जब मधुली के पिता ने कहा कि बेटी चाहे कुछ भी हो पर एक बेटी का मायके में रहना ठीक नही । फिर अगले ही दिन बेसहारा मधुली अपने छह बच्चो के साथ ,अपने मायके से विदा हो गयी । पीठ में एक थैला , जिस पर एक छोटा बच्चा भी बंधा था, एक बच्चा गोद में , और अन्य चार बच्चों के साथ बढ़ती चली जा रही थी , जंगल का सुनसान रास्ता था । ससुराल जाना भी बड़ा मुश्किल था क्योंकि कई गाँव वाले जिनकी नजर उसकी जमीन पर भी थी ,उन्होंने मधुली को अपशगुनी बोलकर उसे प्रताड़ित भी किया था , दूसरी तरफ खिलाप सिंह की नजर उसके जिस्म पर थी ।।
असहाय व विधवा मानकर सभी उसका फायदा उठाने को आमादा थे । मधुली बस यूं ही रास्ते पर आगे बढ़ती जा रही थी कि तभी उसके बच्चो को तेज प्यास लगने लगी । उस जंगल से वो वाकिफ थी ,क्योंकि उसकी माँ इसी जंगल मे घास काटते हुए गिरकर मर गयी थी । उसे पता था कि यहाँ पानी का कोई स्रोत नही है । कुछ दूर पर एक भैरवनाथ का खण्डहर सा मंदिर था , जैसे ही वो उसके नजदीक पहुंची तो मंदिर के एक छोर पर पतली सी पानी की धार थी हालांकि आजतक उसने वहाँ कभी कोई पानी का धारा नही देखा था । फिर उसने बच्चो को पानी पिलाया और आगे बढ़ गयी ।। आगे जंगलो के खत्म होते ही धार से उसका ससुराल दिखाई देता था , उसके कदम उसी धार में ठिठक गए । वहीं से कुछ नीचे उतरने पर उनकी पुरानी छानी (जंगल मे स्थित गौशाला) थी ।। उसने न जाने क्या सोचा और वो अपनी छानी में चली गयी ।। वहाँ काफी घास पात उग आई थी , उसने बच्चों को वहीं किनारे बांझ के पेड़ के नीचे बैठा दिया और बिजली के गति से तेज ,उस छानी की सफाई में जुट गई ।। कुछ देर बाद उसने छोटे बच्चों को अपनी 8 साल की बेटी के भरोशे छानी के कमरे में बन्द कर दिया और तेज कदमो से वो अपनी ससुराल की तरफ बढ़ने लगी जोकि वहाँ से दो तीन किमी.दूर था । ससुराल जाकर उसने फटाफट अपने भांडे बर्तन, कुछ बचा हुआ राशन उठाया और अपनी गाय भैंस लेकर छानी की तरफ बढ़ गयी ।।। देर रात छानी में पहुंची तो बच्चो के भूख से बुरे हाल थे ।। उसने रास्ते से तोड़े हुए कुछ तिमले एक डिग्चे में उबाले और बच्चो को खाने के लिए दे दिए । वो रात तो जैसे तैसे कट गई । अगली सुबह से मधुली ने छानी के आस पास की बंजर जमीन खोदनी शुरू कर दी और साग भुजी बोने लगी ।।।
गाँव के लोगों को भी पता चल गया था कि वो अब छानी में रहने लगी है ।। गाँव की सरूली और उसके पति को मधुली की दशा पर बड़ी दया आती थी पर चाहते हुए भी कुछ न कर पाते क्योंकि खिलाफ सिंह उन्ही के परिवार का था ।। एक दिन रात को नशे में खिलाफ सिंह ,मधुली की छानी की तरफ बढ़ रहा था कि अचानक उसे उस चांदनी रात की हल्की रोशनी में कुछ सफेद कपड़े वाले आदमी अपनी ओर आते हुए दिखे , वो अपनी जगह पर स्तब्ध खड़ा हो गया , जैसे जैसे वो नजदीक आ रहे थे ,उनका आकार बढ़ता जा रहा था ।। फिर क्या हुआ उसे कुछ पता न चला ? सुबह गाँव वालों को उसी जगह पर वो बेहोश पड़ा मिला ।। उसने लोगों को सैद दिखने वाली घटना बताई और कुछ दिनों बाद उसे लकवा हो गया , उसने बिस्तर पकड़ लिया।।
अब मधुली का थोड़ा बहुत अपने गाँव मे भी आना जाना शुरू हो गया.। लोग खिलाप सिंग की इस घटना को मधुली के श्राप से भी जोड़कर देखने लगे ।
मधुली वो पहली पहाड़ी महिला थी जिसने अपने खेतों में खुद हल चलाया था । बच्चे धीरे धीरे बड़े हो रहे थे पर अभी किसी को भी स्कूल में न रखा था , स्कूल गाँव से 5 किलोमीटर दूर था , जब मधुली की बड़ी बेटी दस साल की हुई तब वो अपने छोटे भाई बहनों को भी साथ ले जाकर हमेशा दस किलोमीटर का सफर तय कर स्कूल आने जाने लगी । देर शाम को बच्चे घर लौटते और बासी भात खाकर ,अपनी माँ के साथ काम मे उसका हाथ बंटाने लगे । एक दिन मधुली का बेटा बीमार हो गया , घरेलू झाड़ फूंक ने भी जब कोई काम न किया तो मधुली परेशान हो उठी, बेटे का स्वास्थ्य दिन ब दिन गिरता जा रहा था , वो सूखकर हड्डी बन गया था ।। उसे देख कर यही लगता था कि अब वो ज्यादा दिन का मेहमान नही है ।। जिससे मधुली परेशान हो उठी ।।। और एक दिन मधुली आधी रात को जब उठी तो.......
क्रमशः--
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