मेरे हिस्से का पहाड़-मधुली- पार्ट--1


मधुली उत्तराखंड के सुदूर पहाड़ी गाँव में अपने भरे पूरे परिवार के साथ रहती थी । ईश्वर गरीबो की ज्यादा परीक्षा लेता है या गरीब बने ही ईश्वरीय परीक्षाओं के लिए हैं , जिनको वो जीवन मे बारम्बार देते रहते हैं । मधुली जब 10 साल की थी तो एक दिन उसकी माँ जंगल मे घास काटते हुए गिर गयी और हमेशा के लिए मधुली को छोड़कर चली गयी । 10 साल की छोटी सी मधुली को उसकी माँ का शव भी नही दिखाया गया । रात घिर आयी तो मधुली को माँ की याद आने लगी । क्योंकि देर रात को गौशाला से जब माँ घर लौटती तो मधुली के लिए कुछ न कुछ जरूर लाती , कभी चीड़ के फल के बीज, कभी भमोरे ,कभी तिमले , कभी शिल्पाडी की जड़ । पर जब उस रात माँ नही लौटी तो मधुली का बालमन किसी भय से आशंकित हो उठा था। कुछ देर बाद घर मे लोगों का जमावड़ा लग गया था । बगल पड़ोसी , दादी ने मधुली को अपने घर में बुला दिया था ,और कसकर उसे अपनी साँकी पर खींच लिया था । बेचारी , कुछ  समझ ही  नही पा रही थी कि आखिर हुआ क्या है ? उसने दादी से पूछा कि माँ कहाँ है ? क्यों नही आई? इसका जबाब दादी ने रोते हुए सिर्फ इतना ही दिया कि वो अब नही आएगी । रात गहराती चली गयी , और न जाने कब मधुली की आंख लग गयी ।  एक बच्ची के सर से उसकी माँ का साया छिन जाना उसके जीवन मे सबसे बड़ी त्रासदी है ,पिता मर जाए तो माँ उसकी कमी पूरी करने की पूरी क्षमता रखती है । पर माँ के चले जाने से ,एक पिता कभी माँ नही बन सकता । 
मधुली कई दिनों तक माँ को कभी गौशाला तो कभी खेतों में ,क़भी जंगलो में ढूंढती रही पर उसे माँ नही मिली । फिर समय के साथ साथ मधुली बड़ी होती चली गयी । और 15 साल की उम्र में उसकी  शादी एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से हो गयी । शादी के समय मधुली को सिर्फ ये एहसास था कि आज नए कपड़े पहने हैं व कुछ नए व्यंजन बने हैं । शादी के बाद ससुराल आ गयी तो एक खूसट टाइप की अपनी सास की सताई हुई सास मिली । दिनभर मधुली गाय ,भैंस ,घास ,खेती पाती में व्यस्त रहती और देर रात तक चूल्हा चौका बर्तन करने के बाद , अपने कमरे में लेटती तो , दरवाजा खुलने की ध्वनि से ही सिहर उठती । अधेड़ उम्र का पति  कमरे में आता और उसको एक असहनीय दर्द देकर सो जाता । बीड़ी व शराब की गंध से भरे उसके मुँह की बदबू से मधुली की सांसे अटकने लगती । सेक्स उसके लिए जीवन मे एक असहनीय पीड़ा से अधिक कुछ न था । फिर 17 साल की उम्र में ही एकदिन घास का बोझा लाते लाते ही उसने एक नन्ही सी बच्ची को उसने जन्म दे दिया । अकेली खेतों से घास लाते हुए , एक हाथ पर बच्ची और पीठ पर घास का बोझा उठाये हुए , घर आई । सास  ये देखते ही आग बबूला हो गयी , बोली - वहीं गोशाला में ही रुक जाती , अब पूरा घर भी अपवित्र कर दिया ,और बच्ची को उठाकर गौशाला की तरफ चल दी ,मधुली भी उसके पीछे पीछे चल दी । पति से भले ही ज्यादा मोह न हो पर बच्चे से उसका मोह स्वभाविक था । सास ने गौशाला में ही पराल बिछाकर ,उसको बैठा दिया । बेचारी 11 दिनों तक गाय, भैंस ,बकरी के साथ गौशाला में ही रही । सास पूरा खाना देती नही थी तो  रात को कभी कभी गाय का दूध निकालकर कच्चा ही पी जाती । गाय भी भली वाणी की थी (मधुली का कहना मानने वाली) थी , देर रात को दुबारा दूध दे देती  थी , शायद गाय भी मधुली की मजबूरी जानती थी । 
धीरे धीरे मधुली के जीवन मे एक के बाद एक परीक्षाओं की घड़ियां आती रही ---- ।।। 
पढ़िए मेरे हिस्से का पहाड़ की अगली कड़ी ।। जारी-- नवल खाली



source:-  https://www.facebook.com/bhartukibvaari/

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