Uttarakhand Tourism Policy. (उत्तराखंड पर्यटन नीति।)


मनोरम दर्शनीय स्थल एवं फूलघाटी व सरोवर
    नवगठित उत्तराखण्ड राज्य में ऐसे मनोहारी दर्शनीय स्थल हैं, जो सहज ही पर्यटकों को अपनी ओर आकृष्ट कर लेते हैं. पुराणों में हरिद्वार को 'स्वर्गद्वार' और गंगा-यमुना के नैहर वाले सम्पूर्ण क्षेत्र को 'स्वर्गभूमि' कहा गया है. गढ़वाल मण्डल में तीर्थयात्रा की दृष्टि से चारों धाम तथा बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री तथा गंगोत्री महत्वपूर्ण स्थल हैं. प्रकृति- प्रेमियों का तो यह सर्वप्रिय क्षेत्र है. इस अंचल के सैकड़ों सरोवरों को देखने, जहाँ हजारों पर्यटक आते हैं, तो अनेक प्रकृति-प्रेमी यहाँ की फूल घाटियों के नैसर्गिक सौन्दर्य का आनन्द लेने प्रतिवर्ष पहुँचते हैं. गढ़वाल मण्डल की फूलों की घाटी विश्व प्रसिद्ध है, जिसे दूरस्थ देशों के लोग देखने आते हैं. सिखों के तीर्थ स्थान के रूप में यहाँ हेमकुण्ड साहब अत्यधिक महत्वपूर्ण है. इस मनोरम दर्शनीय स्थलों का विवरण इस प्रकार है-

बद्रीनाथ  (जिला चमोली)
गंगाद्वार (हरिद्वार) से 384 किलोमीटर दूरी पर बद्रीनाथ धाम है. कोटद्वार तथा ऋषिकेश मार्गों से नित्य बसें चलती हैं, जो दूसरे दिन जोशीमठ पहुँच जाती हैं. जोशीमठ से बद्रीनाथ यात्रा मार्ग 51 किमी का है, जिसे पैदल दो दिनों में आसानी से पूरा किया जा सकता है. बद्रीनाथ की ऊँचाई लगभग 10,500 फुट है. अलकनन्दा के दाएँ तट पर भगवान बदरी विशाल का भव्य मन्दिर है. शंकराचार्य ने नारदकुण्ड में श्री वदरी विशाल की मूर्ति निकालकर स्थापित की थी, शंकराचार्य वंश का केरल नम्बूदरी व्राह्मण काफी समय से बद्रीनाथ का रावल होता आ रहा है. भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति काले पत्थर (शालिग्राम) पर निर्मित है. यहाँ भगवान वदरीश के महाप्रसाद (पकाए हुए चावल से) पितरों को पिण्ड और तर्पण दिए जाते हैं. यहाँ के पिण्डदान से पितरों को अक्षय मुक्ति मिलती है.

केदारनाथ (चमोली)
श्री केदारनाथ जी का मन्दिर समुद्र की सतह से लगभग 11,500 फुट की ऊँचाई पर केदारनाथ मण्डल के अन्तर्गत स्थित है. केदारनाथ के लिए पहले पैदल मार्ग हरिद्वार से ऋषिकेश, वशिष्ठ गुफा, व्यास घाट, देवप्रयाग, अगस्त्य मति आदि अनेक तीर्थों से होकर जाता है. कऋषिकेश से केदारनाथ  का सम्पूर्ण मार्ग लगभग 400 किमी है. केदारनाथ जी का मन्दिर पाण्डवों द्वारा निर्मित बताया  जाता है. इसके निर्माण में विशाल शिलाखण्डों का प्रयोग किया गया है, जिन्हें यान्त्रिकी सहायता के बिना खड़ा करना असम्भव-सा प्रतीत होता है. इसके चारों ओर हरी-भरी घाटी बड़ी मनोहारी है. केदारनाथ पीठ में अनेक कुण्ड हैं, जिनमें शिवकुण्ड मुख्य है. एक कुण्ड जो रुधिर कुण्ड कहलाता है, रक्तवर्ण पानी से भरा रहता है. मन्दिर के बाएँ भाग में पुरन्दर पर्वत है. इस क्षेत्र के मुख्य स्थान नारायण क्षेत्र, मिलगण क्षेत्र, शाकम्भरी क्षेत्र आदि हैं. 12,072 मीटर की ऊँचाई पर तुंगनाथ का शिव मन्दिर है. तुंगनाथ से 2 फर्लाग पर रावण शिला है. कहा जाता है कि रावण ने इसी शिला पर बैठकर शिव आराधना की थी.

यमुनोत्री (उत्तरकाशी)
ऋषिकेश से यमुनोत्री 222 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. ऋषिकेश से नरेन्द्र नगर 16 किलोमीटर है. ऋषिकेश
से 2 किमी चलने पर मुनि की रेती नामक स्थान आता है. यहीं से एक मार्ग गंगोत्री-यमुनोत्री के लिए (मुनि की रेती से
ही) नरेन्द्र नगर की ओर मुड़ जाता है. 1920 में टिहरी गढ़वाल के राजा ने नरेन्द्र नगर को बसाया था. हनुमानचट्टी
से 6 किमी की दूरी पर यमुनोत्री का तीर्थ स्थान है, जहाँ पर कालिन्दी शैल से एक छोटी जलधारा आकर मन्दिर के पास दौड़ती हुई चली आती है. यही नदी कालिन्दी अथवा यमुना है. पीराणिक कथा के अनुसार यमुना जी में स्नान करने मात्र से मुक्ति मिल जाती है. जो व्यक्ति यमुना के दर्शन करके यमुनोत्री में रात्रि विश्राम करता है उसके सारे पाप जलकर राख हो जाते हैं. यहीं पर गरम कुण्ड है, जिसको आजकल 'गोरखडिविया' भी कहते हैं. यहाँ पर यम ने तप कर 'लोकपाल पद' प्राप्त किया था.

उत्तरकाशी
गंगोत्री तथा यमुनोत्री लगभग मध्य में उत्तरकाशी तीर्थ है. यह उत्तराखण्ड की काशी है. धार्मिक दृष्टि से उत्तरकाशी
का विशिष्ट स्थान है. ऐसी मान्यता है कि भगवान शिद (किरात रूप में) और अर्जुन का युद्ध यहीं हुआ था. गंगोत्री
और यमुनोत्री जाने वाले यात्रीगण उत्तरकाशी होकर ही जाते . यहाँ का दृश्य मनमोहक है. विश्वनाथ भगवान का प्राचीन मंदिर है. इसके अतिरिक्त यहाँ गोपेश्वर परशुराम, विमलेश्वर, अन्नपूर्णा, मैरव, एकादश रुद्र शिवदुरग्ग इत्यादि के भी मन्दिर हैं. मकर संक्रान्ति पर यहाँ मेला लगता है.

पीराने कलियर शरीफ
हरिद्वार जिले में रुड़की के समीप कलियर शरीफ स्थित है. इस स्थान पर हजरत साविर की दरगाह स्थित है. यह
स्थान मुसलमानों का पवित्र धार्मिक स्थान है. पूरे देश से ही नहीं वरन पाकिस्तान वांग्लादेश अरब आदि देशों से भी
अरद्धालु इस स्थान पर आते हैं और वावा सादिर की दरगाह पर चादर चढ़ाते हैं. केवल मुस्लिम ही नहीं दरन् हिन्दू भी इस दरगाड पर आकर अपनी मुरादें माँगते हैं. यह स्थान हिन्दू-मुस्तिम-एकता व भाईचारे का प्रतीक है. इस स्थान पर मेला भी लगता है.

चम्पावत 

चन्यादत उत्तराखण्ड का नवसूजित जनपद है. पर्यटन की दृष्टि से इसका विशिष्ट स्थान है. यहाँ बालेश्वर मन्दिर समूह
द पुरानी राजधानी के अवशेष स्थित हैं. नागनाथ मन्दिर कुमाऊँनी वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है. यहाँ अन्य कई प्राकृतिक, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक महत्व के दर्शनीय स्थल हैं.

गंगोत्री (उत्तरकाशी)
उतरकाशी से गंगोत्री, मनेरी, भटवाड़ी, गंगनानी, सुक्खी और झाला आदि सुन्दर स्थानों से होते हुए लंका नामक
स्थान है. उत्तरकाशी से लंकाच्टी 87 किमी की दूरी पर है. लंकाचट्टी से 13 किमी की दूरी पर गंगोत्री का मन्दिर है.
गंगोश्री के मन्दिर में गंगा, यमुना, सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती एवं अन्नपूर्णाजी की मूर्तियाँ हैं. महाराजा भगीरय की
भी मूर्ति यहाँ है. गंगोत्री में गंगा उत्तर की ओर मुड़ती है, जहाँ केदारगंगा का संगम है. लगभग । किमी. नीचे गंगाजी
पर्याप्त ऊँचाई से शिवलिंग पर गिरती है और उसी के समीप गौरीकुण्ड है. यहाँ पर अनेक धर्मशालाएँ व रहने की सुन्दर व्यवस्था  है.

गोमुख (उत्तरकाशी)
गंगोत्री से गोमुख की दूरी 28 किमी है. यही गोमुख से भागा पृथ्वी पर नीचे की ओर वड़े वेग से निकलती है, यह
विशुद्ध हिम जल है, जो रिस रिस कर एकत्र होता है और गोमुख में प्रकट होता है. गोमुख से 2-3 किमी की दूरी पर
नन्दनकानन की फूलों की भव्य घाटी है,

बैजनाथ (बागेश्वर)
अल्मोड़ा से 64 किमी उत्तर की ओर स्थित यह स्थान बड़ा मनोहारी है. मन्दिरों का एक समूह वैजनाथ सरोवर के
तट पर है. मुख्य मन्दिर में पार्वती की प्रतिमा स्थापित है, पार्वती मन्दिर के अतिरिक्त यहाँ पर गणेशजी चंडिका,
महिषासुरमर्दिनी, कुबेर, व्रह्मा और सूर्य के भी अत्यंत आकर्षक मन्दिर हैं. यहाँ पर गोमती नदी धनुषाकार होकर वहती है. गोमती नदी की सुन्दर हरियाली के आँगन में गुरुण घाटी का मुख्य आकर्षण यहाँ का वैजनाथ मन्दिर है. इस मन्दिर में शिव-पार्वती के साथ गणेशजी अत्यन्त कलापूर्ण मूर्तियाँ हैं. वैजनाथ के मन्दिरों का निर्माणकाल 12वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी तक वताया जाता है. इन मन्दिरों में कला छलकती है. कत्यूरी वंश की कला प्रेमी भावना का सच्चा प्रमाण वैजनाथ की मूर्तियों में ही मिलता है. वैजनाथ से केवल 3 किलोमीटर दूर 'कोट की माई' का मन्दिर है. यहाँ विष्णु की आदम कद भव्यमूर्ति है. वैजनाथ में पर्यटकों का तांता लगा रहता है. इतिहास और पुरातत्व के शोधार्थियों के लिए यहाँ पर्याप्त सामग्री विद्यमान है. अल्मोड़ा, रानीखेत और नैनीताल से यहाँ सैलानी प्रकृति का आनन्द लेने आते हैं. बहुत से पर्यटक कर्णप्रयाग, थराली और ग्वालदम के मार्ग से भी वैजनाथ आते रहते हैं.

देवप्रयाग (टिहरी गढ़वाल )
ऋषिकेश से 70 किमी दूरी पर देव प्रयाग स्थित है. इसी स्थल पर भागीरथी और अलकनन्दा का संगम होता है और
 इस संगम के बाद ही यह नदी 'गंगा' नदी के नाम से विख्यात होती है. देवप्रयाग संगम के पास ही श्रीराम का बहुत प्राचीन 'रघुनाथ कीर्ति मन्दिर' है. मन्दिर के पीछे शंकराचार्य की गुफा है.

कण्वाश्रम (गढ़वाल)
कण्वाश्रम को आजकल चौकाघाट कहते हैं. कण्वाश्रम से नन्दगिरि तक फैला परम पुनीत क्षेत्र सम्पूर्ण सांसारिक भोग और मोक्ष को देने वाला बदरीनाथ मण्डल कहा गया है.

कटारमल (अल्मोड़ा)
यह स्थान अल्मोड़ा से लगभग 14-4 किमी पश्चिम की  ओर स्थित है. अल्मोड़ा से 11-2 किमी कोसी तक मोटर द्वारा
जा सकते हैं. उत्तराखण्ड का प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर यहीं स्थित है, सूर्य की मूर्ति 12वीं सदी की कृति है. शिव-पार्वती,
लक्ष्मीनारायण और नृसिंह आदि की भी मूर्तियाँ हैं.

द्वारहाट (अल्मोड़ा)
मन्दिर वहुल यह स्थान रानीखेत से 21 किमी उत्तर की ओर स्थित है. मन्दिर के तीन समूह 'कवहरी मनियाँ' और
'रत्नदेव' के नाम से प्रसिद्ध हैं. अधिकांश मन्दिर मूर्तिविहीन हैं. चौथा मन्दिर गूजरदेव का है, जो कला की दृष्टि से श्रेष्ठ है.

लाखामण्डल
यह स्थान देहरादून से लगभग 128 किमी दूर यमुना नदी के तट पर वसा है. जनश्चुति है कि यहाँ लाखों मूर्तियाँ
मिलने के कारण इस स्थान का नाम लाखा-मण्डल' पड़ गया. खुदाई में यहाँ कुछ महत्वपूर्ण शिलालेख भी मिले हैं.

कालसी (देहरादून)
यह स्थान देहरादून जिले के उत्तर भाग में यमुना के किनारे स्थित है. यहीं एक छोटे शिलाखण्ड पर 'पालि' भाषा
में अशोक के लेख उत्कीर्ण हैं.

हरिद्वार
हिन्दुओं की सबसे पवित्र नदी गंगा यहाँ से पर्वतीय प्रदेश छोड़कर मैदानों में प्रवेश करती है. हरिद्वार हिन्दुओं का
प्रमुख तीर्थ स्थान है. संस्कृत साहित्य में इसका नाम 'मायापुरी' या 'मायाक्षेत्र' मिलता है. कुछ लोगों ने इसे तपोवन या
गंगाद्वार नाम दिया है. कपिल मुनि के नाम पर इसे 'कपिला' भी कहा गया है. यहाँ अनेक मन्दिर और देव स्थान हैं. हरि की पीड़ी पर स्नान करना मोक्षदायी माना जाता है. प्रत्येक 12 वर्ष पर हरिद्वार में गंगा तट पर विश्व प्रसिद्ध
कुम्भ मेला लगता है संध्याकाल में हर की पीड़ी पर आरती का दृश्य अत्यंत पावन और मनोहर होता है. संध्या के समय गंगाजी के नीले जल में तैरते हुए दीप और फूलमालाएँ अत्यंत शोभायमान होती हैं. मनसादेवी का प्रसिद्ध मन्दिर सीधी चढ़ाई पर है. अब इसके लिए सीढ़ीदार मार्ग वनने से चढ़ाई सुगम हो गई है. ऐसी मान्यता है कि भगवती माँ की पूजा से दर्शनार्थियों की कामनापूर्ण हो जाती है. दूसरी ओर शिवालिक पहाड़ी पर चण्डी देवी का मन्दिर है. हरिद्वार में बड़े विशाल मन्दिर, अखाड़े, आश्रम और धर्म- शालाएँ हैं. इनमें भारतमाता मन्दिर, गंगामाता मन्दिर पावन- धाम तथा दक्ष प्रजापति के मन्दिर प्रमुख है,  न्य दर्शनीय स्थानों में भीमगोड़ा, सप्तसरोवर, जय  श्रम, महात्माओं के आश्रम, महाविद्यालय, ऋषिकुल तथा गुरुकुल आदि हैं. पं.श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा स्थापित तीर्थ 'शांतिकुंज' अपने आप में अनुठा है, इस आश्रम के माध्यम से देश विदेश में मानव नव निर्माण का अलख जगाया जा रहा है, हरिद्वार रेलवे स्टेशन से लगभग देश के सभी वड़े नगरों से रेल सम्पर्क है. वस सेवा भी उपलब्ध है.

भीमगोड़ा (हरिद्वार)
हरिद्वार के आसपास के धार्मिक स्थलों में भीमगोडा. कुण्ड भी है. इसे पाण्डव काल का वताया जाता है, यह कृपक
भीम के घोड़े की टाप से बना हुआ कहा जाता है, 

ऋषिकेश (देहरादून)
भगवान शिव को यह सुन्दर स्थान वहुत प्रिय था. ऐसा विश्वास ऋषिकेश के वारे में लोगों में प्रचलित है. कहा जाता
है कि भगवान विष्णु ने मधु कैटभ दैत्य का वध इसी स्थान पर किया था. क्षिकेश गंगा के दाहिने तट की ओर एक
ऊँची चट्टान पर स्थित है. कृषिकेश में वीरभद्रनामक स्थान पर I.D.P.L. नाम से जीवन रक्षक औषधि निर्माण संस्थान है. यह संस्थान एशिया मह दीप में सबसे वड़ा औषधि निर्माण संस्थान है, लक्ष्मण झूला, शिवानन्द झूला और गंगा में राफ्टटिंग की व्यवस्था पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है. इस नगर में कई प्रमुख तीर्थ व दर्शनीय स्थल हैं, जो एक ओर तीर्थयात्रियों के लिए धार्मिक रूप से उत्तम है, तो दूसरी ओर पर्यटकों का मन सैर के लिए अनायास ही आकृष्ट हो जाता है. इस नगर के अन्य दर्शनीय स्थलों का विवरण निम्न प्रकार है-

लक्ष्मण झूला
ऋषिकेश में 4 किमी उत्तर पश्चिम में मोटर मार्ग से एक सड़क गंगा नदी तक जाती है. नदी पर लोहे के रस्सों द्वार
निर्मित एक झूला पुल है जिसे लक्ष्मण झूला कहते हैं. गंगा नदी को इसी  पुल द्वारा पार करके लक्ष्मण झूला पहुँचा जाता है. लक्ष्मण झूला में लक्ष्मणजी, गणेशजी, हनुमानजी के बड़े-बड़े सुन्दर मन्दिर है, यह स्थान चारों ओर से घने जंगलों से घिरा हुआ है. स्वास्थ्य की दृष्टि से यह स्थान उत्तम है. यहाँ से ही पैदल यात्रा मार्ग वढ़ीनाथ को जाता है, जंगल में बंदर, भालू, लंगूर, हिरण, चीता, शेर, मोर आदि दिन में ही देखे जा सकते हैं.

