भरतु की ब्वारी जब गाँव मे रहती थी तब इस पर्व को गाँव मे बड़े उत्साह से मनाते थे !!! उस दौर में गाँवो में सुविधाएं कम थी पर आपसी मेल जोल बहुत गाढ़ा था !!! गाँव के मुल्ली खोला ( नीचे के तौक) से लेकर मल्ली व पल्ली खोला (ऊपर व अगल बगल के तोक) तक के परिवार अपने अपने घरों में बनी स्वांली (पूड़ी) , पकौडी व गुल्थया ( आटे का घी में लथपथ हलवा) बनाकर पूरे गाँव मे बांटते थे !!! जिनका गाँव मे अबाजा( परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद त्यौहार न मनाने की परंपरा) होता था उनके लिए अन्य लोग ज्यादा मात्रा में पैणा ( पकवान) देते थे !!!
अब समय के साथ हर त्यौहार की दो दो तिथियाँ आ रही हैं ,किसी की जन्माष्टमी आज तो किसी की कल ?? भरतु की ब्वारी को लगता था कि ये पंडित जी लोग करवा रहे हैं ...कुछ जजमानों के घर पहले दिन पूजा और कुछ के घर दूसरे दिन ?? मतलब कि फुल्ल चखलपखल !!!!
अब भरतु की ब्वारी देहरादून के राजावाला में नए स्टाइल में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (बर्त) का त्यौहार मना रही है !!! स्वांली पकौडी से तो अब अधिकतर लोगों के पेट में गैस बन रही है ,इसलिए लोग सिर्फ देवता के लिए ही बना रहे हैं !!! इसलिए इस त्यौहार पर भरतु की ब्वारी ने मोमो,चोमिन और थूप्पा बनाने का प्रोग्राम बनाया !!! रामदेव के पुराने गाय के घी में चोमिन में जख़्या का तड़का लगाकर ,उसने लाजवाब चोमिन बनाई !!!!
चोमिन आज सिर्फ बच्चों या टीनएजर्स का ही पसंदीदा फ़ूड नही है बल्कि पहाड़ों से देहरादून गए बुजुर्ग दादियों को इसका स्वाद खूब भा रहा है , बुजुर्ग लोगो का कहना है कि दांत कम होने की वजह से इसको चबाने में ज्यादा मेहनत नही करनी पड़ती !!!
बच्चों को श्रीकृष्ण व राधा बनाने का एक और नया काम भी इस बर्त के त्योहार में तेजी से जुड़ गया है !!! भरतु की ब्वारी भी अपने बच्चों को श्रीकृष्ण बनाने में सुबह से ही जुटी थी !!! और भरतु को वीडियो चेटिंग के जरिये दिखा रही थी ...बॉर्डर पर तैनात राइफल थामे भरतु को ये देखकर घर की बड़ी याद आ रही थी !!!!
शहरों में धीरे धीरे हर त्यौहार मनाना बड़ा खर्चीला साबित हो रहा था ...भरतु की ब्वारी की पड़ोसन गुसाँई जी की मिसेज बता रही थी कि बच्चों की श्रीकृष्ण की ड्रेस ,बांसुरी , माला सब लगाकर दो बच्चों पर चार हजार का खर्चा आ गया है !!!
भरतु की ब्वारी ने तेज दिमाग दौड़ाया और घर मे पिछली बार पूजा में आये हुए सिम्वाल जी की जो पीली धोती छूटी हुई थी ...उसको फाड़ कर उसके दो कतत्तर (टुकड़े) कर दिए और उसको सिल कर उसके किनारों पर दीपावली की बची हुई माला को सुंदर तरीके से लगाकर शानदार ड्रेस बना ली !!!
बोली--- भई आजकल इस देहरादून में तो जुगाड़ करना ही पड़ता है , इन देशियों की सिखासौर करते रहेंगे तो छोले बिक जाएंगे !!! हम तो पहाड़ी लोग हैं जुगाड़ करना जानते हैं !!!
अब शाम को मोहल्ले में मटकी फोड़ कार्यक्रम भी था !!! जब मटकी फूटी तो इतफाक से मटकी के सबसे नीचे का हिस्सा भरतु की ब्वारी के हाथ लग गया !!! उसमें 1001 रुपये का नोट और खूब सारा मख्खन था !!!
भरतु की ब्वारी को श्रीकृष्ण ने छप्पर फाड़ कर प्रसाद दे दिया था !!! उसी मख्खन को रात को चोमिन में डालकर , वो रोटी खाने की योजना बना रही थी !!!!
source:- https://www.facebook.com/bhartukibvaari/
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