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लोकगीत


(1) लोकगीत
लोकगीत के अन्तर्गत ऐसे गीत आते हैं, जो परम्परा- नुसार समय-समय पर परिवर्तित होते रहते हैं. इन गीतों में
 लोक संस्कृति के विभिन्न रूप दृष्टिगोचर होते हैं यह गीत यघपि पंक्ति विशेष की रचना हो सकते हैं, परन्तु इनमें
समस्त लोक का ही व्यक्तित्व उभर कर आता है और यह  गीत सम्पूर्ण जनसमूह के गीत बन जाते हैं. कुमायेँ में चार
प्रकार के लोकगीत प्राप्त होते हैं-
1. मुक्तकगीत
2. ऋरतुगीत
3.कृषिगीत
4. संस्कारगीत
(1) मुक्तकगीत
    मुक्तक गीतों की रचना किसी भी स्थान में किसी भी  समय में और किसी भी विषय में हो सकती है. इनमें कुछ
गीत प्राचीनकाल से चले आ रहे हैं और कुछ समसामयिक विषयों पर रचे जा रहे हैं, अपनी भिन्न-भिन्न विशेषताओं के कारण इन्हें तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
(क) नृत्य प्रधान 
(ख) अनुभूति प्रधान
 (ग) तर्क प्रधान

(क) नृत्य प्रधानगीत
    नृत्य प्रधानगीत मुख्यतः मेलों और पर्वों के अवसर पर गाए जाते हैं. इनमें झोड़ा, चाँचरी, धपेली गीत सर्वाधिक
प्रचलित नृत्यगीत हैं. उस गीत में चार से अधिक स्त्री पुरुष एकत्र होकर एक-दूसरे के कंधे पर हाथ रखकर गोलाई में नृत्य करते हैं. घेरे के बीच में मुख्य गायक छुड़का या अन्य कोई वाद्ययंत्र लेकर गीत प्रारम्भ करता है और गोलाई में पूमते हुए अन्य लोग उसे दोहराते हुए यड्दम गति में पैरों को चलाते हैं,

(ख) अनुभूति प्रधानगीत
    इन गीतों में प्रेम की प्रमुखता रहती है. भगनौल और न्यौली इस प्रकार के प्रमुख गीत हैं. सुन्दर स्त्री की मन में
कल्पना करते हुए उसके मधुर एहसास की तीव्रता में एकांत प्रेमी द्वारा गाए जाने वाला गीत भगनौल कहलाता है.
अनुभूति प्रधानगीत का दूसरा लोकगीत है न्यीौली. इस गीत का नाम न्यौली पक्षी के नाम पर पड़ा है, इस प्रेमगीत में
प्रेयसी प्रिय को अपना आलम्बन मानती है.
 उदाहरणार्थ- 
काटना काटना पौड़ आयो चौमास क वनऽ.
अगणियां पाणि थामि जॉद, नी धमीन5 मनऽ.

(ग) तर्क प्रधानगीत
    तर्क प्रधान गीतों के प्रतिनिधित्व करने वाले गीत स्थानीय बोली में 'बैर' कहे जाते हैं. इसमें दो गायक तार्किक
वाद-विवाद को गीतात्मक रूप में प्रस्तुत करते हैं. कुशाग्र बुद्धि वाला वैरीया अपना पक्ष मजबूत करता है और गीत के माध्यम से प्रतिद्वन्द्ी पर हावी हो जाता है और विवाद में जीत जाता है.

(2) ऋतुगीत
    विभिन्न ऋतुओं में विभिन्न गीत कुमाऊँ में गाए जाते हैं. चैत्र के महीने में प्रत्येक वर्ष विवाहिता कन्या का भाई या
पिता भेंट लेकर उसके ससुराल जाता है, कुमाऊँनी भाषा में इस भेंट को भिटीली कहते हैं, इस प्रसंग के लिए कुमाऊँनी लोकगीत अनेक हैं. उदाहराणार्थ, जंगल में घास काटते हुए किसी विवाहिता को चैत मास के प्रारम्भ में कफुआ नामक पक्षी की बोली सुनाई पड़ती है, तो उसे भिटौली की याद आती है और वह कफुआ पक्षी से कहती है कि हे कफुआ तुम मेरे मायके के जंगल में जाकर चल्को ताकि मेरी को भिटीली भेजने की याद आएगी. "बस कफुआ वास मैतिन का देशा, इजा मेरी सुणली त भिटौली भिजल"

(3) कृषि गीत
    कुमाऊँ में कृषि सम्बन्धी गीत हुइकि बोल कहे जाते हैं. हुडकि वोल का अर्थ है-हुडके के साथ किया जाने वाला
शम, यह श्रम खरीफ की फसल की गुहाई के लिए किया जाता है, प्रमुख गायक विशेष वेशभूषा के साथ इस वाद्य पर याप देते हुए गीत की एक पंक्ति गाता है, जिसे गुड़ाई करने वाले दोहराते हैं.

(4) संस्कार गीत
    विभिन्न संस्कारों के अवसर पर गाए जाने वाला गीत संस्कार गीत कहे जाते हैं. भारतीय संस्कृति में मनुष्य का एक
निश्चित लक्ष्य है उसे प्राप्त करने के लिए हृदय में प्रेरणा की आवश्यकता होती है. इसी प्रेरणा हेतु किया जाने वाला कार्य संस्कार कहा जाता है, सामान्यतः 16 संस्कार वताए गए हैं, लेकिन व्यवहारतः कुमाऊँ में पाँच संस्कार सम्पन्न किए जाते है ये हैं-नामकरण, अन्नप्राशन, उपनयन, विवाह और अन्येष्टि.नामकरण संस्कार जन्म के ग्यारहवें दिन राशि लग्न व नक्षत्र का विचार कर शिशु का नामकरण संस्कार किया जाता है. शिशु को प्रथम वार सूर्य दर्शन के लिए वाहर लाते समय स्तरियाँ इस गीत को गाती हैं-

हमि जानू हमि जानूँ बौज्यू मेरा काफज्यू
हमले जाणद सूरज जुहार ए.

    छठवे या आठवे महीने में बच्चे का अन्नप्राशन संस्कार किया जाता है. स्थानीय भाषा में अन्नप्राशन को पाशाणि
कहते हैं. इस दिन वच्चे को पहली बार अन्न दिया जाता है. इसके पश्चात् किशोरावस्था में उपनयन संस्कार किया
 जाता है. स्थानीय बोली में उपनयन के लिए व्रतबन्ध शब्द है इस संस्कार के गीतों में तत्सम्बन्धी कर्मकाण्ड एवं शिक्षा ग्रहण करने व परिजनों से भिक्षा माँगने का समावेश होता है. वैयाहिक गीतों में विभिन्न अवसरों पर विभिन्न गीत गाए जाते हैं. इन गीतों में लड़की की विदाई के गीत अत्यंत मार्मिक होते हैं.
 उदाहरणार्थ- 
अरे, अरे पण्डित लोगों 
मेरी धिया कन, दुख जन दिया,
दस म्हैण मैले पैट में बोकि
दस धारि मैले दूध पियाहड़