कवि मौलाराम का जन्म श्रीनगर (गढ़वाल) में सन् 1743 ई. में हुआ था. इनके पिता श्री मंगतरामजी थे. माता रामोदेवी ने मौलाराम को बचपन से ही रामभक्ति का पाठ पढ़ाया. इनके गुरु रायसिंह थे. गुरु रायसिंह ने मौलारामजी को चित्रकला में पारंगत किया. चंडिका उपासना की विधि भी गुरुराय सिंह ने सिखाया. मौलारामजी ने श्रीनगर बनाई थी. उसी चित्रशाला में वे कलासाधना में रत रहते थे. चित्रकार और कवि के अतिरिक्त वे एक अच्छे दार्शनिक और राज- नीतिक कला में प्रवीण थे. मौलारामजी हिन्दी, फारसी और संस्कृत के अच्छे विद्वान्थे . उनकी रचनाएँ तीनों ही भाषाओं में मिलती हैं. उनकी रचनाओं में 'गढ़राजवंश', 'श्रीनगर दुर्दशा' एवं मन्मथसागर इत्यादि महत्वपूर्ण हैं. मौलारामजी ने अपनी रचनाओं के लिए ब्रजभाषा का प्रयोग किया. 'गढ़राजबंश' ब्रजभाषा की श्रेष्ठ रचना है. मौलाराम ने मन्मथ पंथ चलाया जिसमें उनकी आध्यात्मिक अनुभूतियों का वर्णन है. प्रकृति के संयोग व वियोग रूपों का चित्रण करके प्रेम व विरह के चित्रों का वर्णन में पूर्ण कुशलता के साथ मौलाराम ने अपनी कविताओं में किए हैं.
पुरिया, नैथानी जैसे वीरों की प्रशंसा करके उन्होंने अपने मानवीय गुणों का परिचय दिया है
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