स्वर्गाश्रम
यह आश्रम पहले वावा काली कमली क्षेत्र की एक शाखा थी. यहाँ पर भगवान से सम्बन्धित कई मन्दिर है. समय-समय पर जप, कीर्तन, उपदेश होते रहते हैं. पूरे क्षेत्र को अति सुन्दर ढंग से बनाया गया है. पर्यटकों के सैर - सपाटे 
के लिए उत्तम स्थान है, यहाँ एक संस्कृत की संस्था है, जोकि निःशुल्क शिक्षा देती है साथ ही रहने खाने पीने व औषधि आदि की मुफ्त व्यवस्था है, यह स्वामी आत्मप्रकाशजी आनीकमली वालों द्वारा स्थापित किया गया था. इस आश्रम में लगभग 100 लोगों के ठहरने की व्यवस्था है,

परमार्थ निकेतन

यह स्थान भी लक्ष्मण झूला व स्वा्गाश्म की तरह ही गंगा के पार (पौड़ी गढ़वाल) क्षेत्र में पड़ता है. यहाँ 60
व्यक्तियों के रहने की व्यवस्था है. साथ ही भोजन, शिक्षा आदि मुक्त में उपलब्ध कराए जाते हैं.

चोरासी कुटी
अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त व भावातीत ध्यान के प्रणेता महर्षि महेश योगी द्वारा स्थापित योग व ध्यान का
अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त स्थान है. देश विदेश के हजारों लोग इस केन्द्र से योग व ध्यान और भारतीय दर्शन की शिक्षा पाते है. आश्रम द्वारा छोटी-छोटी 84 कुटिया सीमेंट से निर्मित की गई हैं. जो अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त हैं इसलिए इसे चौरासी कुटी कहते हैं. इनके अतिरिक्त स्वर्गाश्रम में 'चोटीवाला' होटल पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है, जो उत्तम प्रकार का भोजनादि तथा आवासीय सुविधा उपलब्ध है. इसके प्रवेश द्वारा बैठा हुआ चोटी खड़े किए एक व्यक्ति मन को आकर्षित करता है. यहाँ कुछ्ठ अन्य योग व ध्यान केन्द्र भी देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण केन्द्र हैं.

तपोवन
लक्ष्मण झूला से नदी पार ठीक सामने तपोवन नामक गाँव है. यहाँ सीढ़ीनुमा खेत का प्राकृतिक दृश्य वरवस ही
मन को आकृष्ट कर लेते हैं. यहाँ का वासमती चावल वहुत प्रसिद्ध है, तपोवन से पहले स्टील, बल्च फिलामेंट आदि के उद्योग केन्द्र खुल चुके हैं. यहाँ ठहरने के लिए अच्छे होटल भी हैं.

मुनि की रेती
मुनि की रेती में दिव्य जीवन संघ, कैलाश आश्रम विटट्ल आश्रम, ओंकारानंद संस्थान आदि कई महत्वपूर्ण संस्थाएँ हैं, जोकि योग ध्यान, संस्कृत, धार्मिक व उच्च तकनीकी शिक्षाएँ प्रदान करती हैं, मुनि की रेती से नाव द्वारा गंगा पार कर स्वर्गाश्रम व गीताभवन जाया जाता है. गढ़वाल विकास निगम का यात्रा कार्यालय व टूरिस्ट गेस्ट हाउस इसी छेत्र  में है. इसी क्षेत्र में 'इस्कान' अन्तर्राष्ट्रीय संस्था द्वा रा संचालित श्री राधागोविन्द का भव्य मन्दिर है. यहाँ विदेशी पर्वटक बहुत  संख्या में आते हैं.

भरत मन्दिर
इस स्थान पर भगवान विष्णु ने रैम्य ऋषि को दर्शन दिए थे. भगवान विष्णु ने क्रषि को वताया था कि त्रेतायुग में
राजा दशरथ के पुत्र भरत, जो हमारे चतुर्थांश भाग हैं, हमको यहाँ स्थापित करेंगे, यही मूर्ति कलियुग में भरत नाम से
विख्यात होगी वताते हैं कि जो भी व्यक्ति भरत नाम से मेरा यहाँ नमन करेगा. उसको निश्चित रूप से मुक्ति मिलेगी.
इसके अतिरिक्त लक्ष्मण झूला के ऊपर पहाड़ी पार करने पर 'नीलकण्ठ' महादेव का प्रसिद्ध मन्दिर है. प्रतिवर्ष
श्रावण मास में देश के कोने-कोने से लाखों धार्मिक पर्यटक यहाँ आते हैं और पवित्र शिवलिंग पर गंगा जल चढ़़ाते हैं.
क्रषिकेश-हरिद्वार मार्ग पर 'वीरभद्र' नामक स्थान है. यहाँ शिव का प्राचीन मन्दिर है. शिवरात्रि के अवसर पर विशाल मेला लगता है. कहा जाता है कि यहीं पर दक्ष प्रजापति के यज्ञ का विध्वंश शिव ने किया था.

तपोवन (टिहरी गढ़वाल)
कहा जाता है कि लक्ष्मणजी ने यहाँ तप किया था. लक्ष्मण झूला यहाँ का मुख्य आकर्षण है. यहाँं का लक्ष्मण मन्दिर भी देखने योग्य है. यहाँ विष्णु का एक प्राचीन मन्दिर भी है. कुछ दूर नदी के बाएँ तट पर स्वर्गाश्रम है. इसी स्थान पर रामेश्वर का मन्दिर भी है.

मसूरी (देहरादून)
देहरादून से 35 किमी दूर 6-500 फुट की ऊँचाई पर बसी मसूरी उत्तराखण्ड की सर्वोत्तम पर्वतीय बस्ती है. इसे
'पर्वतीय स्थानों की रानी' कहा जाता है. यहाँ पर्यटकों की सुविधा के लिए रज्जुमार्ग भी है. यह नगर अपने सौन्दर्य और प्राकृतिक छटा के लिए प्रसिद्ध है. गर्मियों में मसूरी का मौसम सुन्दर और आकर्षक होता है. यहाँ देश विदेश के हजारों सैलानी गर्मी के मौसम में ठहरने के लिए और वर्षाकाल में हिमपात का आनन्द लेने के लिए आते हैं. इस नगर में अनेक अच्छे-अच्छे होटल और विश्रामगृह सैलानियों के ठहरने हेतु उपलब्ध है. मसूरी में लाल वहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक एकेडमी है. जहाँ भारतीय सिविल सेवा (IAS) के अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है. इसके अतिरिक्त कई राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कॉलेज और स्कूल भी हैं. मसूरी से हिमालय की हिमाच्छादित चोटियाँ स्पष्ट दिखायी देती हैं. गनहिल चोटी और लाल टिव्बा से चीन की सीमा और वर्फीला हिमालय साफ-साफ दिखाई देता है.

रानीखेत (अल्मोड़ा)
इस पर्वतीय नगरी तक अल्मोड़ा और नैनीताल से भी आसानी से पहुँचा जा सकता है. यहाँ अनेक सुन्दर स्यल चीड़
के वन और फलों के बाग है. चौबटिया जहाँ राज्य सरकार के फलों के बाग हैं, यहाँ से अधिक दूर नहीं हैं. यहाँ का
गोल्फ कोर्स भी प्रसिद्ध है. यहाँ एक रज्जुमार्ग भी है. इस मनोरम स्थल से बहुत समय पहले कुमाऊँ के एक चंद राजा की रानी गुजर रही थी. उन्हें यह स्थान इतना मनोरम लगा कि उन्होंने यहीं पर अपना डेरा डाल दिया, जहाँ
पर आजकल रानीखेत क्लब है. उस समय वह एक खेत था. 'रानीखेत' नाम उसी रानी के खेत के नाम से पड़ा वास्तव में यह नगर हिल स्टेशनों की रानी है. रानीखेत की नैसर्गिक सुन्दरता ि श्व विख्यात है. इस नगर की खोज अंग्रेजों ने ही सर्वप्रथम की थी. सन् 1869 में इस नगर की स्थापना हुई थी. तत्कालीन वायसराय लॉर्ड मेयो (1869-72) को रानीखेत अत्यधिक प्रिय था. रानीखेत आजकल कुमाऊँ रेजीमेंट का मुख्यालय है. इस नगर की व्यवस्था छावनी बोर्ड के द्वारा होती है. यहाँ बोर्ड की ओर से स्वच्छता की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है. रानीखेत समुद्रतल से 6000 फीट की ऊँचाई पर 29-76 वर्ग किलोमीटर की परिधि में फैला हुआ है. रानीखेत और चौबटिया छावनियों के अन्तर्गत 2856 एकड़ भूमि का वन है. इस वन की रक्षा भी सेना विभाग करता है. वहुत से सैलानी इस अंचल में पक्षियों के विविध प्रकार के कलरव व स्वरों का आनन्द लेने आते हैं.

        रानीखेत में आज सभी प्रकार की आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं. पर्यटकों के लिए पर्याप्त मनोरंजन के साधन
जुटाए गए हैं. 'रानीखेत' और 'रोटरी' नामक यहाँ दो क्लब हैं. खेत के लिए भी पर्याप्त व्यवस्था है. कई पिकनिक स्थल हैं, रहने-खाने की सुन्दर व्यवस्था है. ठहरने के लिए वन विभाग का विश्राम गृह, सार्वजनिक निर्णय विभाग का विश्राम गृह, रानीखेत क्लब, कालिका वन विभाग का विश्राम गृह, उपयुक्त स्थान है, इसके अलावा 'कुमाऊँ मण्डल विकास निगम' ने भी पर्यटकों के लिए 52 शैयाओं का एक आराम- दायक आवासगृह बनाया है. रानीखेत के माल रोड पर घूमने वालों का जमघट लगा रहता है, यह सैलानियों के लिए स्वर्ग है. यहाँ पर मन कामेश्वर मन्दिर, हनुमान मन्दिर, झूला देवी मन्दिर और शिवमन्दिर प्रसिद्ध मन्दिर हैं.

चौबटिया (अल्मोड़ा)
रानीखेत से चौबटिया 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, चौवटिया में सरकारी सेवों का बाग है. यहाँ के सेव अति
सुन्दर और रसीले होते हैं. यहाँ पर फलों का एक शोध के है. इस शोध केन्द्र में विविध प्रकार के फलों पर शोध कि जाता है. यहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य और फलों के बाग के देखने हजारों लोग आते हैं. चौवटिया समुद्र तल से 2116
 मीटर की ऊँचाई पर वसा हुआ है, जो अत्यंत ही मनोरम ।

भातू बाँध (अल्मोड़ा)
चौवटिया से 3 किलोमीटर पैदल चलकर भालू वाँध आ जाता है. यहाँ पर एक कृत्रिम सरोवर बनाया गया है. इसी बाँध से रानीखेत के लिए पेयजल उपलब्ध कराया जाता है भालू वाँध एक पिकनिक स्थल है. बहुत से पर्यटक यहाँ की छटा को निहारने के लिए आते हैं.

ताड़ीखेत (अल्मोड़ा)
यह एक विकसित होता हुआ नगर है. यह स्थान रानीखेत से 8 किमी की दूरी पर स्थित है. ताड़ीखेत का अनुपम सौन्दर्य पर्यटकों को वरबस आकृष्ट कर लेता है. सन् 1928 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने यहाँ तीन दिन विताए. उस समय महात्मा गांधी ने पूरे तीन सप्ताह कुमाऊँ की पहाड़ियों में बिताये थे. यहाँ से जाने के वाद Young India' के 11 जुलाई, 1929 के अंक में उन्होंने लिखा था कि-"मुझे आश्चर्य है कि ऐसी स्वास्थ्यवर्द्धक पहाड़ियों के होते हुए हमारे देश के लोग यूरोप में स्वास्थ्य लाभ के लिए क्यों जाते हैं ?" ताड़ी खेत में महात्मा गांधी की कुटिया है. इस कुटिया को प्रेम विद्यालय के छात्रों ने अपने हाथों से बनाया था. इसी कुटिया के बरामदे में गांधीजी ने तीन दिन विताए थे. ताड़ीखेत में पर्यटकों के रहने के लिए पर्याप्त व्यवस्था है. यहाँ पर कुछ अच्छे होटल और सरकारी डाक बंगले हैं. बहुत  से गांधीवादी यहाँ की गांधी कुटिया में रहकर साधना करते हैं. रानीखेत अल्मोड़ा आने वाले पर्यटक ताड़ीखेत अवश्य आते हैं.

मनीला (अल्मोड़ा)
मनीला का नैसर्गिक सौन्दर्य प्रकृति प्रेमी सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र है. मनीला से हिमालय का दृश्य वहुत
ही आकर्षक लगता है. सामने का दृश्य देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो हिमालय खड़ा होकर अपने पास बुला रहा है.मनीला रानीखेत से 66 किमी दूर समुद्रतल से 2250 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है. सैलानियों के रहने के लिए
यहाँ पर वन विभाग का एक विश्रामगृह है.

कौसानी (बागेश्वर)
यह स्थान कुमाऊँ की पहाड़ियों में सबसे अधिक आकर्षक और रमणीय है. हिन्दी के छायावादी कवि सुमित्रानन्दन पंत का जन्म इसी कौसानी की मखमली गोद में हुआ था. कौसानी नाम के पीछे एक प्राचीन इतिहास वताया जाता
है. कहते हैं यहीं पर कौशिक मुनि ने तप किया था. तभी से इस स्थान का नाम कौसानी पड़ गया, परन्तु इस स्थान की खोज अंग्रेजों ने पहले-पहल की थी, लेकिन विश्व में कौसानी की वास्तविक ख्याति सन् 1928 में महात्मा गांधी द्वारा हुई. जब वे यहाँ 12 दिन तक यहाँ रहे थे. उन्होंने 'यंग इण्डिया' में लेख लिखकर कुमाऊँ की पहाड़ियों और विशेषकर कौसानी के अलीकिक सौन्दर्य के विषय में भारत और भारत के बाहर के लोगों का ध्यान आकर्षित किया था. तब से कौसानी में देश-विदेश के हजारों लोग यहाँ की प्राकृतिक घटा को देखने आने लगे. कौसानी का मुख्य आकर्षण हिमालय दर्शन है. यहाँ से हेमालय की विशाल मशृंखला, जो 337 किलोमीटर तक फैली है, यहाँ से साफ-साफ दिखाई देती है. इस शृंखला में चौखम्भा त्रिशूल, नंदादेवी, नंदाकोट, पंचवूली और नन्दायूँटी की सभी चोटियों के मनोहारी दर्शन स्पष्ट हो जाते हैं. हिमालय का इतना विस्तार पौड़ी ( गढ़वाल) के अलावा और कहीं से भी नहीं दिखाई देता. कौसानी का सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य प्रकृति प्रेमियों को आत्मविभोर कर देता है. स्टेट बंगले से सूर्योदय के दर्शन इतने स्पष्ट और अनुपम होते हैं कि कौसानी में आए हुए लोग रात्रि के अंतिम पहर से ही इस बंगले के पास एकत्र हो जाते हैं, कौसानी कोरसी और गरुड़ नदियों के बीच की ढलवां पहाड़ी पर समुद्रतल से 1980 मीटर की ऊँचाई पर बसा है. सीढ़ीनुमा खेतों की सुन्दरता यहाँ के वातावरण को और भी आकर्षक बना देती है. कौसानी में 'कुमाऊँ मण्डल विकास निगम' ने सैलानियों  के लिए 104 शैयाओं का आवासगृह वनाया हुआहै.


चकराता (देहरादून)
यहाँ से हिमशिखरों के सुन्दर दृश्य दिखाई पड़ते हैं. देहरादून से बहुत सरलतापूर्वक यहाँ पहुँचा जा सकता है. यह
वड़ा शान्त और स्वास्थ्य के लिए वड़ा लाभकारी स्थान है. 

नन्दा देवी (चमोली)
गीरीशंकर के बाद यह विश्व का सर्वोच्च शिखर है. हिन्दू लोग प्रति वारहवें वर्ष भाद्र सुदी सात को यहाँ की यात्रा
करते हैं.


लैंसडाउन (पोड़ी गढ़वाल)
कोटद्वार से 45 किमी दूर स्थित इस पर्वतीय नगरी से बदरीनाथ खण्ड के हिमशिखरों के दृश्य दिखलाई पड़ते हैं.

अल्मोड़ा
यहाँ कश्यप पर्वत पर कौशिकी देवी का मन्दिर है. पुराणों के अनुसार शुम्भ-निशुम्भ दैत्यों का नाश करने के लिए
पार्वती जी के शरीर से कौशिकी देवी यहीं प्रकट हुई थीं. एडकिसन के अनुसार अल्मोड़ा नगर को वसाने वाला
राजा भीष्मचंद' था, जो अपने बढ़ते हुए राज्य की आवश्यकताओं और इस क्षेत्र में कत्यूरियों के प्रभाव को
रोकने के लिए चम्पावत के स्थान पर अल्मोड़ा को अपनी राजधानी बनाना चाहता था. अल्मोड़ा कुमाऊँ के मध्य स्थित या. यह यह केन्द्रीय स्थान था जहाँं से वह अपना शासन सुचारु रूप रो चला सकता था. इसके लिए उसने अल्मोड़ा के निकट 'खगमरा कोट' के पुराने किले पर अपना आवास स्थल बनाया था. चन्द शासक ने लगभग तीन शताब्दियों तक अल्मोड़ा नगर में शासन किया, 1790-1815 तक यहाँ गोरखों ने राज्य किया. उन्होंने प्रजा पर घोर अत्याचार किए. भीलमोड़ा या चल्मोड़ा घास की अधिकता वाले क्षेत्र केकारण इस क्षेत्र का नाम अल्मोड़ा हुआ. ऐसा स्थानीय लोगों द्वारा कहा जाता है. अल्मोड़ा शिक्षा का प्रमुख केन्द्र है. प्राकृतिक सुन्दरता के कारण इसे हिमालय के नेकलेस की उपमा दी जाती है. सम्पूर्ण पर्वतीय प्रदेश में यह अपनी सांस्कृतिक विरासत उत्सवों के उल्लास तथा शिक्षा व राजनैतिक चेतना के रूप में विख्यात है.

