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इलाचन्द जोशी
इलाचंद जोशी का जन्म 13 सितम्बर, 1902 को अल्मोड़ा के एक सुसंस्कृत मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था वचपन से ही इनकी रुचि साहित्य की ओर थी. जब वे कक्षा 7 के विद्यार्थी थे तभी वे अल्मोड़ा में 'सुधाकर' नाम से एक हरतलिखित साहित्यिक मासिक पत्रिका निकालते थे, इस पत्रिका में सुमित्रानंदन पंत गोविन्द वल्लभ पंत की रचनाएँ भी प्रकाशित होती थीं, सन् 1914 में बारह वर्ष  की age  में इनकी पहली कहानी 'सजववा' शीर्षक से   कर की 'हिन्दी अल्प माला' में प्रकाशित हुई. ओोशी जी अंग्रेजी, संस्कृत, बंगला, मराठी, उर्दूफ्रें और जर्मन भाषाओं के प्रकाण्ड पंडित थे. बाल्यावस्था में उनकी भेंट बंगला के श्रेष्ठ उपन्यासकार शरत्चन्द्र चटोपाध्याय से हुई. कलकत्ता में रहते हुए इन्हें जीवन के यथार्थ का सामना करना पड़ा जो वाद में इनकी रचनाओं में परिलक्षित होता है. प्रेमचन्द के वाद परवर्ती हिन्दी कथा साहित्य को नया भोड़ देने वाले प्रतिष्ठित कथाकारों में इलाचंद जोशी का नाम अग्रगण्य है हिन्दी में मनोवैज्ञानिक उपन्यासधारा के प्रवर्तन का श्रेय जोशी जी को ही है. इलाचंद जोशी के उपन्यासों ने मनोवैज्ञानिक क्षेत्र में एक क्रान्ति का सूत्रपात किया. उन्होंने मनोविज्ञान का सहारा लेकर अपने पात्रों के चरित्र का मनोविश्लेषण किया है. जहाज का पंछी, प्रेम और छाया, संन्यासी भूतों की बारात, लज्जा और अन्य उपन्यासों में जोशीजी ने मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का सहारा लेकर पात्रों की परिस्थितियों की विवेचना की. इलाचंदजी मुख्य रूप से कथाकार हैं, कविताएँ भी लिखीं. विजनवती' उनका एकमात्र कविता संग्रह है. ऐतिहासिक दृष्टि से संक्रान्ति युग के समस्त कहानीकारों में जोशीजी अग्रगण्य हैं. इनके साहित्य विविधता का पुट दिखाई देता है. 14 दिसम्बर, 1982 को इलाचंद का देहावसान हो गया, तेकिन हिन्दी साहित्य में सदा अमर रहेंगे.

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