बड़े दिनों बाद आज महिला दिवस पर भरतु की ब्वारी को एक खत मिला !!!! खोल के पढा तो पता चला कि ...खत... गाँव से भरतु की ब्वारी की सास ने भेजा था ..!!! राइटिंग से लग रहा था कि...ससुर जी ने लिखा था !!! सास ने बोला --- ससुर जी ने लिखा ---
आप भी पढ़िए क्या लिखा पत्र में भरतु की ब्वारी की सास ने ---???
हे !! भरतु की ब्वारी-- चिरंजीव म्येरी लाटी -----
हे भरतु की ब्वारी तुझ से बड़ी आशा थी रे इन पहाड़ो को !!! पर तू भी पलायन कर गयी !!! तू रीड थी रे इन पहाड़ों की ...त्येरी वजह से ही आबाद थे ये पहाड़ी गाँव !!! त्येरी वजह से , आबाद थे खेत खलियान, तेरी वजह से रौनक थी गाँव मे ....!!! तेरी वजह से ही गौमाता भी सुरक्षित थी ...अब वो भी बाजारों में पॉलीथिन खाकर गुजारा कर रही हैं .. ... पर तू तो अब कुत्ते वाली हो गयी है बल... कुत्ता पालक बन गयी है बल !!!
हमारे जमाने की भरतु की ब्वारियों ने इन पहाड़ों की बहुत सेवा की है !! प्राइमरी में ही अ, आ पढ़कर और चार चार किमी. पैदल चलकर हमारे बच्चों ने अपना भविष्य बनाया ... !!! हमने घी दूध बेचकर ही बच्चो को काबिल बनाया ... पर तूने उनको आज इतना नाकाबिल बना दिया कि ....वो गाँव आने को भी तैयार नही होते !!! वो शहरों की आवोहवा में ऐसे खो गए कि ... गाँव को ही भूल गए !!! अब जबतक हम बुड्ढे लोग गाँव मे हैं तभी तक तुम्हारे इन मकानों में रोशनी है ... हमारे बाद तो ...ये हमेशा के लिए खत्म होने जा रहे हैं !!!
हमारे जमाने की ब्वारियो में बहुत प्यार प्रेम था . ...गांवों में भी सभी लोग एक दूसरे के सुख दुख में साथ रहते थे....पर तुम लोग अपने 10 बाई 12 के किराए के कमरों और 200 गज के मकानों में अपने ही सुख दुःखो में रमें हो ..!!!
हमारे जमाने में हमने खूब कोदा झंगोरा , घी-दूध खाया, खूब काम धन्दा भी किया, तो आज सत्तर अस्सी की उमर तक भी आ गए !!! पर तुम शहरों में चोमिन ,मोमो, और रामदेब की पुरानी गाय के घी से प्रर्या ( छाँस मथने का काठ का बर्तन) जैसे हो रखे !!!! कभी कमर पीड़ा, कभी सरदर्द , कभी बायु, कभी अल्पायु का शिकार हो रहे !!!
पर कुछ न कुछ तो मजबूरी जरूर होगी ...भरतु की ब्वारी तेरी ...जो तुने गाँव छोड़ा होगा ...!!! वर्ना कोई यूँ ही अपने गाँवो से बेवफा नही होता !!!!
source:- https://www.facebook.com/bhartukibvaari/
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