगस्त, 1928)
श्री डालाकोटी एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आप चीनी भाषा के जानकार हैं. चीनी साहित्य, दर्शन और इतिहास की कई
पुस्तकों का हिन्दी अनुवाद कर चुके हैं.

लक्ष्मण सिंह विष्ट 'बटरोही' (25 अप्रैल, 1946)
सालम, अल्मोड़ा निवासी श्री बटरोही कथा शिल्पियों में विशिष्ट स्थान रखते हैं. कथा उपन्यास आलोचना लोक- साहित्य, वालोपयोगी 25 पुस्तकों का प्रणयन कर चुके हैं. लोक कला, रंगमंच, संगीत, सिनेमा व टी. वी. से जुड़े शिखर पुरुष व महिलाएँ

अमलानंद धर्माणा (जन्म 1885)
गढ़वाल में 1915 के आसपास धस्माणा ने अपने गाँव वग्याली में रामलीला मण्डली का सूत्रपात किया था आप दूर
के दूसरे गाँव में भी जाकर रामलीला का आयोजन करवाते थे. पण्डित धस्माणाजी सुप्रसिद्ध ज्योतिर्विद्, प्राश्नि क और गणितज्ञ भी थे, उनकी लिखी ज्योतिष रत्न भण्डार सारणी उन दिनों पहाड़ के ज्योतिषियों के पास हुआ करती थी.

अनूप डाभोल (15 मई, 1964)
गढ़वाल वासी डाभोल एक सुपरिचित छायाकार हैं, देश के प्रसिद्ध फिल्म निर्देशकों और निर्माताओं के साथ कार्यानुभव है, आपने लगभग 250 वृत्तचित्रों एवं टेलीफिल्मों व एक हजार से अधिक न्यूज कार्यक्रमों का छायांकन किया है.


आनन्द सिंह नेगी
अल्मोड़ा वासी श्री नेगी कुमाऊँनी के पहले लोकगायक हैं. 'आनन्द कुमाऊँनी एण्ड पार्टी' नाम से 1955-62 में अपना संगीत ग्रुप रहा. आप पहले कुमाऊँनी थे जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर आल इण्डिया रेडियो से 1955-1957 तक
कार्यक्रम दिए. 1968 से पर्वतीय कला केन्द्र से सम्बद्ध रहे. आपने अनेक नाटकों में स्वर दिया. लोकगीत गायक के रूप में सांस्कृतिक मंत्रालय द्वारा आप सम्मानित भी है.

इन्द्रमणि बडोनी (1927-1999)
उत्तराखण्ड के गांधी' नाम से सम्मानित बडोनी संस्कृति-कर्मी, रंगमंच के सशक्त हस्ताक्षर एवं लोकप्रिय सामाजिक कार्यकर्ता थे. वडोनी जी लोक कलाकार के रूप में कर्म्षेत्र में पदार्पण किया 26 जनवरी, 1957 को दिल्ली में आयोजित 'चौफला केदार' नृत्यगीत सुनकर नेहरू जी गदगद हो गए थे.

उत्तमदास
ढोलसागर का अकेला ज्ञाता जिसको ढोलवादन में राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त है. ढोलसागर में कुल 84 ताल वताए जाते हैं. वर्तमान में 36 तालों में बजाने वाला उत्तमदास है. उर्मिल कुमार थपलियाल राष्ट्रीय ख्याति के रंगकर्मी, लेखक और स्तम्भकार श्री थपलियाल 15 वर्षों तक 'स्वतन्त्र भारत' लखनऊ के व्यंग्य स्तम्भकार रहे. 1977 से रंगमंच को समर्पित है. 'यहदी की लड़की' नामक नाटक देश की दस भाषाओं में प्रसारित हुआ. आकाशवाणी में अब तक लगभग एक सौ रूपकों, गीत नाटिकाओं का प्रस्तुतीकरण, अभिनय और गायन कर चुके हैं. आप संगीत नाटक अकादमी उ. प्र. द्वारा सम्मानित भी हुए हैं.

कबूतरी देवी
देश के अनेक रेडियो स्टेशनों से अपनी कला का जादू विखेर चुकी कबूतरी देवी कतु गायन की उपेक्षा से खिन्न
होकर गायन छोड़ चुकी हैं. आपने 70-80 के दशक में अपने ऋतु गायन के जादू से धूम मचा दी थी.

केशव अनुरागी-(1929-1993)
गढ़वाली लोक संगीत के मर्मज्ञ, सगीतज्ञ और गायक केशवदास का सम्बन्ध गढ़वाल के एक कलावन्त परिवार से
था. अनुरागी उपनाम से चर्चित इस संगीतज्ञ ने सम्पूर्ण गढ़वाल को संगीत में समेटा तथा वहाँ के प्रतिविम्बों को समेटते हुए उसको लोकधुन में संगीतवद्ध किया.

खेमानाथ बाबा (1911-1991)
नाथ सम्प्रदाय के जोगी वावा खेमनाथ पाली पछाऊं या पश्चिमी अल्मोड़ा की सल्ट और नया पट्टियों में सन् 1930-80 के बीच पूरी आधी सदी तक रामलीला अभिनय के महापात्र रहे. वाबा खेमनाय संगीतज्ञ के साथ श्रेष्ठ अभिनेता भी थे.

