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भरतु की ब्वारी और 02 अक्टूबर/पढ़े ! भरतु की ब्वारी के किस्से(BHARATU KI BWARI)


भरतु की ब्वारी को उत्तराखण्ड के आंदोलन के दिन याद आते थे , जब वो छोटी कक्षा में पढ़ती थी ।। भरतु की ब्वारी के एक पड़ोसी थे  छुंछुरु चाचा , अव्वल दर्जे के शराबी थे ।। जीवन मे उनका पहला प्यार ही दारू था ।। 
उत्तराखंड आन्दोलन अपने चरम पर था , बच्चे ,बूढ़े और जवान , आज दो अभी दो के नारों से उबाल में थे ।।। 
02 अक्टूबर का दिन था , झुंझुरु शाम को कच्ची पीकर घर लौटा , और घर मे हंगामा खड़ा कर दिया । बीबी से मारपीट करने लगा , बीबी को भी गुस्सा आ गया और उसने भी हाथापाई शुरू कर दी । छुंछुरु ने चौक में रखा पथ्थर उठाया और जोर से बीबी को दे मारा ।। नशे में तो था ही निशाना चूक गया , और पथ्थर उनके घर के नीचे से जा रही पुलिस की जीप के कांच पर जा लगा । पुलिस चोटिल हो गयी । उनको लगा कि आंदोलनकारियो ने हमला कर दिया है । उन्होंने पूरे घर को घेर लिया और छुंछुरु और उसकी ब्वारी को गिरफ्तार करके जेल डाल दिया ।।। इधर उत्तराखंड भी आजाद हुआ और उधर वो दोनों भी ।। फिर लोगों में खुसफुसाहट शुरू हो गयी कि नौकरी मिलने वाली है और एक दिन सचमुच दोनो को सरकारी नौकरी मिल गयी ।। उनकी लॉटरी लग गयी ।।।  उत्तराखंड आंदोलन ने उनको नौकरी का तोहफा दे दिया ।। 
अब ,जब छुंछुरु चार आदमियों के बीच बैठता है तो कहता है -- भाई साब हम जैसे लोग नही होते तो आज ये उत्तराखंड नही मिलता ।। हम लोगो ने कितना बलिदान किया है ये हम ही जानते हैं ।। 
आंदोलन में जो लोग दिल से जुड़े थे वो बेचारे शहीद हो गए ।। जो स्वार्थ भाव से जुड़े थे वो नेता हो गए और छुंछुरु जैसे लोग  आंदिलनकारी हो गए ।। भरतु की ब्वारी ने इस घटना को अपने घर की खिड़की से साफ देखा था ।। जबकि भरतु के ब्वारी के पिता भी रामपुर में बुरी तरह घायल हो गए थे , किसी किसान के घर जाकर उनकी जान बच पाई थी । पर पुलिस रिकॉर्ड में उनका नाम न था ,इसलिए वो छुछुरु की तरह भाग्यशाली नही रहे ।। 
उत्तराखंड उन्ही लोगो के लिए सही साबित हुआ जो या तो नेता बने या छुंछुरु जैसे आंदोलनकारी ।।।



source:-  https://www.facebook.com/bhartukibvaari/

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