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भरतु की ब्वारी और श्राद्ध /पढ़े ! भरतु की ब्वारी के किस्से(BHARATU KI BWARI)


भरतु की ब्वारी के ससुर जी का श्राद्ध था ।। भरतु भी तर्पण देने गाँव पहुंच गया था । पण्डित जी भी सुबह ही आकर श्राद्ध की तैयारी में जुट गए थे , भरतु की ब्वारी उनकी आत्मा की शांति के लिए व्यंजन बनाने में लगे थी ।।। भरतु की ब्वारी ने अपने ससुर के जीते जी , इतनी तल्लीनता से कभी उनके लिए कुछ न बनाया था ,जितना अब बना रही थी ।
 पण्डित जी से पूछने लगी -- पण्डित जी मैगी भी बना सकते हैं बल?? क्योंकि जीवन के अंतिम दिनों में वो ज्यादातर मैगी ही खाते थे ।।  क्योंकि भरतु की ब्वारी ,शादी के कुछ ही दिनों बाद गाँव छोड़ चुकी थी । बुजुर्ग सास ससुर के जब तक हाथ पाँव चलते थे ,तब तक थोड़ा बहुत खाना बना लेते थे , पर धीरे धीरे , उनका शरीर जवाब देने लगा था ,इसलिए दोनों बुढ बुढया ज्यादातर मैगी में ही जीवन काट रहे थे । जिस दिन ससुर जी की मौत हुई थी , उनके मुंह से मैगी के  दो चार पीस बाहर लटके हुए थे । 

सदियों पहले गांवो में एक रिवाज था , जिस परिवार मे सबसे अधिक उम्र का बुजुर्ग होता था ,उस परिवार को गाँव का पधान ( राजा टाइप) घोषित करते थे ।। और उस परिवार की गाँव मे खूब चराचरी होती थी ,उनसे पूछकर ही गाँव के फैसले होते थे ।। जिस वजह से हर परिवार में अपने बुजुर्गों को ज्यादा साल जिंदा रखने की होड़ होती थी । जीवन मे खुशी से बड़ी कोई खुराक नही होती  ।। जब परिवार के बुजुर्गो की देखभाल में उनके बेटे ,बहुएँ, नाती पोते सब लगे रहते तो बुजुर्गो को बड़ी खुशी होती और वो ज्यादा साल तक जिंदा रहते ।। 
भरतु की ब्वारी ने अपने ससुर के श्राद्ध के लिए मैगी भी तैयार करके अन्य व्यंजनों के साथ घर के आंगन में कव्वों के लिए रख दी थी ।।
उसी दिन उनके पड़ोस में धरमु के पिता का भी श्राद्ध था । धरमु जैसे लोगों की वजह से ही अब गाँव की रौनक भी थी क्योंकि धरमु बेरोजगार था । आज जो गाँव थोड़ा बहुत पलायन की मार से बचे हुए हैं वो बेरोजगारों की वजह से बचे हैं । हालांकि गाँव मे धरमु को कभी कोई खाने पीने की कमी नही हुई क्योंकि मनरेगा के उसके भाइयों के जॉब कार्ड भी उसी के पास थे , और भाई लोग देहरादून दिल्ली में नौकरी करते थे ।
 धरमु ने गाँव मे पिता के साथ रहते हुए उनकी बडी सेवा की थी । उनकी मौत भी बड़े ही सरल तरीके से 90 साल की उम्र में खडाखडी ही हुई ।। सबने यही बोला कि-- भग्यान हो गए बेचारे ।। 
अब श्राद्ध के दिन एक्का दुक्का बचे हुए कव्वे भी धरमु की चौक के सामने सन्तरे के पेड़ में ही बैठे थे ,उन्होंने धरमु के घर मे श्राद्ध के सारे व्यंजन चखे ।। 
भरतु की ब्वारी अपनी चौक से दिनभर कव्वों को बुलाने के लिए -- आले आ आ ...आले आ आ...चिल्लाती रही पर कव्वों ने उसकी तरफ देखा तक नही ।। भरतु की ब्वारी पे गुस्सा आया और उसने जोर से ढुंगे से कव्वों पे मारा , कव्वे तो उड़ गए पर वो पथ्थर सीधे गाँव के हिम्मत सिंह बौड़ा की खोपड़ी पर जा लगा ।। फिर गाँव मे बड़ा बबाल हुआ ।।
उनके घर के श्राद के सारे व्यंजन भी लास्ट में बांदरो ने ही खाया ।।



source:-  https://www.facebook.com/bhartukibvaari/

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