गिरीश तिबारी 'गिर्दा
उत्तराखण्ड का एक अलदेला जनवादी कवि, स्थापित रंगकर्मी लोकसाधक गिरीश तिवारी को जनमानस 'गिर्दा'
उपनाम से सम्बोधित करता है आपने अनेक नाटक संगीत की रचना व निर्देशन किया है. आपको अनेक पुरस्कारों से भी अलंकृत किया गया है.

गुणानंद 'पविक' (1931-2000)
लुप्त होती जा रही गढ़वाल की सांस्कृतिक लोक विद्या ढोल सागर के मर्मज्ञ श्री पविकजी नैष्टिक स्वातंत्र्य वीर व
लोक गीतकार थे. लोकगीतों और उद्योधनों से टिहरी राजशाही को धाराशाही करने में बड़ा योगदान रहा.

गोपाल बाबू गोस्वामी (1941-1996)
आप कुमाऊँनी लोकगीतों के बेजोड़ गायक रहे. पर्वतीय जनजीवन पर आधारित दर्जनों गीतों का ऑडियो कैसेटों में
रिकॉर्ड कराया.

चन्द्रशेखर पन्त संगीताचार्य (1912-1967)
आप भारतीय शास्त्रीय संगीत में धुपद और तराना के बेजोड़ गायक रहे. आपने अनेक पदों को सुशोभित किया तथा अनेक तरानों की रचना की. दिल्ली विश्वविद्यालय के संगीत विभाग ने 14 दिसम्बर, 1986 को 'चन्द्रशेखर पंत
दिवस' मनाया.

चन्द्रसिंह 'राही' (17 मार्च, 1942)
आप गढ़वाली लोकगीतों के प्रसिद्ध गायक और गीतकार हैं. अब तक कुमाऊँनी एवं गढ़वाली में लगभग पाँच सौ
लोकगीतों के गायन का रिकॉर्ड है. उत्तराखण्ड लोककला केन्द्र द्वारा 1986 में 'लोक संगीत' रत्न से सम्मानित किया जा चुका है. गढ़भारती दिल्ली ने 1986 में 'साहित्य कला अवार्ड' से सम्मानित किया है.

जगदीश कापड़ी (3 अप्रैल, 1948)
जिला पिथौरागढ़वासी जगदीश कापड़ी व्यावसायिक और --लघु फिल्मों के निर्माता हैं. 1976-84 में हिन्दुस्तान थाम्पसन कम्पनी के डायरेक्टर थे. रेडियो व दूरदर्शन पर प्रथम प्रेषित कार्यक्रम प्रस्तुत करने का श्रेय आपको जाता है.

जीतसिंह नेगी (1927)
गढ़वाल की लोक संस्कृति को गीतों के स्वरों से जीवंत रखने वाले वेजोड़ लोकगायक और गीतकार हैं. गढ़वाली भाषा में आपने अनेक अनूठे गीतों की रचना की है. गढ़वाली भाषा, सामाजिक परिवेश, परम्पराएं, रूढ़ियाँ और लोक विश्वास पर आपकी आश्चर्यजनक पकड़ है. पर्वती संस्कृति को उजागर करने वाले अनेकगीतों की रचना की तथा उसे स्वरों में ढाला.

झूसिया दमाई (1913)
ग्राम ढूंगातोली, धारचूला पिथौरागढ़वासी लोकगायक, विशेषकर भड़ी गायक के रूप में लोक प्रसिद्ध हैं. कुमाऊँ और नेपाल के पुराने पैकों (वीरों) की गाथा को भड़ौ कहा जाता है, पूरे 60 वर्षों तक पहाड़ के मन्दिरों और मेलों में हुड़के की थाप पर प्रसिद्ध भड़ी गाथा गाने वाले 86 वर्षीय झूसिया दमाई आज भी स्वस्थ हैं.

देवकी नंदन पाण्डेय (15 फरवरी, 1920)
दमाई ग्राम पारिया अल्मोड़ावासी श्री पाण्डेय चार दशकों तक आकाशवाणी में उद्घोषक के रूप में अपनी निराली छवि  लिए लोकोप्रिय एवं प्रसिद्ध कलाकार हैं, इसके अलावा आप लगभग एक दर्जन नाटकों में अभिनय भी किया है,  फिल्म 'उदकार' में आपने अपनी अमिनय कला का जादू विखेरा है.

नईमाखान उप्रेती (25 मई, 1938)
रंगमंच में कुमाऊँ की पहली सक्रिय महिला सुप्रसिद्ध रंगकर्मी मोहन उप्रेती की जीवन संगिनी है. आप पर्वतीय
कला केन्द्र दिल्ली की अध्यक्ष भी हैं.

नरेन्द्रसिंह नेगी (12 अगस्त, 1949)
पौड़ी गाँव, जिला गढ़वालवासी श्री नेगी सुविख्यात गढ़वाली लोकगीत गायक, गीतकार संगीतकार और सर्वाधिक
लोकप्रिय गायक हैं. लोकगायन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए आपको 'गदगौरव सम्मान' 'गढ़रत्न' सम्मान इत्यादि अनेक सम्मान से विभूषित किया जा चुका है.

निर्मल पाण्डेय (10 अगस्त, 1962)
भारतीय सिनेमा में अभिनय के क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति  अर्जित करने वाला श्री पाण्डेय उत्तराखण्ड का पहला
प्रतिभावान युवा है. 'दायरा' फिल्म में सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए फ्रांस में आयोजित फिल्म समारोह में आप पुरस्कृत हैं. आपने 'बैंडिट क्वीन' फिल्म में अभिनय करके श्री पाण्डेय ने अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की है.

