उत्तराखण्ड लोकसाहित्य का महत्व / Importance of Uttarakhand folklore |
लोकसाहित्य समाज के धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आदि विभिन्न आयामों के साथ-साथ स्वस्थ मनोरंजन का पक्ष भी अपने में समाहित किए हुए है. लोक साहित्य सृजन का एक सहज, स्वभाविक और मधुर रूप है, जो लोकरंजन के साथ-साथ समाज में जीवन का संचार करता है. सामाजिक समस्याओं और उनके निदानार्थ निर्णायक तथ्य प्रस्तुत करके लोकसाहित्य अपने दायित्व को भी निभाता है.
विद्वानों ने लोकसाहित्य को वैदिक वाइमय के समान माना है, क्योंकि हमारे लोकजीवन के सांस्कारिक और धार्मिक कृत्यों में जहाँ एक ओर पुरोहित द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार किया जाता है, तो वहीं दूसरी ओर महिलाओं द्वारा संस्कार अथवा धार्मिक अनुष्ठान से सम्बन्धित गीत भी गाए जाते हैं. लोकसाहित्य की भित्ति धर्म की नींव पर टिकी है. विभिन्न संस्कारों में यदि लोक गीतों का अभाव होगा, तो संस्कारानुसार वातावरण तैयार नहीं होता. इसलिए लोकगीत के गायन की परम्परा प्रारम्भ हुई.
स्त्रियों को धर्मपरायण की ओर ले जाने का कार्य भी लोकसाहित्य वड़ी कुशलतापूर्वक करता है कई व्रत कथाओं में सूर्यपूजन का उल्लेख मिलता है पष्टीमाता व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए किए जाने वाली सूर्योपासना का एक रूप है. इसमें स्त्रियाँ सूर्य को अर्ध्य देने के पश्चात् फल एवं पकवान चढ़ाती हैं.
लोकसाहित्य के अध्ययन से भूगोल एवं इतिहास की जानकारी भी प्राप्त होती है. जैसे-मालूमशाही नामक कुमाऊँनी लोकमहाकाव्य में हुणदेश से लेकर चित्रशिला के मध्य पड़ने वाले स्थानों का उल्लेख मिलता है. मालूमशाही को पढ़ने से कुमाऊँ की भौगोलिक स्थिति का ज्ञान हो जाता है. जिस मार्ग से नायक बैराठ तक पहुँचता है वीच में पड़ने वाले स्थानों का वर्णन स्वयं ही आ जाता है.
लोकसाहित्य द्वारा वीरों की वंशावलियों के विषय में भी ज्ञान प्राप्त होता है, क्योंकि वीरों से सम्बन्धित कथाएँ एवं लोकगीत नितांत कपोल कल्पित नहीं होते, उनमें सत्यता भी होती है. लोककथाओं के द्वारा ही हमें कत्यूरी राजाओं के मूल स्थान का ज्ञान होता है.
लोकसाहित्य सामाजिक मूल्यों का संरक्षक होता है. भारतीय संस्कृति का गुरुमहिमा का वर्णन गढ़वाली लोकगीतों में प्राप्त होता है.
सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण की दिशा में लोकसाहित्य का योगदान सर्वोपरि है. यही वह साधन जो नवयुवकों को
रीति-रिवाजों एवं नैतिक मूल्यों के प्रति आस्थावान बनाता है.
लोकसाहित्य समय-समय पर सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक प्रभाव समाज पर डालता है, क्योंकि लोकसाहित्य लोककल्याणकारी साहित्य है एवं जनमानस का साहित्य है. लोकसाडित्य का संग्रह इतिहास, कानून, भाषा विज्ञान इत्यादि के अध्ययन की सामग्री जुटाने में सहायक है.
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