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उत्तराखण्ड में पर्यटन की सम्भावनाएँ। Possibilities of tourism in Uttarakhand





        नैसर्गिक सौन्दर्य का धनी नवगठित उत्तराखण्ड में पर्यटन की अपार सम्भावनाएँ हैं. हिमालय की सुदूरवादियों में फैले अनेक मनमोहक, रोमांचकारी व साहसिक पर्यटक स्थलों से लेकर देवस्थली कहे जाने वाले वद्रीनाथ, हेमकुण्ड, यमुनोत्री, गंगोत्री, क्रषिकेश व हरिद्वार जैसे अनेक धार्मिक व पुण्यस्थलों से यह नया राज्य पटा पड़ा है, इस राज्य में लगभग 264 पर्यटक स्थलों में देशी व विदेशी सैलानियों को आकर्षित करने की अपार क्षमता है. एक आकलन के अनुसार हरिद्वार सहित कुमाऊँ गढ़वाल में प्रत्येक वर्ष पहुँचने वाले देशी व विदेशी सैलानियों से लगभग 12.,000 करोड़ रुपए की आय होगी. नवसृजित राज्य में हरिद्वार के जुड़ जाने से इस राज्य में पर्यटन की अपार सम्भावनाएँ बढ़ गई हैं, ऑकड़े दर्शाते हैं कि अभी तक उत्तर प्रदेश में आने वाले कुल सैलानियों में से एक-चीथाई हर साल उत्तराखण्ड परिक्षेत्र में आने वाले पर्यटक स्थलों की सैर के लिए पहुँचते थे. यहाँ पहुँचने वाले देशी-
विदेशी पर्यटकों की सालाना आमदनी विगत वर्षों में 230 लाख से अधिक आँकी गई है. इसमें हरिद्वार पहुँचने वाले
तीस लाख से अधिक पर्यटक शामिल हैं. यद्यपि यहाँ विदेशी पर्यटकों की संख्या अपेक्षाकृत कम रहती है, फिर भी देशों से लगभग एक लाख सैलानी विगत वर्ष में उत्तराखण्ड के नयनाभिराम पर्यटक स्थलों को देखने पहुँचे.
सरकारी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1998-99 में प्रति विदेशी पर्यटक 34 हजार रुपए व प्रति भारतीय पर्यटक 
रुपए को आमदनी का आधार लेते हुए उत्तराखण्ड के हिस्से में आने वाली सालाना पर्यटन आय लगभग 1800 से 1900  करोड़ रुपए आँकी गई है. उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में पर्यटन नीति के तहतु पूरे राज्य के पर्यटक स्थलों को उनकी विविधताओं के आधार पर 10 परिपथों में बाँटा गया था. इनमें चार प्रमुख परिपथ कुमाऊँ, गढ़वाल, पर्वतीय चार धाम-वद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री तथा गंगोत्री तथा वन विहार, इको टूरिज्म व साहसिक परिपथ अब उत्तराखण्ड राज्य के हिस्से हो गए हैं. जल परिपथ विहार के तहत रखे गए कालागढ़, नानक सागर, नैनी झील, भीम ताल, नौकृचिया ताल, जो पर्यटन गतिविधियों की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं, नए राज्य से जुड़ गए हैं. विभाजित उत्तर प्रदेश राज्य में मात्र अब 88 पर्यटक स्थल वचे हैं, वहीं नवसृजित उत्तराखण्ड में 152 पर्यटक स्थल आए हैं. यही नहीं हरिद्वार के उत्तराखण्ड राज्य में रखे जाने से देशी-विदेशी पर्यटकों को आव.र्थेत करने वाले पर्यटन विभाग के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम  यथा-योग व आयुर्वेद महोत्सव भी नए राज्य की पर्यटन आय के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा. पर्यटन उत्तराखण्ड के आर्थिक ढाँचे की रीढ़ की हड्डी माने जाने के साथ रोजगार सृजित करने का प्रमुख साधन है, इसलिए गढ़वाल व कुमाऊँ मण्डल विकास निगमों ने पर्यटन उद्योग पर आधारित अपनी आय को वढ़ाने के लक्ष्य निर्धारित किए हैं. अभी तक उत्तराखण्ड में पर्यटन मौसमी (Seasonal) रहने के साथ