पवनदीप राजन (1996)
गाँव सल्ला चिंगरी, जिला पिथौरागढ़वासी पवनदीप एक विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न तबला वादक हैं. अपने अंगुलियों
के जादू से दर्शकों को सम्मोहित कर देने वाला सम्भवतः विश्व का अनोखा तबला वादक है. अक्टूबर 2000 में नैनीताल में सम्पन्न कुमाऊँ महोत्सव में नन्हें बालक की प्रस्तुति पर राज्यपाल ने 11 हजार रुपए का इनाम दिया था.

परासर गौड़
गढ़वालवासी श्री गौड़ कवि लेखक, रंगमंच के अभिनेता और फिल्म निर्देशक हैं. गढ़वाल और गढ़वाली की पहली
फिल्म 'जग्वाल के निर्माता और निर्देशक हैं. आपको गढ़वाली की पहली फिल्म बनाने का श्रेय प्राप्त है.

प्राणनाथ
किराना घराना से सम्बद्ध सदी के महान् संगीतकार हैं. 1948-1960 तक जंगम शिवालय में रहकर स्वामी नारायण गिरि से संगीत साधना में दिशा-निर्देश के लिए और शिवालय में ही रियाज किया. बाद में प्राणनाथ जी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में संगीत अध्यापक नियुक्त हो गए.

श्रीमती पूर्णिमा पाण्डेय
अल्मोड़ा नियासिनी श्रीमती पाण्डेय मशहूर कत्थक नृत्यांगना जिन्होंने न केवल अपनी कला का जादू देश में यरन् विदेश में कनाडा और सूरीनाम में कई बार प्रदर्शित कर उत्तराखण्ड का नाम गौरवान्वित किया है. आज पूर्णिमा की गिनती देश के शीर्ष कत्थक नृत्यांगनाओं में की जाती है.

प्रेममटियानी (11 जून, 1950)
अल्मोड़ावासी मटियानी जी ख्यातिप्राप्त नाट्यविद् लोक- गीतों के जानकार अभिनेता टी. वी. सीरियल लेखक और रूपान्तकार हिमालयी संस्कृति और लोक कला को समर्पित रंगकर्मी है.

ब्रजेन्द्रलाल शाह (13 अक्टूबर, 1928)
प्रख्यात रंगकर्मी, नाटककार, उपन्यासकार, पर्वतीय लोक संस्कृति के सम्वाहक और समर्पित कलाकार श्री व्रजेन्द्र शाह देवी भवन, लाला बाजार अल्मोड़ा के निवासी हैं. लेखन के प्रति शाहजी का जन्मजात रुझान रहा है. शेल सुता (उपन्यास) कुमाऊँनी रामलीला (गीत नाटक) अष्टावक्र (नाटक) दुर्गासप्तसती (छन्दानुवाद) अब तक की प्रकाशित रचनाएँ हैं. 1949 से आकाशवाणी और अब दूरदर्शन के लिए नियमित लिखते आ रहे हैं. अपनी रंगमंचीय जीवन यात्रा में लोक गीतों पर आधारित शाहजी अब तक 38 नाटक लिख चुके हैं.

लोक संस्कृति और रंगमंच को समर्पित इनकी सेवाओं के लिए वर्ष 1995 में उ. प्र. संगीत नाटक अकादमी ने इन्हें
सम्मानित किया. इससे पूर्व 1985 में 'मानस संगम' कानपुर द्वारा कुमाऊँनी, गढ़वाली में रामलीला की सफल प्रस्तुति के लिए सम्मानित किए गए.

वृजमोहन शाह (1933-1998)
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक श्री वृजमोहन शाह हिन्दुस्तानी रंगमंच के राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकार हैं. शाहजी नाट्य-निर्देशन में अपनी विशिष्ट शैली विकसित की. विशेषरूप से 'पारसी स्टाइल' और हास्य नाटकों में अपना विशिष्ट स्थान बनाया. 'मौलियर ' और 'गोलदोनी' के हास्य नाटकों को नए आयाम दिए. पारसी शैली के पितामह मास्टर फिदा हुसैन नरसी के बाद शाहजी एक हस्ती माने जाते थे. दिल्ली के नाटक जगतू में शाहजी 'नाटकों के राजकपूर' नाम से जाने जाते थे. नाटक में उनके अमूल्य योगदान के लिए उनको कला के कई शीर्ष सम्मानों से नवाजा गया है, 1973 में पंजाब कला संगम का सर्वश्रेष्ठ निर्देशन सम्मान, 1979 में संगीत नाटक अकादमी सम्मान, 1980 में साहित्य कला परिषद्सम्मान से अरलंकृत किया जा चुका है.

बाबीराज
ओम नमः शिवाय, पल-छिन, आहट व पतंग जैसे सीरियलों में भिन्न-भिन्न चरित्र भूमिकाएँ निभा चुके व व्यावसायिक फिल्मों के सफल निर्देशकों डेविड धवन व शशिलाल नायर के साथ वरतौर सहायक काम कर चुके बाबी राज अब कारगिल युद्ध को आधार वनाकर कुमाऊँनी व गढ़वाली में 'फौजी बाबू' फिल्म निर्माण की योजना वनाने में लगे हैं.

