भरतु होली की छुट्टी माँगकर घर की दिशा में जाने की तैयारी कर रहा था !!! कांटीन से एक केस शीशियों का भी रख लिया था !!! जानता था , फौजी भाई से सब दराम की आस पर भी रखते ही हैं !!! और ऊपर से होरी का त्यौहार , जिसको कि पहाड़ी रँगमत होकर मनाते हैं !!! सुबह से ही पार्टियों का दौर भी शुरू हो जाता है !!!
ये बात उसको अंदर से रोमांचित भी करती थी !!! अब भरतु होली के लिए बाल बच्चों सहित गाँव पहुंच गया था !!! घर पहुंचते ही सबसे पहले एक पीस अपने पिता को पकड़ा दिया था !!! पिता बुजुर्ग थे पर चार पैग से पहले हिलते नही थे !!! फिर घर में आने जाने वालों का तांता लगा था !!! जोकि भरतु की ब्वारी को बिल्कुल अच्छा नही लगता था ... कहती थी ए जी.. बहुत दानी हो रखे तुम भी !!! क्या जरूरत ?? सबको पिलाने की !!! उसे भी भरतु की बोतलों पर घमंड था !!!
जबकि भरतु को अच्छा लगता कि ...उसकी लाई हुई दराम ..किसी को खुश तो रख रही है !!! अब पीने और न पीने पर तो दुनियावालों के कई तर्क होते हैं ...पर सच तो यही है कि... पीने वाला स्वेच्छा से पीता है !!!
हालांकि पीकर लमलेट होना भी ठीक नही !!! पर जस्ट फ़ॉर इंजॉय वाला फॉर्मूला सबको तार्किक लगता है ?!!!
भरतु की ब्वारी बोत सालों बाद होली का त्योहार अपने ससुराल में मना रही थी !!! रात को अब पहाड़ी गांवो में भी गुजिया की भुजिया बननी शुरू हो गयी है !!! गाँव की बुजुर्ग दादी और उसकी छोटी नातिन और नाती ने गुजिया पहली बार खाई !! उनका मन खूब गुजिया खाने को था पर भरतु की ब्वारी ने पहले ही उनको दो टूक सुना टाइप का दिया था कि.... मसाला कम कम है ...इसलिए गुजिया भी कम ही बनेगी !!! ऐसा सुनते ही ...दादी के नन्हे पोते ने ...दादी के मुँह में रखी गुजिया झपटकर खा ली !!! और दूसरी हाथ मे रखी गुजिया दादी ने खुद ही अपनी पोती के मुँह में डाल दी !!! पर ?? !!!! दादी की नजर अब गुजिया की टोकरी पर ही लगी थी ...!!! दादी ने तुरन्त कहा ... ए ब्वारी ... द्वी चार गुजिया ... एडी अछरी को भी ...ओखली के बगल में रख दे !!! अब जहाँ देवतों का नाम आ गया ...वहाँ तो रखना ही रखना है !!! भरतु की ब्वारी ने भी पत्तल में दो गुजिया रख दी और दादी को रखने के लिए दे दी !!! ओखली घर से थोड़ी दूर थी ... तो दादी ने एक गुजिया खा ली ...और एक रख ली !! क्योंकि वो भी जानती थी कि द्यौ दयबतो से वो भी धोका नही कर सकती !!! तब जाकर दादी ने पहली बार गुजिया का स्वाद चखा !!
सुबह से ही स्वांली पकौड़ी बननी शुरू हो गयी थी ...!!! होली के होल्योर भी आने लगे थे ... भरतु की ब्वारी बड़े इठलाते हुए कहती ... देवर जी सिर्फ टीका ही लगाना ... रंगों से मुझे एलर्जी है !!! पर देवर लोग भी कहाँ मानने वाले थे ... उन्होंने भरतु की ब्वारी पर बुरी तरह रंगो से लपोड दिया था !!! बुरा न मानो होली है !!!
किसी ने भरतु की ब्वारी को गलती से भाँग की पकौड़ियाँ खाने को दी तो कुछ देर बाद भरतु की ब्वारी भी शरम झिझक छोड़कर ... डाँस भी करने लगी !!! अब तो भरतु की ब्वारी ने भी बाल्टी भर ठंडा पानी निकाल कर अपनी ही सास पर उड़ेल दिया ... बेचारी की हालत खराब हो गयी !!! बगल पर ही खड़े ससुर जी ने ताना दिया ... देखो तो .. देहरादून जाकर ब्वॉरी पे पंख लग गए !!! ऐसा सुनते ही भरतु की ब्वारी ने दूसरी बाल्टी ससुर जी पे ही उड़ेल दी !!! और बुरा न मानो होली है... बोलकर.. दिल तो बच्चा है जी ... होली का त्यौहार अच्छा है जी ... गाने पर डांस करने में मगन हो गयी !!!
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