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उत्तराखंड के प्रशिद्ध बुग्याल कौन कौन से है ? यहाँ पढें |Which are the Famous Bugyals of Uttarakhand

Baidani Bugyal

बुग्याल
गढ़वाल में अधिकांशतः हिमानियों के प्रारम्भ होने से पूर्व स्थित है. अतः 9000 फीट से 15000 फीट तक की धरती हरे भरे मैदानों से भरी होती है. माह तक हरी मखमली घास से भरी इस धरती का सौन्दर्य अत्यन्त रमणीक लगता है. इस रमणिकता को इसमें खिले फूल चार चाँद लगा देते हैं. जगह-जगह स्वच्छ जल के स्रोत और हिमालय की वर्फ चारों ओर अपनी छटा विखेरती है. 
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जून से सितम्बर फूलों की घाटी (3658 मी. 3962 मी.) बद्रीनाथ मार्ग पर एक जगह है. गोविन्द घाट इस जगह
से पैदल चलते हुए 15 किमी घाँधरिया पहुँचा जाता है और घाघरिया से एक रास्ता 4 किमी पर फूलों की घाटी और एक 6 किमी पर हेमकुण्ड साहेब को जाता है. 'फूलों की घाटी' नन्दन कानन की तरह लम्बे फैले बुग्याल और उसमें खिले अनगिनत फूलों के लिए विश्व में पहचानी जाती है. फ्रैंक स्माइथ की पुस्तक 'द वैली आफ लवर्स' में इसकी अद्भुत जानकारी है. इसी के आकर्षण से खिंचकर जून 1939 में मैडम जॉन मारग्रेट यहाँ चली आयी थीं और संदैव के लिए बुग्यालों और फूलों की घाटी में सो गयीं. जब भी कोई प्रकृति का प्रेमी इस धरती पर जाता है. स्वतः ही मारग्रेट के ये शब्द पढ़कर इन बुग्यालों व फूलों की घाटी में खो जाता है. ('आई विल लिफ्ट अप माइन आइज ऑन टू द हिल्स' फ्राम हेंस कमेथ माइ हेल्प (मैडम मारग्रेट लेक 4 जुलाई,1939)
Chopta Bugyal
चोपता बुग्याल
उखीमठ गोपेश्वर मार्ग पर दोगल बिटा से आगे और तुँगनाथ तक छोटे-बड़े अत्यन्त रमणीक वुग्याल है. इन
बुग्यालों की सुन्दरता के कारण इस क्षेत्र को गढ़वाल का स्विट्जरलैण्ड कहा जाता है. 3780 मीटर की ऊँचाई पर स्थित तुँगनाथ मन्दिर के नीचे और 'दोगलविटा' तक ये फैले हैं. मोटर मार्ग से शुरू होकर 300 मीटर के पैदल मार्ग
तक ये देखने को मिलते हैं. रात्रि विश्राम हेतु चोपता में छोटे ढावे और दोगल बिटा में विश्राम गृह हैं.

मासरताल सहस्रताल के बुग्याल
बुढ़ाकेदार से खड़ी चड़ाई पार करके जैसे ही मासरताल पहुँचा जाता है, तो हरे घास के मैदान प्रारम्भ हो जाते हैं. इन बुग्यालों की सुन्दरता तब और बढ़ जाती है जब इनके मध्य छोटे-बड़े अनेक सरोवर देखने को मिलते हैं. बूढ़ाकेदार से लगभग 40 किमी के दायरे में ये बुग्याल हैं. रात्रि विश्राम हेतु यहाँ अपने स्तर से ही व्यवस्था करनी पड़ती है, क्योंकि यहाँ चोपता बुग्याल के समान ढाबे और विश्राम गृह नहीं है.

जौराई के बुग्याल
बेलक होते हुए सहस्रताल के रास्ते में अत्यन्त रमणीक बुग्याल हैं. बेलक से 3 किलोमीटर की दूरी पर जौराई का
बुग्याल है.

कुश कल्याण
जौराई से आगे पहाड़ी को पार कर 3 किमी पर कुश कलण का मन को आकर्षित करने वाला बुग्याल है. बुग्याल लगभग 3141 मीटर की ऊँचाई पर है. उत्तरकाशी, गंगोत्री मार्ग पर 28 किमी पर मल्ला है और मल्ला से लगभग
16 किमी पर यह बुग्याल है. इस बुग्याल में बूढ़ाकेदार से भी पहुँचा जाता है. रात्रि में ठहरने की व्यवस्था स्वयं करनी
पड़ती है.यह कोटालों की हारी कुश कल्याण के आगे 1400 फीट की ऊँचाई पर पाण्डवों की चोटी है. इस चोटी के पश्चात् ढलवा भूमि पर कोटाली की हारी नामक बुग्याल है. इस बुग्याल की अप्सराओं का बुग्याल भी कहते हैं.

बयार्की बुग्याल
कोटाली की हारी से 500 मी चलने पर यह स्पन्जी (गद्दीदार) बुग्याल अत्यन्त विस्तृत क्षेत्र में फैला है, यह बुग्याल कल्याण खोला तक फैला है. कल्याण खोला के आगे भी 14,500 फीट की ऊँचाई पर ब्रह्मकमल से लदे अछरीताल
और लिंगताल के चारों ओर सुन्दर हरे-भरे घास के मैदान हैं. बूढ़ाकेदार से लगभग 34 किमी पर क्यार्की बुग्याल है. रात्रि विश्राम हेतु स्वयं व्यवस्था करनी पड़ती है.

