डॉ. पीताम्बर दत्त बड़व्वाल| Dr. Pitambar Dutt Barthwal| Historical People of Uttrakhand| Uttrakhand General Knowledge|Read Here



डॉ. पीताम्बर दत्त बड़व्वाल
डॉ. पीताम्बर दत्त वड़थ्वाल का जन्म लैन्सडाऊन के निकट कौड़ियापट्टी के पालीग्राम में दिसम्बर 1901 को हुआ
था. पिता श्री गौरीदत्त वड़्वाल ज्योतिष के विद्वान् ये. पिता का स्वर्गवास इनके वाल्यकाल में ही हो गया था. प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई. गवर्नमेंट हाईस्कूल श्रीनगर में प्रवेश लेकर आगे की शिक्षा ग्रहण की. पुनः लखनऊ से  लीचरण हाईस्कृल से सम्मान सहित मैट्रिक की परीक्षा पास की. वहीं इनका परिचय हिन्दी के विद्वान् श्री श्यामसुन्दर दासजी से हुआ. पुनः कानपुर के डी ए.वी. कॉलेज से एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की. शुद्ध रूप से हिन्दी विषय को लेकर 'डॉक्टरेट' पाने वाले सर्वप्रथम व्यक्ति ये. इनकी रचनाओं में प्राणायाम विज्ञान और कला, ध्यान से आत्मचिकित्सा, कबीर ग्रंथावली सम्पादन, राम चन्द्रिका- सम्पादक, गय सौरभ श्री रामचन्द्र शुक्ल के साथ रूपक रहस्य इत्यादि प्रमुख हैं, तड़्वाल ने अनेक निवंधों की रचना की है. प्रत्येक निबंध पर इनके परिपूर्ण अध्ययन और मनन की छाप है. डॉ. बड़्वाल ने गम्भीर साहित्य के साय साय काव्य रचना भी की है. श्री गिरिजादत्त नैयानी द्वारा सम्पादित 'पुरुषार्य' में समय समय पर उनकी कविताएँ प्रकाशित होती रहीं हं. इनका जीवन बहुत अभाव में गुजरा, अभावों में ही 24 जुलाई, 1944 को हिन्दी का यह विद्वान् स्वर्गवासी हो चला. उनकी मृत्यु के पश्चात् इनकी स्मृति को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए डॉ. वड़ध्वाल स्मारक ट्रस्ट बनाया गया. लैसडाउन में 'बड़ध्वाल सांस्कृतिक संघ' की स्थापना की गई, कोटद्वार स्थित राजकीय महाविद्यालय के साथ डॉ. बड़ख्वालजी का नाम जोड़ दिया गया है. उत्तराखण्ड में इस सरस्वती पुत्र का नाम सदा आदर के साथ लिया जाता रहेगा. उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान इनके नाम पर एक पुरस्कार देने की घोषणा की है.

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