        धार्मिक स्थलों तक सीमित रहा है, लेकिन अब इसको हर मौसम के लिए उपयोगी बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं. धार्मिक पर्यटनों के साथ आमोद-प्रमोद, विहार, साहसिक यात्रा सहित 12 से अधिक विधाओं को यहाँ की पर्यटन गतिविधियों से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है. पर्यटन क्षेत्र में आमदनी को और बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी व निवेश को आमन्त्रित करने का प्रयास होगा, ताकि पर्यटन से जुड़े संगठनात्मक ढाँचे को अधिक प्रभावशाली बनाया जा सके. नए राज्य को आत्मनिर्भर वनाने के लिए पर्यटन उद्योग एक महत्वपूर्ण साधन हो सकता है, यहाँ के पर्यटक स्थलों में विदेशियों को लुभाने के लिए अपार क्षमता है. आवश्यकता इस बात की है कि देशी विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए सरकार आकर्षक पैकेज की शुरूआत करे, हिमाचल प्रदेश की सैर के लिए आने वाले पर्यटकों को उत्तराखण्ड लाने के लिए शिमला से देहरादून-मसूरी परिपथ का विकास करना होगा. यमुना घाटी में नैसर्गिक सौन्दर्य से पर्यटकों को नयनाभिराम कराने के लिए शिमला से देहरादून
तक का रास्ता वहुत मुफीद है. विशेष रूप से हरकीदून घाटी, सांकरी, चकराता, डाक पत्थर का मनोरम नजारा पर्यटकों को आकष्ट कराने में मददगार सिद्ध हो सकता है. उत्तराखण्ड में मसूरी व नैनीताल में पर्यटकों का आना
सर्वाधिक रहता है. इसके लिए आवश्यक है कि धनौल्टी, जॉर्ज एवरेस्ट, कौसानी, चौकोड़ी, ग्वालदम, पिण्डारी, डोडा ताल जैसे पर्यटक स्थलों में पर्यटकों को सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ. कुमाऊँ व गढ़वाल में गर्मी के दिनों में पर्यटकों को आवासीय गृहों में रहने के लिए आरक्षण हेतु काफी प्रतीक्षा करनी पड़ती है. ठहरने के स्थान की कमी के कारण पर्यटकों को निराश होना पड़ता है. महाशेर ऐंगलिंग और पैराग्लाइडिंग की योजनाओं को भी यहाँ पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल माना जा रहा है, लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि इसके लिए सुविधाजनक पैकेज की व्यवस्था की जाए. कुल मिलाकर देखा जाए, तो उत्तराखण्ड में पर्यटन की अपार सम्भावनाएँ हैं. जहाँ-कहीं पर्यटक स्थलों का सम्पर्क मार्ग असुविधाजनक है, उसको सुविधाजनक बनाने की आवश्यकता है. इसके लिए एक पर्यटक नीति की आवश्यकता है. उत्तराखण्ड के प्रथम मुख्यमन्त्री श्री नित्यानन्द स्वामी ने पर्यटक नीति की घोषणा की है, जो पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध होगा.

उत्तराखण्ड की पर्यटन नीति
    उत्तराखण्ड सरकार ने देशी तथा विदेशी पर्यटकों को रिझाने के लिए पर्यटन नीति को मंजूरी दी है. इसके लिए
सरकार ने उच्चस्तरीय पर्यटन विकास परिपद्' बनाने का निर्णय लिया है. यह परिषद् राज्य में पर्यटन के विकास के
लिए सुझाव देने वाली सर्वोच्च संस्था होगी. उत्तराखण्ड पहला राज्य है, जिसमें यह अनोखा प्रयोग किया गया है. परिषद्प र्यटन विकास के अलावा लाइसेंसिंग अ्योरिटी के तौर पर भी कार्य करेगी. उत्तराखण्ड में पर्यटन के विकास के लिए सुदृढ़ ढाँचागत्य वस्या लागू करने की व्यवस्था की जा रही है, इस नीति के अन्तर्गत राज्य के होटलों तथा नई पर्यटन इकाइयों को पाँच वर्ष तक विलासिता कर में छूट दी गई है. इसकी नियमावली भी सरल बनाई गई है.