भगवत स्वरूप
घुग्धुजी उपनाम से श्री भगवत स्वरूप प्रसिद्ध संगीतज्ञ थे. इनकी गायन शैली मधुर और लोकप्रिय थी. अपनी रुचि
के आधार पर इन्होंने गायन की स्वर लिपियों सहित कुछ पुस्तकें भी लिखी थीं.

महेश प्रकाश (जन्म 1967)
हिन्दी और गढ़वाली रंगमंच के कलाकार श्री महेश प्रकाश का जन्म ग्राम भिड़कोट, बंगारस्यूँ गढ़वाल में हुआ.
आपने टेली एवं फीचर फिल्मों में अभिनय, निर्माण एवं निर्देशन किया है.

मोहन सिंह 'रोठागाड़ी' (1905-1984)
ग्राम धपना, जिला पिथौरागढ़वासी श्री मोहन सिंह कुमाऊँ के प्रसिद्ध लोकगायक हैं. आप रजुला-मालूशाही बौल
गाथाओं, वैरों तथा न्योली गीतों के रसीले गायक रहे हैं.

मोहन उप्रेती (1928-1997)
सुप्रसिद्ध रंगकर्मी और लोकसंगीत के मम्े श्री उप्रती ने कुमाऊँनी संस्कृति को पहचान बनाने में अमूल्य भूमिका अदा की. अपने रंगमंचीय जीवन में इन्होंने लगभग 22 देशों की यात्राएँ कीं और वहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए. लोक संस्कृति को मंचीय माध्यम से अभिनय रूप में संगीत निर्देशन और रंगमंच के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए साहित्य कला परिषद् दिल्ली ने 1992 में पुरस्कृत किया. संगीत निर्देशन पर इन्हें 1981 में भारतीय नाट्य संघ ने पुरस्कृत किया. लोकनृत्यों पर संगीत नाटक अकादमी द्वारा 1985 में पुरस्कृत हुए. हिन्दी संस्थान उ. प्र. सरकार ने इन्हें सुमित्रानंदन पुरस्कार देकर सम्मानित किया है.  

यतीन्द्र राबत
ग्राम हुरिण्डा, पोस्ट तिलखेत गढ़वाल वासी श्री यतीन्द्र रावत दूरदर्शन के विभिन्न धारावाहिकों में एक हजार से अधिक कड़ियों का निर्देशन कर चुके हैं. इस समय श्री रावत गढ़वाली में फिल्म मैती का निर्माण कर रहे हैं,

उस्ताद रहीम खाँ
उस्ताद, रहीम खाँ का कर्म क्षेत्र अल्मोड़ा-नैनीताल रहा है इन्डोंने पेशेवर नर्तकियों को प्रशिक्षण देने में खूब प्रसिद्धि पाई थी. खाँ साहब कत्थक, भरतनाट्यम तथा पहाड़ी नृत्यों के विशेषज्ञ माने जाते थे. उनकी शिष्याओं में शास्त्रीय संगीत में पारंगत रामप्यारी, हीरुली, कल्लो, लोकगायन में इमामबाई, जग्गो तथा धन्नो का नाम उल्लेखनीय है,

रश्मि शर्मा
कत्थक नृत्यांगना, उत्तराखण्ड सम्मान से विभूषित रश्मि शर्मा छोटे पर्दे पर अनेक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है.
तवला वादन में संगीत प्रभाकर रश्मि शर्मा, संगीताचार्य सम्मान से अलंकृत हैं. 'स्वर संगम कला केन्द्र' नाम से रश्मि एक निजी नृत्य स्कूल संचालित करती हैं. गुरु-शिष्य परम्परा पर आधारित आगरा में वह एक उच्च नृत्य स्कूल खोलना चाहती हैं.

राकेश मोहन घिल्डियाल (1915-1970)
गढ़वालवासी श्री धिल्डियाल शास्त्रीय संगीत में परम दक्ष थे. 1940 से आकाशवाणी से जुड़े रहे. आपने देश के कई शहरों में शास्त्रीय संगीत से श्रोताओं को आनंदित किया है.

राजेन्द्र धस्माणा
गढ़वाली रंगमंच के बेजोड़ रंगकर्मी श्री धस्माणा ने इस कला के क्षेत्र में एक विशिष्ट पहचान बनाई है. मूलतः आप
हिन्दी के लेखक, कवि और समीक्षक रहे हैं. 'अर्द्ग्रामेश्वर" गढ़वाली नाटक सर्वाधिक चर्चित और सशक्त नाटक है.

रोहिणीधर शर्मा-डंगबाल (1875-1940 लगभग)
मूल निवास डांग (श्रीनगर) गढ़वालवासी श्री शर्मा विश्व प्रसिद्ध तांत्रिक और गढ़वाल के पंचांगकर्ता पण्डित महीधर
शर्मा के एकमात्र सुपुत्र थे. आप अपने समय के ख्याति प्राप्त मृदंगवादक रहे हैं. आप जीवनभर संगीत को समर्पित रहे.

