Energy Resources in Uttarakhand (उत्तराखंड में ऊर्जा संसाधन) |
9 नवम्बर, 2000 को गठित देश का 27वाँ राज्य उत्तराखण्ड यद्यपि औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के अनुकूल नहीं माना जाता है, उत्तराखण्ड का अधिकांश भाग पर्वतीय क्षेत्र है, जोकि पर्यावरणीय, भू-गर्भीय तथा पारिस्थितिक रूप से काफी संवेदनशील है, अतः यह क्षेत्र वड़ी औद्योगिक इकाइयों के लिए ठीक नहीं है, परन्तु यहाँ जलविद्युत्, पर्यटन, बागवानी तथा खाद्य-प्रसंस्करण उद्योग की अपार सम्भावनाएं मौजूद हैं. पर्यावरण की दृष्टि से अतिसंवेदनशील होने के कारण उत्तराखण्ड में लघु जलविद्युत्प रियोजनाओं का क्रियान्वयन सुरक्षित तथा वेहतर है.
एक आकलन के अनुसार यहाँ लगभग 25 हजार से 30 हजार मेगावाट विद्युत् उत्पादन की क्षमता मौजूद है, जो देश की ऊर्जा जरूरतों की 15 से 20 फीसदी आपूर्ति कर सकती है. राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के तहत् सन्2009 तक सम्पूर्ण देश में विजली पहुँचाने के लक्ष्य को देखते हुए यहाँ लगभग 20 हजार मेगावाट क्षमता की परियोजना चिह्नित की जा चुकी हैं, वर्तमान में लगभग 12,784 मेगावाट क्षमता की जलविद्युत् परियोजनाएं उत्तराखण्ड में निर्माणाधीन हैं. इनमें टिहरी हाइड्रो डेवलपमंट कॉर्परेशन (THDC) है अधीन लगभग 4000 मेगावाट, नेशनल थर्मल पॉवर कॉर्परिेशर (NTPC) के अधीन 1551 मेगावाट, नेशनल हाइड्री पॉदर कॉर्पोरेशन के अधीन 1400 मेगावाट, सतलुज जलविद्युत्नि गम लिमिटेड (SJVNL) के अधीन 500 मेगावाट तथा आईपीपीएस के अधीन लगभग 5000 मेगावाट अषमता की लघु तथा वड़ी जलविद्युत् परियोजनाएं निर्माणारधीन हैं.
वर्तमान में 'भागीरथी' तथा 'भिलंगना' के संगम पर बनी टिहरी बाँध परियोजना (2400 MW क्षमता) से प्रथम
चरण के अन्तर्गत 30 जुलाई, 2006 से 1000 मेगावाट विद्युत्का उत्पादन शुरू कर दिया. इससे दिल्ली को 600 मेगावाट, उत्तराखण्ड को 200 मेगावाट तथा राजस्थान व हरियाणा में प्रत्येक को 100 मेगावाट विद्युत् की आपूर्ति की जा रही है. लगभग 650 मेगावाट क्षमता की अलकनंदा' नदी पर क्रियान्वित विष्णुगाड परियोजना के प्रथम चरण के अन्तर्गत 400 मेगावाट विद्युत् का उत्पादन शुरू किया जा चुका है. इसके अलावा 304 मेगावाट क्षमता की 'मनेरी भाली-II (उत्तरकाशी जिले में भागीरथी नदी पर क्रियान्वित) तथा 480 मेगावाट क्षमता की 'पाला-मनेरी' (भागीरथी नदी पर क्रियान्वित) परियोजना का निर्माण कार्य भी जल्दी पूरा हो जाएगा.
उत्तराखण्ड की विभिन्न जलविद्युत् परियोजनाओं में कार्यरत् उपक्रम (1) टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (THDC)
केन्द्र तथा उत्तर प्रदेश सरकार के संयुक्त उपक्रम के रूप में 12 जुलाई, 1988 को टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (THDC) की स्थापना की गई. फरवरी 1989 से टिहरी जलविद्युत् परियोजनाओं का कार्य उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग से टीएचडीसी के पास स्थानांतरित कर दिया गया. 2400 मेगावाट क्षमता का यह बाँध एशिया का सबसे ऊँचा तथा दुनिया का चौथा वड़ा 'काफर-वाँध' (मिट्टी तथा पत्थर पूरित) बाँध है. इसकी ऊँचाई 260-5 मीटर है. टिहरी बाँध का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद प्रथम चरण के अन्तर्गत टिहरी वाँध एवं हाइड्रो प्लांट (1000 MW) तथा सम्बनद्ध-पारेषण प्रणाली (एसोसियेटेड ट्रांसमिशन सिस्टम) के क्रियान्वयन का निर्णय लिया गया है. टीएचडीसी ने इस परियोजना के द्वितीय चरण के अन्तर्गत 'टिहरी पॉवर कॉम्पलेक्स' (TPC) के अन्य घटकों जैसे- कोटेश्वर परियोजना एवं पम्प स्टोरेज प्लांट का निर्माण कार्य शुरू कर दिया है.
