सर्दियों का मौसम आते ही पहाडी कस्बों की छतें महिलाओं की गप्पों से गुलजार होने लगती हैं !!! 9 बजे बच्चों को स्कूल विदा करने के बाद किराए के कमरों में रह रही पहाड़ों की महिलाएं घाम तापने अपनी अपनी दरी, बुनाई की सामाग्री, सन्तरे, नमक आदि लेकर छतों पर गप्पे हांकने में व्यस्त हो जाती हैं !!! आप किसी भी विकसित होते कस्बे में इस दृश्य को आसानी से देख सकते हैं !!! कस्बे को विकसित करने में सरकार का योगदान तो शून्य है ...पर जंगली मशरूम की तरह उग आई अंग्रेजी स्कूलों की इसमें बड़ी भूमिका है !!!! हर इन्शान अपने बच्चे को डॉक्टर , इंजीनियर बनाने पर आमादा है !!! कोई भी अपने बच्चे को किसान नही बनाना चाहता !!! बड़ा विरोधाभाष है ...?? भारत कृषि प्रधान देश अब रह पाएगा ...?? ये कह पाना कठिन है !!!
उत्तराखण्ड के दस पहाडी जिलों के विकास की रीढ़ सदियों से ही महिलाएं ही रही हैं ,पर उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद , अचानक बन्दर और सुंवरो का यकायक बढ़ना और कृषि के प्रति उदासीनता एक शोध का विषय बन गया है !!! इस विषय पर जब मैंने स्वयं शोध किया तो पता चला कि लोगों की प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि हुई है और कृषि कार्य के प्रति देखादेखी में विकार उतपन्न हो गया है !!! और अचानक से महिलाएं अपने बच्चो की शिक्षा के प्रति जागरूक हो गयी हैं !!! सस्ते दरों पर सरकार द्वारा दिये जाने वाला गेहूं और चावल भी जिम्मेदार है !!! कुलमिलाकर देखा जाय तो कोई भी गाँव मे रहने को तैयार नही है ...कई लोगों ने गाँव से सात आठ किमी. की दूरी पर स्थित किराए के कमरे लिए हैं और उनका तर्क है बच्चो की शिक्षा ???
अंतिम बिंदु ही सबसे शोधपरक लगा कि शिक्षा को ही सभी लोगों ने गाँव छोड़ने का कारण बताया !!! अब प्रश्न है ?? क्या उन गांवों में स्थित सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर घटिया था ??? इस विषय पर कुछ सरकारी शिक्षकों से बातचीत हुई ...तो उन्होंने बताया कि आज से दो चार साल पूर्व उनके विद्यालयों में 50 तक बच्चे थे पर अब 12 से 15 बच्चे रह गए हैं ...उनमे से अधिकतर बच्चे नेपाली हैं !!! फिर शिक्षकों ने बताया कि वे वर्षो से पहाड़ों में सेवाएं दे रहे हैं , उनके पढाये कई बच्चे नवोदय परीक्षा में निकले, और कई बच्चे आज अच्छी जॉब भी कर रहे हैं !! यदि उनकी पढ़ाई का स्तर खराब होता तो पूर्व में निकले बच्चे आज वहाँ न होते ???
अब शोध का अंतिम बिंदु यह निकला कि .... सबसे अधिक संख्या उन लोगो की है जो देखादेखी और सुविधाओं के लिए गाँव छोड़ चुके हैं !!! आज लगभग सभी गांवों में बिजली, पानी और सड़क है पर वहाँ इंशानो की आवाजाही कम हो गयी है !!!
अब अंत मे निष्कर्ष यह है कि क्यों न सरकार कस्बो में छतो में घाम ताप रही महिलाओं को चाइना की तर्ज पर घर बैठे काम दे ,यदि देश कृषि प्रधान नही रहता तो कम से कम तकनीकी प्रधान तो बने !!! क्योंकि छतों पर चल रही अधिकतर गप्पें एक दूसरे की चुगली से सम्बंधित होती हैं !!! क्योंकि जो लोग गाँव छोड़ चुके हैं , उनका वापस लौटना मुश्किल है !!! इससे भी कोई चिंता की बात नही !!! क्योंकि ज्यादातर लोगों ने गांवो के नजदीक ही मूवमेंट किया है !!! इसलिए अब सरकार को कृषि उदपादकता की जगह तकनीकी उदपादन पर फोकस करते हुए विकास का नया मॉडल तैयार करने की आवश्यकता है !!!
जारी--- नवल खाली
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