डॉ. बनमाली सिन्हा (16 अप्रैल, 1944)
अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के नर्तक और नृत्य शिरोमणि तथा नृत्य सम्राट् की मानद उपाधियों से सम्मानित डॉ. सिन्हा विश्व में एकमात्र ऐसे नर्तक हैं जिन्होंने सम्पूर्ण रामायण, बाइविल, कृष्ण लीला व महाभारत आदि पर विश्व में एकल
नृत्य का प्रदर्शन किया. वर्तमान में डॉ. वनमाली देहरादून स्थित भातखण्डे संगीत महाविद्यालय के प्रधानाचार्य पद पर सेवारत हैं.

सपना अवस्थी
सपना उप्रेती से सपना अवस्थी बनी उत्तराखण्ड की इस बेटी ने फिल्मी दुनिया में पार्श्वगायन के क्षेत्र में अपनी एक
निश्चित पहचान बनाई है.




हरिशचन्द्र भगत (1934)
अपने समय के पर्वतीय क्षेत्र के अकेले कत्थक नर्तक रहे हैं. विद्यार्थी जीवन में लोकनृत्य और उदयशंकर 'स्टाइल
ऑफ डांस' का कई जगहों पर प्रदर्शन किया. आप प्रख्यात नर्तक शम्भु महाराज के शिष्य हैं. आपको अनेक पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.

हिमानी शिवपुरी
हिमानी शिवपुरी रंगमंच से जुड़ी अदाकारा है. आप छोटे पर्दे के साथ-साथ फिल्मों में भी कई महत्वपूर्ण अभिनय के लिए चर्चित रही हैं.

ज्ञानदास महंत
ग्वालियर पद्धति के गायक श्री ज्ञानदास महंत संगीताचार्य ये. आपने विष्णु दिगम्बर पलुस्कर जी से गायन की शिक्षा ग्रहण की थी और देहरादून में कई शिष्य तैयार किए. विज्ञान जगतू से जुड़े शिखर पुरुष

डॉ. अजीतचंद कुंबर
नाभिकीय चुम्बकीय अनुनाद तकनीक से आण्विक संरचना पर शोध करने वाले युवा वैज्ञानिक डॉ. अजीत चंद कुंवर का जन्म 24 मार्च, 1949 को ग्राम हेड़्वाड़ जनपद बागेश्वर  में हुआ था. रसायन तकनीक से उल्लेखनीय शोघ कार्यों के लिए अनेक सम्मान प्राप्त हुए हैं. भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी ने 'युवा वैज्ञानिक पुरस्कार 1981' ब्रुकर, स्विट्जरलैण्ड ने 'द्रुकर युवा वैज्ञानिक पुरस्कार 1982, राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी ने वर्ष 1990 की फैलोशिप प्रदान कर इस युवा वैज्ञानिक को अलंकृत किया है

प्रो. आदित्य नारायण पुरोहित
पद्मश्री' सम्मान से अलंकृत ख्यातिप्राप्त वनस्पतिविज्ञानी प्रो. आदित्य नारायण पुरोहित का जन्म 20 जुलाई, 1940 को ग्राम किमली, जिला-चमोली में हुआ था. मध्य हिमालयी क्षेत्र में बनस्पति शोधन, परिवर्द्धन, संरक्षण और संवर्द्धन से पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए कृत संकल्प इस वैज्ञानिक ने अनेक उल्लेखनीय कार्य किए हैं वनस्पति वैज्ञानिक डॉ. पुरोहित कनाडा यू. एस. ए. रूस, स्वीडन, याइलेण्ड की अनेक यात्रा कर चुके हैं. अब तक आपके 120 के लगभग शौध लेख प्रकाशित हो चुके हैं. 'म्लौसमिंग गढ़बाल हिमालय' पुस्तक इनकी ख्याति कृति है.


प्रो. इरीश चन्द्र पाण्डेय
हिमालयी भू-गर्भ विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले वैज्ञानिक प्री. इरीश चन्द्र पाण्डेय का जन्म 14 जनवरी, 1949 को नैनीताल में हुआ था. प्रो. पाण्डेय का शोध क्षेत्र विशेषकर 'टेक्टोनिक्स' और 'पेट्रोलॉजी ऑफ मेटामो्फियोटोक्स' पर केन्द्रित रहा. अपने शोध विषय पर इन्होंने लगभग 100 शोथ-पत्रों और एक पुस्तक का प्रणयन किया है. भूगर्भ विज्ञान के क्षेत्र में इनकी ख्याति राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित है.

के. एस. पारखे
ग्राम हजेटी, बेरीनाग, जिला पिथौरागढ़-वासी श्री पारखे ने पाँच वर्षों के कठोर परिश्रम से चीड़ की पत्तियों (पिरुल)
से पेट्रोलियम गैस निकालने का उल्लेखनीय कार्य किया है. अपने प्रयोग के दौरान स्वनिर्मित संयंत्र को अत्यधिक तापमान पर रखकर उसमें एक छोर से पिरुल डालकर दूसरे छोर से जलती गैस दिखाई इस गैस से इन्होंने मोटरसाइकिल का इंजन स्टार्ट कर और गैस चूल्हा जलाकर आश्चर्यजनक प्रदर्शन किया है. ऊर्जा संकट से निपटने के लिए इस उल्लेखनीय कार्य से सभी उत्तराखण्डवासियों को आप पर गर्व है.