पिंडारी ग्लेशियर
(वागेश्वर) बागेश्वर के नैसर्गिक छटा में वृद्धि करने वाला पिंडारी ग्लेशियर का अपना विशिष्ट स्थान है. सम्पूर्ण
प्राकृतिक छटा यहाँ हैँसती प्रतीत होती है. यहाँ नाना प्रकार के वृक्ष छाया देते हैं और फल-फूलों से लदे रहते है. यहाँ
नाना प्रकार के पशु पक्षी स्वच्छन्द होकर विचरण करते हैं. पिंडारी ग्लेशियर नन्दा देवी पर्वत श्रेणी और नन्दाकोट
चोटो के पाद-प्रदेश में समुद्रतल से 3853 मीटर से 4652 मीटर तक की ऊँचाई पर 3:3 किलोमीटर लम्बाई और 1:5
किलोमीटर चौड़ाई में स्थित है. यहाँ जाने का मार्ग अत्यंत सुगम है. इसलिए देश तथा विदेश के अनेक पर्यटक और
पदारोही प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में वहाँ पहुँचते हैं. इस ग्लेशियर में पहुँचाने के लिए मई से जून और सितम्बर से अक्टूबर तक समय सबसे उत्तम रहता है.

पाताल भुवनेश्वर
यह स्थान गुफा मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है, यह गुफा मन्दिर धरती के अन्दर वना है. मन्दिर में अलौकिक मूर्तियाँ
हैं. यह प्रकृति की अनुपम कृति है.

चितई
कुमाऊँ के प्रसिद्ध लोक देवता 'गोल्ल' का मन्दिर स्थित है. यह मान्यता की दृष्टि से बहुत प्रसिद्ध है. प्रतिदिन हजारों
अ्रद्धालु यहाँ अपनी मन्नतें माँगने आते हैं तथा घण्टा चढ़ाकर पूजा करते हैं.
बागेश्वर
गोमती और सरयू के संगम पर वसा हुआ वागेश्वरसमुद्रतल से 975 मीटर की ऊँचाई पर अल्मोड़ा से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. वैजनाय से बागेश्वर की दूरी 20 किलोमीटर है. बागेश्वर में वागनाथ शिव का प्राचीन मन्दिर है. वागनाथ शिव के प्रिय स्थान होने के कारण ही इस स्थान का नाम 'बागेश्वर' पड़ा है. वागेश्वर मन्दिर मूर्ति विशाल है. लोगों को आश्चर्य होता है कि इतनी वड़ी मूर्ति यहाँ कैसे लाई गई होगी ? वागेश्वर के पास भैरवनाथ का मन्दिर भीआकर्षक है.  वागेश्वर की धार्मिक महत्ता है. पुराणों में इस स्थान की पवित्रता काशी के समान मानी गई है. उत्तरायण के दिन यहाँ एक बहुत वड़ा भेला लगता है. मकर संक्रान्ति के इस पर्व पर यहाँ पर हजारों श्रद्धालु गोमती और सरयू के संगम पर स्नान करते हैं. शिव के प्रिय स्थान वागेश्वर का सांस्कृतिक महत्व भी है. कुमायूँ की सच्ची सांस्कृतिक झलक अल्मोड़ा के बाद वागेश्वर में ही देखने को मिलती है. वागेश्वर के लिए दिल्ली, मुरादाबाद, वरेली, पियौरागढ़, नैनीताल, अल्मोड़ा, कर्णप्रयाग, काठगोदाम और हल्द्वानी से नियमित वस सेवाएँं उपलब्ध हैं. वागेश्वर में डिग्री कॉलेज व अन्य शिक्षण संस्थाएँ हैं, यह कुमाऊँ अंचल का उभरता हुआ नगर है. यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता मन मोह लेती है, अल्मोड़ा, नैनीताल और रानीखेत जाने वाले पर्यटक बागेश्वर अवश्य पहुँचते हैं,

गदरपुर (ऊधरमसिंह)
गदरपुर जनपद के दक्षिणी सीमा पर किच्छा से 24 किमी तथा नैनीताल से 104 किलोमीटर दूर 29° 2 उत्तर अक्षांश
एवं 79° 12' पूर्व देशांतर में स्थित है, यह कस्वा पेशकारी का मुख्यालय है तथा पेशकारी का नाम भी इसी कस्बे के
नाम पर है. इस कस्ये का क्षेत्रफल 3-40 वर्ग किलोमीटर तथा जनसंख्या 13,638 है जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 70,303 तथा महिलाओं की संख्या 6.333 है. साक्षरता दर पुरुषों तथा महिलाओं की क्रमशः 83% तथा 76% है. इस कस्ये के समीप लगभग 200 वर्षों से ज्यादा पुरानी मस्जिद है.

काठगोदाम (नेनीताल)
काठगोदाम अक्षरशः लकड़ी का गोदाम 29° 16' उतर अक्षांश एवं 79° 33' पूर्व देशांतर में गोला नदी के दाएँ तट
पर बसा एक छोटा कस्वा है. इसके उत्तर में वसा हल्द्वानी 6. किमी एवं दक्षिण में वसा नैनीताल 35 किमी दूर है. इस कस्बे में अनेक स्कूल एवं कॉलेज हैं. राल, तारपीन, मधुमक्खी पेटिका एवं सामान रखने के डिब्बे यहाँ से नि्यात होने वाली मुख्य वस्तुएँ हैं. हल्द्वानी और काठगोदाम की सम्मिलित जनसंख्या 159,020 जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 84,611 तथा महिलाओं की जनसंख्या 74,409 इस संयुक्त नगर की साक्षरता प्रतिशत पुरुष-महिला क्रमशः 86% व 77% है.

खटीमा (ऊधरमसिंह नगर)
खटीमा, तराई एवं पीलीभीत टनकपुर सड़कों के जंक्शन पर नैनीताल से लगभग 138 किलोमीटर दूर 24° 33' उत्तर
अक्षांश एवं 79° 58' पूर्व देशांतर में स्थित है, यह इसी नाम की तहसील मुख्यालय भी है. यहाँ का क्षेत्रफल 8-4 किमी एवं जनसंख्या 14,378 जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 7,787 तथा महिलाओं की जनसंख्या 6,591 है. यह उत्तर-पूर्वी रेलवे के मैलानी-पीलीभीत सेक्शन का रेलवे स्टेशन भी है. खटीमा इसी नाम के विकास खण्ड का मुख्यालय भी है. यहाँ वीज भण्डार पशुचिकित्सालय, शीतगृह, कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र, एलोपैयिक औषधालय एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र हैं यहाँ एक वस स्टेशन है, हैरो-हल एवं कई अन्य छोटे-छोटे खेती करने के औजार बनाए जाते हैं, खटीमा वन सम्पदा एवं गल्ला का निर्यात करने का एक मुख्य केन्द्र है. यहाँ पर कई चावल मिलें एवं आटा मिलें हैं,

खुरपाताल (पट्टी कोटाई जिला नैनीताल)
खुरपाताल (झील) के पास वसे हुए गाँव का नाम खुरपाताल है, यह गाँव 29° 22' उत्तर अक्षांश एवं 79° 26
पूर्व देशांतर के मध्य में कोटाई माला एवं छखाता पट्टियों की सीमाओं के बीच समुद्र सतह से 1:635 मीटर की ऊँचाई पर बसा है. यह गाँव नैनीताल कालाढूंगी मार्ग पर नैनीताल से लगभग 8 किलोमीटर दूर है, यहाँ की जलवायु अस्वास्थ्यकर होने के कारण 1881 में सैनिक छावनी को यहाँ से हटा दिय गया था. यह गाँव भीमताल विकास खण्ड के अन्तर्गत है. यहाँ पर कई बीजगोदाम हैं.

किच्छा (ऊधरमसिंह नगर)
किच्छा ऊधमसिंह नगर की तहसील है. बरेली से नैनीताल जाने वाले मार्ग पर 28° 53' उत्तर अक्षांश एवं 79°
32' पूर्व देशांतर के मध्य नैनीताल से लगभग 96 किलोमीटर की दूरी पर है. इसका क्षेत्रफल 4 वर्ग किलोमीटर है तथा नवीनतम जनसंख्या (2001) 30,517 जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 16,223 एवं महिलाओं की जनसंख्या 14, 294 हैतथा साक्षरता प्रतिशत 68 है. यहाँ पर कई स्कूल एवं कॉलेज हैं. जिला परिषद् द्वारा चालित एक संगीत भवन और एक विश्राम गृह है. किच्छा में एक वहुत वड़ी विकसित मंडी है. यहाँ पर अनेक कृषि फार्म, चावल, तेल एवं आटा की कई मिलें हैं,

कोटा बाघ (नैनीताल)
कोटा वाघ एक छोटा गाँव है जो 29° 24' उत्तर अक्षांश एवं 79° 18 पूर्व देशांतर में इकहारी से रामनगर जाने वाली
सड़क पर स्थित है. चाँद राजाओं एवं गोरखों के राज्य काल में यह एक महत्वपूर्ण स्थान था. यह कालाढूगी से लगभग 16 किमी की दूरी पर है. यहाँ पर दबका नदी पहाड़, कोटाह से निकलकर एक सुन्दर सँकरी घाटी में होकर वहती है. यहाँ पर प्राचीन किले का खण्डहर है तथा नदी की धारा की एक कगार द्वारा मोड़ दिया गया है. इससे थोड़ी दूर पर खत- पतवार से आच्छादित पर्दत की नीचे श्रेणी पर नदी से 60 मीटर ऊँचाई पर देवीपुर का मन्दिर है, यहाँ के प्रमुख उदयोग खाने योग्य तेल पेरना एवं गुड़ बनाना है.

लालकुआँ (नैनीताल)
लालकुआँ, बरेली अल्मोड़ा मार्ग पर नैनीताल से लगभग 156 किलोमीटर एवं हल्द्वानी से 16 किलोमीटर दूर 29° 4'
उत्तर अक्षांश एवं 79° 30' पूर्व देशांतर में उत्तरपूर्व रेलवे लाइन के बरेली-काठगोदाम खण्ड का प्रमुख रेलवे जंक्शन है. पूर्व में यह एक साधारण स्थल था, परन्तु 1978 में यह टाउन एरिया बना दिया गया. यहाँ का क्षेत्रफल 4-25 वर्ग
किलोमीटर तथा जनसंख्या 6.524 जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 3,567 है तथा महिलाओं की जनसंख्या 2,957 है तथा साक्षरता का प्रतिशत 84 है. यह रेत-बजरी एवं काष्ठ उद्योग हेतु प्रसिद्ध है यहाँ से बुरादा एवं पत्थर का निर्यात तथा ईंट, सीमेंट, चूना का आयात किया जाता है. यह उद्योग केन्द्र के रूप में भी प्रसिद्ध है. यहाँ पर सेंचूरी पल्प तथा कागज बनाने का कारखाना है. हाँ एक बड़ा डेयरी फार्म भी है.


मलवा ताल (नैनीताल)
मलवा ताल एक वड़ी तथा विषम आकृति की झील है. जो 29° 20' उत्तर अक्षांश एवं 79° 39' पूर्व देशांतर में छब्बीस डुमोला पट्टी के पूर्वी सीमा पर स्थित है, यह ताल भीमताल से 18 किमी एवं नैनीताल से 35 किमी दूरी पर है। तथा समुद्र सतह से इसकी ऊँचाई 700 मीटर है. यहाँ पहुँचने के लिए पहले भीमताल जाना पड़ता है वहाँ से उत्तर की ओर एक सड़क चढ़ाई द्वारा चोटी पर जाती है शिखर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर इस सड़क पर एक ताखा मोड़ तथा बड़ी ढलान इस झील तक है. इसकी अधिकतम लम्बाई 1.365 मीटर, चौड़ाई 254 मीटर तथा क्षेत्रफल 47 हेक्टेयर है. इस झील के किनारे ऊँचे-ऊँचे पहाड़ है. भावर क्षेत्र की चाई हेतु हेनरी रमजे द्वारा यहाँ पर एक वाँध का निर्माण
कराया गया था पर यह फलीभूत न हो सका. झील का पानी स्वच्छ एवं नीले रंग का है, जो केवल वर्षा ऋतु में भारी
मात्रा में गाद आने से मटमैला एवं गंदा हो जाता है. यह झील मछलियों से परिपूर्ण है तथा मछुआरों को अपनी ओर आकर्षित करती है.

मुक्तेश्वर (नैनीताल)
मुक्तेश्वर गाँव, जो मोहेश्वर के नाम से भी जाना जाता है, 29° 28' उत्तर अक्षांश एवं 79° 29' पूर्व देशांतर में महरूरी विच्छली की पश्चिमी सीमा पर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है. महरूरी विच्छली की ऊँचाई 2.286 से 2,347 मीटर
तक है. इसका क्षेत्रफल 223 हेक्टेयर है, यहाँ से हिमालय के हिमाच्छादित शिखरों का मनोरमश्य दृष्टिगोचर होता है. पूर्व में यह स्थान प्राचीन शिव मन्दिर एवं एक या दो स्थानीय देवी देवताओं के मन्दिरों हेतु जाना जाता था. शिव मन्दिर के नीचे की चट्टान में कुछ चिह्न अंकित हैं. इस विषय में यह मान्यता है कि ये चिह्न किसी देवता की सेना के हाथियों, घोड़ों एवं ऊँटों के पद चिह्न हैं. जिसका विरोध यहाँ के स्थानीय देवताओं द्वारा किया गया था. बाद में स्थानीय देवता की अपने कृत्य हेतु अपराधी ठहराए जाने की अपेक्षा कठोर दण्ड से मुक्ति मिल गई, तब से यह स्थान मुक्तेश्वर के नाम से जाना जाने लगा. ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा 1893 में पूना की अपेक्षा मुक्तेश्वर को गिल्टी रोग हेतु वास्तुतीकरण का टीका बनाने के लिए प्रयोगशाला बनाने के लिए चुना गया. 1896 में इसका निर्माण प्रारम्भ किया गया तथा 1898 में यह पूर्व हो गई. एक भीषण अग्निकाण्ड के कारण भवन नष्ट हो गया. इसका पुनः निर्माण किया गया तथा 1901 में यह भवन पूर्ण कर दिया गया तथा इसे उपकरणों से सुसज्जित किया गया. इस प्रयोगशाला हेतु 1,397 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहीत की गई जिसमें 1,075 हेक्टेयर भूमि सुरक्षित वन क्षेत्र है.  जलापूर्ति हेतु इस   स्थान का अपना वाटर वर्क्स  (Water works) है. प्रयोगशाला भवन एवं अन्य इमारतें विद्यमान हैं. इस संस्थान की अपनी कार्यशालाएँ हैं, जो आधुनिकतम मशीनों एवं औजारों से युक्त है. यहाँ पर एक चिकित्सालय, एक मौसम ज्ञान सम्बन्धी वेधशाला है.

नैनीताल
नैनीताल, जनपद का मुख्यालय 29° 30' उत्तर अक्षांश एवं 70° 27' पूर्व देशांतर के मध्य काठगोदाम से 35
किलोमीटर की दूरी पर घाटी में स्थित है. इस घाटी के ओर नागर पर्वत की श्रेणी पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई है,
में नैनीचोटी (2.611 मीटर ऊँचा), पश्चिम में देवपथ (2,414 मीटर ऊँची) की बीहड़ पहाड़ियाँ तथा दक्षिण में अयार पथ (2,277 मीटर ऊँची) की जो पहाड़ी है वह पूर्व की ओर झुकी हुई है. इन दोनों पहाड़ियों के बीच के मध्यवर्ती स्थान बड़ी-बड़ी अलग-अलग पड़ी चट्टानों का ढेर है. यहाँ पर मसूरी का चूना पत्थर है तथा हर आकृति एवं आकार के शिलाखण्ड भी हैं. पूर्व की ओर झील के अधिशेष जल के निकास भी व्यवस्था है तथा यह जल बलिया नदी का जो रानीबाग के निकट शोला में मिलती है. मुख्य स्रोत है. घाटी के पश्चिम छोर पर पहाड़ियों का मलवा है. उत्तर नैनीताल नगर जो घाटी का पूर्वी भाग है, नैनीताल की झील के नाम पर ही है. यह झील 7433 मीटर लम्बी एवं
463 मीटर चौड़ी है तथा समुद्र सतह से 1,933 मीटर ऊँचाई पर है झील की अधिकतम गहराई 28 मीटर है तथा  सके चारों ओर की सड़क की लम्बाई 3.621 मीटर है. कहा जाता है कि स्मगलर्स रॉक के सम्मुख झील में 19 मीटर की गहराई में गंधक का ग्रोता है. गंधक का दूसरा सोता तल्लीताल की बाजार  में है.प्राचीनकाल में यह झील त्रिऋषि सरोवर (अति, पुलस्तय एवं पुलाहा ऋषियों की झील) के नाम से प्रसिद्ध थी. नैनीदेवी जिनका मन्दिर इसके तट पर है, के नाम से इसका नाम नैनीताल हुआ. यह घाटी 1839 के पूर्व घने जंगलों से आच्छादित थी, जिसमें चीते एवं अन्य वन्य प्राणियों की भर- मार थी तथा ऐसा अनुमान किया जाता है कि यहां पर परियों एवं दानवों का भी बसेरा था. यहाँ लोग नैनादेवी के दर्शन करने आते हैं तथा श्रद्धा प्रकट करते हैं. विशेष अवसरों पर बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालु झील में स्नान करने हेतु आते हैं. मार्च 1839 में बेटन एवं बेरन यहाँ आए एवं 1841 में इस झील की खोज का प्रचार हुआ. एक वर्ष पश्चात् 1842 के हेटन ने बारह बंगलों का निर्माण कराया तथा कुमार्ँ मण्डल के आयुक्त लशिंगटन ने एक छोटे घर का निर्माण प्रारम्भ किया. 1856 तक नैनीताल एक प्रमुख पर्वतीय स्थल हो गया. तदुपरांत यह राज्य सरकार की ग्रीष्मकालीन राजधानी वनी. अयार पथ के दक्षिण पूर्व में 1960 में वर्तमान राजभवन बन कर तैयार हुआ. इस नगर का मुख्य एवं आकर्षक स्थान फ्लैट है, वर्ष 1880 में हुए भीषण भूस्खलन के कारण झील के उत्तरी छोर की समतल भूमि का और विस्तार हो गया जो अब फ्लैट कहलाता है, यह नगर का केन्द्र भी है. यहाँ पर विभिन्न
प्रकार के खेल जैसे हॉकी, क्रिकेट, फुटबाल खेले जाते हैं तथा नैनीताल जिमखाना एवं जिला खेल संघ द्वारा आयोजित होती है. यहाँ सांध्य बेला में बड़ी रौनक होती है. यहाँ पर लोग एक-दूसरे से मिलने आते हैं तथा खेलों की प्रतियोगिताएँ देखते हैं. नैनीदेवी के दर्शन करते हैं, गुरुद्वारा व मस्जिद जाते हैं. नगर के समीप सुभाष शिखर, लढ़िया कांटा, स्नो व्यू. डोरोथी का स्थान, लैंज्सएंड, हनुमानगढ़ी, किलवरी, उत्तराखण्ड राज्य वेधशाला आदि दर्शनीय स्थल हैं. इस घाटी का प्रमुख पर्वत सुभाष उत्तर में है. फ्लैट से लगभग 6 किमी दूर हैं. इसकी चोटी से नैनीताल का सम्पूर्ण दृश्य देखा जा सकता है. साफ मौसम में यहाँ से नीलकण्ठ, कोमेट, माना, हाथी पर्वत, नंदाघुटी, त्रिशूल, त्रिशूल पूर्व, नन्दा देवी, नन्दा वोह, चौखम्भा की चोटियाँ दिखाई देती हैं.  लढ़िया कांटा समुद्र सतह से 2,481 मीटर ऊँचाई पर है. यह शेर-का डंडा से जुड़ा हुआ है तथा फ्लैट से लगभग 6 किमी की दूरी पर है. इसके शिखर नैनीताल की दूसरी अघिकतम ऊँचाई वाली चोटी है. जहाँ से झील क्षेत्र का रमणीय दृश्य दिखाई देता है. शेर-का डंडा पर्वत समुद्र सतह से 2,270 की ऊँचाई पर स्नोव्यू नामक चोटी है जहाँ से हिमालय की दूर स्थित चोटियाँ
अवलोकित होती हैं. डोरोथीस सीट, डोरोथी का स्मारक है जिसकी हवाई दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. यहाँ से सुरदा ताल एवं पहाड़ की सीढ़ीदार खेतों का भव्य दृश्य दिखाई देता है. हनुमानगढ़ी, फ्लैट से 3 किमी की दूरी पर है. यहाँ पर राम हनुमान शिव को समर्पित बहुत भव्य मन्दिर है जो भक्तों को आकर्षित करते हैं. सूर्यास्त का मनोहर दृश्य देखने के लिए यह स्थान विख्यात है.