    राज्य में मनोरंजन पार्क, नए 'रोष वे' लगाने पर संचालन की तारीख से पाँच वर्ष तक मनोरंजन कर में पूरी छूट दी गई है. पर्यटन इकाई लगाने पर दो लाख रुपए का अनुदान दने  की व्यवस्था की गई है, यह अनुदान गैराज, फास्ट [फूड सेंटर, साहसिक पर्यटन के लिए उपकरणों की खरीद और वसों तथा टैक्सियों पर भी देने की व्यवस्या है,
उत्तराखण्ड में स्थित विभिन्न जलाशयों में जल क्रीड़ाओं का विकास और विस्तार किया जाएगा. पूरे राज्य में ट्रेकिंग
मार्ग के सम्बन्ध में मास्टर प्लान तैयार करने की योजना है, ग्रामीण क्षेत्रों में पारम्परिक हस्तशिल्प को प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा. इसके लिए प्रशिक्षण देकर 'शिल्पग्राम' और 'शिल्प बाजार' विकसित करने की योजना बनाई गई है. उत्तराखण्ड में पर्यटन नीति के अन्तर्गत राज्य के चार धामों की यात्रा को और सरल और आरामदायक वनाया जाएगा. पर्यटन विकास के लिए निजी क्षेत्रों को पूँजी निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा. विश्व पर्यटन सम्मेलन के लिए उत्तराखण्ड को परिसर स्टेट के रूप में चिह्नित किया गया है.

पर्यटन

    गगनचुम्बी हिमाच्छादित चोटियाँ, कल कल निनाद करती सदानीरा नदियाँ, निर्झर झरते, मीलों तक फैले हरे
मखमली बुग्याल, स्वप्नलोक जैसी फूलों से लदी घाटियाँ, रंग बिरंगे पंछी, भरा-पूरा और विलक्षण वन्य संसार आसमान को भी उसकी सूरत दिखाने नाली बड़ी-बड़ी नीली झीलें, दुनिया के दिलेरों को ललकारती चोटियाँ और उस पर इस कुदरत रचे बसे भोले-भाले लोग. यह किसी कवि की कल्पना नहीं, बल्कि उत्तराखण्ड की नैसर्गिक छटा की वास्तविक तस्वीर है. जिसे उत्तराखण्ड सरकार विश्व के प्रकृति प्रेमी पर्यटकों को परोसने के लिए महत्वाकांक्षी तैयारियों में जुटी हुई है. उत्तराखण्ड की प्राकृतिकता और धार्मिकता ही यहाँ के पर्यटन की सबसे वड़ी पूँजी है, जिसे सरकार को सहेजना भी है और उसके ब्याज को खर्च भी करना है. इस देवलोक की प्राचीन, मान्यताओं का आदर करते हुए, हर वर्ष आने वाले लाखों तीर्थ यात्रियों के लिए सुख सुविधाएँ भी जुटानी हैं. इस
सरकार ने सत्ता में आते ही उत्तराखण्ड के रूप के खजाने के सही इस्तेमाल की तैयारियाँ भी शुरू कर दीं.

        राज्य के पर्यटन क्षेत्र में मौजूद सम्भावनाओं को साकार करने के उद्देश्य से सरकार द्वारा इस वर्ष अनेक महत्वपूर्ण में आकर कदम उठाए गए. जिनके फलस्वरूप उत्तराखण्ड की पर्यटन जगत् में पहचान वनाने में उल्लेखनीय मदद मिली है. केन्द्र सरकार द्वारा भी राज्य सरकार द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना करते हुए उत्तराखण्ड में विभिन्न परियोजनाओं की स्थापना के लिए सहमति व्यक्त की गयी है.