खड्गसिह वल्दिया
उत्तराखण्ड की धरती से असीम प्रेम रखने वाले वल्दिया एक अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त एक भू-वैज्ञानिक हैं. आपने
मध्य हिमालयी क्षेत्र की भू-वैज्ञानिक परिस्थिति से विश्व समुदाय को एक नूतन जानकारी से अवगत कराया है. मध्य हिमालयी क्षेत्र में हो रहे भूस्खलन, भूकम्प, भूक्षरण, जलस्रोतों का हास खनिज भण्डारों की खोज और पर्यावरण इत्यादि से सम्बन्धित अनेक विधाओं में उल्लेखनीय कार्य किया है. आपके इस उल्लेखनीय कार्य के लिए अनेक पुरस्कार से अलंकृत भी किया जा चुका है.

डॉ. जी. डी. सूटा
राष्ट्रीय ख्याति के वैज्ञानिक डॉ. सूठा का जन्म 12 अगस्त, 1939 को ग्राम सिमल्टा जनपद पिथौरागढ़ में हुआ था. आपके रिन्यूएबल एनर्जी विषय पर कई शोध-पत्र प्रकाशित हुए हैं आप 1961 से 1980 तक नेशनल फिजिकल
लेबोरेट्री में वैज्ञानिक रहे.

डॉ. गिरीश चन्द्र उप्रेती
प्रतिभावान बायोकेमिस्ट डॉ. उप्रेती सन् 1985 से स्थायी यीजा पर रुआकुरा शोध केन्द्र, हेमिल्टन, न्यूजीलैण्ड में यरिष्ठ वैज्ञानिक हैं, डॉ. उप्रेती अब तक 60 श्रेष्ठ वैज्ञानिक शोध पत्रों का लेखन कर चुके हैं. 1966 में एशिया प्रसिद्ध
कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर में प्रो. गोलाकोटा की वैज्ञानिक प्रयोगशाला से शोध प्रशिक्षु के रूप में छेत्र में  उतरे डॉ. उप्रेती ने अपने क्षेत्र में, जो कीर्तिमान बनाए हैं, उन पर उत्तराखण्ड का जनमानस गौरव की अनुभूति करता है.

गोविन्द सिंह रजवार
प्रतिभावान युवा वैज्ञानिक श्री रजवार हिमालयी वनस्पति एवं पर्यावरण विशेषज्ञ हैं. 14वें 'अन्तर्राष्टरीय वनस्पति महाअधिवेशन जर्मनी द्वारा 1987 में प्रतिभाशाली युवा वैज्ञानिक सम्मान से सम्मानित किया गया.

डॉ. गोविन्द बल्लभ पंत
जलवायु विज्ञान के क्षेत्र में ख्याति-प्राप्त वैज्ञानिक डॉ. पंत अनेक उल्लेखनीय कार्य किया है, देश और विदेश में अनेक उच्चस्तरीय संस्थाओं के आप सदस्य रहे हैं. आप इण्टरनेशनल जनरल ऑफ क्लाय-मेटालॉजी' 'शोध पत्रिका के सम्पादकीय सदस्य रह चुके हैं. यू. एम. ओ. द्वारा स्थापित जलवायु परिवर्तन पर रिपोर्ट वनाने के लिए शान्ति समिति के सदस्य हैं. 1987 में इनकी एक पुस्तक 'साउथ एशिया की जलवायु इंगलैण्ड के विश्व विख्यात प्रकाशक 'जोन विली एण्ड सन्स' ने प्रकाशित की है,

चन्द्रमोहन जोशी
3 मार्च, 1941 को पोखरी गाँव पिथौरागढ़ में जन्मे  श्री जोशी राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गणितज्ञ हैं. आपने देश-विदेश
में गणित के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है.

चन्द्रशेखर लोहुमी (1904-1984)
देश के सम्भवतः अकेले विज्ञानवेत्ता, जिन्होंने अभाव के दीच जीकर वह कर दिखाया जो साधन सम्पन्न वैज्ञानिकों के लिए चुनीती है और मानव समाज के लिए वरदान है. इन्होंने 1967 में लेन्टाना को नष्ट करने वाले कीट की खोज की थी. लेन्टाना एक घास है जो कृषि उपज को प्रभावित करती है. सी. एस. आई. आर. ने इनको किदवई पुरस्कार देकर सम्मानित किया है.

प्रो. जगदम्बा प्रसाद थपलियाल
5 नवम्बर, 1922 को टिहरी खास में जन्मे प्रो. थपलियाल राष्ट्रीय ख्याति के जीव विज्ञानी हैं, सामान्य जन्तुविज्ञान परिवर्थित जीवविज्ञान, पक्षियों, सरीसृपों के अन्तःग्रावी तंत्र का तुलनात्मक अध्ययन, क्रोनोलॉजी एण्ड एनवायरमेंट वायलॉजी विषयों में विशेष योग्यता प्राप्त है. शोध कार्यों के लिए आपको कई राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं. इनमें प्रमुख रूप से 'इण्डियन सोसाइटी लाइफ साइंसेज, गोल्ड मेडल, इस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज है.

