उत्तराखण्ड में अद्यतन शिक्षा की प्रगति / Progress of updated education in Uttarakhand


    उत्तराखण्ड का 92 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र पहाड़ी है, जिसमें 15 हजार से अधिक गाँव तथा उनसे सम्बद्ध मजरे
वसे हुए हैं, जिनमें विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण शिक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करना वास्तव में एक कठिन
चुनौती है. फिर भी संतोष का विषय यह है कि साक्षरता में यह नवजात राज्य कई पुराने राज्यों से कहीं आगे है. सन् 201। की जनगणना के अनुसार उत्तराखण्ड में साक्षरता का प्रतिशत 78.81 है और प्रदेश के विकास में यह साक्षरता एक पूंजी का काम करने जा रही है. 
    मैदानी राज्यों एवं पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड के बीच कई विभिन्नताओं में से एक विभिन्नता यह भी है कि यहाँ लगभग समूची शिक्षा व्यवस्था सरकार द्वारा संचालित है. देहरादून, हरिद्वार एवं ऊधरमसिंह नगर तीन मैदानी जिलों में काफी हद तक निजी क्षेत्र शिक्षा व्यवस्था को संचालित कर रहा है. फिर भी इन जिलों का ग्रामीण क्षेत्र आज भी शिक्षा के लिए सरकारी शिक्षा पर निर्भर है. सरकार पर निर्भरता का हीनतीजा है कि राज्य सरकार के अन्य विभागों की तुलना शिक्षा विभाग का सबसे विशाल तंत्र है, जिसमें लगभग 70 हजार पद है और इस पर सरकार को वेतन भक्तों में प्रतिमाह सबसे वड़ी धन राशि खर्च करनी पड़ती है. 
    शिक्षकों की कमी को पूरा करने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा मित्रों तथा माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षा बन्धुओं की नियुक्ति की है. शिक्षा बन्धुओं का सेवाकाल एक वर्ष बढ़ाने के साथ ही उनके मानदेय में 500 रुपए प्रतिमाह की वृद्धि कर दी गई है, सरकारी महाविद्यालयों में शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए विजिटिंग फैकल्टी की व्यवस्था की गई है. उसके अलावा प्रधानाध्यापक एवं प्रधानाचार्य पदों परपदोन्नतियाँ कर रिक्तियाँ भरने का निर्णय लिया गया है. अन्य पदों पर भी पदोन्नति की प्रक्रिया जारी है. सरकार ने प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय में कम-से-कम दो शिक्षक तैनात करने का लक्ष्य रखा है. जिसके तहतु राज्य में कम से-कम 26406 प्राथमिक शिक्षक हो जायेंगे. इससे युवाओं को रोजगार भी मिलेगा और शिक्षा व्यवस्था भी सुदृढ़ होगी.

                   शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने तथा च्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करने के लिए राज्य सरकार ने सभी 13 जिलों में कक्षा 1 से 8 तक के परिषदीय और राजकीय विद्यालयों में निःशुल्क पाट्य पुस्तकों के वितरण की तथा दिन के लिए पके पकाए भोजन की व्यवस्था की है जिसके लिए चालू वित्त वर्ष में 20 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है. इसके अलावा 6 से 14 वर्ष आयु के वच्चों के लिए विश्व बैंक पोषित सर्व शिक्षा अभियान भी प्रदेश में चलाया जा रहा है, 

    राज्य सरकार ने उत्तर  प्रदेश के विभाजन के बाद हल्द्वानी में अपना उच्च शिक्षा निदेशालय स्थापित करने के साथ ही रामनगर में माध्यमिक शिक्षा परिषद् का गठन भी कर लिया है. परिषद् ने पहली बार उ. प्र. माध्यमिक शिक्षा परिषद् के सहयोग से हाईस्कूल एवं इण्टर की परीक्षाओं के आयोजन की शुरूआत भी कर दी है और आगामी परीक्षाएँ वह अपने बलबूते पर करने जा रहा है. इसके अलावा माध्यमिक शिक्षा स्तर पर समय की माँग को देखते हुए कम्प्यूटरीकरण पर जोर दिया जा रहा है.

    प्रदेश के होनहार छात्रों के लिए शुभ समाचार यह है कि अन्य क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कॉलेजों में उत्तराखण्ड के छात्रों के लिए 40 सीटें आरक्षित हो गई, जिनमें 10 सीटें मोतीलाल इंजीनियरिंग कालेज इलाहाबाद में आरक्षित हैं. राज्य सरकार केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय से प्रत्येक जिले में राजीव गांधी नवोदय विद्यालय खुलवाने के लिए प्रयास कर रही है. सैनिक स्कूल घोड़ाखाल में उत्तराखण्ड के छात्रों के लिए 67 प्रतिशत सीटें भी आरक्षित कर दी गई हैं.

    उत्तराखण्ड में रोजगारपरक शिक्षा को वढ़ावा देकर मानव संसाधन के विकास पर भी जोर दिया जा रहा है. ताकि युवाओं का भविष्य उज्ज्वल होने के साथ ही इस प्रशिक्षित मानव संसाधन का राज्य के विकास में उपयोग हो सके. वर्तमान में राज्य में 41 पॉलिटेक्निक संस्थान कार्यरत् हैं. रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज को आई. आई. टी. का दर्जा मिल चुका है. प्राविधिक शिक्षा निदेशालय के गठन को  स्वीकृति मिल चुकी है तथा उसे श्रीनगर गढ़वाल में स्थापित किया जाना है. प्राविधिक शिक्षा परिषद् का मुख्यालय रुड़की में स्थापित किया जा रहा है. इसके अलावा अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् द्वारा उत्तराखण्ड में स्थित इंजीनियरिंग कॉलेजों में विभिन्न डिग्री स्तरीय पाठ्यक्रमों में एम. सी. ए. में 580, एम. बी. ए. में 105 होटल मैनेजमेंट में 105 तथा वी. फार्मा में 210 एवं अन्य इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में 2200 की प्रवेश क्षमता अनुमोदित की गई है. 

    जिन पहाड़ी जिलों में शिक्षा व्यवस्था की पूर्ण जिम्मेदारी राज्य सरकार निभा रही है उनमें साक्षरता का प्रतिशत (201।) हरिद्वार एवं ऊधमसिंह नगर जैसे मैदानी जिलों से अधिक है. जहाँ  पिथौरागढ़ जैसे सीमांत जिले में 82.25 तथा पौड़ी का 82.02 प्रतिशत साक्षरता है वही ऊधरमसिंह नगर में 73-10 तथा हरिद्वार में 73.43 प्रतिशत ही साक्षरता है. महिला साक्षरता नैनीताल में 77.29, अल्मोड़ा में 69.93, पौड़ी में 72.60 एवं चमोली में 72.32 प्रतिशत है. सन् 1951 में उत्तराखण्ड में साक्षरता जहाँ 18.93 प्रतिशत थी वह 1971 में 33.26. 1981 में 46.06 तथा 1991 में 57.75 से वढ़कर आज 71.6 प्रतिशत तक पहुँच गई
 है. पूरे उत्तराखण्ड में सन् 1951 में महिलाओं का साक्षरता प्रतिशत मात्र 4.78 था जो आज 59.6 हो गया है. आज उत्तराखण्ड में और खासकर देहरादून जैसे मैदानी जिलों में निजी क्षेत्र शिक्षण संस्यानों पर करोड़ों रुपए का पूँजी निवेश कर रहा है. यह पूँजी निवेश शिक्षा की पूँजी तैयार कर रहा है और वही पूँजी शीघ्र ही प्रदेश के विकास की गारण्टी बनने जा रही है.
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