नीकचियाताल (नैनीताल)
नौकचिया ताल, नौ कोनोयुक्त एक झील है जो 29° 19' उत्तर अक्षांश तथा 79° 35' पूर्व देशांतर के समुद्र सतह
से लगभग 1,219 मीटर की ऊँचाई पर भीमताल से एक किलोमीटर एवं नैनीताल से 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, यह झील अपने विषम आकार एवं प्राकृतिक रूप से टेढ़े- मेड़े किनारों के कारण अत्यंत आकर्षक है. उत्तर से दक्षिण की ओर इसकी लम्बाई 305 भीटर एवं सबसे ज्यादा चीड़ाई 223 मीटर है. तीन ओर ऊँचे पर्वतों से घिरी घाटी में यह झील कुमाऊँ की सब झीलों में रमणीय है. इसके किनारे ओक वृक्ष के जंगल हैं. इसके उत्तरी किनारे पर खुली जगह है जहाँ पानी रोकने के लिए एक छोटा-सा बाँध है जहाँ से भीमताल एवं चारों ओर की पहाड़ियों का विहंगम दृश्य दिखलाई पड़ता है. इस झील में मछलियाँ वहुतायत हैं. यहाँ पर भीमताल की अपेक्षा मछलियाँ पकड़ना अधिक मनोरंजक है. झील के उत्तर-पश्चिम में एक मन्दिर है जिसके समीप छिछना स्थान है जिसमें सरकंडा एवं कमल होते हैं, खिलते हुए कमल इस स्थान को अत्यंत रमणीय वना देते हैं.

ओखला कंडा (नेनीताल)
ओखला कंडा पहाड़ियों के बीच 29° 1' उत्तर अक्षांश तथा 79° 43' पूर्व देशांतर में वसा अत्यंत सुरम्य स्थान है. यह नैनीताल के उत्तर-पूर्व में 68 किलोमीटर दूर है. यह गाँव राजस्व हेतु दो गाँवों-ओखला कंडा माल एवं ओखल कंडा ताल में विभाजित है. ओखल कंडा माल काक्षेत्रफल 267:51 हेक्टेयर तथा ओखला कंडा ताल का क्षेत्रफल 236-34
हेक्टेयर है. यह विकास खण्ड का मुख्यालय है. यहाँ स्कूल, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और एक वस स्टेशन है.

पटवादनगर (नैनीताल)
पटवादनगर 29° 20' उत्तर अक्षांश और 79° 27 पूर्व देशांतर में तथा समुद्रतल से 1,615 मीटर की ऊँचाई है. यह
नैनीताल नगर सीमा में स्थित बलदिया खान से 3 किलोमीटर दूर काठगोदाम नैनीताल मार्ग पर है. यह स्थान राज्य टीका संस्थान हेतु प्रसिद्ध है. इस संस्थान की स्थापना हेतु 1903 व 1904 में 42 हेक्टेयर वन भूमि अधि-गृहीत की गई थी तथा यहाँ पर चेचक निवारण हेतु टीका का लसीका बनाना प्रारम्भ किया गया, जिसे केवल उत्तर प्रदेश को ही नहीं, दल्कि राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, कश्मीर, पंजाब, मध्य प्रदेश एवं नेपाल को उपलब्ध कराया जाता है. यह सैनिक छावनियां  रेलवे एवं निजी संस्थान को भी उनकी माँग पूरी करता है. आयश्यकतानुसार यह संस्थाएँ जल के जीवाणु एवं रासायनिक परीक्षण भी पूरी करता है, यहाँ पर एक मातृ एवं शिशु कल्याण केन्द्र है.

रानीबाग (नैनीताल)
रानीबाग 29° 17' उत्तरी अक्षांश और 79 33' पूर्व देशांतर में बलिया नदी के तट पर हल्द्वानी से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. विद्युत सुविधा सहित इसका क्षेत्रफल 82-15 हेक्टेयर है. यहाँ एच. एम. टी. (Hindustan
Machine Tools) का कारखाना स्थित है. यहाँ पर अस्पताल एवं महर्षि महेश योगी द्वारा स्थापित महर्षि विद्या मन्दिर है.

सतताल (नैनीताल)
सतताल, अपने नामानुसार मूलतः सात झीलों का समूह 29° 21' उत्तर अक्षांश और 79° 32" पूर्व देशांतर में है. यह
नैनीताल से दक्षिण-पूर्व में 20 किलोमीटर तथा भीमताल से 5 किलोमीटर की दूरी पर है. इन झीलों में सबसे बड़ी 1,000 मीटर लम्बी तथा 320 मीटर चौड़ी है. यह झील भूमि के कटाव के कारण अस्तित्व में आई. इन झीलों में से 4 झीलें सूख गई हैं बाकी तीन झीलें-गरुड़ ताल, राम ताल और हनुमान ताल पास-पास हैं. ये जनपद की सब झीलों से
अधिक रमणीय हैं.

सितारगंज (ऊधरमसिंह नगर)
सितारगंज 28° 56" उत्तर अक्षांश और 79° 42" पूर्व देशांतर पर टनकपुर से काशीपुर जाने वाले मार्ग पर स्थित
है. यह खटीमा से 29 किलोमीटर, पीलीभीत से 35 किमी दूर है. यह विकास खण्ड एवं तहसील का मुख्यालय भी है, यहाँ विद्युत व्यवस्था भी है. इस टाउन एरिया का क्षेत्रफल 2 वर्ग किलोमीटर है. यहाँ एक कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र तथा 18 चावल की मिलें हैं.

कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान (नैनीताल) हिमालय एवं शिवालिक पर्वत श्रेणियों के अंचल में प्रवाहित रामगंगा के दोनों ओर स्थित कार्वेट राष्ट्रीय उद्यान अपने अनुपम प्राकृतिक छटा एवं वन्य प्राणियों के बाहुल्य के लिए विश्वविख्यात है, यह उद्यान देश-विदेश के पर्यटकों का एक प्रमुख आकर्षण का केन्द्र है. इसे भारत का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान होने का गौरव प्राप्त है. इस राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना सन् 1935 में की गई थी तथा राज्य के तत्कालीन गवर्नर सर मैल्कम हेली के नाम पर इसका नाम 'हेली नेशनल पार्क' रखा गया. भारत के स्वतन्त्र होने के पश्चात् इसका नाम बदलकर 'रामगंगा नेशनल पार्क' कर दिया गया. सन् 1957 में इसका नाम पुनः बदलकर प्रख्यात शिकारी स्वर्गीय जिम कार्बेट की स्मृति में 'कार्बेट नेशनल पार्क' रखा गया.

पूर्णागिरि (चम्पावत)
यह स्थल टनकपुर से 24 किमी दूर स्थित है. यहाँ माँ दुर्गा की प्रतिमा की पूजा होती है. पौराणिक आख्यान के
अनुसार जब सती ने अपना होम शरीर होम कर दिया था और भगवान शंकर उसे लेकर इधर से निकले,
कुछ अंग यहाँ गिर पड़े थे. प्रतिवर्ष चैत्र मास में यहाँ मेला लगता है. इसके अलावा पिथौरागढ़ में देवीपुरा, रीठा साहब, उल्का देवी, नारायण आश्रम, ज्वालामुखी आदि प्रमुख स्थल हैं. यहाँ प्रतिवर्ष लाखों भक्तजन पूजन-अर्चना हेतु आते हैं. शरीर के

श्रीनगर (पोड़ी गढ़वाल)
देवप्रयाग से भागीरथी के पुल पार करने के पश्चात्अ लकनन्दा के दाहिने किनारे नदी घाटी के मनोरम नैसर्गिक
क्षेत्र हैं. कीर्ति नगर के पास अलकनन्दा का पुल पार करने पर गढ़वाल राज्य की अति प्राचीन राजधानी श्रीनगर है.
श्रीनगर में श्रीयन्त्र है. कहा जाता है कि श्रीराम ने शिव की आराधना यहीं की थी. यहाँ का कमलेश्वर मन्दिर वहुत
प्रसिद्ध है. यहाँ पर्यटन विभाग का रेस्ट हाउस है. पर्वतीय कोमल काष्ठ का एक सुन्दर उद्योग केन्द्र भी यहाँ स्थित है.

कलियासीड़ (चम्पावत)
श्रीनगर से आगे 11 किलोमीटर दूर अलकनन्दा के वाएं तट पर कलियासीड़ नामक विलक्षण सिद्धपीठ स्थित है. यहीं सिद्धपीठ धारीदेवी है. यहाँ पर भगवती की बहुत बहुत सूंदर करालवदना काली की मूर्ति है.

रुद्रप्रयाग
यह सुन्दर स्थल श्रीनगर से 37 मील दूर स्थित है. रुद्रप्रयाग में अलकनन्दा और मन्दाकिनी का संगम स्थल
है. संगम पर रुद्रप्रयाग का अति प्राचीन 'शिव मन्दिर' है. धार्मिक दृष्टि से रुद्रप्रयाग का विशिष्ट महत्व है. संगीतशास्त्र
के सम्पूर्ण रहस्य को जानने के लिए नारद मुनि ने यहीं रुद्रनाथ महादेव' की आराधना की थी. यह दहुत ही रमणीक स्थल है. यहाँ वन एवं सार्वजनिक निर्माण विभाग के  रेस्ट हाउस हैं.

गौरीकुण्ड (रुद्रप्रयाग)
प्रकृति की अलौकिक छटा इस स्थल पर दिखाई देती है. यहाँ पर एक गरम और ठण्डे जल का कुण्ड है. पौराणिक
कथा के अनुसार पार्वतीजी ने विवाह के बाद सर्वप्रथम गरम पानी से इसी कुण्ड में स्नान किया था. यहाँ पर पितरों को जल देने का विधान है. गौरीकुण्ड के पीले पानी से जो मिट्टी लाल, पीली एकत्र होती है उसका यहुत महात्म्य है. जो महिला इस कुण्ड में स्नान करती है और इस मिट्टी का टीका लगाती है वह सौभाग्यवती होती है.

बाजपुर (ऊधरमसिंह नगर)
वाजपुर, जो इसी नाम की पेशकारी भी है. धूधा नदी के वाएँ तट पर 29°9' उत्तर अक्षांश एवं 79°7' पूर्व देशान्तर में
स्थित है. यह कस्वा नैनीताल के दक्षिण-पश्चिम में है. बाज वहादुरचन्द्र, कुमाऊँ के शासक (1638-1678 द्वारा वाजपुर स्थापित किया गया था. यह स्थान प्रमुख गल्ता उत्पादन केन्द्र के रूप में भी प्रसिद्ध है.

भीमताल (नैनीताल)
भीमताल, नैनीताल जनपद की बड़ी झीलों में से एक है. समुद्रतल से इसकी ऊँचाई 1370 मीटर है. यह नैनीताल
लगभग 22 किमी दूर स्थित है, उत्तर-पश्चिम में स्थित झील दलदल सहित लगभग 1700 मीटर लम्बी है. इसकी अधिकतम तथा न्यूनतम चौड़ाई 454 मीटर तथा 190 मीटर है. झील के ऊपरी छोर पर धसकन के कारण सूर्यताल बन गया है. झील के समीप में एक प्राचीन मन्दिर है, जो बाज वहादुर चाद द्वारा 17वीं शताब्दी में बनवाया गया था. यह मन्दिर पहाड़ी धार्मिक स्थापत्य कला का एक सुन्दर नमूना है. मन्दिर के शीर्ष पर एक लकड़ी की छतरी है तथा एक विना तिथि का शिलालेख भी है. भीमताल झील में मछलियाँ बहुतायत सी हैं. मछलियों का शिकार यहाँ वर्जित है.

भोवाली (नैनीताल)
भोवाली नैनीताल से 11 किमी दूर अल्मोड़ा-नैनीताल मार्ग पर स्थित है. इस स्थान की ऊँचाई समुद्र तल से लगभग
1786 मीटर है. यहाँ की जलवायु वहुत स्वास्थ्यवर्द्धक एवं चारों ओर का वातावरण वहुत रमणीय है. यहाँ देवदार के
वृक्ष बहुत पाए जाते हैं. यह कस्वा पहाड़ी फलों का निर्यात केन्द्र है. यहाँ पर देश की एक प्रमुख क्षय आरोग्यशाला (T'. B. Hospital) है, जो 1912 में किंग एडवर्ड कन्जम्पटिव सेनोटोरियम के नाम से स्थापित हुई थी.

धीकोली  (ऊथमसिंह नगर)
घिकौली ग्राम कोसी नदी के दाएँ तट पर स्थित है. यह ग्राम हल्द्वानी से उत्तर-पश्चिम में एवं नैनीताल से पश्चिम में
लगभग 96 किमी की दूरी पर रानीखेत-रामनगर राज्य मार्ग पर बसा हुआ है. ढाल पर बसा होने के कारण इसकी
साम्यता भाभर में स्थित ग्रामों की अपेक्षा पहाड़ों के ग्रामों से है. ग्राम के पश्चिम एवं अन्य स्थलों पर शिलाओं के डेर
लटकते हुए शिलाओं के कुछ मीटर नीचे प्राचीन भवनों के अवशेष प्राप्त से प्रतीत होते हैं, जिनके बीच में तंग घाटियाँ है. हुए हैं. इस क्षेत्र में नक्काशीदार स्तम्भ, शीर्ष गोलाकार फलक, पशुओं की प्रतिमाएँ तथा अन्य सुन्दर कलाकृतियाँ प्राप्त हुई हैं. पठार पर एक प्राचीन कुआँ है, स्थानीय जनश्रुति के अनुसार यह ग्राम गोविशना राज्य की राजधानी विराटपाटन है.

हल्दानी (नैनीताल)
हल्द्वानी नगर पहाड़ों के अधोभाग में स्थित है. इसकी समुद्र से ऊँचाई लगभग 437 मीटर है तथा नैनीताल के
दक्षिण में 41 किमी दूर बरेली-नैनीताल मार्ग पर है, कहा जाता है कि नगर का हल्द्वानी नाम पास के जंगलों में
से पाए जाने वाले हल्दू वृक्षों के कारण पड़ा. इस बहुतायत नगर की स्थापना 1854 में ट्रेल द्वारा पहाड़ों पर रहने वालों के लिए शीत ऋतु में भाभर में रहने हेतु की गई थी. यहाँ के मुख्य उत्पादकों में मोटरगाड़ियों के पुर्जे, सीमेण्ट
के पाइप, पैकिंग सामग्री, प्लास्टिक शीट, वैटरी प्लेट, पेंसिल स्लाइड, पट्टी, लकड़ी की पेटियाँ, फर्नीचर सन्दूक, लोहे की आलमारी इत्यादि चीजें मिलती हैं. यहां पर आटा, चावल और तेल की कई मिलें हैं.

जसपुर (ऊधमसिंह नगर)
जसपुर नगर काशीपुर के पश्चिम में 15 किमी दूरी पर स्थित है. इस नगर में सूती कपड़ा, इमारती लकड़ी एवं गन्ने
का व्यापार होता है, इस नगर के कई जुलाहे परिवार सूती कपड़ों का उत्पादन करते हैं, ये कपड़े पहाड़ी महिलाओं में बहुत लोकप्रिय हैं. जसपुर की सूती कालीनें पास के जिलों में प्रख्यात हैं. यहाँ सूती कपड़ों की रंगाई एवं ऊन पर छपाई की जाती है,

कैलाश (नैनीताल)
मालवाताल के दक्षिण की ओर नैनीताल से लगभग 40 किमी की दूरी पर समुद्र तल से 1794 मीटर की ऊँचाई
पर कैलाश स्थित है. कैलाश की आकृति शंक्वाकार होने के कारण यह महादेव का लिंग कहलाता है. कहा जाता है कि यह तिब्बत में स्थित कैलाश के सदृश है और यह पर्वत श्रेणी बहुत पवित्र मानी जाती है. इसकी चोटी पर एक प्राचीन मन्दिर है. नैनीताल से यहाँ आने का साधन मानाघेर, खलडुंगी, खच्यर मार्ग द्वारा है. अक्टूबर के अन्त में यहाँ
महादेव एवं ज्वाला देवी के सम्मान में तीन दिन तक मेला लगता है, जिसमें लगभग 5000 यात्री आते हैं.