प्रो. दिव्य दर्शनपन्त (1919-2001)
प्रो. पन्त राष्ट्रीय ख्याति के वनस्पति विज्ञानी हैं. जीवित और जीवाश्म पौधों का विभेदीकरण विषय पर आधी शताब्दी तक निरन्तर शोधकर वनस्पति विज्ञान जगत् को नई दिशा प्रदान की. इस क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाओं के लिए भरपुर सम्मान मिला है,

डॉ. दिवान सिंह भाकुनी
औषधि विज्ञान के क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त डॉ. भाकुनी का जन्म 30 दिसम्बर, 1930 को ग्राम सुनोली, अल्मोड़ा में हुआ था. 40 वर्षों के लम्बे अनुभव में आपने Medicinal Plant (भेषज) से औषधीय विकास के सिद्धान्तों को प्रतिपादित किया और दूसरी विधाओं में उल्लेखनीय शीध कर नए आयाम प्रस्तुत किए. जीवाणु संक्रमण, परजीवी, सीबीसी, एलर्जी और प्रदाह निरोधक औषधि निर्माण रूप और संश्लेषणों में आपको 25 वर्षों से अधिक का अनुभव प्राप्त है. आपको सी.वी. रमन, शान्तिस्वरूप भटनागर आदि अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है.

प्रो. देवीदत्त पंत
प्रो. पंत उच्चकोटि के शिक्षाविद् प्रशासक और राष्ट्रीय ख्याति के भौतिक विज्ञानी हैं. आपने कुमाऊँ विश्वविद्यालय
के भीतिकी विभाग में फोटोफिजिक्स प्रयोगशाला की स्थापना की और अल्प उपकरण की मदद से प्रकाशमिति से सम्बन्धित शोध कार्य शुरू करवाए. इसकी मदद से आपने अनेक उल्लेखनीय सफल प्रयोग किए. आपको अनेक पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है जिसमें शताब्दी गोल्ड मेडल प्रमुख है.

प्रो. नरेशचन्द्र पंत
अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के कीटविज्ञानी प्रो. पंत का जन्म 28 फरवरी, 1924 को देहरादून में हुआ था. आपके
कीटविज्ञान पर तीन पुस्तकें तथा 50 से अधिक शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं.

प्रो. नीलाम्बर जोशी
अन्तरिक्ष विज्ञान में ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक प्रो जोशी का जन्म 25 जुलाई, 1931 को अल्मोड़ा में हुआ था. देश के प्रथम व्यावसायिक 'पृथ्वी स्टेशन' को पूरा करते समय इन्हें प्रक्रिया इंजीनियर बनाया गया यह स्टेशन 1971 में पूना के निकट आर्वी में स्थापित किया गया था. इनके निर्देशन में मेजर अर्थ स्टेशन सब सिस्टम सफलतापूर्वक विकसित किया गया. 1977 में इन्हें भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के सार केन्द्र का निदेशक नियुक्त किया गया. इन्हीं के निर्देशन में SLV-3 का सफल परीक्षण हुआ रोडिणी श्रृंखला  के तीन उपग्रहों को भी कक्षा में स्थापित किया गया. इसके अलावा इनके निर्देशन में तीन बड़ी उपग्रह परियोजनाएँ- आई. आर. एस., एस. आर. ओ. एस. एस. और इन्सेट-2 तैयार की गई. अंतरिक्ष क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाओं के लिए प्रो. पन्त कई पुरस्कारों से सम्मानित किए जा चुके हैं. इनमें विक्रम साराभाई अनुसंधान पुरस्कार 'पद्मश्री' 1984 डॉ. विरन राय अंतरिक्ष पुरस्कार प्रमुख है. 'पद्मश्री' पाने वाले उत्तराखण्ड के पहले वैज्ञानिक हैं.

परेश जोशी (1932-1996)
जनपद अल्मोड़ा में जन्मे कृषि वैज्ञानिक जोशीजी 1955 में कानपुर से एम. एस.सी (कृषि) की डिग्री प्राप्त कर भारतीय पैयोलोजिकल सोसाइटी के आजन्म सदस्य वने. पादप रोग विशेषकर गेहूँ पर कार्य किया. कानपुर और दिल्ली में सेवारत रहने के बाद गेहूँ अनुसन्धान केन्द्र भोवाली मेंवरिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में कार्य किया. कृषि क्षेत्र में
उल्लेखनीय योगदान के लिए 'बोरलाग मेडल" से सम्मानित हुए.

प्रो. प्रेमस्वरूप सकलानी
अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के भू-विज्ञानी प्रो. सकलानी का जन्म 23 अगस्त, 1941 को टिहरी में हुआ था. विगत् 32 वर्षों से गढ़वाल हिमालय के संरचनात्मक, विवर्तनिक, कारयांतरणी एवं स्तरिकी भू-विज्ञान पर शोधरत हैं. इनके अनेक मौलिक ग्रन्थ व शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं. सम्प्रति गढ़वाल विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर शोभायमान हैं.

प्रो. ब्रिज नंदन प्रसाद घिल्डियाल
राष्ट्रीय ख्याति के कृषि विज्ञानी प्रो. घिल्डियाल कृषि से डी. फिल. की डिग्री प्राप्त करने वाले देश के पहले शोध-छात्र हैं. प्रो. घिल्डियाल ने अपने शोध जीवन के प्रारम्भिक समय में मृदा रसायन, उर्वरता, जैव रसायन और सूक्ष्म जीवाणु स्थानान्तरण इत्यादि विषयों पर गहन कार्य किया. बाद के वर्षों में खड़गपुर और पंतनगर में रहते हुए मृदा भौतिकी, कृषि मौसम विज्ञान, मृदा जल वनस्पतीय सम्बन्ध, पर्यावरण भौतिकी इत्यादि क्षेत्र में शोध कार्य किया. कृषि भौतिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् द्वारा 1970-71 में इन्हें कृषिक्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मानित पुरस्कार 'रफी अहमद किददई स्मृति पुरस्कार' देकर अलंकृत किया गया.