1      देहरादून में 25 करोड़ की लागत से राष्ट्रीय होटल प्रवन्धन एवं केटरिंग संस्थान की स्थापना का निर्णय.
2.    अल्मोड़ा में उदय शंकर संगीत एवं नृत्य अकादमी की स्थापना (जिसका शिलान्यास महामहिम भारत के
राष्ट्रपति द्वारा किया जा चुका है), पिथीौरागढ़ में पाताल भुवनेश्वर गुफा का विकास जागेश्वर मन्दिर कॉम्पलैक्स
का विकास, फूलों की घाटी क्षेत्र का ईको-पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकास.

3    राज्य सरकार के विशेष प्रयासों के फलस्वरूप लगभग 95 करोड़ रुपए की एक महत्वाकांक्षी परियोजना
नैनीताल जनपद की झीलों के पुनर्जीवीकरण एवं  विकास के लिए केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन, मंत्रालय के
राष्ट्रीय झील संरक्षण निदेशालय द्वारा सैद्धान्तिक रूप में अनुमोदित की जा चुकी है.

4    सर्वे ऑफ इण्डिया परिसर में लगभग 55 एकड़ क्षेत्र में एक 'पार्क ऑफ द ग्रेट आर्क' (Park of the Great
Arc) विकसित करने की स्वीकृति भी प्राप्त की गयी है. इसका शिलान्यास 9 नवम्बर, 2002 को हो चुका है.
पर्यटन विकास की सम्भावनाओं 4: यथार्थ रूप देने के लिए गत वर्ष अनेक महत्वपूर्ण परियोजनाएँ एवं मास्टर
प्लान पारित करने की कार्यवाही सुनिश्चित की गयी.

5     हेमपुर (जनपद ऊधरमसिंह नगर) में विशाल पर्यटन कॉम्पलैक्स, दयारा बुग्याल (जनपद उत्तरकाशी) में एक
वृहत शीत क्रीड़ा कॉम्पलैक्स, मसूरी के निकट पूर्ववर्ती खनिज निगम की वन्द खदान क्षेत्र में रिसोर्ट परियोजना,
तथा उत्तराखण्ड में ट्रेक मार्गों के विकास के लिए परि- योजना रिपोर्ट पर मास्टर प्लान तैयार कराए जा चुके हैं.

6    चार धाम यात्रा से सम्बन्धित अवस्थापना सुविधाओं एवं अन्य व्यवस्थाओं की स्थापना के लिए भी मास्टर प्लान
तैयार कराया जा चुका है. जिसके अन्तर्गत 133 करोड़  रुपए का निवेश प्रस्तावित किया गया है.

7     केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर चयनित पर्यटन सर्किटों के विकास की योजना के अन्तर्गत चार धाम यात्रा
सर्किट को भी सम्मिलित करने की घोषणा की गई है. 

8    यात्रा मार्गों पर लगभग 65 स्थान मार्गीय सुविधाओं के विकास के लिए चिह्नित किए गए हैं. इनके विकास के
लिए सीबीआरआई के सहयोग से योजनाएं बनाई जा रही हैं,

9    श्री बद्रीनाथ -केदारनाथ मन्दिर समिति का पुनर्गठन किया गया तथा एक उच्चस्तरीय चार धाम वोर्ड वर्तमान केन्द्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्री जगमोहन की अध्यक्षता में गठित किए गए जाने का निर्णय लिया गया है.
10  राज्य के अन्य तीर्थ स्थलों, जैसे पूर्णागिरी आदि में आवश्यक अवस्थापना सुविधाओं के विकास की कार्यवाही
भी की जाएगी.

11 केदारनाथ के लिए हवाई सेवा शुरू होने के साथ ही चार धाम यात्रा के इतिहास में एक पन्ना और जुड़ गया है,
12 वैकल्पिक पर्यटन गन्तव्यों के विकास की दिशा में भी सार्थक पहल करते हुए लैन्सडाउन-पौड़ी-खिरसू तया
पिथौरागढ़-मुनस्यारी पर्यटन सर्किटों के विकास के लिए मास्टर प्लान बनाने का कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है,

13      उत्तराखण्ड की भौगोलिक परिस्थितियों के संदर्भ में इको-टूरिज्म क्रियाओं की पर्याप्त सम्भावनाएँ विद्यमान
हैं. इसे ध्यान में रखते हुए अलग से इको टूरिज्म नीति भी तैयार की जा रही है, जिसमें स्थानीय समुदाय की
भूमिका तय की जाएगी. चूनाखाल (नैनीताल) में वन विभाग द्वारा एक इको- टूरिज्म केन्द्र भी पंजीकृत सोसाइटी के रूप में स्थापित करने का निर्णय लिया गया है.