कालाढूंगी (नैनीताल)
कालाढूंगी के नाम से जाना जाने वाला यह कस्वा समुद्र तल से 395 मीटर ऊँचाई पर नैनीताल-मुरादाबाद मार्ग पर
हल्द्वानी से 27 किमी व नैनीताल से 26 किमी की दूरी पर स्थित है. यह कस्वा धपलागाँव से 5 किमी फैले हुए भू-
स्लावन द्वारा निर्मित एक बहुत बड़े तालुज के अधोभाग में बसा हुआ है. यहाँ की प्राकृतिक छटा अद्वितीय है.

काशीपुर (ऊधरमसिंह नगर)
काशीपुर धेला नदी के बायें तट पर बसा हुआ है. इस नगर का नाम काशीनाथ अधिकारी, जो बाज वहादुर चाँद के
राज्यकाल में इस क्षेत्र के पदाधिकारी थे, के नाम पर पड़ा. परम्परा के अनुसार यह नगर चार गाँवों के स्थान पर बसा
हुआ है, जिसमें एक गाँव में उज्जैनी देवी का मन्दिर है, जहाँ तीर्थयात्री वहुत वड़ी संख्या में आते हैं. काशीपुर के निकट उज्जैन की तादात्मयता प्राचीन गोविंशना से की जाती है, जहाँ चीनी यात्री ह्वेनसांग आया था. यहाँ पर कई सरोवर, उपवन एवं मछलीयुक्त तालाव हैं. सरोवरों में द्रोणसागर सबसे बड़ा सरोवर है. कहा जाता है कि यह समीपवर्ती किला पाण्डवों द्वारा अपने गुरु द्रोण के लिए बनवाया गया था. किले से 180 मीटर पूर्व ज्वाला देवी का मन्दिर है. इस देवी को उज्जैनी देवी भी कहते हैं. यहाँ पर चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को एक बहुत वड़ा मेला लगता है. अन्य मन्दिरों में भूतेश्वर, मुक्तेश्वर, नागनाथ एवं नागेश्वर महादेव के हैं.

नानकमत्ता (ऊधरमसिंह नगर)
नानकमत्ता खटीमा-सितारगंज मार्ग पर स्थित है. यह खटीमा के पश्चिम में लगभग 76 किमी एवं सितारगंज के पूर्व में 10 किमी की दूरी पर है. इस गाँव का नाम गुरुनानक के नाम पर पड़ा है, जिनको समर्पित एक गुरुद्वारा भी है
जिसका निर्माण औरंगजेब के शासनकाल में हुआ था. कहा जाता है कि गुरुनानक यहाँ आकर रहे थे तथा कुछ दिन मनन-चिन्तन में व्यतीत किए थे. अब गुरुद्वारा एक महन्त के प्रभार में है. यहाँ एक सरोवर है जिसे नानक जलाशय कहते हैं.

पन्तनगर (ऊधरमसिंह नगर)
पन्तनगर रुद्रपुर के समीप किच्छा से 14 किमी और नैनीताल से 70 किमी दूर है. यह नगर देश के महान्
स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी पं. गोविन्द बल्लभ पन्त की स्मृति में प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा समर्पित किया या. पं. गोविन्द बल्लभ पन्त उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमन्त्री थे. नगर के नाम पर रेलवे स्टेशन का भी नाम है. सम्पूर्ण देश में पन्त नगर की प्रसिद्धि का कारण यहाँ पर स्थापित गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि एवं औद्योगिक विश्वविद्यालय है, जो देश का प्रथम कृषि विश्वविद्यालय है.





रामगढ़ (नैनीताल)
रामगढ़ एक महत्वपूर्ण गाँव है, जो भोवाली से मुक्तेश्वर जाने वाले मार्ग पर समुद्र सतह से 1790 मीटर ऊँचाई पर
स्थित है. यह नैनीताल से 26 किमी की दूरी पर है. यहाँ की सड़कें सबसे ऊँचे स्थल से पूर्व से पश्चिम तक फैली हिमानी श्रेणियाँ बड़ा मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती हैं. दूसरी ओर वनों से आच्छादित निचली पहाड़ियाँ, छरवाता की झील तथा भाभर तक समतल भूमि है, यह स्थान सेव, आड़ एवं खूबानी की पैदावार के लिए प्रसिद्ध है.

रामनगर (ऊधमसिंह नगर)
रामनगर पहाड़ों की तलहटी में कोसी नदी के किनारे समुद्र सतह से 367 मीटर की ऊँचाई पर बसा है. यह स्थल
नैनीताल से 54 किमी दूर है. यह पश्चिम क्षेत्र की सबसे वड़ी एवं मुख्य मण्डी है, यहाँ से पश्चिमी पहाड़ी क्षेत्र का गल्ला
और मिर्च का व्यापार गढ़वाल और पाली पछाव के वीच इसी नगर द्वारा होता है. यह नगर काशीपुर से सड़क एवं रेलमार्ग से जुड़ा है.

रुद्पुर
इस नगर का नाम अब ऊधमसिंह नगर कर दिया गया है, जो उत्तराखण्ड का जनपद है. यह किच्छा से 13 किमी
एवं नैनीताल से 83 किमी दूर है. इस नगर का नाम कुमाऊँ के राजा रुद्रचन्द्र पर है, जिन्होंने इसकी स्थापना 1588 ई. में की थी तथा 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक यह तराई की राजधानी रही.

सतताल (नैनीताल)
सतताल, अपने नामानुसार मूलतः सात झीलों का समूह है. यह नैनीताल से दक्षिण-पूर्व में 20 किमी तथा भीमताल से
5 किमी की दूरी पर है. इन झीलों में सबसे बड़ी झील 1000 मीटर लम्बी तया 320 मीटर चौड़ी है. ये झीलें भूमि के
कटाव के कारण अस्तित्व में आईं. इन झीलों में से 4 झीलें सूख गई हैं बाकी तीन झीलें-गुरुड़ताल, रामताल एवं
हनुमानताल पास-पास है, यह जनपद की सब झीलों से अधिक रमणीय है.

टनकपुर (चम्पावत)
टनकपुर एक अत्यन्त मनोरम स्थल है, जो शारदा नदी के बाएँ तट पर नैनीताल से लगभग 100 किमी दूर है, यहाँ
से इसके उत्तर में अल्मोड़ा तथा दक्षिण में स्थित पीलीभीत हेतु सङ़क मार्ग है. इस नगर की स्थापना 1880 ई. में हुई
टी. यह नदी से 12 मीटर की ऊँचाई पर शुष्क स्थान पर बसा है, टनकपुर में तराशे हुए सुन्दर पत्थरों की दुकानें ैं. ये पर प्रचुर परिमाण में इमारती लकड़ी, पशुओं की खालें कत्या, शहद तथा वन सम्बन्धी छोटे- छोटे उत्पादन निर्मा
किए जाते हैं.

पंचबद्दी

श्रीबदीनाथ
पुराणों में सर्वश्रेष्ठ भूमि वद्रीकाश्रम, चारों धामों में से एक प्रसिद्ध और पौराणिक धाम है. श्री वद्रीनाथजी का मनदिर
नारायण पर्वत शिखरों के मध्य (10300 फीट) की ऊँचाई पर अलकनंदा नदी के किनारे, गरमपानी के चश्मे तप्त कुण्ड के पास स्थित है. स्कन्दपुराण के अनुसार आदिगुरु शंकराचार्य ने भगवान बद्रीनाथ (भगवान विष्णु) की प्रतिमा नरकुण्ड से प्राप्त कर इस स्थल पर स्थापित की थी. यही मुख्य मंदिर है जो विशाल बद्री के नाम से विख्यात है. उत्तरांचल में श्रीवद्रीजी की पूजा पाँच विभिन्न स्थलों पर पाँच भिन्न स्थलों पर पाँच भिन्न-भिन्न नामों से की जाती है.

श्री आदिबद्री 
कर्णप्रयाग से 19 किमी की दूरी पर चीखुटिया रानीखेत मार्ग पर 3800 फीट ऊँचाई पर यह तीर्थ स्थित है. श्री
आदिवद्री नाथजी की मूर्ति श्यामवर्ण शिला (पवित्र शालिग्राम पत्थर) की मूर्ति है. यहाँ चौदह मंदिरों का झुण्ड है प्रो. नोटियाल आदिवद्री के मन्दिर को दसवीं शती ई. निर्मित मानते हैं.

वृद्ध बदी
जोशीमठ से 17 किमी पीपलकोटि की दिशा में 4000 फीट की ऊँचाई पर आठीमठ-नामक स्थान पर स्थित है. यहाँ
पर श्री लक्ष्मीनारायण की प्राचीन मूर्ति है.

योगध्यान बद्री
जोशीमठ में 20 किमी तथा बद्रीनाथ से 24 किमी की दूरी पर 5500 फीट की ऊँचाई पर पाण्डुकेश्वर में स्थित है.
सामने की ऊँची चोटियों पर पाण्डु शिला है. यही पाण्डवों की जन्म स्थली है, यहीं पर राजा पाण्डु को मोक्ष प्राप्त हुआ था.

भविष्य बद्री 
जोशीमठ से 18 किमी की दूरी पर जोशीमठ मलारीमार्ग पर 8000 फीट की ऊँचाई पर भविष्य बड़ी स्थित है.
यहाँ श्री वद्टी जी की आधी आकृति की मूर्ति की पूजा होती है, यह कहा जाता है कि भविष्य में जब दो उच्च शिखर
बद्ीनाथ मार्ग पर आकर मिल जायेंगे तो बद्रीनाथजी की यात्रा कठिन हो जाएगी. तब यह आर्ी मूर्ति पूर्ण होकर
भगवान भविष्य बद्री के रूप में प्रकट होंगे .

पंचकेदार

श्री केदारनाथ मन्दिर
समुद्र तल से 11,750 मीटर की ऊँचाई पर पाण्डवों द्वारा स्थापित श्री केदारनाथजी भगवान शिवशंकर के वारह ज्योति- लिंगों में से एक है ऐसी मान्यता है कि सर्वप्रथम केदारेश्वर ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के पश्चात् ही श्री वद्रीनाथ के दर्शन करने जाते हैं. यहाँ पर मंदाकिनी, मधुगंगा, स्वर्गरोहणी तथा सरस्वती चारों जलधाराएं हिमक्त की शिखरों से प्रकट होती है.

मन्दमहेश्वर महादेव
समुद्रतल से 10.000 फीट की ऊँचाई पर स्थित मन्द- महेश्वर को द्वितीय केदारनाथ कहा गया है. यहाँ भगवान
शंकर का विशाल मन्दिर है. इस मन्दिर में उनकी नाभि की पूजा होती है.

तुंगनाथ
ऊँखीमठ से 30 किमी तथा चोपता से 5 किमी की दूरी पर 12,570 फीट की ऊँचाई पर तुंगनाथजी का मंदिर है.
यहाँ भगवान शंकर की भुजाओं की पूजा होती है समीप में ही रावण शिला है जहाँ रावण ने भगवान शिव की आराधना की थी.

रुद्रनाथ
यहाँ पर भगवान शिव की पूजा नीलकण्टठ के रूप में की जाती है. रुद्रनाथजी का मन्दिर गोपेश्वर से 3 किमी दूर
गंगोल गाँव तथा यहाँ से 18 किमी पैदल मार्ग से 12,000 फीट की ऊँचाई पर पाषाण गुफा के भीतर रुद्रनाथजी का
मन्दिर है. यहाँ शिवजी की रौद्रूप की साक्षात मुख्य प्रतिमा है. यह क्षेत्र पितृ तीर्थ नाम से प्रसिद्ध है.

कल्पेश्वर
यहाँ शंकरजी की जटाओं की पूजा अर्चना की जाती है.बद्रीनाथ मार्ग पर हेलंग से अलकनन्दा पारकर लगभग 10
किमी की दूरी पर पंचम केदार कल्पेश्वर स्थित है. इसमें एक गुफा से होते हुए प्रवेश करना होता है.

पंचप्रयाग

देवप्रयाग
बद्वीनाथ मार्ग पर अलकनन्दा तथा भागीरथी के संगम पर 1800 फीट की ऊँचाई पर देवप्रयाग स्थित है. यहाँ पर
रघुनाथजी का मन्दिर है, रावण वध के बाद दोषमुक्त होने के लिए भगवान राम ने यहाँ पर तपस्या की थी,

रूद्रप्रयाग
 बद्रीनाथ  मार्ग पर 2200 फीट की ऊँचाई पर अलकनंदा तथा मंदाकिनी के संगम पर रुद्रप्रयाग रिथित है. केदारनाथ जाने का मुख्य मार्ग यहीं से है. भगवान शिव की आराधना कर मुनि नारदजी ने संगीत शास्त्र की शिक्षा ग्रहण की थी.

कर्णप्रयाग
अलकनंदा तथा पिण्डर के संगम पर 2600 फीट की ऊँचाई पर कर्णप्रयाग स्थित है. इसी स्थल पर दानवीर कर्ण ने
भगवान सूर्य की आराधना कर अभेद्य कवच प्राप्त किया था. संगम के पार्श्व में उमादेवी का विशाल मन्दिर है.

नंदप्रयाग
अलकनंदा तथा मंदाकिनी के संगम पर 2800 फीट की ऊँचाई पर नंदप्रयाग स्थित है. नंदप्रयाग में अनेक भव्य मंदिर हैं, रामानंदजी ने यहाँ तपस्या की थी जिसके कारण इसका नाम नंदप्रयाग पड़ा.

विष्णुप्रयाग
जोशीमठ से 14 किमी दूर अलकनंदा (विष्णु गंगा) और घौलीगंगा के संगम पर 4500 फीट की ऊँचाई पर स्थित है
यहाँ पर प्रसिद्ध तीर्थ विष्णु मन्दिर स्थित है.

भ्यूंडार की फूलों की घाटी
इस नयनाभिराम फूलों की घाटी का परिचय सर्वप्रथम 1931 ई. में प्रसिद्ध पर्वतारोही फ्रैक स्माइय ने विश्व को
कराया. स्माइय ने इस रमणीक स्थल पर एक पुस्तक 'द बैली ऑफ फ्लॉवर्स' लिखी. इंगलैण्ड के 'क्यू बोटेनिकल गार्डन' की ओर से मैडम जॉन मारग्रेट लेक 1939 ई. में इन फूलों की घाटी में पहुँची और यहीं पर 4 जुलाई, 1939 को फूलों की गोद में सदा के लिए सो गई.

        भ्यूंडार की फूलों की घाटी महाभारत काल की है. जब पाण्डव पांडुकेश्वर में निवास कर रहे थे उसी दौरान एक दिन जब द्रोपदी अलकनन्दा और लक्ष्मण गंगा के संगम पर स्नान कर रही थीं, तभी लक्ष्मण गंगा की ओर से आते हुए सुगन्धित कमल को देखकर मन्त्रमुग्ध हो गईं. द्रोपदी ने भीम से इन ताजे फूलों को लाने के लिए अनुरोध किया था. बहुत दूर जाने पर पही फूलों की घाटी दिखाई दी थी. भ्यूंडार की फूलों की घाटी तक पहुँचने के लिए ऋषिकेश-बदरीनाथ मार्ग से पहुँचा जा सकता है.

रुद्रहिमालय की फूल घाटी
रुद्रनाथ (14,000 फीट) पंचकेदार (केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, कल्पेश्वर तथा मद्महेश्वर) में से एक केदार है.
रुद्रनाथ जाने के लिए अभी कोई मार्ग नहीं है. कच्चे रास्ते से जाना पड़ता है. रुद्रनाथ जाने के लिए गोपेश्वर (चमोली) से दो मार्ग-एक गोपेश्वर से गंगोल गाँव होकर (17 मील) तथा दूसरा गोपेश्वर से सुखताल होकर (23 मील) रुद्रनाथ जाने के लिए बेमरु गाँव अन्तिम गाँव है. वेमरु गाँव से 10,000 फीट की ऊँचाई से रुद्र हिमालय की फूल घाटी शुरू होती है, जो 20 मील में विस्तृत है. मखमली दूव की बुग्याल पर अनेक प्रकार के पुष्प खिलते हैं. इस फूल घाटी में जगह-जगह पर जल के सोते (छोया) मिलते हैं. सारे गढ़वाल हिमालय में इससे अधिक फूलों वाली दूसरी घाटी नहीं है.

हरकीदून की फूल घाटी
उत्तरकाशी जिले के रवांई परगने के पट्टी पंचगाई स्थित फतेह पर्वत में मनोहारिणी फूलघाटी हरकीदून 7-8 मील के
विस्तार में फैली हुई अनुपम फूल घाटी है. समुद्र तल से 11,700 फीट की ऊँचाई पर हरकीदून ईश्वर की सौन्दर्यमयी
अद्भुत घाटी के नाम से विख्यात है. इस घाटी में मखमली हरीदून, असंख्य पुष्प और मूल्यवान औषधियाँ हैं.

मांझी बन की फूल घाटी
उत्तरकाशी और हिमाचल प्रदेश की सीमा पर फूलों का सुन्दर मांझी वन है. समुद्र तल से 16,130 फीट की ऊँचाई
पर लम्बा-चौड़ा मीलों तक फैला हुआ माझी वन का सुन्दर मैदान है, जिसमें ब्रह्मकमल, लेशरजयान, फेणकमल आदि के फूल खिले रहते हैं. इस वन के लिए मार्ग चकराता हिमालय तथा उत्तरकाशी जिले के भटवाड़ी नामक स्थान से जाता है.

