(2) लोककथाएँ
लोकगाथा लोकसाहित्य का वह रूप है जिसमें सीधी सादी भाषा में कोई सरल वात कही जाती है. इसका प्रचार-
प्रसार मौखिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी होता रहता है.लोकगाथा यद्यपि किसी व्यक्ति विशेष की रचना हो सकती
है, परन्तु धीरे-धीरे उस पर सम्पूर्ण समाज का अधिकार हो जाता है. यही कारण है कि लोकगाथाओं में कहीं भी रचना-कार का नामोल्लेख नहीं मिलता है.
कुमाऊँनी लोकगाथाओं को चार भागों में बाँटा जा सकता है-
(क) परम्परागत गाथाएँ,
(ख) पौराणिक गाथाएँ,
(ग) धार्मिक गाथाएँ,
(घ) वीर गाथाएँ.
(क) परम्परागत गाथाएँ
इन गाथाओं को सुनने एवं सुनाने का लक्ष्य केवल मनोरंजन होता था. इस वर्ग की गाथाओं में मालूमशाही
नामक लोकगाथा लोकप्रिय एवं प्राचीन है. दूसरी परम्परागत गाथा रमौल में रमौलवंश की पन्द्रह से अधिक गाथाएँ
समन्वित हैं.
(ख) पौराणिक गाथाएँ
पौराणिक गाथाएँ 'जागर' नाम से प्रचलित है. यद्यपि विषय वस्तु की दृष्टि से ये मित्रता रखती हैं. इनका मुख्य
प्रयोजन किसी व्याधि अथवा भूत-प्रेत से मुक्ति प्राप्त करना होता है. इन गायाओं में राम, कृष्ण, चौबीस अवतार, शिव आदि के प्रसंग आते हैं. यद्यपि ये पुराणों में वर्णित वृतांतों के समान हैं, परन्तु कहीं-कहीं नई उद्भावनाएँ भी मिलती हैं. जैसे-कौरव-पांडव के द्वेष का कारण उनके राज्य सीमा पर एक वृक्ष पर लगा मधुमक्खी का छत्ता वताया गया है. दोनों पक्ष उसे प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील थे. भीम ने वृक्ष पर सीढ़ी लगाई और अर्जुन ने चढ़कर पूरा छत्ता तोड़ लिया. इसी प्रकार राम द्वारा सीता के त्याग के सम्वन्ध में वर्णन आता है. राम की वहन शांता सीता के प्रति ईष्ष्या रखती थी. एक बार उसने सीता से आग्रह किया कि तुमने लंका में रहते हुए रावण को अवश्य देखा होगा. उसका चित्र बनाकर दिखाओ. सरल स्वभाव की सीता ने लंका के एक बड़े चित्र में लंकागढ़ राजभवन, राक्षस सेना तथा लंका के प्राकृतिक सौन्दर्य का अंकन करके रावण की आकृति बना रही थी कि अचानक राम ने महल में प्रवेश किया. शांता ने राम का ध्यान इस चित्र की ओर आकृष्ट किया. राम के मन में सीता के प्रति संदेह हो गया. उन्होंने उसी समय लक्ष्मण को बुलाकर सीता को जंगल में छोड़ने को कहा, लक्ष्मण सीता को सात समुद्र पार ले गए और जंगल में निद्रामग्न छोड़कर आयोध्या लौट गए. कुमाऊँ लोकगाथाओं में यह प्रचलित था
कि सीता वनवास के मूल में धोबी नहीं, अपितु राम की वहन शांता थी.
(ग) धार्मिक गाथाएँ
धार्मिक गाथाओं के अन्तर्गत तंत्र-मंत्र, पूजा एवं देवता नचाने की क्रियाओं की प्रधानता होती है, इनका आधार
धार्मिक अनुष्ठान या लोक विश्वास होता है. अमिष्ट की सिद्धि के लिए विभिन्न देवी देवताओं का आडान किया जाता
है एवं अनिष्ट निवारण की प्रार्थना की जाती है. प्राचीन मान्यता के अनुसार नृत्य से देवता प्रसन्न होते हैं. इसलिए
जागरों में लोकगाथाएँ गाई जाती हैं व नृत्य जागर का अभिन्न अंग माना जाता है. धार्मिक गाथाओं में ग्वल्ल,
गडनाथ, मसाण, ऐड़ी, सैम, भूमियों, नन्दादेवी इत्यादि मुख्य हैं.
(घ) वीर गाथाएँ.
वीर गाथाओं के लिए कुमाऊँनी में 'भड़ी' शब्द का प्रयोग मिलता है. यह शब्द सम्भवतः भट 'वीर' का विकृत रूप है. शासकों के अतिरिक्त यहाँ जातीय वीरों की गाथाएँ भी प्रसिद्ध हैं. कुमाऊँनी वीर गायाओं में शीर्ययुक्त शृंगार की झलक मिलती है. इन लोकगाथाओं में लोकजीवन ने विविध पक्षों का संस्पर्श है. यहाँ की प्रसिद्ध वीर गाथाएँ निम्नलिखित हैं-
(क) भीमा कठैत
(ख) परमा रौतेला
(ग) रतुआ फडत्याल
(घ) अजवा बफौल
अजवा बफौल में अजवा की कहानी है जो संक्षेप में इस प्रकार है-
भारतीचंद ने अपनी रानी के कहने पर वर्फौली कोर में आग लगवा दी, तो वहाँ का राजा नींद में ही जलकर मर
गया. उसकी पत्नी अपने नावालिग पुत्र अजुवा को लेकर अपने भाई पिरमावहरी के घर बहरीकोट चली गई. पिरमा
बहरी की पत्नी को आना अच्छा नहीं लगा. मन ही मन वह उससे और अजुबा से ईष्ष्या करती थी. एकदिन अजुबा ने
अपनी मामी से कहा कि मैं निर्भिकता से जंगल में अपने मामा के लिए भोजन ले जा सकता हूँ इस पर मामी ने व्यंग्य
से कहा कि यदि वीर पुत्र होते तो दूसरे पर बोझ्न न बनते. अजुवा को यह बात बुरी लगी. उसने तुरन्त अपनी माता को यह बात बताई और वरफौली कोट पहुँचकर भारतीचन्द को ललकारा तीन-दिन तक अविराम युद्ध चला और अंत में अजुवा विजयी हुआ.
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