मधुली को पहाड़ों में सुबह से शाम का पता न चलता । सुबह चार बजे से रात के कब बारह बज जाते और फिर भी उसे लगता कि कुछ काम छूट गया है । मधुली जब जंगलो में घास लेने जाती तो अक्सर घास काटते हुए एक करुण वेदना व खुद (याद) भरी धुन गाती .... गाने के बोल और उसकी धुन खुद कब उसने तैयार की उसे खुद भी पता न था .... ये गाना वो अपनी माँ को याद करते हुए गाती थी .... कख होली मेरी माँजी ?? औंदी त्येरी याद ... लगदी खुद माँजी ....तेरा जाणा का बाद ।।।
बियावान जंगल मे उसके इस गीत को सुनकर ,कुछ देर के लिए वातावरण करुणामयी हो जाता , पशु, पक्षी, अपने स्थानों पर ठहर जाते । गायें घास चरना छोड़कर , दोनो कान खड़े करके उस करुणामयी रस को सुनकर विभोर हो जाती और उनकी आंखों में भी पानी चूने लगता ।
वापसी में घास का सबसे बड़ा भारा ( बोझा) मधुली की ही पीठ पर होता । मधुली , गाँव मे ब्याह कर आई नई नवेली बहुओं, गर्भवती महिलाओं की जंगल मे घास काटने में भी मदद करती और उनको ऊंची डांडियों पर न चढ़ने की सलाह देती ।
मधुली की छोटी सी बेटी 11 दिन की होते ही ,घर के आँगन में दिनभर अंगूठा चूसती रहती क्योंकि मधुली सुबह ही घास लेने जंगल चली जाती । जंगल मे घास काटते हुए कई बार मधुली के शरीर से दूध चू कर उसकी दरांती पर आ गिरता । पर मजबूर मधुली , इस दूध को अपनी बेटी को नही पिला सकती थी । शुरुआत में बेटी एक दो बार तो खूब रोई पर शायद वो नन्ही सी जान समझ गयी थी कि उसको ऐसे ही सामंजस्य बनाना है । मधुली जब देर शाम घर लौटती तो अपनी प्यारी बच्ची को खूब दुलार करती ,जैसे कि मधुली की माँ करती थी । मधुली की माँ भी मधुली को देर तक अपनी छाती से चिपकाती थी , उसको अपना दुलार देती थी।
एक दिन मधुली जंगल से लौटी तो प्यास के मारे उसका बुरा हाल था ,सास भी कहीं गांव में गयी थी । पानी का बंठा ,गागर ,आँगन में ही रखी थी , पर मधुली का दिल खुद गवाही नही दे रहा था कि गागर से पानी निकाल ले । पर प्यास के आगे ...बेबस हो गयी । जैसे ही गागर से पानी निकाल रही थी कि अचानक सास आ गयी ।
बोली-- कुलक्षणी कहीं की , तुझे पता है , तुझे क्या हो रखा है , फिर भी तूने पानी पर हाथ लगा दिया....और सास ने वो पूरी पानी की गागर जमीन पर पटक दी ।
मधुली को पता था कि उसपे आजकल छौं (पीरियड के दोरान महिलाओं से भेदभाव) छौं हो रखी है ,पर प्यास के मारे वो बेबस थी । आजकल उसके भांडे ,बर्तन , सब अलग थे । मधुली , सास के इस व्यवहार की अभ्यस्त हो चुकी थी , तो मधुली ने अपना गुस्सा थामकर ,अपनी बेटी को गोद मे लिया और उसकी आँखों मे देखने लगी । सोच में पड़ गयी ? कि कहीं मेरे हिस्से के इस पहाड़ में मेरी बेटी को भी ऐसे ही दिन तो न देखने पड़ेंगे ?
पढ़िए-- अगली कड़ी-- मेरे हिस्से का पहाड़-- जारी-- नवल खाली ।
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