14     उत्तराखण्ड के पर्यटन आकर्षणों को प्रचारित एवं प्रसारित करने के लिए गत वर्ष उल्लेखनीय प्रयास किए
गए हैं. इस हेतु वृहद स्तर पर पर्यटन सूचना एवं प्रचार सामग्री के सृजन के अतिरिक्त राज्य सरकार द्वारा
विभिन्न पर्यटन मेलों आदि में प्रतिभाग किया गया और अनेक पुरस्कार भी प्राप्त किए गए. फरवरी में सूरजकुंड
में आयोजित अखिल भारतीय हस्तशिल्प मेले में राज्य ने पार्टनर स्टेट के रूप में भाग लिया.

15    22 से 24 फरवरी, 2003 के मध्य एक विशाल पर्यटन कान्वलेव का आयोजन मसूरी में किया गया. इसमें देश
विदेश के 400 से अधिक पर्यटन से सम्वन्धित कम्पनियों एवं संगठनों, वित्तीय संस्थानों के प्रतिनिधियों, विशेषज्ञों
आदि द्वारा प्रतिभाग किया गया. इस प्रयोजन में राज्य के पर्यटन आकर्षणों के प्रदर्शन के अतिरिक्त 100 करोड़
रुपए से अधिक के निवेश प्रस्ताव जिसमें लगभग 100 प्रस्ताव स्थानीय उद्यमियों के थे, भी प्रस्तुत किए गए.

16    राज्य में स्थित विभिन्न हैरिटेज स्थलों के चिह्नीकरण की कार्यवाही इन्टेक के माध्यम से प्रारम्भ की जा चुकी है.
इसके साथ-साथ राज्य में पूर्व से चिह्नित पुरातत्व स्थलो के विकास के सम्बन्ध में 1:67 करोड़ रुपए की योजना
बनाकर भारत सरकार को भेजी गयी है.

17    उत्तराखण्ड की पर्यटन नीति के अनुरूप दसवीं पंचवर्षीय योजना हेतु 300 करोड़ का परिव्यय अनुमोदित तथा
पर्यटन को ग्राम स्तर तक पहुँचाने हेतु, पर्यटन ग्राम योजना प्रस्तावित.

18    चारधाम यात्रा मार्ग में हरिद्वार और क्रषिकेश को भी सम्मिलित करते हुए तथा इसके समेकित एवं समन्वित
विकास हेतु भारत सरकार द्वारा धनराशि उपलब्ध कराए जाने पर सैद्धान्तिक सहमति.

19    वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली पर्यटन स्वरोजगार योजना प्रारम्भ, इसमें 1664 आवेदन-पत्र प्राप्त हुए हैं. जिनमें से लगभग 500 लोगों को लाभान्वित किया गया. योजना के अनुसार अधिकतम दो लाख तक की राज्य सहायता प्रस्तावित तथा शेष धनराशि के लिए ऋण की व्यवस्था. 20 उत्तराखण्ड पर्यटन द्वारा प्रदेश में वृहद स्वच्छता एवं
हरियाली अभियान प्रारम्भ.

21    `बद्रीनाथ में बद्रीश वन तथा हरिद्वार में पितृ वन एवं अन्य पर्यटन स्थलों में पर्यटक वनों की स्थापना
प्रस्तावित.

22     दिल्ली में आयोजित अन्तर्रा्ट्रीय ट्रैवल एण्ड टूरिस्ट मार्ट में उत्तराखण्ड को तीन प्रतिस्पर्धाओं में सर्वश्रेष्ठ
पुरस्कार, इस मार्ट में देश के समस्त राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों के साथ-साथ 40 देशों ने भी भाग लिया.