पंबाली काँठा-माटूया बुग्याल
टिहरी जिले में धुत्तु से लगभग 14 किमी दूर पंवाली है. इससे लगा माट्या का बुग्याल अत्यन्त सुन्दर व हिम श्ृंखलाओं बुग्यालों की सुन्दरता तब और बढ़ जाती है जब इनके मध्य छोटे-बड़े अनेक सरोवर देखने को मिलते हैं. बूढ़ाकेदार से लगभग 40 किमी के दायरे में ये बुग्याल हैं. रात्रि विश्राम हेतु यहाँ अपने स्तर से ही व्यवस्था करनी पड़ती है, क्योंकि यहाँ चोपता बुग्याल के समान ढाबे और विश्राम गृह नहीं है.

रूपकुण्ड का बुग्याल
अनेक फूलों के मध्य फेणकमल के फूलों से आच्छादित यह बुग्याल लगभग 5029 मीटर की ऊँचाई पर 67 किमी में
फैला है. यहाँ पहुँचने के लिए धराली जोकि ऋषिकेश मोटर मार्ग से जुड़ा है, से पैदल मार्ग अपनाना पड़ता है. घाट से भी यहाँ पहुँचा जा सकता है. लोहागंज पास से 39 मीटर पर रूपकुण्ड है.

हर की दून का बुग्याल
उत्तरकाशी जिले में स्थित यह बुग्याल गढ़वाल के सुन्दरतम बुग्यालों में से एक है. इस बुग्याल में पुरोला-मोरी-
सांकरी-तालुका, ओसला से होकर पहुँचा जाता है. एक और जमादार हिमानी और दूसरी ओर वडासू गाड तक फैला बुग्याल है. यह कह सकते हैं कि यह दुग्याल वन्दरपूछ पर्वत शृंखलाओं और स्वर्गारोहणी की तलहटी पर यह स्थित है. यह बुग्याल 3566 मीटर सांकरी से लगभग 40 किमी की दूरी पर यह बुग्याल हैं.

सोनगाड-छायागाड़ के बुग्याल
सूखी टापू से नीचे उतरकर नाले पड़ते हैं. आगे भोजपत्र के जंगलों को पार करके बन्दरपूछ के रास्ते पर यह अत्यन्त
सुन्दर फूलों से भरा बुग्याल है. यहाँ पर पहुँचना अत्यन्त विकट है. सूखी तक मोटरमार्ग से जाकर लगभग 22 किमी
की दूरी पैदल चलने पर यह घाटी आती है. रात्रि विश्राम हेतु स्वयं व्यवस्था करनी पड़ती है.

खतलिंग के बुग्याल
ध्रुतु से आगे रीह पहुँचते ही एक छोटा-सा परन्तु रमणीक बुग्याल है. रीह से 6 किमी की दूरी पर देश का
अन्तिम गाँव गंगी है. गंगी से आगे चलने पर भिलंगना के दोनों ओर खरसोली के बुग्याल है. शिलंगना को पार कर
चौकी से आगे बढ़ने पर मसूरताल के चारों ओर अत्यन्त सुन्दर बुग्याल है, जो 2132 मीटर से 4135 मी तक के ऊँचे
क्षेत्र में फैले हैं.

कुँभ कल्याणी बुग्याल
यह बुग्याल समुद्रतल से 3820 मीटर, गंगोत्री से केदारनाथ ट्रैकिंग रूट पर स्थित है. यह उत्तरकाशी जनपद में
स्थित है.

पनवाली बुग्याल
यह बुग्याल समुद्रतल से 2745 मीटर से 3970 मीटर ऊँचाई पर स्थित है.
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दयारा बुग्याल
यह उत्तरकाशी में है और प्रसिद्ध पर्वतारोही कु. चन्द्रप्रभा संतवाल के प्रयासों से पर्यटन मानचित्र पर अपना स्थान बना चुका है. शीतकाल में इस क्षेत्र में स्कींग के प्रशिक्षण शिविर लगाए जाते हैं. उत्तरकाशी से भटवाड़ी होते हुए बस से जाकर 8 किमी पैदल चलकर 3190 मीटर ऊँचे दयारा बुग्याल पहुँचा जा सकता है.

        इनके अतिरिक्त अनेक छोटे-बड़े बुग्याल गढ़वाल क्षेत्र में फैले हैं. जहाँ पर अतीस, पंजा, कुट्टी, विषकंडार, सूरतकमल फेणकमल, ब्रह्मकमल न मालूम कितनी जड़ी-बूटियाँ व वनस्पतियाँ पैदा करती हैं. जब इन पर पुष्प खिलते हैं, तो ऐसा लगता है कि प्रकृति ने अपना श्रृगार किया है. इन बुग्यालों को देखकर लगता है कि प्रकृति में हरे मखमल गद्दे बिछा दिए हों. जगह-जगह स्वच्छ जल के स्रोत और हिमालय की बर्फ चारों ओर अपनी छटा बिखेरते हैं. इन ताल और बुग्यालों में बरसात से पूर्व और बरसात के पश्चात् यानि अप्रैल-मई और सितम्बर-अक्टूबर में जाना अनुकूल रहता है. बरसात से पूर्व हरी मखमली घास दिखाई देती है और बरसात के बाद बुग्यालों में भाँति-भाँति के फूल खिलते हैं. बहुत ही रोमांचक है गढ़वाल के ताल बुग्यालों की सैर. 

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