भरतु की ब्वारी निकाय चुनाव की फुल्ल तैयारी में जुट गई थी ।। अब बारी थी कि टिकट की जोडतोड की , भाजपा वाले उसकी ससुराल की तरफ से खास थे और कॉंग्रेस वाले मायके की तरफ से खासमखास ।।। इसी तिकड़मबाजी में लगी थी कि कैसे पार्टी का टिकट मिल जाय ।।
उसने ये भी सुना था कि पार्टी टिकट पाने के लिए थैली भी भेंट करनी पड़ती है , पर थैली किसको दे ये बड़ी असमंजस स्थिति थी ।।। बरहाल वो टिकट हथियाने के लिए पुनः देहरादून चली गयी थी ।। भरतु की भी उसने इस काम मे रेल बना कर रखी थी ।।।
इसी बीच देहरादून में रिस्तेदारी में शादी भी थी ,जहां बीजेपी व कोंग्रेस के नेता भी पहुंचे हुए थे ।। आजतक नेता लोग विकास सम्बन्धी मीटिंग में पहुंचे न पहुंचे पर नामकरण,शादी,मुंडन व छल पूजाई में जरूर प्रकट हो जाते हैं ।।
आजतक सास ससुर के पाँव छूने के लिए उसने कभी 30 डिग्री का कोण न बनाया था पर वहां उपस्थित नेताओं के पाँव छूकर 30 डिग्री का कोण बनाकर अभिववादन कर रही थी ।।
गाँव व नगर क्षेत्र की कई महिलाएं भी इस शादी में शामिल थी , सबको यूँ पूछ रही थी मानो शादी उसकी ही फेमली में हो ,सबको एकतरफ से पूछती जा रही थी --- खाना खा लिया भुल्ली , या खाना खा लिया दीदी , ।।। सोने के लिए इंतजाम नही है तो आज राजावाला ही चल लो रहने के लिए ।।।
उसके बाद डांस का कार्यक्रम हुआ तो मेरी बामणी बामणी वाले गाने पर बेहद ही फुदकने वाले अंदाज में बड़े नेताओं की मिसेज के साथ अर्बन डांस भी करने लगी ।।। बामणी गाना सुनकर शादी में पूजा कर कर रहे बामण सिम्वाल जी का ध्यान ,मन्त्रों पर कम और बामणी पर ज्यादा था ।।। जिसके चक्कर मे वेदी में आग लगते लगते बची ।। जैसा कि रजनीकांत सिम्वाल जी के टिकुल्या मामा की पंडिताई वाले गाने के दौरान वेदी में आग लग गयी थी , क्योंकि टिकुलिया मामा का ध्यान वेदी पर कम और वेदी के सामने बैठी लड़कियों पर ज्यादा था ।।।
पार्टीयों का टिकट पाना कितना टेढ़ी खीर था ,ये उसे अब पता चल रहा था , उसने ये भी सुना था कि पार्टी टिकट मिलने के बाद पार्टी वाले झंडे डंडे व कुछ पैंसा भी दे देते हैं , और जीत की गरंटी भी बनी रहती है ।।।
भरतु बेचारा भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश में लगा था , भरतु का झुकाव भाजपा की तरफ था , इसलिए वो आरएसएस के पुराने घिसे पिटे नेताओं से रिस्तेदारी व जान पहचान ढूंढने में लगा था , उसे ये पता था कि आरएसएस वाले जिसको चाहेंगे , उसी का टिकट फाइनल होगा ।।। इधर भरतु की ब्वारी अपनी मायके की तरफ से जुड़े पुराने कोंग्रेसियों से टिकट के लिए जन्त जुगाड़ लगा रही थी ।।।
इसी घपरोल में बेचारी इतनी पजर्ड हो गयी थी कि खुद के खाने पीने का होश ही नही था ।। इतने हाथ उसने बचपन से लेकर आजतक अपने देवता के थान में नही जोड़े थे जितने अब नेता बनकर लोगों को जोड़ने पड़ रहे थे ।।।
गाँव की सक्कु देवी की सास से उसकी बनती नही थी ,उसको भी मुस्कराकर 30 डिग्री का कोण बनाकर चरणस्पर्श करना पड़ रहा था ।।। बिना खुशी के भी मुस्कराते रहो !! बिना दुख महसूस किए भी दूसरे के गम में झूठे आंसू बहाते रहो ।।।
अब तो रात को सोते हुए भी वो दोनो हाथ जोड़कर ही सो रही थी ।। और रात भर बरडा बरडी कर रही थी.... वोट दे दियाँ वां ।।।
सोच रही थी ... बहुत टफ काम है भई ये राजनीति ...आम आदमी का बस की बात नी ।।।। ये मा दिन ,दिन नी और रात, रात नी ।।।।
अब देखते हैं भरतु की ब्वारी इस निकाय चुनाव में आगे क्या क्या करती है ??
source:- https://www.facebook.com/bhartukibvaari/
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