टिहरी बाँध तथा हाइड्रो पॉवर प्लांट (HPP) के प्रथम चरण के अन्तर्गत एशिया के सबसे ऊँचे 'काफर-बॉध' (अर्थ एण्ड रॉकफिल) का निर्माण कार्य पूरा किया जा चुका है. टीएचडीसी ने 250 मेगावाट क्षमता (250 x 4 MW) की चार परम्परागत टरवाइनों, जरनेटर सेटयुक्त भूमिगत हाइड्रो पॉवर प्लांट की स्थापना कर दी है जिनसे वर्तमान में विद्युत्उत्पादन किया जा रहा है.
द्वितीय चरण के अन्तर्गत टीएचडीसी द्वारा टिहरी बाँध से 22 किमी डाउन स्ट्रीम में 400 मेगावाट क्षमता की
'कोटेश्वर हाइड्रो इलेक्ट्रिक परियोजना' के अन्तर्गत 97-5 मीटर ऊँचा कंक्रीट ग्रेविटी बाँध बनाया जा रहा है. 250 मेगावाट की चार 'रिवर्सिवल यूनिटों' (250 MW x 4) से युक्त 'टिहरी पम्प स्टोरेज प्लांट' (PSP) परियोजना के अन्तर्गत 100 मेगावाट पीकिंग पॉवर उत्पादन कर, प्रणाली विश्वसनीयता बढ़ाने तथा ऑफ पीक आवर्स के दौरान थर्मल वेस उत्पादन को संतुलित लोड प्रदान करने की परिकल्पना की गई है. टिंहरी बाँध द्वारा बनाया गया 42 वर्ग किमी जलाशय इस परियोजना के लिए 'अप-स्ट्रीम' तथा कोटेश्वर बाँध जलाशय डाउन-स्ट्रीम' का कार्य करेगा. इसके अलावा टीएचडीसी द्वारा विष्णुगाड परियोजना (600 MW), करमोली (140 MW) बोकांग सेलिंग (330 MW), गोहानाताल (600 MW), जाड गंगा (50 MW), झेलम तमक (60 MW) तथा मलेरी झेलम (35 MW) परियोजनाओं का निर्माण कार्य किया जा रहा है,
(2) राष्ट्रीय ताप विद्युत् निगम (NTPC)
देश में उत्पादित कुल विदुत् की 214 प्रतिशत उपलब्ध कराने वाले 'राष्ट्रीय ताप विद्युत् निगम' की स्थापना 1975 में
की गई थी. इस समय निगम के अधीन संचालित परियोजनाओं से लगभग 27400 मेगावाट विद्युत् का उत्पादन किया जा रहा है. 11वीं योजना के अन्त तक एनटीपीसी का लक्ष्य 50000 मेगावाट विद्युत् का उत्पादन करना है. उत्तराखण्ड राज्य में एनटीपीसी के अधीन 1551 मेगावाट की परियोजनाओं पर 6000 करोड़ रुपए का निवेश किया जा रहा है.
एनटीपीसी द्वारा उत्तराखण्ड में चार जलविद्युत् परियोजनाओं पर काम चल रहा है वे हैं-लोहारीनाग-पाला परियोजना (600 MW), तपोवन विष्णुगाड परियोजना (520 MW), लता-तपोवन परियोजना (171 MW) तथा रूपसियावागड़-खसियावाड़ा परियोजना (260 MW). टिहरी बाँध परियोजना की तरह ही एनटीपीसी भी अपनी परियोजनाओं से उत्पादित कुल बिजली का 12% उत्तराखण्ड राज्य को मुफ्त उपलब्ध कराएगा. एनटीपीसी द्वारा निर्माणाधीन चारों परियोजनाओं में जलाशय का आकार कम होने का कारण कम-से-कम लोगों का विस्थापन होगा.
(3) राष्ट्रीय जलविद्युत् निगम (NHPC)
राष्ट्रीय जलविद्युत् निगम (NHPC) की स्थापना सन् 1975 में की गई थी. इसका प्रमुख उद्देश्य देश में जलविद्युत्प रियोजनाओं का क्रियान्वयन, संचालन तथा विकास करना है. एनएचपीसी के अधीन उत्तराखण्ड में लगभग 1400 मेगावाट क्षमता की परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं. ये परियोजनाएं हैं लखवार व्यासी (200 MW), कोटी भे ल (240 MW), गरवातवा घाट (600 MW), छुंगारचाल (240 MW) तथा खरतोली लुमटी (55 MW). इसके अलावा एसजेवीएनएल के अधीन 500 मेगावाट तथा आईपीपीएस के अधीन लगभग 5000 मेगावाट लघु विद्युत् परियोजनाओं का निर्माण किया जा रहा है.
(4) नई खनन नीति (2011)
राज्य की नई खनन नीति-2011 के तहत 5 हेक्टेयर तक की भूमि पर खनन का पहला अधिकार भूमि स्वामी का
होगा. पर्यावरण संरक्षण के परिप्रेक्ष्य में नदी के दोनों किनारों से 15-15 मीटर तक खनन उत्खनन को प्रतिबंधित किया गया है.
उत्तराखण्ड सरकार ने 26 अगस्त, 2013 को सौर ऊर्जा नीति प्रस्तुत की. इस नीति के तहतू छतों एवं भवनों के पास खाली पड़ी जमीन पर सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किए जाने की घोषणा की.
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