सुक्खी और घराली की फूल घाटियाँ
उत्तरकाशी से गंगोत्री मोटर मार्ग पर 40 मील की दूरी पर सुक्खी गाँव है. इसी गाँव के ऊपर लगभग तीन मील पर
सुक्खी शिखर है, गाँव की सीमा के बाद ही 5 किमी लम्बा और डेढ़ मील चौड़ा फूलों का मैदान शुरू हो जाता है, जिसे नागणीसौड भी कहते हैं. हरे-भरे इस विशाल मैदान में सूरजकमल, बिषकण्डार, जंगली गुलाब और अनेक प्रकार के फूल खिलते हैं, यहाँ नागराजा देवी तथा कृष्ण रानियों के मन्दिर हैं.

कुश कल्याण और सहस्त्रताल की फूल घाटी
जौराई और कुश कल्पाण (सहस्त्रताल) की फूल घाटियों को 14,500 फीट समुद्र तल से ऊँची हिमालय की चोटी
विभाजित करती है. जौराई से 2 मील ऊँचे पहाड़ को पार कर कुश कल्याण की फूल घाटी में पहुँचा जा सकता है. यहाँ पर विविध प्रकार के पुष्प व मखमली भूमि है. इस फूल घाटी का नाम कोटालों की हारी है. कोटालों का अर्थ अप्सराओं से है, स्थानीय लोगों का कहना है कि यहाँ अधिक देर तक ठहरने पर अप्सराएँ मनुष्यों का हरण कर लेती हैं.

पंवालीकांटा की फूल घाटियाँ
टिहरी जनपद से पंवाली-कांठा धुतु होकर और उत्तरकाशी से गंगोत्री होकर पहुँचा जा सकता है. यहाँ पर कई घाटियाँ हैं, जो फल-फूलों से भरी रहती हैं. यहाँ पर औषधियों का अकूत भण्डार है. यह फूल घाटी 15 से 20 मील तक फैली है.

कुँआरी की फूल घाटी
कुमारी (कुँआरी) हिमवान की पुत्री पार्वती ने अपने आराध्यदेव (शिव) को प्राप्त करने हेतु जिस क्षेत्र में कठिन
तप किया, वही यह क्षेत्र कुँआरी फूल घाटी है. पास ही तिब्बत जाने का पास (दर) भी कुआरी के नाम पर ही 'कुँआरी पास' के नाम से विख्यात है. यहाँ जाने के लिए चमोली से जाया जा सकता है,

आली गुरसों की फूल घाटी
जोशीमठ से 5 मील पर आली गुरसों की फूल घाटी शुरू  हो जाती है. इस फूल घाटी में प्रिमुला के बैंगनी, गहरे लाल रंग के फूल अधिक खिले मिलते हैं. वज़दन्ती के पीले फूल,  आइरिश फूल यहाँ अधिकता से खिलते हैं.

मद्महेश्वर की फूल घाटी
पंचकेदार (केदारनाथ, तुंगनाथ, कल्पनाथ, मद्महेश्वर और रुद्रनाथ) में मदूमहेश्वर का विशिष्ट स्थान है. यह फूल
टी केदारनाथ मार्ग से अति समीप है. यह फूलों की घाटी7  किमी लम्बी तथा 3 किमी चौड़ी है. यहाँ के फूलों में लाल,
नीले रंग की अधिकता रहती है.

कल्पनाथ की फूल घाटी
कल्पनाथ की फूल घाटी बदरीनाय क्षेत्र में है. जोशीमठ के रास्ते में उ्गम गाँव है. इस गाँव से डेढ़ मील पर गुफा
अन्दर कल्पनाथ (शिव) का लिंग है. गुफा के ऊपर पहाड़ है, आमने-सामने फूलों की 3-4 किमी की घाटी है. गुफा के ऊपर भी फूलों का मखमली ढलवाँ मैदान है. यह क्षेत्र अत्यन्त रमणीक है.








बेदनी बुग्याल की फूल घाटी
बेदनी वुग्याल गढ़वाल का सबसे अधिक आकर्षक क्षेत्र है. इसी क्षेत्र में रूपकुण्ड है, जहाँ फूल घाटियाँ देखने योग्य
हैं. बेदनी बुग्याल जाने के लिए ऋषिकेश, कोटद्वार, रामनगर से कर्णप्रयाग होकर जाया जा सकता है. यहाँ पर भी औषधियों का भण्डार है.


रूपकुण्ड की फूल घाटी
16,000 फीट की ऊँचाई पर सुविख्यात रूपकुण्ड है. इस कुण्ड के मार्ग में 6-7 किमी का मखमली घास का
विशाल मैदान है. इस मैदान में असंख्य प्रकार के फूल खिले रहते हैं, फेणकमल इस क्षेत्र का सबसे सुन्दर फूल है. यह दवा के काम में भी आता है, स्कन्द पुराण के केदारखण्ड में गढ़वाल के हजार तालों का वर्णन विस्तार से हुआ है. आज भी इस क्षेत्र में अनेक ताल हैं, जो पर्वत शृंखलाओं की चोटियों पर हिमाच्छादित पर्वतों की प्रतिछाया लिए अद्भुत सौन्दर्य प्रदान करते हैं. इन तालों में कुछ तालों का वर्णन इस प्रकार है-

रूपकुण्ड

रूपकुण्ड प्रकृति की मनोहर गोद में 16,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है. नौटी चाँदपुर के जागरगीतों के अनुसार
जब नन्दा अपने श्वसुर के घर कैलाश जा रही थी, तो उन्होंने यहाँ पर नहाने के लिए एक कुण्ड का निर्माण किया.
स्नान के वाद देवीकुण्ड में अपनी प्रतिछाया देखकर स्वयें पर मुग्ध हो गई. प्रसन्न होकर वे आधा सौन्दर्य और आधी
शक्ति यहीं छोड़ गई, तभी से इस कुण्ड का नाम रूपकुण्ड प्रसिद्ध हो गया. रूपकुण्ड झील लगभग 2000 वर्ग मील में फैली हुई है, झील के चारों ओर ऊँचे वर्फ से ढके शिखर हैं यह कुण्ड प्रायः वर्षभर वर्फ से ढका रहता है.

होमकुण्ड
रूपकुण्ड से 10 मील दूर नन्दा घाटी की ओर 13.200 फीट की ऊँचाई पर होमकुण्ड है. होमकुण्ड छोटा, किन्तु एक सुन्दर ताल है. ताल के किनारे एक सुन्दर चबूतरा है. कहते है कि नन्दा (पार्वती) का डोला इसी चबूतरे पर रखा गया या. जब मार्ग बर्फ से भर गया, तो देवतागण नन्दा को विमान पर बैठाकर कैलाश ले गए. इस क्षेत्र में मखमली घास तथा फूल खिले रहते हैं. कहते हैं यहीं वेदों की रचना हुई. ऋषिकेश से यहाँ जाया जा सकता है.

हेमकुण्ड
यह रमणीय ताल 14,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है. सिखों के दसवें गुरु गुरुगोविन्द सिंह ने हिन्दू धर्म की रक्षा
के लिए इसी रमणीय ताल के समक्ष तप किया था. इस ताल के पास में लक्ष्मण की तपोभूमि है. यहाँ लक्ष्मण का एक
मन्दिर और एक मूर्ति यहाँ पर स्थापित है. सिखों ने इस स्थल पर गुरुद्वारा वना लिया है. हेमकुण्ड जाने के लिए जोशीमठ से बदरीनाथ की ओर पाण्डुकेश्वर से एक मील मोटर मार्ग से जाना पड़ता है फिर पैदल यात्रा करनी पड़ती है.

सतोपंथ ताल
सतोपंथ ताल संसार के प्राकृतिक तालों में अद्भुत सौन्दर्य का एक विशाल ताल है, यह त्रिकोण आकृति का
और मनुष्य की बुद्धि को विस्मृत करने वाला सौन्दर्यपूर्ण ताल है, 14.500 फीट की ऊँचाई पर हिमालय के सुन्दर मैदानी क्षेत्र में यह ताल स्थित है. यह ताल डेढ़ से दो मील की  परिधि में फैला हुआ है.
        स्कन्द पुराण में वर्णित है कि एकादशी के दिन देवतागण इस सरोवर में स्नान करते हैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश इस ताल के तीनों कोण पर वैठकर तप करते हैं. वदरीनाथ से उत्तर-पश्चिम की ओर 20 किमी की दूरी पर सतोपंथ सरोवर है.

भेकल ताल

समुद्र तल से 11.000 फीट की ऊँचाई पर मुंडीली लोहागंज (वधाण) से 3 मील पर भेकल ताल घने वन के मध्य स्थित है. भेकल ताल अण्डाकार आकृति का गहरे नीले रंग के पानी का ताल है. यह लगभग आधा मील की परिधि
में फैला हुआ है. इस ताल के चारों ओर विविध प्रकार के वृक्ष, पुष्प और सुन्दर वनस्पतियाँ मिलती हैं. भेकल ताल जाने के लिए रूपकुण्ड मार्ग से रास्ता है. कर्णप्रयाग, घराली, देवल मार्ग पर 7 मील की दूरी पर मुंडौली है, मुंडीली से 3 मील पर भेकल ताल है. भेकल ताल के किनारे प्राचीनकाल के तीर, भाले व कटार विद्यमान हैं.

देवहरि ताल
हिमालय गढ़वाल का सबसे मनोरम और आकर्षक ताल देवहरि ताल है. समुद्र तल से 8000 फीट की ऊँचाई पर,
पहाड़ की चोटी पर यह ताल स्थित है, यह ताल एक मील लम्बा और आधा मील चौड़ा है. इस ताल में चौखण्डा,
नीलकण्ठ आदि हिमाच्छादित पर्वतों की सुन्दर छवि दिखाई देती है. इस ताल में पर्वतों की श्वेत छाया तथा वृक्षों की
हरित छाया सदैव पड़ी रहती है, इसलिए पानी की गहराई का अनुमान लगाना कठिन होता है. देवहरि ताल पहुँचने के लिए ऋषिकेश से श्रीनगर होकर रुद्रप्रयाग पहुँचना पड़ता है. रुद्रप्रयाग से 8 मील उत्तर-पूर्व की ओर चढ़ाई पर देवहरि ताल के भव्य दर्शन होते हैं.

अंछरी ताल (अप्सरा ताल)
समुद्र तल से 14,500 फीट की ऊँचाई पर दो पर्वत श्रेणियों के मध्य दो-तीन फर्लाग पर सुन्दर अंछरी ताल है.
इस ताल के चारों ओर पुष्प घाटी है. ताल में हिमाच्छादित दोनों पर्वतों की छाया इस ताल के निर्मल जल में आकर्षण
उत्पन्न करती है. कहते हैं हिमालय में निवास करने वाली अप्सराएँ इस सरोवर में स्नान करने के लिए आती हैं तथा
इसके सुन्दर पुष्पित वातावरण में निवास करती हैं. यहाँ पहुँचने के लिए उत्तरकाशी से रास्ता जाता है. 

लिंग ताल
अं्री ताल से भी सुन्दर हिमाच्छादित पर्वतों की गोद में और मखमली पुष्पित घाटी के मध्य लिंग ताल स्थित है. यह
ताल पौन मील की परिधि में फैला हुआ है. लिंग ताल के बीचो-बीच गोलाई में एक टापू है. टापू में चीकोर पत्थर की
सुन्दर स्लेटें विछी हुई हैं. स्लेटों के चारों तरफ मखमली हरित दुब विछी है. सूर्य की रोशनी में इस सरोवर की छटा मन्त्र- मुग्ध कर देती है.

मातृका ताल
लिंग ताल से उत्तर की ओर थोड़ी दूर पर मातृका स्थित है. मातृका ताल अर्थात् देवियों का ताल 4 फर्लांग की परिधि
में फैला हुआ है. यह ताल गहरा है. इस ताल का जल वहुत निर्मल है.

नरसिंह सरोबर
मातृका ताल से वड़ी-बड़ी शिलाओं को लॉघकर ऊपर की ओर बढ़ते हुए नरसिंह सरोवर दिखाई देता है. इस
सरोवर का आकार गोल है. इसकी सुन्दरता दर्शनीय है.

सिद्ध ताल
नरसिंह सरोवर से 20 फीट की ऊँचाई पर चढ़ने के बाद सिद्ध ताल मिलता है. यह बहुत वड़ा ताल है, लेकिन इसका
पानी वहुत उथला है. ताल के बीचो-बीच भी पानी लगभग । फुट ऊँचा है. इस ताल के तलहटी पर चौकोर पत्थर की
स्लेटें विछाई गई हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि मानो सिद्ध पुरुषों के ध्यान लगाने के लिए चिकने पत्थरों की चीकोर
चौकियाँ किसी दिव्य पुरुष के द्वारा विछाई गई हैं. निर्मल पानी में इन स्लेटों की सुन्दरता मन को मोह लेती है.

यम ताल
यह ताल सदैव वर्फ से ढका रहता है. सिद्ध ताल से यह थोड़ा ऊपर स्थित है, इस ताल की गहराई बहुत अधिक है,
जरा भी वर्फ की पतली तह के ऊपर पैर चला जाए, तो मनुष्य सदा के लिए ताल की गहराइयों में समा जाता है
इसलिए इसका नाम यम ताल या अन्धकार ताल दिया गया है

सहस्त्र ताल
सहस्त्र ताल सब तालों से वड़ा और सवसे अधिक गहरा ताल है. समुद्र तल से 16,780 फीट की ऊँचाई पर यह अद्भुत ताल स्थित है. यह ताल 1 मील की परिधि में फैला हुआ तथा इसकी गहराई 100 फीट है. इसके उत्तरी छोर पर समतल भूमि है, जिसमें नाना प्रकार के सुन्दर फूल खिले रहते हैं. इस ताल का पानी अत्यन्त निर्मल और पारदर्शी है. इस ताल की तलहटी में सिद्ध ताल की तरह चीकोर पत्थर की करोड़ों चीकियाँ विछी हुई हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि किसी दिव्य पुरुष ने करोड़ों देवताओं के वैठाने के लिए इन चौकियों को बिछा दिया है.

द्वितीय सहस्त्र ताल
सहस्त्र ताल से दाहिने हाथ की तरफ 1 मील की दूरी पर यह ताल स्थित है. यह ताल भी अत्यन्त रमणीय है.
गढ़वाल के लोग भादों में कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर इस ताल की यात्रा करते हैं.

चोरवाड़ी ताल
इस ताल का नाम अव गांधी ताल है. इसमें गांधीजी की अस्थियाँ विसर्जित की गई थीं. मंदाकिनी के मूल श्रोत से  कुछ ही ऊपर केदारकांठा में 14,000 फीट की ऊँचाई पर केदारनाथ से उत्तर की ओर 3 किमी की दूरी पर यह ताल स्थित है. इस ताल के चारों ओर हिमाच्छादित पर्वत श्ृंखलाएँ हैं, जिनकी प्रतिच्छाया सदैव इस ताल पर पड़ती है. इस ताल में चारों ओर सुन्दर-सुन्दर फूल खिले हुए हैं और नाना प्रकार की वनस्पति विखरी पड़ी है. रुद्रप्रयाग से केदारनाथ, केदारनाथ से गौरीकुण्ड और गौरीकुण्ड से इस ताल का मार्ग जाता है,

वासुकी ताल
केदारनाथ से 4 मील की दूरी पर यह बहुत ही सुन्दर ताल है. इस ताल में सदैव कमल और नीलकमल खिले रहते
हैं, गढ़वालवासी कृष्ण जन्माध्टमी के दिन इस ताल में स्नान करना पुण्य समझते हैं,

देव ताल
चार फर्लाग की परिधि वाला यह ताल केदारनाथ क्षेत्र में अपनी सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है. इसमें हिमालय की श्रेणियों की प्रतिच्छाया स्पष्ट दिखाई देती है.

वेणी ताल
आदिवदरी से तीन मील की चढ़ाई चढ़ने पर वेणी ताल मिलता है. इस ताल की परिधि 4 फलाग है. इस ताल के चारों ओर सुन्दर-सुन्दर वृक्षों की पंक्तियों खड़ी मिलती हैं.

सुख ताल
यह ताल बघाणपट्टी का अत्यन्त रमणीय ताल है. यह सुन्दर वृक्षों के मध्य खुले मैदान के बीच स्थित है. इसका
रास्ता कर्णप्रयाग से होकर जाता है.

ब्रह्म ताल

यह ताल अपने आकार-प्रकार में छोटा होते हुए भी बहुत सुन्दर और मनहारी है. इसके चारों ओर मखमली घास के
मैदान हैं और घने जंगल के मध्य यह स्थित है कर्णप्रयाग से होकर अल्मोड़ा जाने के मार्ग से यहाँ पहुँचा जा सकता है.

ताराकुण्ड

यह अत्यन्त रमणीय ताल दूधातोली पर्वत के अंचल में स्थित है. इस ताल की परिधि चार फल्ांग है. इसमें सुन्दर
कमल खिले रहते हैं. हिमाच्छादित पर्वतों तथा वृक्षों की छाया इस ताल में पड़ती है.

दुग्ध ताल

दुग्ध ताल दूधातोली के मध्य एक विशाल दूधिया रंग के पानी का ताल है. दुधिया रंग से यह तात्पर्य है कि सारे ताल
में हिमाच्छादित नन्दा देवी की प्रतिषछाया सदैव पड़ती रहती है.

तड़ासर सरोबर
विचला बदलपुर में 6 फीट की ऊँचाई पर देवदार के वनों के मध्य तड़ासुर महादेव का मन्दिर है लैसडाउन से
14 मील की दूरी पर यह स्थान है. यहाँ भी एक सुन्दर ताल है.

डोडी ताल
डोडी ताल (10,000 फीट) पट्कोणीय ताल है. इस ताल के चारों ओर रई, मुरैडा और भोजपत्र के सुन्दर वृक्ष
का पानी स्वच्छ और नीलिमा लिए हुए है. ताल में पर्वतीय छटी अद्भुत आकर्षण उत्पन्न करती है. यह ताल दो मील
तक फैला हुआ है, ताल में मछलियाँ छटा को और वढ़ा देती ताल के दक्षिण किनारे पर शिव मन्दिर है, डोडी ताल के वन में मृग, शेर व कस्तूरे आदि वन्य पशु वहुतायत मिलते हैं,
हैं,
ताल
हैं.

काणा ताल
উोडी ताल के पीछे एक सुन्दर ताल है, इस ताल में पानी हमेशा नहीं रहता है, इसलिए इस ताल को काणा ताल
कहते हैं. इस ताल के पास मखमली घास का सुन्दर मैदा है, जिसको गढ़वाल में बुग्याल के नाम से जाना जाता है.