23     बंगलौर, चेन्नई तथा कोलकाता में आयोजित ट्रेवल एण्ड टूरिज्म फेयर (TTF) में उत्तराखण्ड पर्यटन द्वारा पार्टनर स्टेट के रूप में भाग लिया गया. वंगलौर में चार तथा चेन्नई व कोलकाता में उत्तराखण्ड पर्यटन को एक एक
पुरस्कार प्राप्त हुआ.

24    इको-टूरिज्म एवं माउन्टेन वर्ष के उपलक्ष्य में इस वर्ष विशेष कार्याधिकारी, साहसिक पर्यटन, अल्मोड़ा के नेतृत्व में उत्तराखण्ड की प्रसिद्ध कामेट एवं अगिगामिन चोटियों पर पर्वतारोहण का सफल आयोजन किया गया.

पर्यटकों को आकृष्ट करने की उत्तराखण्ड सरकार की योजना
    प्रदेश के चारधामों यमनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ तथा बद्रीनाथ की यात्रा पर आने वाले तीर्थ यात्रियों की सुविधाओं
को दृष्टिगत रखते हुए, यात्रा मार्गों पर यात्रियों को व्यापक स्तर पर समुचित सुविधाएँ उपलब्ध कराए जाने के साथ ही
उनकी यात्रा सुखद एवं आरामदायक बनाने के साथ ही उन्हें हर प्रकार की सुविधा व सुरक्षा उपलब्ध कराए जाने की
व्यवस्था की गई है. अनुमानतः चारधाम यात्रा में प्रतिवर्ष लगभग 12 लाख श्रद्धालूओं का आवागमन होता है, इसी उद्देश्य से चारधाम की यात्रा पर आने वाले तीर्थ यात्रियों/पर्यटकों की सुविधा हेतु चारधाम यात्रा विमिन्न विभागों द्वारा अपने स्तर से व्यापक प्रबन्ध किए जा रहे हैं, यात्रा के सम्बन्ध में यात्रियों/पर्यटकों का अधिक से- अधिक जानकारी/सूचना उपलब्ध कराने के लिए उत्तराखण्ड पर्यटन द्वारा सभी सूचनाओं से युक्त चारधाम पुस्तिका का प्रकाशन गत वर्ष किया गया है, जो यात्रियों के लिए निःसन्देह उपयोगी सिद्ध होगी. जुड़े