प्रो. भुबनचन्द्र जोशी
ख्याति प्राप्त रसायन विज्ञानी प्रो. जोशी का जन्म 7 मई, 1930 को अल्मौड़ा में हुआ था. परास्नातक कक्षाओं को
32 वर्षों तक अध्ययन के दीर्घ अनुभव प्राप्त प्रो. जोशी सम्प्रति 'एमेरिटस साइंटिस्ट' हैं और अवकाश प्राप्त प्रो. के
सप में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और डी. एस. टी. परियोजनाओं में रसायन विभाग में शोध विषयों का निर्देशन कर रहे हैं,

डॉ. भेरवदत्त जोशी
राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वनस्पति विज्ञानी डॉ. जोशी ने राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में 80 से अधिक अनुसंधान लेखों का प्रकाशन किया है. हिमालयी क्षेत्र में प्रजनन एवं पादप आनुवंशिकी संसाधन में शोधकार्य का 32 वर्षों का अनुभव है. शीतोष्ण फसलों की आनुवंशिकी ma a a Indian Society & Genetics & Plant Brecding' द्वारा डॉ. हरभजन सिंह मेमोरियल अवार्ड' से सम्मानित किया गया.

रोनाल्ड रास 
अल्मोड़ा छावनी में 13 मई, 1857 को रोनाल्ड रास का जन्म हुआ. मलेरिया रोगाणु की खोज करने वाले इस
वैज्ञानिक को नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया.

डॉ. लोकमान सिंह पालनी
ख्याति प्राप्त वनस्पति विज्ञानी और पर्यावरण संरक्षक डॉ. पालनी का जन्म 22 मई, 1953 को हल्द्वानी में हुआ था, वनस्पति जगत् में डॉ. पालनी की सर्वोत्तम उपलब्धि वनस्पतियों में पाये जाने वाले हॉर्मोन 'साइटोकाईनिन्स में अन्तर्राष्ट्रीय महत्व का शोध, कैंसर निरोधक 'टैक्सोल' दवा को तैयार करने का मूल अवयव 'टैक्सस बकाटा' (Taxus Buccata) जिसे स्थानीय बोली में 'युनेर' कहा जाता है, का सफल प्रतिरोपण है, चाय उत्पादन और 'टिशू कल्चर' पर आपको व्यापक अनुसंधान कार्य और अनुभव है.

डॉ. शंकरलाल शाह
ख्याति प्राप्त कृषि विज्ञानी और पर्यावरणविद् डॉ. शाह का निधन विगत वर्षों (जुलाई 1998) में हो गया. डॉ. शाह लम्बे समय तक पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय में कृषि अर्थशास्त्र के प्रो. रहे. इसके अतिरिक्त भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् योजना आयोग, फोर्ड फाउंडेशन, नई दिल्ली के सलाहकार रहे. दीज उत्पादन एवं विपणन का अर्थशास्त्र पुस्तक के लिए इन्हें 1983 में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया.

श्रीकृष्ण जोशी
सौर ऊर्जा का सफलतम प्रयोग करने वाले उत्तराखण्ड के पहले वैज्ञानिक थे. 1902 में लगभग सभी समाचार-पत्रों ने भानुप्रताप' नामक यंत्र की वैज्ञानिक खोज को विश्व के लिए अद्भुत उपलब्धि बताया. 'भानुप्रताप' यंत्र सन् 1893 में पेटेंट करवाया गया. 1902 में लखनऊ में इस यंत्र का सफल प्रयोग वाष्म इंजन पर किया गया.

डॉ. श्रीकृष्ण जोशी
6 जून, 1935, अनरपा, पिथीरागढ़ में जन्म डॉ. जोशी अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के भौतिकविज्ञानी हैं. भौतिकी क्षेत्र में योगदान और श्रेष्ठ उपलब्धियों के लिए आपको कई राष्ट्रीय सम्मानों से विभूषित किया गया है, बाट्मल मेमोरियल पुरस्कार 1965, शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार 1972, मेघनाथ शाह पुरस्कार 1974, गोयल पुरस्कार 1993 तथा
1991 का 'पद्मश्री' पुरस्कार प्रमुख है.

प्रो. सत्येश्वर प्रसाद नौटियाल (1916-2001)
अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गढ़वाली भू-गर्भ विज्ञानी भारत के कई महत्वपूर्ण पदों पर रहकर उल्लेखनीय कार्य किया. आप जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डया 1966-68 के निदेशक, मिनरल्स एक्सप्लोसिव कार्यों के संस्थापक चेयरमैन तथा प्रबन्ध निदेशक रहे हैं.

प्रो. हरिदत्त विष्ट
प्रो. विष्ट जाने-माने भौतिकविज्ञानी हैं. आपने राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में प्रो. के रूप में कार्य किया है. भौतिकी पर आयोजित तीन अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों (1983, 85, 95) के संयोजक रहे हैं. विज्ञान से सम्बंधित कई संस्थाओं के आप सदस्य रहे हैं, अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए 'फुलब्राइट' (USA), इण्डो फ्रेंच एक्सचेंज फैलो एमेरिटस साइंटिस्ट सदृश प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित है.

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