गुमानी पंत
लोकरत्न पंत के नाम से भी चर्चित गुमानीपंत को कुर्माचल का सबसे प्राचीन कवि माना जाता है. गुमानीपंत के पूर्वज चन्द्रवंशी राजाओं के राजवैद्य थे. गुमानीजी का जन्म 27 फरवरी, 1790 में काशीपुर जनपद ऊधरमसिंह नगर में हुआ था. इनके पिता उपराड़ाग्राम, पिथौरागढ़ के निवासी थे. गुमानी की शिक्षा-दीक्षा मुरादाबाद के पण्डित राधाकृष्ण वैद्यराज तथा पंडित हरीक्षत ज्योतिर्वेद की देख-रेख में हुई थी. 24 वर्ष तक विद्यारध्ययन करने के बाद विवाह हुआ लेकिन मन में वैराग्य भाव उत्पन्न होने के कारण गृहस्य आश्रम इनको आकृष्ट नहीं कर सका. घर छोड़कर प्रयागराज गए तथा वहाँ गायत्री जप प्रारम्भ किया. कुछ दिन तक वरद्रीनाथ के समीप भी निवास किए तथा दुर्वा रस पीकर तपस्या की. अपनी माता देवमंजरी के आग्रह पर पुनः गृहस्य जीवन शुरू किया. राजकवि के रूप में गुमानीजी सर्वप्रथम काशीपुर नरेश गुमानसिंह देव की राजसभा में नियुक्त हुए. गुमानीपंत तत्कालीन अनेक राजाओं द्वारा सम्मानित हुए. पटियाला के राजा श्री कर्ण सिंह, अलवर के नरेश बने सिंह देव और नहान के राजा फतेह प्रकाश आदि राजाओं ने इनका विशेष सम्मान किया. टिहरी नरेश सुदर्शन शाह की सभा में भी मुरक कवि के रूप में रहे. गुमानीजी अपने शिल्प वैचित्र्य और प्रत्युत्पन्नमति के लिए प्रसिद्ध थे. विहार राज्य तक इनकी प्रसिद्धि फैली हुई थी. उनकी रचनाओं में प्रमुख रूप से निम्नलिखित रचनाएँ उपलब्ध हैं-
1. रामनाम पंचपंचासिका
2. राममहिमा वर्णन
3. गंगा- शतक
4. जगन्नाथाप्टक
5. कृष्णाष्टक
6. रामसहस्र गणदण्डक
7. चित्रपदावली इत्यादि.
गुमानीजी ने अधिकांश काव्य सृजन संस्कृत में किया इन्होंने किसी महाकाव्य की रचना नहीं करके शतक सतसई तथा मुक्तक पदों की रचना की. शतक संस्कृत में है, परन्तु कुमाऊँनी, नेपाल ब्रज, खड़ी बोली में मुक्तक पदों की रचना की. हिन्दी साहित्य के इतिहास में जिस काल में खड़ी बोली को काव्य के अनुपयुक्त ठहराया गया था. उससे बहुत पहले गुमानी खड़ी बोली में काव्य रचना प्रारम्भ कर चुके थे. गुमानी की कविताओं में तत्कालीन समाज का चित्रण मिलता है, देश व जाति के उत्थान की भावना मिलती है. गुमानीजी ने अपने जीवनकाल में गोरखाओं के अत्याचार और अंग्रेजों के द्वारा भारतीय समाज का शोषण देखा. उनकी रचनाओं में दोनों ही पीड़ा परिलक्षित होती हैं. गुमानीजी द्वारा प्रवाहित राष्ट्रीय भावना की पावन धारा को अंग्रेजी सरकार भी न रोक सकी. कुर्मांचल के प्रथम समाचार-पत्र 'अल्मोड़ा अखवार' (1871 ई.) में इस प्रकार की अनेक रचनाएँ मिलती हैं. गुमानीजी उत्तराखण्ड के ही नहीं, अपितु हिन्दी जगत् के प्रथम व श्रेष्ठ कवि हैं, अपनी राष्ट्रीय भावना व देशप्रेम के कारण वे एक श्रेष्ठ व सच्चे राष्ट्रकवि कहे जा सकते हैं.
ये भी पढें
- उत्तराखंड की भौगोलिक संरचना
- उत्तराखंड की जलवायु
- उत्तराखण्ड में नदियाँ
- उत्तराखण्ड की मिट्टियाँ
- उत्तराखण्ड में प्राकृतिक बनस्पति एवं वनों का वितरण
- उत्तराखंड पर्यावरण सुरक्षा योजना
- उत्तराखंड का इतिहास
- स्वतंत्रता आन्दोलकन में उत्तराखंड की भूमिका
- उत्तराखण्ड संघर्ष का सफरनामा
- पृथक उत्तराखंड के संघर्ष का इतिहास
- उत्तराखंड की शासन प्रणाली
- उत्तराखंड - औद्योगिक एवं कृषि अर्थव्यवस्था
- उत्तराखंड में ऊर्जा संसाधन
- उत्तराखंड में शिक्षा और शैक्षिक संस्थान
- उत्तराखंड में परिवहन के साधन
- उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां व अनुसूचित जनजातियों के लिए संवैधानिक संरक्षण
- उत्तराखंड विविध विकास योजना व आर्थिक कार्यक्रम
- उत्तराखंड : वन्य जीव, राष्ट्रीय उद्यान व वन्य जीव विहार
- उत्तराखंड जनस्वास्थ्य, नीतियां एवं उपलब्धियां
- उत्तराखंड में सहकारिता आंदोलन
- उत्तराखंड पर्यटन नीति
- उत्तराखंड के प्रशिद्ध बुग्याल
- उत्तराखंड के प्रमुख पर्व एवं मेले
- उत्तराखंड की विविध कलाएं : वास्तुकला, मूर्तिकला एवं मंदिर
- उत्तराखंड के लोक संगीत, लोक निर्त्य,लोक कलाएं
- उत्तराखण्ड : ललित कलाएँ
- उत्तराखंड में चित्रकारी
- उत्तराखंड के प्रमुख गीत व संस्कार
- उत्तराखंड की भाषा , छेत्रिय भाषा , बोली
- उत्तराखण्ड का लोकसाहित्य
- उत्तराखंड की ऐतिहासिक विभूतियाँ एवं विविध गतिविधियों से जुडे शिखर पुरुष एवं महिलाएं
- उत्तराखंड की ऐतिहासिक विभूतियाँ एवं विविध गतिविधियों से जुडे शिखर पुरुष एवं महिलाएं पार्ट 2
- उत्तराखंड की ऐतिहासिक विभूतियाँ एवं विविध गतिविधियों से जुडे शिखर पुरुष एवं महिलाएं पार्ट 3
- गढ़वाली शादियों में गालियां ओर मांगलिक गीत
यहाँ पढ़ें
Follow Us