भरतु की ब्वारी , आजकल शादियों में अत्यंत व्यस्त थी !!! सबसे बड़ी टेंशन उसको ये रहती थी कि...क्या पहनूं ?? क्योंकि महिलाओं के फैशन , शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की तरह प्रत्येक पन्द्रह दिनों में परिवर्तित होते रहते हैं !!! इसलिए लेटेस्ट फैशन के लत्ते कपड़े , लिपस्टिक, आई ब्रो, आई लाइनर, लिप लाइनर, मस्कारा, फेस पाउडर, गहने, आदि फैशन के मुताबिक पहनने की फिक्र रहती थी !!!
पुरुषों का तो क्या है ?? वही ...अपनी शादी वाला कोट पेंट निकाला, हल्की फुल्की प्रेस दाबी... और बालों पर तेल पानी लगाकर चलते बने !!! पर महिलाओं के लिए ये एक बड़ा चैलेंज होता है !!!
भरतु की ब्वारी जब जब #देहरादून, #कोटद्वार, #दिल्ली, #चँडीगढ़ की शादियों में शामिल होती तो ...उसका ध्यान ...ज्यादातर समय ...अन्य महिलाओं के फैशन पर ही रहता !!! कि किसने कैसा फैशन किया है !?? किस पे क्या फब रहा है !??
हालाँकि गाँव की शादियों में उसे फैशन के लिए ज्यादा फिक्रमंद होने की जरूरत नही पड़ती !!! क्योंकि गाँव की शादी में वो ग्रामीण महिलाओं से अव्वल ही सजती थी !!! गाँव की महिलाएँ तो हमेशा की तरह वही...चटख लाल या पीले रंग की साड़ी पहनकर , और माँग टिक्का व बुलाक लगाकर आ जाती थी !!! सेंट की खुश्बू की उनको जरूरत ही नही थी ...क्योंकि उनसे नेचुरल...घास, दूध, दही, घी, गोमूत्र, और उनके मेहनतकश पसीने की मिक्स पंचगव्य जैसी पवित्र खुशबू आती थी ...उनकी खुश्बू ऐसी थी ..जिसे फॉग, इवा, टेम्टेशन या ओटागर्ल जैसी इंटरनेशनल इत्र कम्पनिया भी अपनी प्रयोगशाला में कभी नही बना सकती थी !!! अखरोट के पत्तों से साफ किये उनके मोती से दाँतो के आगे नेचुरल रानी कलर उनके ओंठो पर खुद ब खुद लिपस्टिक का नेचुरल कलर गढ़ जाता था !!! और सेमल की छड़ी और रीठा से धोए हुए बालों की चमक ऐसी कि 70 साल तक भी बाल काले रहते थे ...न कि लाला रामदेब की तरह ...हर हफ्ते डाई किये हुए बाल, और अँगुलियों के नाखूनों को रगड़ने से बाल काले करने का दावा !!!
गाँव में तो यदि किसी महिला के चेहरे पर झाइयाँ होती तो तुरंत समझ जाती कि ये एड़ी अछरियों ( बंणद्यो) नामक परियों के प्रकोप के कारण है ....और वास्तव में पूजा देने के उपरांत तुरंत ठीक भी हो जाती !!!
ये बात भरतु की ब्वारी भी अच्छी तरह जानती थी उसने भी पहले पहल ...देहरादून में कई स्कीन स्पेशलिस्ट औऱ डॉ जज तक को दिखाया पर फिर भी असर न हुआ ... पर जब पिछली बार पूजाई दी तो तबसे चेहरा खिल उठा था !!!
गाँव की शादियों की गेडू (बड़ा पीतल का डिकचा) की दाल और बारी ( लोहे की बड़ी कड़ाई) का भात का स्वाद ...भला उन देशी शादियों के सिंथेटिक पनीर के टुकडो में कहाँ था ???
देहरादून , दिल्ली की शादियों में भले ही स्वीट् डिश में काजू ,केसर मिला दो पर गाँव मे बनने वाले महाप्रसाद ,सूजी के आगे वो कमतर था !!! भरतु की ब्वारी को भी गाँव की शादियों में आनन्द तो आता था पर क्या करती ?? अब तो सारी शादियों का वेन्यू देहरादून ही हो चुका था , सारे नाते, रिश्तेदार, सगे ,सम्बन्धी देहरादून ही बस गए थे !!! सो देहरादून की शादियों में देहरादून के हिसाब से फैशन करना भी जरूरी था !!!! हालांकि भरतु ने तो प्लान बनाया था कि चाहे कुछ भी हो भविष्य में अपने बच्चो की शादी गाँव में ही करनी है पर भरतु की ब्वारी ने अभी से इस बात पर भरतु से झगड़ा शुरू कर दिया था कि....शादी तो देहरादून में ही करनी है ...भले ही हम यहाँ कुखशाल केटर कोटद्वार वालों को बुलवाकर पहाड़ी व्यंजन बनवा लेंगे , या गढ़भोज के लक्मण जेठ जी से सम्पर्क कर लेंगे पर शादी देहरादून में ही होकर रहेगी !!! क्योंकि तब तक प्रोपर्टी डीलर रावत जी हमारे गाँव मे बचे खुचे हमारे सारे रिश्तेदारों को यहीं सेटल करवा देंगे !!!!!!
source:- https://www.facebook.com/bhartukibvaari/
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