छह पहाड़ी जिलों के 30 विकासखंडों में ज्यादा पलायन होने की बात सामने आई है
उत्तराखंड पलायन आयोग ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। प्रदेश भर में करीब 7000 ग्राम पंचायतों में सर्वे के आधार पर तैयार 84 पन्नों की इस रिपोर्ट में छह पहाड़ी जिलों के 30 विकासखंडों में ज्यादा पलायन होने की बात सामने आई है। रिपोर्ट के हिसाब से पहाड़ अब नेपाल बनने वाला है। यहां से पहाड़ी पलायन कर रहे हैं, जबकि नेपाली बस रहे हैं।
इस खबर पर -- अपनी एक कहानी की यादें ताजा हो गयी !!! जो एक साल पूर्व लिखी थी-----
नेपालवाला----- जारी-- Naval khali----
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सुबह सुबह अखबार में एक एड देखकर धीरू ध्यान से पढ़ने लगा --- कीजिये अपनी गाँवो की खेती को आबाद !!!
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एड पढ़कर धीरू ने तुरंत उस नम्बर पर कॉल किया तो उस व्यक्ति ने बताया कि वो कन्सलटेंसी फीस दस हज़ार लेगा और एक नेपाली परिवार उपलब्ध करवा देगा !!!! , धीरू ने तुरंत ही हामी भर ली और फिर अपने गाँव की खेती के लिए एक नेपाली परिवार बुक कर लिया !! धीरू बहुत दिनों से इसी बारे में सोच रहा था !!! धीरू के बच्चे अभी गाँव मे ही रहते थे , बच्चे अभी तीसरी ,दूसरी क्लास में पढ़ते थे , और ब्वारी ने भी बहुत दिनों से घूस्याट निकाल रखा था कि कम से कम बच्चो के भविष्य के बारे में तो सोचो !!! धीरू दिल्ली में एक एम.एन. सी.कम्पनी में काम करता था !!! वो बच्चो को अभी तक इसीलिए अपने साथ सीफ्ट नही कर पाया था क्योंकि सोचता था कि फिर गाँव की खेती बाड़ी का क्या होगा ?? खेत बंजर भी अच्छे नही लगते और मकान पर ताला लटकाना भी अच्छा नही !!! उसने बहुत सोचा ....और अपने परिवार को दिल्ली शिफ्ट कर दिया और नेपाली परिवार को गाँव मे !!! धीरू की देखादेखी में गाँव के अन्य सक्षम लोगो ने भी, अपने खेत और मकान नेपालियों के सपुर्द कर दिए और बच्चो के भविष्य के लिए अन्य जगह सेटल हो गए !!! करीब तीस साल बाद ...उस गाँव मे ,दो चार गरीब परिवारों को छोड़कर बाकी सारे नेपाली परिवार और उनकी पीढियां रहने लगी !!! नेपाली परिवारों के कई लड़को ने गाँव के ही गरीब परिवारों की लड़कियों से ही शादी कर ली...और कई घरजवाई हो गए !!!नेपाली परिवारों की आर्थिक स्थिति उस गाँव मे आने के बाद बहुत ही सुद्रढ़ हो गयी ....उन्होंने अपनी मेहनत से सब्जी उद्पादन से लेके डेयरी फार्म और मुर्गी फोरम तक वहाँ खोल दिये !!! पूर्व में कई स्थानीय लोगो ने ये बोलकर गाँव छोड़ दिया था कि ...गाँव मे बन्दर और सुंवरो की वजह से कुछ नही हो पा रहा है ऐसे में गांव में रहकर क्या फायदा ???
नेपाली परिवारों ने उसी गांव के एक गरीब लड़के को बन्दर भगाने की ड्यूटी में लगा दिया और सभी मिलकर उसको आठ दस हज़ार देने लगे !!! सुंवरो की उन्होंने खूब शिकार खाई....और सभी तंदरुस्ती के साथ मेहनत करते रहे !!! इस बीच धीरू को भी कभी गाँव आने का समय नही मिला और बुढापा भी दिल्ली में ही कट गया , और वहीं मृत्यु हो गयी !!! धीरू का एक लड़का बंगलोर और दूसरा कनाडा शिफ्ट हो गया !!!
इधर नेपाली परिवारों ने भी उसी गाँव की जाति अपना ली और स्थानीय लोगो मे ही शादिया हो गयी और भारतीय नागरिकता भी प्राप्त कर ली !!! उस गाँव के स्थानीय देवत्ताओ को भी पूजने लगे , पहाड़ी रीति रिवाजों में ढल गए !!! उन्ही परिवारों में से कुछ ने अपने बच्चो को संस्कृत स्कूलों में डालकर ,ब्राह्मण और कथावाचक बना लिया !!! क्योंकि उस समय तक कर्मकांडी पंडितो की बहुत कमी हो चुकी थी , क्योंकि कर्मकांडी ब्राह्मणों के बच्चो ने पंडिताई की बजाय बी.टेक.और अन्य डिग्रियां लेकर खुद को बाहर ही शिफ्ट कर दिया था , इसलिए नेपाली परिवारों ने इस परंपरा को बचाने के लिए अपने बच्चो को ही इस कार्य की शिक्षा दी !!!
अब पूरे गांव में सम्प्पन नेपाली परिवारों की बहुमंजिला इमारते थी ...जिनके आगे महंगी गाड़ियाँ खड़ी थी !!!!!देहरादून के सभी वाला ...फुल्ल हो चुके थे....विकासनगर से लेकर हरिद्वार...दिल्ली हाई वे तक एक ही महानगर बन चुका था !!! पहाड़ों में ऑल वेदर रोड चकाचक बनी हुई थी...और हर घण्टे ट्रेन भी सरपट दौड़ रही थी !!! नेपालियों की सारी नगदी फसलें, सब्जियां, दूध ,कुछ ही घण्टो में देहरा मंडी में पहुंच जाता था ,और पहाड़ो का ये गाँव नेपालवाला प्रगति के पथ पर था !!!!
साभार---नवल खाली
source:- https://www.facebook.com/bhartukibvaari/
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