नाशकेता ताल
उत्तरकाशी जिले के पट्टी धनारी के पचाड़ गाँव व फोल्ड के वीच एक सुन्दर पर्वत शृंखला पर यह सुन्दर ताल स्थित
है. ताल के चारों ओर सुन्दर और सघन वन हैं. इस क्षेत्र में नाना प्रकार के फूल खिलते हैं.  भराड़सर ताल उत्तरकाशी और हिमाचल प्रदेश की सीमा पर 19,190 फीट की ऊँचाई पर मांझीवन की सुन्दर फूल घाटी है. इसी
मांझीवन के मध्य भराड़सर ताल है.

खिड़ा ताल
हुरीगाँव (उत्तरकाशी) के ऊपर खिड़ा ताल है. इस ताल का पानी वहुत स्वच्छ है. विस्तृत मैदान में मखमली घास का
विछौना और फूलों का गलीचा विछा रहता है.

बयाँ ताल
यह ताल उत्तरकाशी के पट्टी पंचगाई के अन्तर्गत स्थित फतेह पर्वत में है. यह ताल छोटा है, किन्तु सौन्दर्य का सोपान है. इस ताल का पानी खौलता है.

फाचकांडी ताल
पट्टी पंचगाई में फतेह पर्वत के अन्तर्गत स्थित फाचकांडी झील अनोखे सजीले स्वरूप के लिए प्रसिद्ध है.
फतेह पर्वत के मानीरकांठा पर यह ताल धरती का शीशफूल वनकर शोभा विखेरता है.

श्यामला ताल
टनकपुर पिथौरागढ़ मार्ग पर सूखीढांग से 5 किलोमीटर दूर स्थित विवेकानन्द आश्रम स्थित है. इस आश्रम को
श्यामलाताल के नाम से भी जाना जाता है, यह स्थान nचम्पावत जनपद में स्थित है, यह ताल आधा किलोमीटर लम्बा तथा लगभग 0-200 किमी चौड़ा है. कहा जाता है कि स्वामी विरजानन्द, जो स्वामी विवेकानन्द के अनन्य भक्त थे. 1914 में सूखीढांग आये थे, यह ताल अत्यंत मनमोहक है. विवेकानन्द आश्रम-श्यामला ताल में एक चिकित्सालय एवं एक पुस्तकालय है. चिकित्सालय में स्थानीय ग्रामीणों को निःशुल्क सेवा दी जाती है.

        इन तालों के अतिरिक्त गढ़वाल में अनेक सुन्दर ताल हैं. इनमें कुछ अत्यन्त आकर्षक ताल वदाणी ताल (वांगरपट्टी), भाम ताल, राक्षस ताल, महास्त्र ताल, शत्रु ताल और महादेवसर ताल (दसीली-चमोली) में है.
गढ़वाल में विस्तृत तालों के अतिरिक्त छोटे-छोटे गरम व ठण्डे पानी के कुण्ड भी हैं, जिनका विस्तार किया जा
सकता है. ये सभी स्थल पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र हो सकते हैं. कुछ कृण्ड इस प्रकार हैं- रुधिर कुण्ड, शिव कुण्ड (केदारनाथ) देखने योग्य है. नारद कुण्ड, सूर्य कुण्ड, ब्रह्म कुण्ड, उर्वशी कुण्ड, विष्णु कुण्ड आदि इस क्षेत्र के अद्भुत स्थल हैं. तप्तकुण्डों में कुलसानी, गंगनाड़ी, गौरीकुण्ड, बदरीनाथ, पलाई, तप्त कुण्ड, मणिकर्णिका
कुण्ड, चौरावाड़ी कुण्ड तथा यमुनोत्री में कई कुण्ड हैं. इन विविध तालों के वर्णन के उपरान्त निःसन्देह रूप से
कहा जा सकता है कि इस नवगठित उत्तराखण्ड राज्य में पर्यटन की असीम सम्भावनाएँ हैं. आवश्यकता इस बात की है कि जिस स्थान पर अभी सड़क मार्ग नहीं हैं, वहाँ उन स्थलों को सड़क मार्ग से जोड़ दिया जाए तथा यात्रियों के लिए सुविधाजनक ठहरने का स्थान बनाया जाए. इन अद्भुत स्थलों का यदि पर्यटन की दृष्टि से विकास कर दिया जाए, तो निःसन्देह रूप से एक वड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा का अर्जन किया जा सकता है तथा उत्तराखण्ड को विदेशियों की शरणस्थली बनाई जा सकती है. नवगटित सरकार जितनी जल्दी हो सके, उतना जल्दी पर्यटन के विकास के लिए एक विशिष्ट पैकेज की घोषणा करे.

उत्तराखण्ड में पर्यटन की सम्भावनाएँ
        नैसर्गिक सौन्दर्य का धनी नवगठित उत्तराखण्ड में पर्यटन की अपार सम्भावनाएँ हैं. हिमालय की सुदूरवादियों में फैले अनेक मनमोहक, रोमांचकारी व साहसिक पर्यटक स्थलों से लेकर देवस्थली कहे जाने वाले वद्रीनाथ, हेमकुण्ड, यमुनोत्री, गंगोत्री, क्रषिकेश व हरिद्वार जैसे अनेक धार्मिक व पुण्यस्थलों से यह नया राज्य पटा पड़ा है, इस राज्य में लगभग 264 पर्यटक स्थलों में देशी व विदेशी सैलानियों को आकर्षित करने की अपार क्षमता है. एक आकलन के अनुसार हरिद्वार सहित कुमाऊँ गढ़वाल में प्रत्येक वर्ष पहुँचने वाले देशी व विदेशी सैलानियों से लगभग 12.,000 करोड़ रुपए की आय होगी. नवसृजित राज्य में हरिद्वार के जुड़ जाने से इस राज्य में पर्यटन की अपार सम्भावनाएँ बढ़ गई हैं, ऑकड़े दर्शाते हैं कि अभी तक उत्तर प्रदेश में आने वाले कुल सैलानियों में से एक-चीथाई हर साल उत्तराखण्ड परिक्षेत्र में आने वाले पर्यटक स्थलों की सैर के लिए पहुँचते थे. यहाँ पहुँचने वाले देशी-
विदेशी पर्यटकों की सालाना आमदनी विगत वर्षों में 230 लाख से अधिक आँकी गई है. इसमें हरिद्वार पहुँचने वाले
तीस लाख से अधिक पर्यटक शामिल हैं. यद्यपि यहाँ विदेशी पर्यटकों की संख्या अपेक्षाकृत कम रहती है, फिर भी देशों से लगभग एक लाख सैलानी विगत वर्ष में उत्तराखण्ड के नयनाभिराम पर्यटक स्थलों को देखने पहुँचे.
सरकारी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1998-99 में प्रति विदेशी पर्यटक 34 हजार रुपए व प्रति भारतीय पर्यटक 
रुपए को आमदनी का आधार लेते हुए उत्तराखण्ड के हिस्से में आने वाली सालाना पर्यटन आय लगभग 1800 से 1900  करोड़ रुपए आँकी गई है. उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में पर्यटन नीति के तहतु पूरे राज्य के पर्यटक स्थलों को उनकी विविधताओं के आधार पर 10 परिपथों में बाँटा गया था. इनमें चार प्रमुख परिपथ कुमाऊँ, गढ़वाल, पर्वतीय चार धाम-वद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री तथा गंगोत्री तथा वन विहार, इको टूरिज्म व साहसिक परिपथ अब उत्तराखण्ड राज्य के हिस्से हो गए हैं. जल परिपथ विहार के तहत रखे गए कालागढ़, नानक सागर, नैनी झील, भीम ताल, नौकृचिया ताल, जो पर्यटन गतिविधियों की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं, नए राज्य से जुड़ गए हैं. विभाजित उत्तर प्रदेश राज्य में मात्र अब 88 पर्यटक स्थल वचे हैं, वहीं नवसृजित उत्तराखण्ड में 152 पर्यटक स्थल आए हैं. यही नहीं हरिद्वार के उत्तराखण्ड राज्य में रखे जाने से देशी-विदेशी पर्यटकों को आव.र्थेत करने वाले पर्यटन विभाग के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम  यथा-योग व आयुर्वेद महोत्सव भी नए राज्य की पर्यटन आय के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा. पर्यटन उत्तराखण्ड के आर्थिक ढाँचे की रीढ़ की हड्डी माने जाने के साथ रोजगार सृजित करने का प्रमुख साधन है, इसलिए गढ़वाल व कुमाऊँ मण्डल विकास निगमों ने पर्यटन उद्योग पर आधारित अपनी आय को वढ़ाने के लक्ष्य निर्धारित किए हैं. अभी तक उत्तराखण्ड में पर्यटन मौसमी (Seasonal) रहने के साथ

        धार्मिक स्थलों तक सीमित रहा है, लेकिन अब इसको हर मौसम के लिए उपयोगी बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं. धार्मिक पर्यटनों के साथ आमोद-प्रमोद, विहार, साहसिक यात्रा सहित 12 से अधिक विधाओं को यहाँ की पर्यटन गतिविधियों से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है. पर्यटन क्षेत्र में आमदनी को और बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी व निवेश को आमन्त्रित करने का प्रयास होगा, ताकि पर्यटन से जुड़े संगठनात्मक ढाँचे को अधिक प्रभावशाली बनाया जा सके. नए राज्य को आत्मनिर्भर वनाने के लिए पर्यटन उद्योग एक महत्वपूर्ण साधन हो सकता है, यहाँ के पर्यटक स्थलों में विदेशियों को लुभाने के लिए अपार क्षमता है. आवश्यकता इस बात की है कि देशी विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए सरकार आकर्षक पैकेज की शुरूआत करे, हिमाचल प्रदेश की सैर के लिए आने वाले पर्यटकों को उत्तराखण्ड लाने के लिए शिमला से देहरादून-मसूरी परिपथ का विकास करना होगा. यमुना घाटी में नैसर्गिक सौन्दर्य से पर्यटकों को नयनाभिराम कराने के लिए शिमला से देहरादून
तक का रास्ता वहुत मुफीद है. विशेष रूप से हरकीदून घाटी, सांकरी, चकराता, डाक पत्थर का मनोरम नजारा पर्यटकों को आकष्ट कराने में मददगार सिद्ध हो सकता है. उत्तराखण्ड में मसूरी व नैनीताल में पर्यटकों का आना
सर्वाधिक रहता है. इसके लिए आवश्यक है कि धनौल्टी, जॉर्ज एवरेस्ट, कौसानी, चौकोड़ी, ग्वालदम, पिण्डारी, डोडा ताल जैसे पर्यटक स्थलों में पर्यटकों को सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ. कुमाऊँ व गढ़वाल में गर्मी के दिनों में पर्यटकों को आवासीय गृहों में रहने के लिए आरक्षण हेतु काफी प्रतीक्षा करनी पड़ती है. ठहरने के स्थान की कमी के कारण पर्यटकों को निराश होना पड़ता है. महाशेर ऐंगलिंग और पैराग्लाइडिंग की योजनाओं को भी यहाँ पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल माना जा रहा है, लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि इसके लिए सुविधाजनक पैकेज की व्यवस्था की जाए. कुल मिलाकर देखा जाए, तो उत्तराखण्ड में पर्यटन की अपार सम्भावनाएँ हैं. जहाँ-कहीं पर्यटक स्थलों का सम्पर्क मार्ग असुविधाजनक है, उसको सुविधाजनक बनाने की आवश्यकता है. इसके लिए एक पर्यटक नीति की आवश्यकता है. उत्तराखण्ड के प्रथम मुख्यमन्त्री श्री नित्यानन्द स्वामी ने पर्यटक नीति की घोषणा की है, जो पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध होगा.

उत्तराखण्ड की पर्यटन नीति
    उत्तराखण्ड सरकार ने देशी तथा विदेशी पर्यटकों को रिझाने के लिए पर्यटन नीति को मंजूरी दी है. इसके लिए
सरकार ने उच्चस्तरीय पर्यटन विकास परिपद्' बनाने का निर्णय लिया है. यह परिषद् राज्य में पर्यटन के विकास के
लिए सुझाव देने वाली सर्वोच्च संस्था होगी. उत्तराखण्ड पहला राज्य है, जिसमें यह अनोखा प्रयोग किया गया है. परिषद्प र्यटन विकास के अलावा लाइसेंसिंग अ्योरिटी के तौर पर भी कार्य करेगी. उत्तराखण्ड में पर्यटन के विकास के लिए सुदृढ़ ढाँचागत्य वस्या लागू करने की व्यवस्था की जा रही है, इस नीति के अन्तर्गत राज्य के होटलों तथा नई पर्यटन इकाइयों को पाँच वर्ष तक विलासिता कर में छूट दी गई है. इसकी नियमावली भी सरल बनाई गई है.

    राज्य में मनोरंजन पार्क, नए 'रोष वे' लगाने पर संचालन की तारीख से पाँच वर्ष तक मनोरंजन कर में पूरी छूट दी गई है. पर्यटन इकाई लगाने पर दो लाख रुपए का अनुदान दने  की व्यवस्था की गई है, यह अनुदान गैराज, फास्ट [फूड सेंटर, साहसिक पर्यटन के लिए उपकरणों की खरीद और वसों तथा टैक्सियों पर भी देने की व्यवस्या है,
उत्तराखण्ड में स्थित विभिन्न जलाशयों में जल क्रीड़ाओं का विकास और विस्तार किया जाएगा. पूरे राज्य में ट्रेकिंग
मार्ग के सम्बन्ध में मास्टर प्लान तैयार करने की योजना है, ग्रामीण क्षेत्रों में पारम्परिक हस्तशिल्प को प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा. इसके लिए प्रशिक्षण देकर 'शिल्पग्राम' और 'शिल्प बाजार' विकसित करने की योजना बनाई गई है. उत्तराखण्ड में पर्यटन नीति के अन्तर्गत राज्य के चार धामों की यात्रा को और सरल और आरामदायक वनाया जाएगा. पर्यटन विकास के लिए निजी क्षेत्रों को पूँजी निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा. विश्व पर्यटन सम्मेलन के लिए उत्तराखण्ड को परिसर स्टेट के रूप में चिह्नित किया गया है.

पर्यटन

    गगनचुम्बी हिमाच्छादित चोटियाँ, कल कल निनाद करती सदानीरा नदियाँ, निर्झर झरते, मीलों तक फैले हरे
मखमली बुग्याल, स्वप्नलोक जैसी फूलों से लदी घाटियाँ, रंग बिरंगे पंछी, भरा-पूरा और विलक्षण वन्य संसार आसमान को भी उसकी सूरत दिखाने नाली बड़ी-बड़ी नीली झीलें, दुनिया के दिलेरों को ललकारती चोटियाँ और उस पर इस कुदरत रचे बसे भोले-भाले लोग. यह किसी कवि की कल्पना नहीं, बल्कि उत्तराखण्ड की नैसर्गिक छटा की वास्तविक तस्वीर है. जिसे उत्तराखण्ड सरकार विश्व के प्रकृति प्रेमी पर्यटकों को परोसने के लिए महत्वाकांक्षी तैयारियों में जुटी हुई है. उत्तराखण्ड की प्राकृतिकता और धार्मिकता ही यहाँ के पर्यटन की सबसे वड़ी पूँजी है, जिसे सरकार को सहेजना भी है और उसके ब्याज को खर्च भी करना है. इस देवलोक की प्राचीन, मान्यताओं का आदर करते हुए, हर वर्ष आने वाले लाखों तीर्थ यात्रियों के लिए सुख सुविधाएँ भी जुटानी हैं. इस
सरकार ने सत्ता में आते ही उत्तराखण्ड के रूप के खजाने के सही इस्तेमाल की तैयारियाँ भी शुरू कर दीं.

        राज्य के पर्यटन क्षेत्र में मौजूद सम्भावनाओं को साकार करने के उद्देश्य से सरकार द्वारा इस वर्ष अनेक महत्वपूर्ण में आकर कदम उठाए गए. जिनके फलस्वरूप उत्तराखण्ड की पर्यटन जगत् में पहचान वनाने में उल्लेखनीय मदद मिली है. केन्द्र सरकार द्वारा भी राज्य सरकार द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना करते हुए उत्तराखण्ड में विभिन्न परियोजनाओं की स्थापना के लिए सहमति व्यक्त की गयी है.

1      देहरादून में 25 करोड़ की लागत से राष्ट्रीय होटल प्रवन्धन एवं केटरिंग संस्थान की स्थापना का निर्णय.
2.    अल्मोड़ा में उदय शंकर संगीत एवं नृत्य अकादमी की स्थापना (जिसका शिलान्यास महामहिम भारत के
राष्ट्रपति द्वारा किया जा चुका है), पिथीौरागढ़ में पाताल भुवनेश्वर गुफा का विकास जागेश्वर मन्दिर कॉम्पलैक्स
का विकास, फूलों की घाटी क्षेत्र का ईको-पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकास.

3    राज्य सरकार के विशेष प्रयासों के फलस्वरूप लगभग 95 करोड़ रुपए की एक महत्वाकांक्षी परियोजना
नैनीताल जनपद की झीलों के पुनर्जीवीकरण एवं  विकास के लिए केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन, मंत्रालय के
राष्ट्रीय झील संरक्षण निदेशालय द्वारा सैद्धान्तिक रूप में अनुमोदित की जा चुकी है.

4    सर्वे ऑफ इण्डिया परिसर में लगभग 55 एकड़ क्षेत्र में एक 'पार्क ऑफ द ग्रेट आर्क' (Park of the Great
Arc) विकसित करने की स्वीकृति भी प्राप्त की गयी है. इसका शिलान्यास 9 नवम्बर, 2002 को हो चुका है.
पर्यटन विकास की सम्भावनाओं 4: यथार्थ रूप देने के लिए गत वर्ष अनेक महत्वपूर्ण परियोजनाएँ एवं मास्टर
प्लान पारित करने की कार्यवाही सुनिश्चित की गयी.

5     हेमपुर (जनपद ऊधरमसिंह नगर) में विशाल पर्यटन कॉम्पलैक्स, दयारा बुग्याल (जनपद उत्तरकाशी) में एक
वृहत शीत क्रीड़ा कॉम्पलैक्स, मसूरी के निकट पूर्ववर्ती खनिज निगम की वन्द खदान क्षेत्र में रिसोर्ट परियोजना,
तथा उत्तराखण्ड में ट्रेक मार्गों के विकास के लिए परि- योजना रिपोर्ट पर मास्टर प्लान तैयार कराए जा चुके हैं.

