चन्द्रसिंह गढ़बाली
उत्तराखण्ड के वीर सपूत व अमर शहीद चन्द्रसिंह गढ़वाली का जन्म पौड़ी गढ़वाल के ग्राम मासौ (तहसील थलीसैण) में 4 सितम्बर, 1891 में हुआ था. इनके पिता श्री जथलीसिंह एक साधारण कृषक थे. चन्द्रसिंह पारिवारिक समस्याओं के कारण उच्च शिक्षा नहीं प्राप्त कर सके. उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव के पास में ही अर्जित की.
ब्रिटिशकाल में सेना में भर्ती हुए गढ़वालियों के ठाठवाट देखकर चन्द्रसिंह सेना की ओर आकर्षित हुए. फलस्वरूप 3 सितम्बर, 1914 को घर से भागकर 11 सितम्बर को लैंसडाउन छावनी में 2/39 गढ़वाल राइफल्स में भर्ती हुए. अगस् 1915 में चन्द्रसिंह प्रथम विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों की ओर से लड़ने के लिए अपने साथियों के साथ फ्रांस पहुँचे. दो माह तक लड़ाई में भाग लेने के पश्चात् अक्टूबर 1915 में चन्द्रसिंह भारत आए. सन् 1917 में मेसोपोटामिया में अंग्रेजों की ओर से पुनः लड़ने गए तथा बाद में सकुशल भारत लौट आए. सन् 1920 में गढ़वाल में अकाल पड़ा. इसी समय कई पल्टनें तोड़ी गईं और गढ़वाली सैनिकों को पल्टन से निकाल दिया गया. ओहदेदारों को सिपाही बना दिया गया. चन्द्रसिंह भी इससे अछूते नहीं रहे. उनको भी हवलदार से सिपाही वना दिया गया. सन् 1921 से 1923 तक चन्द्रसिंह पश्चिमोत्तर सीमान्त में रहे, जहाँ अंग्रेजों तथा पठानों के मध्य युद्ध चल रहा था. सन् 1929 में महात्मा गांधी का कुमाऊँ में आगमन हुआ. चन्द्रसिंह उन दिनों छुट्टी पर थे. वह गांधीजी से मिलने वागेश्वर गए और गांधीजी के हाथ से टोपी लेकर पहनी तथा टोपी की कीमत चुकाने का प्रण किया. सन् 1930 में पूरे भारत में महात्मा गांधी द्वारा नमक सत्याग्रह चलाया गया. उस समय चन्द्रसिंह 2/18 गढ़वाल राइफल्स में हवलदार थे. इस रेजीमेंट की बदली पेशावर में कर दी गई. पेशावर पहुँचने पर चन्द्रसिंह ने अपना सम्पर्क राजनैतिक घटनाओं से स्यापित किया. राजनैतिक घटनाओं से चन्द्रसिंह बहुत प्रभावित हुए तथा उन्होंने अपने मित्रों के साथ एकान्त में वैठकें करनी प्रारम्भ कर दीं. उत्तराखण्ड के यशस्वी इस वीर सपूत ने 23 अप्रैल, 1930 जिस सैनिक क्रान्ति का सूत्रपात किया वह पेशावर काण्ड आजादी के इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ है चन्द्रसिंह की अपील पर 18वीं गढ़वाल राइफल्स ने पठानों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया. चन्द्रसिंह के सभी साथियों को बन्दी बना दिया गया. 12 जून, 1930 की रात को चन्द्रसिंह को 'एवंटबाट' जेल भेज दिया गया. वहाँ जेल में असह्य, कटोर यातनाएँ दी गई. सन् 1942 में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई के लिए युवकों को प्रशिक्षण व नेतृत्व करते रहे. 6 अक्टूबर, 1942 को फिर जेल गए और 1945 में ही जेल से छोड़ा गया. चन्द्रसिंह पर कम्युनिस्ट विचारधारा का व्यापक प्रभाव था. सन् 1946 से ही टिहरी रियासत के विरुद्ध जनआन्दोलन फैल चुका था. सन् 1948 में नरेन्द्र साकलानी के शहीद हो जाने के पश्चात् उन्होंने टिहरी आन्दोलन का नेतृत्व किया. सन् 1951-52 में चन्द्रसिंह पीड़ी चमोली निर्वाचन क्षेत्र से कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े, लेकिन गढ़वाली जनता के कांग्रेस समर्थक होने के कारण वे चुनाव नहीं जीत सके. चन्द्रसिंह गढ़वाली में एक सेनानायक के गुण कूट-कूट कर भरे थे. सुभाषचन्द्र बोस ने उन्हीं की प्रेरणा से तीन हजार गढ़वाली सिपाही और गढ़वाली अफसरों के साथ आजाद हिन्द फौज का निर्माण किया. आज सम्पूर्ण उत्तराखण्डवासियों को इस वीर सपूत पर नाज है. असीम देशभक्ति की भावना से ओत-पोत यह हिमालय पुत्र 1979 में पंचतत्व में विलीन हो गया.
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