ठाकुर सिंह , हवलदार रिटायर आने के बाद अन्य सभी लोगो की तरह देहरादून में ही बस गए थे !!! देहरादून था ही ऐसा जो हर किसी को अपनी तरफ खींच लेता था !!! ठाकुर साब सुबह उठकर मॉर्निंग वॉक पर जाते थे , वो देखते कि बड़ी बड़ी मूंछो वाले , और 55 साठ साल की सुंदर थुलथुली सी मेडमें तंदरुस्त कुत्तो को भी घुमाती थी !!! एक बार ठाकुर साब मॉर्निंग वॉक पर दौड़ रहे थे कि तभी पीछे से दौड़ रही एक थुलथुली गात वाली मेडम के हाथ से कुत्ते की डोर छूट चुकी थी ....और कुत्ता ठाकुर साब के पीछे दौड़ने लगा ...कुछ ही कदमो बाद कुत्ते ने ठाकुर साब की टांग काट ली ...ठाकुर साब बिलबिला उठे....और फौजी गालियाँ बकने लगे !!! जब मेडम ने प्यार से मटकते हुए सॉरी बोला तो ठाकुर साब का गुस्सा शिथिल पड़ गया !!!! कुछ दिनों बाद ठाकुर साब ने भी दस बीस हज़ार का एक सेकेंड हैंड कुत्ता खरीद लिया ....और रौब से सुबह सुबह घुमाने लगे !!!
एक दिन कातिक माह की उस सुबह ने ठाकुर साब की जिंदगी बदल दी !!! कुत्ता घुमा ही रहे थे कि अचानक कुत्ते को कहीं आस पास किसी कुतिया की गंध महसूस हुई और वो तेजी से दौड़ने लगा ...!!! ठाकुर साब की पकड़ से कुत्ता छूट गया .... कुछ ही दूर पर कुत्ता ...अन्य ढेरों शुद्ध देशी कुत्तो के समूह में खड़ा था ...ठाकुर साब जैसे ही उसको जबरन वापस लाने लगे तो कुत्ते ने ठाकुर साब पर ही हमला कर दिया ...ठाकुर साब को कुत्ते ने वहाँ से भगा दिया !!!!
वापस घर आये तो बहुत अफसोस हुआ .... कुत्ते की वफादारी के सारे किस्से झूठ साबित हो चुके थे !!!! ठाकुर साब ने मॉर्निंग वॉक ही छोड़ दी और सुबह उठकर ...अपने घर की छत पर गमलो में मिट्टी ,खाद भरने लगे ..और कुछ ही समय बाद गमलो में टमाटर, लहसून, अदरक, भिंडी, आलू, प्याज उगाने लगे !!!! ठाकुर साब ने साल भर में हिसाब लगाया तो दो लाख की सब्जी उगा चुके थे ....ठाकुर साब का इस काम मे रूझान बढ़ता जा रहा था ....!!! एक दिन ठाकुर साब अपने पहाड़ी गाँव आये ....गाँव आये तो सबसे पहले उन्होंने अपनी खेती का संटवारा कर ...अपने दस बारह खेत एक साथ कर लिए ....और खेतों में मजदूर लगाकर , सेब के पौधे रोप दिए... !!! एक आदमी को इनकी जिम्मेदारी देकर तनखा भी देने लगे ...!!! समय समय पर आकर देखभाल करने लगे ....तीन सालों के भीतर ही ...सेब के 100 पेड़ फल देने लगे !!! 100 पेड़ो के लिए नेट (जाल) भी ले लिए और पेड़ो को ढक लिया ...अब पक्षियों और बन्दरों का कोई खतरा नही था ...100 पेड़ों से लाखों के सेब उगाने लगे !!! देहरादून अपनी मकान की छत पर सब्जियां भी खूब अच्छी हो रही थी !!! ठाकुर साब ने देहरादून और पहाड़ के बीच रहकर एक नई इबारत लिखी थी !!!
ठाकुर साब ने कुत्ता संस्कृति छोड़कर ...एक पहाड़ी हिकम्तदार फौजी होने का उदाहरण दिया और वीरान पहाड़ों में एक उम्मीद जगाई !!! ठाकुर साब को अच्छी तरह याद था कि उस जमाने मे दूध के पव्वे बेचकर उनकी माँ ने उनको पढाया लिखाया है ...और आज वो इस काबिल बने कि अपनी मातृ भूमि के लिए कुछ नया करके वो दूध के पव्वे का कर्ज अदा कर रहे हैं !!!
जारी---नवल खाली
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source:- https://www.facebook.com/bhartukibvaari/
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