उन्नीसवीं शताब्दी के महान अन्वेषक जिन्होंने वेश बदलकर तिब्बत और मध्य एशिया के वर्जित क्षेत्रों का सर्वेक्षण
किया. 1867 में इन्हें सर्वे ऑफ इण्डिया में नियुक्ति मिली. लगभग 9 वर्षों की अवधि में इन्होंने चार वार सर्वेक्षण यात्राएँ कीं जो भारतीय सर्वेक्षण के इतिहास में महत्वपूर्ण हैं. किशन सिंह को इन साहसिक अन्वेषणों के लिए 'रायबहादुर का खिताब देकर सम्मानित किया गया.
'पदमश्री' से सम्मानित चन्द्रप्रभा का जन्म 24 दिसम्बर, 1941 धारचूला, पिथौरागढ़ में हुआ था. 1972-78 की अवधि में कई पर्वतीय अभियानों में प्रशिक्षक, सदस्य लीडर की हैसियत से सम्मिलित हुई. शिखर राष्िंटग ट्रैकिंग में आपने कीर्तिमान बनाया है. इनकी उपलब्धियों को दृष्टिगत रखते भारत सरकार ने 1981 में 'अर्जुन अवार्ड', 1990 में पद्मश्री, 1993 में रंगरल्न अवार्ड और 1994 में नेशनल एडवेंचर अवार्ड से अलंकृत किया है.
2 जुलाई, 1961 जिला अल्मोड़ा में जन्मे श्री पाण्डेय हिमालयन रन एण्ड ट्रैक के क्षेत्र में एक अकेला स्वर्णाक्षरों में अंकित नाम है. अन्तर्राष्ट्रीय हिमालयन रन एण्ड ट्रैक स्पर्धा- आयोजित कराने वाले पहले भारतीय हैं.
(1947-1985 ई.) देहरादून में जन्मे श्री बहुगुणा एक अनोखे पर्वतारोही थे. असम की पहाड़ी कंचनजंघा और दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका अभियान दल के सदस्य रहे. 1985 में एवरेस्ट के दूसरे अभियान में अपने अन्य चार साथियों के साथ हिम समाधि ली. 1980 में इन्हें वी. एस.पी. से सम्मानित किया गया.
नरेन्द्र नगर टिहरी गढ़वाल के वासी नरेन्द्रधर अदम्य साहसी और संकटों से जूझने वाले अनोखे पर्वतारोही थे. आपने हिमालय की कई दुरुह, अविजित चोटियों पर अभियान दलों के साथ आरोहण किया. 1958 में एवरेस्ट से लगी विश्व की. छटी सबसे ऊँची चोटी चो- ओयू, 26867 फीट पर आरोहण करते समय न्यूमोनिया के कारण 28 अप्रैल को निधन हो गया.
उन्नीसवीं शताब्दी के विलक्षण खोजी अद्भुत साहस के धनी, धैर्यवान और खतरों से खेलकर लक्ष्य को प्राप्त करने वाले अकेले वीर पुरुष थे.
24 मई, 1954 को ग्राम नाकुरीपट्टी वरसाली जिला उत्तरकाशी में जन्मी विश्व की सर्वोच्च पर्वत शिखर एवरेस्ट पर सफल आरोहण करने वाली देश की प्रथम महिला पर्वतारोही का गौरव हासिल है. अटूट साहस और संकल्प की धनी बछेन्द्रीपाल को भारत सरकार ने अनेक पुरस्कार देकर सम्मा- नित किया है. पुरस्कारों में पद्मश्री 1985, अर्जुन पुरस्कार 1986, उ.प्र. सरकार का नेशनल यूथ अवार्ड (1985), उ.प्र. सरकार का यश भारती पुरस्कार 1985, लिम्का वुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस् सदृश अनेक पुरस्कार हासिल हैं.
