नैनीताल
नैनीताल, जनपद का मुख्यालय 29° 30' उत्तर अक्षांश एवं 70° 27' पूर्व देशांतर के मध्य काठगोदाम से 35
किलोमीटर की दूरी पर घाटी में स्थित है. इस घाटी के ओर नागर पर्वत की श्रेणी पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई है,
में नैनीचोटी (2.611 मीटर ऊँचा), पश्चिम में देवपथ (2,414 मीटर ऊँची) की बीहड़ पहाड़ियाँ तथा दक्षिण में अयार पथ (2,277 मीटर ऊँची) की जो पहाड़ी है वह पूर्व की ओर झुकी हुई है. इन दोनों पहाड़ियों के बीच के मध्यवर्ती स्थान बड़ी-बड़ी अलग-अलग पड़ी चट्टानों का ढेर है. यहाँ पर मसूरी का चूना पत्थर है तथा हर आकृति एवं आकार के शिलाखण्ड भी हैं. पूर्व की ओर झील के अधिशेष जल के निकास भी व्यवस्था है तथा यह जल बलिया नदी का जो रानीबाग के निकट शोला में मिलती है. मुख्य स्रोत है. घाटी के पश्चिम छोर पर पहाड़ियों का मलवा है. उत्तर नैनीताल नगर जो घाटी का पूर्वी भाग है, नैनीताल की झील के नाम पर ही है. यह झील 7433 मीटर लम्बी एवं
463 मीटर चौड़ी है तथा समुद्र सतह से 1,933 मीटर ऊँचाई पर है झील की अधिकतम गहराई 28 मीटर है तथा सके चारों ओर की सड़क की लम्बाई 3.621 मीटर है. कहा जाता है कि स्मगलर्स रॉक के सम्मुख झील में 19 मीटर की गहराई में गंधक का ग्रोता है. गंधक का दूसरा सोता तल्लीताल की बाजार में है.प्राचीनकाल में यह झील त्रिऋषि सरोवर (अति, पुलस्तय एवं पुलाहा ऋषियों की झील) के नाम से प्रसिद्ध थी. नैनीदेवी जिनका मन्दिर इसके तट पर है, के नाम से इसका नाम नैनीताल हुआ. यह घाटी 1839 के पूर्व घने जंगलों से आच्छादित थी, जिसमें चीते एवं अन्य वन्य प्राणियों की भर- मार थी तथा ऐसा अनुमान किया जाता है कि यहां पर परियों एवं दानवों का भी बसेरा था. यहाँ लोग नैनादेवी के दर्शन करने आते हैं तथा श्रद्धा प्रकट करते हैं. विशेष अवसरों पर बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालु झील में स्नान करने हेतु आते हैं. मार्च 1839 में बेटन एवं बेरन यहाँ आए एवं 1841 में इस झील की खोज का प्रचार हुआ. एक वर्ष पश्चात् 1842 के हेटन ने बारह बंगलों का निर्माण कराया तथा कुमार्ँ मण्डल के आयुक्त लशिंगटन ने एक छोटे घर का निर्माण प्रारम्भ किया. 1856 तक नैनीताल एक प्रमुख पर्वतीय स्थल हो गया. तदुपरांत यह राज्य सरकार की ग्रीष्मकालीन राजधानी वनी. अयार पथ के दक्षिण पूर्व में 1960 में वर्तमान राजभवन बन कर तैयार हुआ. इस नगर का मुख्य एवं आकर्षक स्थान फ्लैट है, वर्ष 1880 में हुए भीषण भूस्खलन के कारण झील के उत्तरी छोर की समतल भूमि का और विस्तार हो गया जो अब फ्लैट कहलाता है, यह नगर का केन्द्र भी है. यहाँ पर विभिन्न
प्रकार के खेल जैसे हॉकी, क्रिकेट, फुटबाल खेले जाते हैं तथा नैनीताल जिमखाना एवं जिला खेल संघ द्वारा आयोजित होती है. यहाँ सांध्य बेला में बड़ी रौनक होती है. यहाँ पर लोग एक-दूसरे से मिलने आते हैं तथा खेलों की प्रतियोगिताएँ देखते हैं. नैनीदेवी के दर्शन करते हैं, गुरुद्वारा व मस्जिद जाते हैं. नगर के समीप सुभाष शिखर, लढ़िया कांटा, स्नो व्यू. डोरोथी का स्थान, लैंज्सएंड, हनुमानगढ़ी, किलवरी, उत्तराखण्ड राज्य वेधशाला आदि दर्शनीय स्थल हैं. इस घाटी का प्रमुख पर्वत सुभाष उत्तर में है. फ्लैट से लगभग 6 किमी दूर हैं. इसकी चोटी से नैनीताल का सम्पूर्ण दृश्य देखा जा सकता है. साफ मौसम में यहाँ से नीलकण्ठ, कोमेट, माना, हाथी पर्वत, नंदाघुटी, त्रिशूल, त्रिशूल पूर्व, नन्दा देवी, नन्दा वोह, चौखम्भा की चोटियाँ दिखाई देती हैं. लढ़िया कांटा समुद्र सतह से 2,481 मीटर ऊँचाई पर है. यह शेर-का डंडा से जुड़ा हुआ है तथा फ्लैट से लगभग 6 किमी की दूरी पर है. इसके शिखर नैनीताल की दूसरी अघिकतम ऊँचाई वाली चोटी है. जहाँ से झील क्षेत्र का रमणीय दृश्य दिखाई देता है. शेर-का डंडा पर्वत समुद्र सतह से 2,270 की ऊँचाई पर स्नोव्यू नामक चोटी है जहाँ से हिमालय की दूर स्थित चोटियाँ
अवलोकित होती हैं. डोरोथीस सीट, डोरोथी का स्मारक है जिसकी हवाई दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. यहाँ से सुरदा ताल एवं पहाड़ की सीढ़ीदार खेतों का भव्य दृश्य दिखाई देता है. हनुमानगढ़ी, फ्लैट से 3 किमी की दूरी पर है. यहाँ पर राम हनुमान शिव को समर्पित बहुत भव्य मन्दिर है जो भक्तों को आकर्षित करते हैं. सूर्यास्त का मनोहर दृश्य देखने के लिए यह स्थान विख्यात है.यह स्थल हनीमून के लिए एवं पर्यटकों को प्राकृतिक झील के सौंदर्य के लिए अपनी तरफ आकर्षित करता है
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