    यात्रियों के आवागमन हेतु परिवहन विभाग द्वारा यात्रा मार्ग पर 458 वसे संचालित की जाएँगी. संयुक्त रोटेशन के
घटक परिवहन कम्पनियों के वाहन कोटद्वार, ऋषिकेश एवं देहरादून से ऋषिकेश/हरिद्वार में एकत्रित होंगे और यथा माँग यात्रा मार्गों पर एक निश्चित अवधि निर्धारित करते हुए, तीर्थ यात्रियों को लेकर अपनी यात्रा सम्पन्न करेंगे. इसके अतिरिक्त प्रातः 5.00 वजे से पूर्व तथा सायं 7.00 बजे के वाद यात्रा से जुड़े वाहनों के संचालन पर पावंदी रहेगी. वाहनों की गति सीमा मार्ग के स्वरूप एवं दशा के अनुरूप 15 से 20 अथवा 25 से 30 किमी निर्धारित की गई है. संयुक्त रोटेशन के घटक परिवहन संस्थाओं को वैटरी चलित छोटे कम्प्यूटर प्रदान किए जा रहे हैं, जिससे सभी चैकपोस्टों से गुजरने वाले निजी वाहनों की किराए पर चलने की सम्भावना व अधिकृत रूप से सवारी ढोने तथा उनके बार-वार संचालन की सम्भावनाओं पर निगरानी रखी जा सके. यात्रियों का रजिस्ट्रेशन नगरपालिका ऋषिकेश द्वारा 200 रुपए शुल्क लेकर किया जाएगा. प्रवर्तन अधिकारी, देहरादून, नरेन्द्रनगर, हरिद्वार एवं पौशी को यात्रा के पर्वतीय मार्गों पर एवं सम्बन्धित चैक पोस्टों पर जाकर यात्रा व्यवस्था की समुचित देखभाल करने के निर्देश दिए गए हैं. यात्रा मार्गों पर दुर्घटनाओं की रोकथाम हेतु देश के सभी राज्यों के परिवहन सचियों एवं परिवहन आयुक्तों से उनके राज्य से आने वाले तीर्थ यात्रियों/पर्यटकों को पर्वतीय मार्गों पर वाहन के संचालन वरती जाने वाली सावधानियों के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश जारी करने का अनुरोध किया गया है. साथ ही अन्य राज्यों के ऐसे
वाहनों को जिनका संचालन पर्वतीय मार्गों पर अनुमन्य नहीं है उन्हें यात्रा मार्गों पर चलाने की अनुमति नहीं दी जाएगी. इस सम्बन्ध में प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों, पुलिस एवं परिवहन विभाग के अधिकारियों को भी विशेष सतर्कता वरते जाने हेतु कड़े दिशा निर्देश दिए गए हैं ताकि यात्रा मार्गों पर होने वाली दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके. यात्रा मार्गों पर वाहनों को वाहन के तकनीकि निरीक्षण के उपरान्त ग्रीन कार्ड देने की व्यवस्था देहरादून, ऋषिकेश एवं हरिद्वार में की गई है. जहाँ वाहन का निरीक्षण तकनीकी योग्यता रखने वाले सम्भागीय परिवहन अधिकारी अथवा संभागीय निरीक्षक प्राविधिक द्वारा किया जाएगा. इस सम्बन्ध में प्रकाशित हैड विलों से प्रचार के साथ ही वाहनों को ग्रीन कार्ड/परमिट जारी करते समय वाहन स्वामियों एवं चालकों को यातायात नियमों का पालन करने के विशेष निर्देश दिए जाएँगे. यात्रा मार्गों पर भद्रकाली एवं तपोवन में अस्थायी चैक पोस्टो की स्थापना की गई है. जो प्रातः 6.00 से सायं 7.00 बजे तक खुले रहेंगे तथा उनमें प्रवर्तन सिपाही एवं होमगार्ड के जवान उपस्थित रहेंगे तथा डामटा में यात्री कर अधीक्षक के माध्यम से मोबाइल चैकिंग व्यवस्था की गई है. यात्रियों की सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए पुलिस विभाग द्वारा स्थायी व अस्थायी चौकियों की स्थापना के साथ ही यातायात चैक पोस्टों पर चार निरीक्षक, 154 उपनिरीक्षक, 224 हैंडकांस्टेबल, 2027 कांस्टेबल तथा 1220 होमगाडों के साथ ही पाँच कम्पनी पी. ए. सी. तैनात की गई हैं. यात्रा अवधि के लिए प्रदेश के विभिन्न जनपदों में स्थापित किए गए स्थायी थानों/चौकियों के अतिरिक्त जो अस्थायी चौकियाँ व यातायात चैक पोस्ट खोले गये हैं. उनमें चमोली में क्रमशः 11 व 14, रुद्रप्रयाग में 7 व 5, उत्तरकाशी में 9 व 6, पौड़ी में 11 व 16, टिहरी में 2 व 3 देहरादून में 7 व 11 तथा हरिद्वार में 36 स्थानों पर अस्थायी चौकियाँ स्थापित की गई हैं. इसके अतिरिक्त चारधाम यात्रा से सम्बद्ध सभी जनपदों के महत्वपूर्ण स्थलों पर संचार व्यवस्था केन्द्र स्थापित किए गए हैं. यात्रा मार्गों पर तैनात सभी पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों को यात्रियों के साथ मधुर व्यवहार किए जाने के विशेष निर्देश दिए गए हैं.

    चारधाम की यात्रा पर आने वाले यात्रियों व पर्यटकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने की भी कारगर व्यवस्था की गई है. इस निमित सम्बद्ध जनपदों के यात्रा मारगों पर 14 मेडिकल रिलीफ पोस्ट स्थापित किए गए हैं, 25 स्वास्थ्य केन्द्रों पर एम्बुलेंस की व्यवस्था तथा 63 केन्द्रों पर ऑक्सीजन की सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है. इसके अतिरिक्त 41 सुलभ शौचालय, 135 शौचालय एवं 185 अस्थायी मूत्रालय बनाए जा रहे हैं. यात्रा मार्गों से जुड़े
चिकित्सालयों में पर्याप्त मात्रा में चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य सहायकों की तैनाती की गई है तथा चार धामों में रोगी वाहनों की भी व्यवस्था की गई है तथा पर्याप्त मात्रा में सफाई कर्मियों को तैनात किया गया है.

