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पं. गोविन्द बल्लभ पंत , Pandit Govind Ballabh Pant


 पंगोविन्द बल्लभ पंत

  भारतरत्न गोविन्द बल्लभ पंत का जन्म 10 सितम्बर,1887 को अल्मोड़ा के ग्राम खूँट में हुआ थाइनके पिता  श्री मनोरथ पंतजी थेप्रारम्भिक शिक्षा अल्मोड़ा के रामजे  कॉलेज में हुई. 1909 में कानून की शिक्षा प्राप्त कर अल्मोड़ा  आए और वकालत प्रारम्भ कर दीलेकिन एक वर्ष पश्चात्  ही वे अल्मोड़ा छोड़कर काशीपुर चले गए और वहाँ स्थायी  रूप से वकालत करने लगे.  सन् 1914 में उन्होंने काशीपुर में 'प्रेमसभाकी स्थापना  कीयह सभा काशी नगरी प्रचारिणी सभा की शाखा के रूप  में स्थापित की गईसन् 1914 में पंतजी ने काशीपुर में  उदयराज हाईस्कूल की स्थापना की. 1916 में पंतजी के  प्रयत्नों से आर्थिक  शिक्षा सम्बन्धी सुधारों के लिए 'कुमाऊँ  परिषद्की स्थापना की गई.  पंतजी रचनात्मक कार्यों में बढ़चढ़कर भाग लेते थे.  सन् 1918 में काशीपुर में एक खद्दर आश्रम तथा विधवा  आश्रम खुलवायासन् 1920 में गांधीजी द्वारा चलाए गए  असहयोग आन्दोलन में भाग लिया. 1916 में अखिल  भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य चुने गएसन् 1923 में  स्वराज्य पार्टी के टिकट पर नैनीताल जनपद से संयुक्त प्रान्त  की विधान परिषद् के सदस्य निर्वाचित हुए.  गोविन्द बल्लभ पंत जवाहरलाल नेहरू के घनिष्ठ  सहयोगी और विश्वसनीय सलाहकार थेपहली बार 17  जुलाई, 1937 को संयुक्त प्रान्त के प्रधानमंत्री चुने गए फिर  1 अप्रैल,1946 को उसी प्रान्त के मुख्यमंत्री बने.  पंतजी ने कभी सत्ता के लिए आदर्शों से समझीता नहीं  कियासंयुक्त प्रान्त के प्रधानमंत्री के रूप में क्रान्तिकारियों  की रिहायी के मुद्दे पर प्रान्त के गवर्नर हेग से मतभेद होने  पर उन्होंने 15 फरवरी,1938 को उसके पास पूरे मन्त्रिमण्डल  का इस्तीफा भेज दियामजबूर होकर हेग को उनके साथ  संयुक्त वयान देकर क्रान्तिकारियों को रिहा करना पड़ा  गोविन्द बल्लभ पंत उत्तराखण्ड के जाने-माने अधिवक्ता  थे. 1916 में इन्होंने 'कुमाऊँ परिषद्की स्थापना कीइस  संस्था का मुख्य उद्देश्य उत्तराखण्ड के लोगों की आर्थिक,  सामाजिक और सुरकारी समस्याओं का समाधान करना था.  1920 में काशीपुर में हुए कुमाऊँ परिषद् की अध्यक्षता की जिसमें कुली उतार समाप्त करने हेतु सत्याग्रह करने का  प्रस्ताव पारित हुआ. 1924 में गोविन्द बल्लम पंत प्रान्तीय  लेजिलेटिव कांउसिल के सदस्य वनेमहात्मा गांधी द्वारा  1930 में सविनय अवहञा आन्दोलन चलाने के दौरान  गोविन्द वल्लभ पंत ने उत्तराखण्ड में (नैनीताल और हल्द्वानी  मुख्य केन्द्र थेनेतृत्व कियाइस आन्दोलन में पंत को 6  माह के कारावास की सजा मिलीभारत सरकार अधिनियम,1935 के अनुसार प्रांतों में लोकप्रिय सरकारें वनाई गई तो  उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने गोविन्द वल्लभ पंत के नेतृत्व में  सरकार का गठन कियागांधीजी द्वारा चलाये जा रहे  व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेकर अपने को गिरफ्तार कराया  और 25 नवम्बर,1940 को एक वर्ष का कठोर कारावास की  सजा मिलीभारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ होने से पूर्व ही 8  अगस्त को बम्बई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैटक में भाग ले  रहे थे तो उन्हें गिरफ्तार किया गयापंगोविन्द बल्लभ पंत  को उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री वनने का सौभाग्य प्राप्त  हुआ.  पण्डित पंत 1 दिसम्बर, 1954 को केन्द्रीय मन्त्रमण्डल  में शामिल हुए और 10 जनवरी,

 1955 को उन्होंने देश के  गृहमंत्री के रूप में कार्यभार सँभालाअण्डमान निकोवार द्वीप  समूह को पूर्वी पाकिस्तान को देने की गवर्नर जनरल लॉर्ड  माउण्टबेटन की योजना को विफल करना पण्डत पंत की  एक और ऐतिहासिक उपलब्धि थीपण्डितजी ने इस द्वीप  समूह के सामरिक महत्व को समझते हुए अपने अधिकारों का  प्रयोग कर उसे भारत में मिलाया.  उत्तर प्रदेश के इतिहास में पाँच वर्षों का कार्यकाल पूरा  करने वाले एकमात्र और प्रथम मुख्यमंत्री श्री पंत ने अपने  राजनैतिक जीवन के शुरू से ही समाज के निचले और गरीब  तबके को दीर्घकालिक भलाई के लिए सोचना शुरू कर दिया  थाउन्होंने 31 अगस्त,1919 को नैनीताल जिले के रामगढ़  में आयोजित एक समारोह में क्षेत्रीय किसानों को रामगढ़ को  फलपट्टी बनाने का सुझाव दिया थाउन्हीं की प्रेरणा के कारण  रामगढ़ क्षेत्र आज भी उत्तराखण्ड में फलोंसाग और सब्जियों  का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र हैउनकी लम्बी सेवा और  उत्कृष्ट राजनीतिक उपलब्धियों को देखते हुए 26 जनवरी,1957 को भारत सरकार ने उन्हें 'भारतरत्नकी उपाधि से  अलंकृत किया.  पण्डितजी ने नायक जाति के उत्थान के लिए विशेष  कोशिशें कींउन्होंने नायक कन्याओं को समाज की अन्य  लड़कियों की तरह शिक्षित कराने के बाद उनका विवाह करने  की परम्परा डाली और वेश्यावृत्ति के उन्मूलन के लिए कार्य  किएहिन्दू समाज के कथित अछूत वर्ग के प्रति अपने प्रेम  और स्नेह से उनके धर्मान्तरण को रोका था.