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जात-पात और भात/पढ़े ! भरतु की ब्वारी के किस्से(BHARATU KI BWARI)


उत्तराखंड के पहाड़ों में भात का इतिहास सदियों पुराना है !!! भात को पहाड़ों में परिवारों के अस्तित्व से जोड़कर देखा जाता रहा है !!! भात का सीधा अर्थ जात-पात से लगाया जाता है !!! यदि जातियों की भी बात करें तो ब्राह्मण समुदाय भी दो मुख्य भागों में बंटा है, बड़े बामण , छोटे बामण   !!! इसी प्रकार राजपूत समुदाय भी दो भागों में बंटा है - बड़े ठाकुर और छोटे ठाकुर !!! अब यदि हरिजन समाज की बात करें तो हरिजन भी लौहार, चमार, ओजी समुदाय में बंटा नजर आता है !!!  इन सभी के बीच में भात की परात इन सबको एक दूसरे से अलग करती है !!! 
यदि इतिहास पर नजर डालें तो वेदों और उपनिषदों की मूल बात अगली पीढ़ी तक पहुंचते पहुंचते इसको समाज के कुछ पोंगा पंडितों ने अपभ्रंश कर दिया !!! जैसा कि सभी को जानकारी होगी कि समाज मे वर्ण व्यवस्था उसके कार्यों के आधार पर थी , परन्तु यदि आज किसी ब्राह्मण की जूतों की दुकान है तो वो चमार नही कहलायेगा !!! 
समाज के कुछ ठेकेदारों ने हिन्दुओ की एक ही जातियों के भीतर विभेद पैदा करके ,उनका आपसी समन्वय कम कर दिया !!!  जिसका फायदा शुरुवात में मुगलो ने उठाया , फिर अंग्रेजो ने ...और अब राजनीति के ठेकेदार इसका फायदा उठाते हैं !! 
हालाँकि समाज मे अब धीरे धीरे एक ऐसा वर्ग भी तैयार हो रहा है जो जात-पात और भात से  आगे बढ़कर प्यार ,मोहब्त और जज्बात के साथ एक नए समाज को जन्म दे रहा है !!! जाति की बेड़ियाँ टूट रही हैं !!! सरकार को सभी को आरक्षण देकर या आरक्षण मुक्त करके  इस नए समाज का स्वागत करना चाहिय !!!!!



source:-  https://www.facebook.com/bhartukibvaari/

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