भरतु की ब्वारी--पार्ट-13- पढ़े ! भरतु की ब्वारी के किस्से(BHARATU KI BWARI)

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भरतु  की ब्वारी--पार्ट-13- नवल खाली

भरतु की माता जी और पिताजी देहरादून में ,भरतु की ब्वारी के सानिध्य में जीवन काट रहे थे !! ब्वारी द्वारा बनाये गए परांठो से उन्हें दिक्क आ रही थी .. !!! ससुर जी को समाचार चैनल देखने का मन करता था पर भरतु की ब्वारी ज्यादातर लाइफ ओके पर सावधान इंडिया देखती रहती और रिमोट अपने ही कब्जे में रखती थी !!! एक दिन सावधान इंडिया पर एक बहु द्वारा अपने सास ससुर को जहर देकर मारने की घटना दिखाई गई तो दोनों बूढे प्राणो के प्राण सूख गए !!! किचन से जोर जोर से अपनी माँ को फोन करती कि क्या करूँ माँ....??? तबियत तो मेरी खराब ही है ...पर ..दो रोटी तो पाथनी ही है !! 
ससुर जी को गाँव मे आदत थी कि एक चक्कर पूरे गाँव मे जरूर लगाना है ...अब देहरादून में जाते भी कहाँ ?? शाम को मोहल्ले में टहलने निकले ही थे कि एक लड़के ने बाइक से टक्कर लगा दी !!! बेचारे गिर पड़े !! मुहल्ले वाले इकठ्ठे हो गए ...घर पहुंचाया !!! तो भरतु की ब्वारी बड़बड़ाने लगी ....किसने कहा था ?? मुहल्ले में भटकने को ...ये देहरादून है ...गाँव नही है !!! बेचारे ससुर को अस्पताल ले गए !!! अब देहरादून के अस्पतालों से सभी वाकिफ ही हैं !!! एक्सरे से लेकर अल्ट्रासाउंड , और एम.आर.आई. से लेकर सिटी स्केन सब कुछ करवाना पड़ा !!! भरतु का भी फोन आया कि पिताजी को किसी बढ़िया प्राइवेट डॉक्टर को ही दिखाओ....!!! हल्की से पाँव में मोच थी..पर बूढी और कच्ची हड्डियाँ थी तो दर्द गहरा था !!! अस्पताल वालो ने सारी जाँच के बाद...दो चार बीमारियाँ और गिना दी !!! बोले- किडनी में भी सूजन है और सायटिका भी है !! फिर भरतु के पिताजी अस्पताल के परमानेंट ग्राहक बन गए !!! हर महीने दस हज़ार का एक और क्लाइंट अस्पताल का बन गया !!! इधर देहरादून के मच्छरों को भरतु की माँ का ग्रामीण परिवेश वाला  पुराना खून  खूब पसंद आ रहा था ,  पुरानी वाइन की तरह पुराना खून देहरादून के मच्छरों के लिए पसंदीदा ड्रिंक था !!! सास को भी मलेरिया की शिकायत हो गयी !!! भरतु की ब्वारी के लिए मुश्किलें खड़ी हो गयी !!! बच्चो को देखे या बुजुर्गो को ?? भरतु से भी चिढ़कर बाते करनी लगी !!! बेचारा भरतु ...देश को देखे या गृह क्लेश को , बेचारा टेंशन में आ गया !!! अब आस पड़ोस की महिलाएं बुजुर्गो की खबर करने आती थी...तो उनको चाय अलग से बनाओ !! उनके सामने भरतु की ब्वारी ये जरूर कहती थी कि...अरे दीदी...देहरादून का मौसम पचाना ,आसान थोड़े ही है !! अपने गाँव में तो सारी चीजें रामदेव की आयुर्वेदिक  शुद्धता से ज्यादा विशुद्ध हैं , ताज़ी हवा ही वहाँ की दवा है....हमारी बच्चो को पढ़ाने की मजबूरी नही होती तो हम क्यों आते यहाँ ?? हमारी तो बहुत मजबूरी है !!! 
फिर कुछ ही दिनों में सास ससुर को भी अपने गाँव की खुद लगने लगी , गाँव की याद आने लगी !! और भरतु की ब्वारी के मैत (मायके) के देवता ने भी उसकी सुन ली !!! सास ससुर वापस गाँव लौट आये !!! गाँव की चौक में पहुंचते ही ...उनको ऐसा लगने लगा जैसे ...पिंजरे में कैद पंछी...आजाद हो गए हों ...!! बुढया जी कहने लगे...हे.. बुढली...जो भी रूखी सूखी खाएंगे , अपने गाँव की माटी में खाएंगे ...हमारे गाँव जैसा स्वर्ग और कहाँ ?? हमारी कई पीढ़ियां इसी मिट्टी में मिल गयी...ज्यादा हफड़तफड़ करके भी जाना कहाँ ?? जीना यहाँ... मरना यहाँ ...कहते हुए दोनो ने बगल पे धरमु के यहां से छाँस मांगी और कप्लु भात बनाने लगे !!!! जारी- नवल खाली !!!
उधर भरतु की ब्वारी ...अब तितली बनकर उड़ रही थी...भरतु से भी प्यार से बाते कर रही थी ...!!! भरतु की ब्वारी खुश तो ...भरतु भी खुश... !!!!

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source:-  https://www.facebook.com/bhartukibvaari/

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