19वीं शताब्दी के विश्वविद्यालय अन्वेषक थे. हिमालय के क्षेत्र में अनेक सर्वेक्षण कार्य किया. 1863 में उन्हें सर्वे ऑफ इण्डिया देहरादून में वैज्ञानिक विधि से सर्वेक्षण का प्रशिक्षण दिया गया. बाद में उन्हें तिब्वत तक सर्वेक्षण कार्य सौंपा गया.
युवा पर्वतारोही जो मैकतोली शिखर आरोहण में 21 सितम्बर 1992 को विशाल हिमालय की गोद में हिम समाधि
ले लिया.
पर्वतारोहण के क्षेत्र में रतन सिंह चौहान का एक चर्चित नाम है. इन्होंने कई अभियान में सफलतापूर्वक अपने लक्ष्य को प्राप्त किया. पर्वतारोहण, राक क्लाइम्बिंग स्की जैसे साहसिक कार्यों में वेहतर प्रदर्शन के लिए कई पुरस्कार मिले हैं. उ.प्र. सरकार ने 1981 में प्रशंसा पत्र दिए हैं. आई एम एफ से 1993 में स्वर्ण पदक प्राप्त किया है.
पियौरागढ़वासी श्री धर्मसक्तू को उत्तरमार्ग (तिब्बत के रास्ते) से एवरेस्ट पर अकेले ही चढ़ने में सफलता पाने वाले प्रथम भारतीय हैं. 19 मई, 1998 को विश्व की सर्वोच्च पर्वत शिखर हिमालय पर अकेले ही चढ़कर तिरगा फहराने का गौरव हासिल किया.
पर्वतारोहण के क्षेत्र में इनकी असाधारण उपलब्धियों हैं.
1 सितम्बर, 1968 को जन्मी श्री कुटियाल उत्तरकाशी की निवासिनी हैं. इनके प्रमुख अभियानों में बंदरपूंछ, सासेर
कांगरी, कंचनजंगा आदि प्रमुख हैं.
पर्वतारोहण में एक गौरवशाली नाम है. इनकी उपलब्धियों पर भारत सरकार ने पद्मरी' व अर्जुन अवार्ड
से सम्मानित किए हैं.
पर्वतारोहण के क्षेत्र में एक परिचित नाम है. 1969- 1995 की अवधि में 21 पर्वतारोहण अभियानों में सम्मिलित
होकर उत्तराखण्ड का नाम रोशन किया है.
(1937-71) देहरादून में जन्मे श्री वहुगुणा 1971 में एवरेस्ट अभियान हेतु भारत- ब्रिटिश संयुक्त अभियान में
एकमात्र भारतीय सदस्य के रूप में चयनित हुए. अभियान के दौरान उनका निधन हो गया. भारत सरकार ने मरणोपरांत पद्मशी व स्वर्ण पदक से विभूषित किया.
10 नवम्बर, 1954 को जन्मी उत्तरकाशी वासिनी हर्यवन्ती जी पर्यतारोहण के विधा में एक सुपरिचित नाम है. साहस और संकल्प की धनी उत्तराखण्ड की अग्रणी महिलाओं में एक. 1984 एवरेस्ट अभियान दल की सदस्य रही हैं. पर्वतारोहण के क्षेत्र में इनकी वुलन्दियों का स्वागत करते हुए भारत सरकार ने 1981 में इन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया है.
(1938-1998) पर्वतारोहण के क्षेत्र में एक गौरवशाली नाम है. 1963-66 में लडाख में बीस हजार फीट तक की ऊँदाई वाले आधे दर्जन से अधिक पर्दत शिखरों पर चढ़ने में सफलता अर्जित की. पर्वतारोहण में उल्लेखनीय योगदान के लिए भारतीय पर्वतारोहण संस्थान ने इन्हें स्वर्णपदक देकर सम्मानित किया. 26 जनवरी, 1992 को राष्ट्रपति ने इन्हें पद्म्री' सम्मान से अलंकृत किया उ.प्र. सरकार 'यशभारती" सम्मान से भी सम्मानित किया है. ने पर्यावरण से जुड़े शिखर पुरुष एवं महिलाएँ
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