Painting in uttarakhand, उत्तराखंड में चित्रकारी |
चित्रकारी के विकास में 'गढ़वाल स्कूल' की भूमिका महत्वपूर्ण है. मुकुन्दीलाल ने अपनी पुस्तक 'गढ़वाल पेण्टिंग'
में लिखा है कि इस शैली के जन्मदाता दो महान कलाकार शामनाथ और हरदास थे. ये पिता-पुत्र थे, जो तत्कालीन
गढ़वाल राज्य की राजधानी श्रीनगर में राजा पृथपाल शाह (1625-60) के दरवार में आये थे. ये शाहजहाँ के दरवार के थे, जो दाराशिकोह के पुत्र सुलेमान शिकोह के साथ भाग आये थे. गढ़वाल के राजा ने फरार शहजादे को औरंगजेब के सुपुर्द कर दिया, किन्तु ये दोनों कलाकार वहीं रह गये तथा कई सुन्दर चित्रों का निर्माण किया. इस शैली का चरमोत्कर्ष मोलाराम (1743-1833) के समय में हुआ था, जिसके पुत्रों ज्वाला राम (1788-1848) और शिवराम (1790-1855) ने कई सुन्दर चित्र वनाये थे. पहाड़ी चित्रों के कला पारखी अजीत घोष गढ़वाल चित्रकारी के विषय में लिखते हैं कि,"सजावट के सूक्ष्म रूपांकन तथा सौन्दर्य और प्रकृति प्रेम के लिए सभी राजपूत शैलियों में गढ़वाली चित्रकारी श्रेष्ठ है.'वास्तव में उन सब पहाड़ी चित्रों को जिनमें प्राकृतिक दृश्यों का मनोहर चित्रण है तथा गुलाबी अथवा श्वेत पुष्पों के लिए रंगों के छींटे वर्तमान है-गढ़वाल शैली का कहा जा सकता है. मोलाराम गढ़वाल स्कूल के प्रधान प्रेरक माने जाते हैं.
गढ़वाल शैली मूलतः स्थानीय प्रभण्वयुक्त कांगड़ा शैली ही है. पेड़ों के चित्रण में इसकी विशेषता परिलक्षित होती है. इनमें चित्रित पेड़ और उनकी शाखाएँ और पत्तियाँ एक पंख की शक्ल में दिखाई देती हैं. गढ़वाल शैली में स्त्रियों के माथे पर अ्द्धचन्द्रकार रूप में चंदन का तिलक लगा दिखाया गया है, जोकि अन्य स्थानों की कलाकृतियों से भिन्न है जिनमें स्त्रियों के माथे पर गोल या लम्बा टीका लगा है.
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