सब लोग सोच रहे थे कि बहुत दिनों से भरतु की ब्वारी नजर नही आ रही ??? क्या बात हो गयी होगी ?? कहाँ होगी ?? क्या कर रही होगी ?? किस हाल में होगी ??
भरतु की ब्वारी पिछले कुछ दिनों से मायके जा रखी थी ...!!! दादा जी का पार्वण श्राद्ध था ...!!! मायके में घर घर मे जाकर ...अपने देहरादून के खूब किस्से सुनाती ...!!! खासकर जब ये बताती कि बच्चो की एजुकेशन के चक्कर मे देहरादून जाना पड़ा तो गांव की कई गरीब महिलाओं के मन मे अपने बच्चे की अच्छी एजुकेशन के लिए भी व्याकुलता नजर आने लगती !!! भरतु की ब्वारी कहती ....चाहे कुछ भी कहो ...काकी...देहरादून की तो बात ही अलग है ...!!! पर ये जरूर है कि चाहे वहाँ कुछ काम हो न हो ...पर आराम भी नही है !!!! चाहे पैसे भी खूब आते हो ....पर बचता भी कुछ नही है !!!! और फिर मायके की काकी को भरतु की ब्वारी देहरादून की कल्पनाओ में सैर सपाटा कराने लगी ....कहने लगी ...काकी ...जैसे रात को खाना बनाने का मन नही किया तो ..कभी भरपेट मोमो, चाउमिन खा लिए , कभी पिज्जा ,बर्गर चबा लिए ...!!!! घर मे बोर हुए तो ....बाजार हो कर आ गए !!! सिर्फ इतना जरूर है कि....वहाँ थोड़ा चटख फटख दिखानी पड़ती है !!!
काकी के लिए ये कल्पना किसी स्वर्ग से कम न थी !!! काकी का पति ट्रक ड्राइवर था ...!!! अब काकी के मन मे देहरादून बसने की इच्छा प्रगाढ़ होती चली जा रही थी ...!!! खूब हिकम्तदार थी...दो दो ताज़ी ब्ययाई हुई दो तन्दरुस्त भेंसे थी ...खेती बाड़ी अपनी भी थी और देहरादून बस चुके लोगो की भी थी ...!!! खूब कोदा झंगोरा, तोर, गहत, राजमा भी उगाती थी ... अपनी बुलन्द आवाज और अपने दो भोटिया कुत्ते शेरू और मेरु की मदद से खूब बांदर भी भगाती थी .... जंगली जानवरो से बचाव के लिए खेत के चारों तरफ कंडाली उगाती थी और आटे की गोलियों के अंदर लंका बेर ( काजू के जैसे चलमले पर विषैले टाइप) रखती थी ....जिसे खाकर जानवर को उल्टियाँ होने लगती थी ...इस भय से जानवर भी उसके खेतो में जाने से डरते थे !!! एक दिन एक आदमी उस गाँव मे आया ...और काकी से कोदा झंगोरा खरीदकर ले गया ...और अच्छी खासी कीमत दे गया ...उसने काकी को कहा...आपके गाँव मे बांदर और सुवर नही होते क्या ?? मैं जितने भी गांवों में गया ...सबने बताया ...जानवरो की वजह से पहाड़ो में खेती खत्म हो गयी है !!! काकी ने कंडाली और लंका बेर वाली ट्रिक उसको बताई ....!!!! फिर आदमी काकी से बीस हज़ार रुपये की कंडाली भी खरीद कर ले गया !!! वो आदमी काकी का पक्का ग्राहक बन गया और पुरे सालभर में तीन लाख रुपये की दाल, कोदा, झंगोरा, कंडाली, तिमले, ले गया !!!! दो तीन सालों के भीतर ही काकी ने अपने दम पर भरतु की ब्वारी के सानिध्य में राजावाला में ही जमीन खरीद ली !!!! कुछ ही समय बाद मकान भी बना दिया !!!! बच्चे देहरादून शिफ्ट कर दिए ...और खुद गाँव मे ही बनी रही !!! अपने पति के लिए राजावाला मकान पर ही दुकान भी खोल दी ...जहाँ सारी पहाड़ी दालें, कोदा, झंगोरा,फ़रड मिलता है !!!! सीजन पर सुबह की गाड़ी में पके हुए तिमले बेडु,काफल,हिसोल, भी भेज देती है !!! काकी ने अपने देहरादून मकान बनाने के सपने को बिना पति को घुस्याट किये हुए पूरा करके दिखाया !!! और खुद गाँव मे ही रहकर गाँव को आबाद करने की दिशा में खेती का नया तरीका अपनाया !!!!!
भरतु की ब्वारी भी काकी की हिम्मत की दाद देने लगी ....और एक नया प्लान सोचने लगी !!!!!!!!
जारी---नवल खाली
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source:- https://www.facebook.com/bhartukibvaari/
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