6    चार धाम यात्रा से सम्बन्धित अवस्थापना सुविधाओं एवं अन्य व्यवस्थाओं की स्थापना के लिए भी मास्टर प्लान
तैयार कराया जा चुका है. जिसके अन्तर्गत 133 करोड़  रुपए का निवेश प्रस्तावित किया गया है.

7     केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर चयनित पर्यटन सर्किटों के विकास की योजना के अन्तर्गत चार धाम यात्रा
सर्किट को भी सम्मिलित करने की घोषणा की गई है. 

8    यात्रा मार्गों पर लगभग 65 स्थान मार्गीय सुविधाओं के विकास के लिए चिह्नित किए गए हैं. इनके विकास के
लिए सीबीआरआई के सहयोग से योजनाएं बनाई जा रही हैं,

9    श्री बद्रीनाथ -केदारनाथ मन्दिर समिति का पुनर्गठन किया गया तथा एक उच्चस्तरीय चार धाम वोर्ड वर्तमान केन्द्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्री जगमोहन की अध्यक्षता में गठित किए गए जाने का निर्णय लिया गया है.
10  राज्य के अन्य तीर्थ स्थलों, जैसे पूर्णागिरी आदि में आवश्यक अवस्थापना सुविधाओं के विकास की कार्यवाही
भी की जाएगी.

11 केदारनाथ के लिए हवाई सेवा शुरू होने के साथ ही चार धाम यात्रा के इतिहास में एक पन्ना और जुड़ गया है,
12 वैकल्पिक पर्यटन गन्तव्यों के विकास की दिशा में भी सार्थक पहल करते हुए लैन्सडाउन-पौड़ी-खिरसू तया
पिथौरागढ़-मुनस्यारी पर्यटन सर्किटों के विकास के लिए मास्टर प्लान बनाने का कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है,

13      उत्तराखण्ड की भौगोलिक परिस्थितियों के संदर्भ में इको-टूरिज्म क्रियाओं की पर्याप्त सम्भावनाएँ विद्यमान
हैं. इसे ध्यान में रखते हुए अलग से इको टूरिज्म नीति भी तैयार की जा रही है, जिसमें स्थानीय समुदाय की
भूमिका तय की जाएगी. चूनाखाल (नैनीताल) में वन विभाग द्वारा एक इको- टूरिज्म केन्द्र भी पंजीकृत सोसाइटी के रूप में स्थापित करने का निर्णय लिया गया है.

14     उत्तराखण्ड के पर्यटन आकर्षणों को प्रचारित एवं प्रसारित करने के लिए गत वर्ष उल्लेखनीय प्रयास किए
गए हैं. इस हेतु वृहद स्तर पर पर्यटन सूचना एवं प्रचार सामग्री के सृजन के अतिरिक्त राज्य सरकार द्वारा
विभिन्न पर्यटन मेलों आदि में प्रतिभाग किया गया और अनेक पुरस्कार भी प्राप्त किए गए. फरवरी में सूरजकुंड
में आयोजित अखिल भारतीय हस्तशिल्प मेले में राज्य ने पार्टनर स्टेट के रूप में भाग लिया.

15    22 से 24 फरवरी, 2003 के मध्य एक विशाल पर्यटन कान्वलेव का आयोजन मसूरी में किया गया. इसमें देश
विदेश के 400 से अधिक पर्यटन से सम्वन्धित कम्पनियों एवं संगठनों, वित्तीय संस्थानों के प्रतिनिधियों, विशेषज्ञों
आदि द्वारा प्रतिभाग किया गया. इस प्रयोजन में राज्य के पर्यटन आकर्षणों के प्रदर्शन के अतिरिक्त 100 करोड़
रुपए से अधिक के निवेश प्रस्ताव जिसमें लगभग 100 प्रस्ताव स्थानीय उद्यमियों के थे, भी प्रस्तुत किए गए.

16    राज्य में स्थित विभिन्न हैरिटेज स्थलों के चिह्नीकरण की कार्यवाही इन्टेक के माध्यम से प्रारम्भ की जा चुकी है.
इसके साथ-साथ राज्य में पूर्व से चिह्नित पुरातत्व स्थलो के विकास के सम्बन्ध में 1:67 करोड़ रुपए की योजना
बनाकर भारत सरकार को भेजी गयी है.

17    उत्तराखण्ड की पर्यटन नीति के अनुरूप दसवीं पंचवर्षीय योजना हेतु 300 करोड़ का परिव्यय अनुमोदित तथा
पर्यटन को ग्राम स्तर तक पहुँचाने हेतु, पर्यटन ग्राम योजना प्रस्तावित.

18    चारधाम यात्रा मार्ग में हरिद्वार और क्रषिकेश को भी सम्मिलित करते हुए तथा इसके समेकित एवं समन्वित
विकास हेतु भारत सरकार द्वारा धनराशि उपलब्ध कराए जाने पर सैद्धान्तिक सहमति.

19    वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली पर्यटन स्वरोजगार योजना प्रारम्भ, इसमें 1664 आवेदन-पत्र प्राप्त हुए हैं. जिनमें से लगभग 500 लोगों को लाभान्वित किया गया. योजना के अनुसार अधिकतम दो लाख तक की राज्य सहायता प्रस्तावित तथा शेष धनराशि के लिए ऋण की व्यवस्था. 20 उत्तराखण्ड पर्यटन द्वारा प्रदेश में वृहद स्वच्छता एवं
हरियाली अभियान प्रारम्भ.

21    `बद्रीनाथ में बद्रीश वन तथा हरिद्वार में पितृ वन एवं अन्य पर्यटन स्थलों में पर्यटक वनों की स्थापना
प्रस्तावित.

22     दिल्ली में आयोजित अन्तर्रा्ट्रीय ट्रैवल एण्ड टूरिस्ट मार्ट में उत्तराखण्ड को तीन प्रतिस्पर्धाओं में सर्वश्रेष्ठ
पुरस्कार, इस मार्ट में देश के समस्त राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों के साथ-साथ 40 देशों ने भी भाग लिया.

23     बंगलौर, चेन्नई तथा कोलकाता में आयोजित ट्रेवल एण्ड टूरिज्म फेयर (TTF) में उत्तराखण्ड पर्यटन द्वारा पार्टनर स्टेट के रूप में भाग लिया गया. वंगलौर में चार तथा चेन्नई व कोलकाता में उत्तराखण्ड पर्यटन को एक एक
पुरस्कार प्राप्त हुआ.

24    इको-टूरिज्म एवं माउन्टेन वर्ष के उपलक्ष्य में इस वर्ष विशेष कार्याधिकारी, साहसिक पर्यटन, अल्मोड़ा के नेतृत्व में उत्तराखण्ड की प्रसिद्ध कामेट एवं अगिगामिन चोटियों पर पर्वतारोहण का सफल आयोजन किया गया.

पर्यटकों को आकृष्ट करने की उत्तराखण्ड सरकार की योजना
    प्रदेश के चारधामों यमनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ तथा बद्रीनाथ की यात्रा पर आने वाले तीर्थ यात्रियों की सुविधाओं
को दृष्टिगत रखते हुए, यात्रा मार्गों पर यात्रियों को व्यापक स्तर पर समुचित सुविधाएँ उपलब्ध कराए जाने के साथ ही
उनकी यात्रा सुखद एवं आरामदायक बनाने के साथ ही उन्हें हर प्रकार की सुविधा व सुरक्षा उपलब्ध कराए जाने की
व्यवस्था की गई है. अनुमानतः चारधाम यात्रा में प्रतिवर्ष लगभग 12 लाख श्रद्धालूओं का आवागमन होता है, इसी उद्देश्य से चारधाम की यात्रा पर आने वाले तीर्थ यात्रियों/पर्यटकों की सुविधा हेतु चारधाम यात्रा विमिन्न विभागों द्वारा अपने स्तर से व्यापक प्रबन्ध किए जा रहे हैं, यात्रा के सम्बन्ध में यात्रियों/पर्यटकों का अधिक से- अधिक जानकारी/सूचना उपलब्ध कराने के लिए उत्तराखण्ड पर्यटन द्वारा सभी सूचनाओं से युक्त चारधाम पुस्तिका का प्रकाशन गत वर्ष किया गया है, जो यात्रियों के लिए निःसन्देह उपयोगी सिद्ध होगी. जुड़े

    यात्रियों के आवागमन हेतु परिवहन विभाग द्वारा यात्रा मार्ग पर 458 वसे संचालित की जाएँगी. संयुक्त रोटेशन के
घटक परिवहन कम्पनियों के वाहन कोटद्वार, ऋषिकेश एवं देहरादून से ऋषिकेश/हरिद्वार में एकत्रित होंगे और यथा माँग यात्रा मार्गों पर एक निश्चित अवधि निर्धारित करते हुए, तीर्थ यात्रियों को लेकर अपनी यात्रा सम्पन्न करेंगे. इसके अतिरिक्त प्रातः 5.00 वजे से पूर्व तथा सायं 7.00 बजे के वाद यात्रा से जुड़े वाहनों के संचालन पर पावंदी रहेगी. वाहनों की गति सीमा मार्ग के स्वरूप एवं दशा के अनुरूप 15 से 20 अथवा 25 से 30 किमी निर्धारित की गई है. संयुक्त रोटेशन के घटक परिवहन संस्थाओं को वैटरी चलित छोटे कम्प्यूटर प्रदान किए जा रहे हैं, जिससे सभी चैकपोस्टों से गुजरने वाले निजी वाहनों की किराए पर चलने की सम्भावना व अधिकृत रूप से सवारी ढोने तथा उनके बार-वार संचालन की सम्भावनाओं पर निगरानी रखी जा सके. यात्रियों का रजिस्ट्रेशन नगरपालिका ऋषिकेश द्वारा 200 रुपए शुल्क लेकर किया जाएगा. प्रवर्तन अधिकारी, देहरादून, नरेन्द्रनगर, हरिद्वार एवं पौशी को यात्रा के पर्वतीय मार्गों पर एवं सम्बन्धित चैक पोस्टों पर जाकर यात्रा व्यवस्था की समुचित देखभाल करने के निर्देश दिए गए हैं. यात्रा मार्गों पर दुर्घटनाओं की रोकथाम हेतु देश के सभी राज्यों के परिवहन सचियों एवं परिवहन आयुक्तों से उनके राज्य से आने वाले तीर्थ यात्रियों/पर्यटकों को पर्वतीय मार्गों पर वाहन के संचालन वरती जाने वाली सावधानियों के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश जारी करने का अनुरोध किया गया है. साथ ही अन्य राज्यों के ऐसे
वाहनों को जिनका संचालन पर्वतीय मार्गों पर अनुमन्य नहीं है उन्हें यात्रा मार्गों पर चलाने की अनुमति नहीं दी जाएगी. इस सम्बन्ध में प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों, पुलिस एवं परिवहन विभाग के अधिकारियों को भी विशेष सतर्कता वरते जाने हेतु कड़े दिशा निर्देश दिए गए हैं ताकि यात्रा मार्गों पर होने वाली दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके. यात्रा मार्गों पर वाहनों को वाहन के तकनीकि निरीक्षण के उपरान्त ग्रीन कार्ड देने की व्यवस्था देहरादून, ऋषिकेश एवं हरिद्वार में की गई है. जहाँ वाहन का निरीक्षण तकनीकी योग्यता रखने वाले सम्भागीय परिवहन अधिकारी अथवा संभागीय निरीक्षक प्राविधिक द्वारा किया जाएगा. इस सम्बन्ध में प्रकाशित हैड विलों से प्रचार के साथ ही वाहनों को ग्रीन कार्ड/परमिट जारी करते समय वाहन स्वामियों एवं चालकों को यातायात नियमों का पालन करने के विशेष निर्देश दिए जाएँगे. यात्रा मार्गों पर भद्रकाली एवं तपोवन में अस्थायी चैक पोस्टो की स्थापना की गई है. जो प्रातः 6.00 से सायं 7.00 बजे तक खुले रहेंगे तथा उनमें प्रवर्तन सिपाही एवं होमगार्ड के जवान उपस्थित रहेंगे तथा डामटा में यात्री कर अधीक्षक के माध्यम से मोबाइल चैकिंग व्यवस्था की गई है. यात्रियों की सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए पुलिस विभाग द्वारा स्थायी व अस्थायी चौकियों की स्थापना के साथ ही यातायात चैक पोस्टों पर चार निरीक्षक, 154 उपनिरीक्षक, 224 हैंडकांस्टेबल, 2027 कांस्टेबल तथा 1220 होमगाडों के साथ ही पाँच कम्पनी पी. ए. सी. तैनात की गई हैं. यात्रा अवधि के लिए प्रदेश के विभिन्न जनपदों में स्थापित किए गए स्थायी थानों/चौकियों के अतिरिक्त जो अस्थायी चौकियाँ व यातायात चैक पोस्ट खोले गये हैं. उनमें चमोली में क्रमशः 11 व 14, रुद्रप्रयाग में 7 व 5, उत्तरकाशी में 9 व 6, पौड़ी में 11 व 16, टिहरी में 2 व 3 देहरादून में 7 व 11 तथा हरिद्वार में 36 स्थानों पर अस्थायी चौकियाँ स्थापित की गई हैं. इसके अतिरिक्त चारधाम यात्रा से सम्बद्ध सभी जनपदों के महत्वपूर्ण स्थलों पर संचार व्यवस्था केन्द्र स्थापित किए गए हैं. यात्रा मार्गों पर तैनात सभी पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों को यात्रियों के साथ मधुर व्यवहार किए जाने के विशेष निर्देश दिए गए हैं.

    चारधाम की यात्रा पर आने वाले यात्रियों व पर्यटकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने की भी कारगर व्यवस्था की गई है. इस निमित सम्बद्ध जनपदों के यात्रा मारगों पर 14 मेडिकल रिलीफ पोस्ट स्थापित किए गए हैं, 25 स्वास्थ्य केन्द्रों पर एम्बुलेंस की व्यवस्था तथा 63 केन्द्रों पर ऑक्सीजन की सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है. इसके अतिरिक्त 41 सुलभ शौचालय, 135 शौचालय एवं 185 अस्थायी मूत्रालय बनाए जा रहे हैं. यात्रा मार्गों से जुड़े
चिकित्सालयों में पर्याप्त मात्रा में चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य सहायकों की तैनाती की गई है तथा चार धामों में रोगी वाहनों की भी व्यवस्था की गई है तथा पर्याप्त मात्रा में सफाई कर्मियों को तैनात किया गया है.

    उत्तराखण्ड जल संस्थान द्वारा यात्रियों को पेयजल उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है. यात्रा मार्ग से सम्बन्धित जनपदों देहरादून, पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी व उत्तरकाशी में यात्रा मार्ग पर 117 योजनाएँ कार्यरत् हैं, जिसके अन्तर्गत विभिन्न स्थलों पर 369 जल स्तम्भ/ पानी की टंकियाँ स्थापित हैं, जिसमें 334 पूर्ण रूप से कार्यरत् हैं तथा
पोष 35 जो क्षतिग्रस्त हैं उनकी मरम्मत की जा रही है. यात्रा मार्गों पर व्यवधान रहित निरन्तर विजली आपूर्ति
की भी व्यापक व्यवस्था की गई है. इसके अन्तर्गत बद्रीनाथ हेतु विद्युत व्यवस्था जोशीमठ से निकलने वाले 11 के. वी. लामवगड़ पोषक से की जा रही है. केदारनाथ के लिए उखीमठ उपस्थान से 11 के. वी. गौरीकुण्ड से केदारनाथ धाम तक की लाइन द्वारा विद्युत आपूर्ति की जा रही है इसके अतिरिक्त सर्दी में भारी हिमपात के कारण वार-बार लाइन के क्षतिग्रस्त होने की समस्या के निधान हेतु लामबगड़ से बद्रीनाथ तक 11 के. वी. लाइन तथा गौरीकुण्ड से केदारनाथ तक 15 किमी भूमिगत केबिल बिछाने की योजना पर कार्य तत्परता से किया जा रहा है, जिस पर क्रमशः 302 व 224 लाख का व्यय का प्राकलन है.,

    गंगोत्री के लिए वर्तमान में लघु जलविदध्युत परियोजना द्वारा 5 किलोवाट की दो मशीनें चलाकर केवल मन्दिर को ही विद्युत आपूर्ति की जाती है. मन्दिर के लिए आपातकालीन विद्युत व्यवस्था हेतु 7.5 किलोवाट का एक जनरेटिंग डीजल सेट भी उपलब्ध कराया गया है. भटवारी से धराली तक 11 के. वी. लाइन को गंगोत्री तक लगभग 22 किमी लाइन का निर्माण के साथ ही 250 के. वी. एक क्षमता का 11/0-4 के.वी. उपसंस्थान बनाने का प्रस्ताव किया गया है. जिस पर 72 लाख का व्यय अनुमानित है. इसके अतिरिक्त उत्तरांचल (अब उत्तराखण्ड) अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण उरेड़ा द्वारा गंगोत्री के लिए 2X50 किलोवाट विद्युत गृह का निर्माण कार्य प्रगति पर है. वर्तमान में यमनोत्री धाम के लिए विद्युत आपूर्ति की कोई व्यवस्था नहीं है, इस धाम के विद्युतीकरण के लिए नौगांव जानकी पट्टी से यमनोत्री तक 4-4 किमी 11 के. वी.केविल विछाकर तथा एक 250 के.वी.ए. 11/04 के. वी. का उपसंस्थान तथा 0-52 किमी एल. टी. लाइन के निर्माण हेतु बयालीस लाख का प्रांकलन तैयार किया गया है. इसके अतिरिक्त उरेड़ा द्वारा जानकारी चट्टी से यमनोत्री धाम तक 11 के.वी. लाइन एवं एक 25 के.वी.ए. उपस्थान का निर्माण
कराया जा रहा है, यह योजना वन क्षेत्र में होने के कारण भारत सरकार से वन भूमि स्थानान्तरण की स्वीकृति हेतु
अनुरोध किया गया है. इस प्रकार चारधामों में निरन्तर विद्ुत आपूर्ति व्यवस्था सुनिश्चित करने पर रुपए 640-00 लाख व्यय होने का अनुमान है.



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