    उत्तराखण्ड जल संस्थान द्वारा यात्रियों को पेयजल उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है. यात्रा मार्ग से सम्बन्धित जनपदों देहरादून, पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी व उत्तरकाशी में यात्रा मार्ग पर 117 योजनाएँ कार्यरत् हैं, जिसके अन्तर्गत विभिन्न स्थलों पर 369 जल स्तम्भ/ पानी की टंकियाँ स्थापित हैं, जिसमें 334 पूर्ण रूप से कार्यरत् हैं तथा
पोष 35 जो क्षतिग्रस्त हैं उनकी मरम्मत की जा रही है. यात्रा मार्गों पर व्यवधान रहित निरन्तर विजली आपूर्ति
की भी व्यापक व्यवस्था की गई है. इसके अन्तर्गत बद्रीनाथ हेतु विद्युत व्यवस्था जोशीमठ से निकलने वाले 11 के. वी. लामवगड़ पोषक से की जा रही है. केदारनाथ के लिए उखीमठ उपस्थान से 11 के. वी. गौरीकुण्ड से केदारनाथ धाम तक की लाइन द्वारा विद्युत आपूर्ति की जा रही है इसके अतिरिक्त सर्दी में भारी हिमपात के कारण वार-बार लाइन के क्षतिग्रस्त होने की समस्या के निधान हेतु लामबगड़ से बद्रीनाथ तक 11 के. वी. लाइन तथा गौरीकुण्ड से केदारनाथ तक 15 किमी भूमिगत केबिल बिछाने की योजना पर कार्य तत्परता से किया जा रहा है, जिस पर क्रमशः 302 व 224 लाख का व्यय का प्राकलन है.,

    गंगोत्री के लिए वर्तमान में लघु जलविदध्युत परियोजना द्वारा 5 किलोवाट की दो मशीनें चलाकर केवल मन्दिर को ही विद्युत आपूर्ति की जाती है. मन्दिर के लिए आपातकालीन विद्युत व्यवस्था हेतु 7.5 किलोवाट का एक जनरेटिंग डीजल सेट भी उपलब्ध कराया गया है. भटवारी से धराली तक 11 के. वी. लाइन को गंगोत्री तक लगभग 22 किमी लाइन का निर्माण के साथ ही 250 के. वी. एक क्षमता का 11/0-4 के.वी. उपसंस्थान बनाने का प्रस्ताव किया गया है. जिस पर 72 लाख का व्यय अनुमानित है. इसके अतिरिक्त उत्तरांचल (अब उत्तराखण्ड) अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण उरेड़ा द्वारा गंगोत्री के लिए 2X50 किलोवाट विद्युत गृह का निर्माण कार्य प्रगति पर है. वर्तमान में यमनोत्री धाम के लिए विद्युत आपूर्ति की कोई व्यवस्था नहीं है, इस धाम के विद्युतीकरण के लिए नौगांव जानकी पट्टी से यमनोत्री तक 4-4 किमी 11 के. वी.केविल विछाकर तथा एक 250 के.वी.ए. 11/04 के. वी. का उपसंस्थान तथा 0-52 किमी एल. टी. लाइन के निर्माण हेतु बयालीस लाख का प्रांकलन तैयार किया गया है. इसके अतिरिक्त उरेड़ा द्वारा जानकारी चट्टी से यमनोत्री धाम तक 11 के.वी. लाइन एवं एक 25 के.वी.ए. उपस्थान का निर्माण
कराया जा रहा है, यह योजना वन क्षेत्र में होने के कारण भारत सरकार से वन भूमि स्थानान्तरण की स्वीकृति हेतु
अनुरोध किया गया है. इस प्रकार चारधामों में निरन्तर विद्ुत आपूर्ति व्यवस्था सुनिश्चित करने पर रुपए 640-00 लाख व्यय होने का अनुमान है.
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