उत्तराखंड की न्यापालिका | Uttarakhand Nyapika






न्यायपालिका
    दीवानी और फीजदारी के मामलों से सम्बन्धित राज्य में एक उच्च न्यायालय है, जो नैनीताल में स्थिति है इसके प्रथम मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए. ए. देसाई हैं. राजस्व के मामलों के लिए सबसे बड़ा न्यायालय राजस्व परिषद् है. संविधान के अनुच्छेद 127 के अन्तर्गत उच्च न्यायालय को अन्य अधीनस्थ न्यायालयों तथा न्यायाधिकारियों के अधीक्षण का पूरा अधिकार है. उच्च न्यायालय एक अभिलेखी न्यायालय है जिसका तात्पर्य यह है कि इसके कार्य तथा कार्यवाहियाँ शाश्वत साक्ष्य हैं. इसके अभिलेखों को इतना उच्च  स्थान प्राप्त है कि उनकी सत्यता को नीचे की किसी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती, अभिलेख न्यायालय के रूप में इसे अपनी अवमानना के दौषी व्यक्तियों को दण्ड देने का अधिकार है, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को भारत के सर्वोच्य न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और राज्यपाल के परामर्श से राष्ट्रपति नियुक्त करता है, अन्य न्यायाधीशों को यह मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से नियुक्त करता है, म्यायाधीश पद के लिए ऐसे ही व्यक्ति योग्य माने जाते हैं, जो भारत के नागरिक हों तथा जिन्होंने भारत के किसी उच्च न्यायालय के सामने अधिवक्ता के रूप में या किसी न्यायिक सेवा के पद पर कम-से-कम दस वर्ष कार्य किया हो. उच्च न्यायालय किसी व्यक्ति या अधिकारी को संविधान के उल्लिखित मूल अधिकारों की रक्षा करने के ध्येय  से आदेश देने में सक्षम है.
            उत्तराखण्ड में अधीनस्थ न्यायिक सेवा का गठन कर दिया गया है इसके अन्तर्गत मुन्सिफ और लघुवाद न्यायाधीश को मिलाकर सिविल जज आते हैं. जिले के स्तर पर जिला  न्यायाधीश अधीनस्त नयिक सेवा का नियंत्रण होता है।  
         दीवानी के मामले में सबसे नीचे का न्यायालय मुंसिफ का न्यायालय होता है।  उसके बाद सिविल जज और जिले में सबसे उच्च न्यायालय जिला जज होता है। 
        राजस्व के मामले में सहायक कलेक्टर और उसके ऊपर अतिरिक्त कलेक्टर और कलेक्टर होते हैं, जो अपीलों के मामलों की सुनवाई करते हैं. राजस्व के मामलों में राजस्व परिषद् ही सर्वोच्च न्यायालय है.
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