श्रीदेव सुमन, Shri Dev Suman

 श्रीदेव सुमन  



  उत्तराखण्ड के अमर सपूत श्रीदेव सुमन का जन्म टिहरी  गढ़वाल जनपद की पट्टी वमूण्ड के ग्राम जौल में 12 मई,  1915 को हुआ थाइनके पिता श्री हरिराम बडीनी एक  समाज सेवक तथा लोकप्रिय वैद्य थेइनकी माँ दृढ़ निश्चयी  तथा साध्वी महिला थींअच्छे संस्कारों के कारण इनके अन्दर  बलिदानी भावनाओजस्वी स्वर तथा दुढ़ निश्चय करने की  अद्भुत क्षमता थी.  श्रीदेव सुमन ने 1931 में टिहरी से मिडिल परीक्षा पास  करके देहरादून आएदेहरादून में उस समय नमक आन्दोलन  चल रहा थासुमनजी आन्दोलन से अछूते नहीं रह सके तथा  नमक सत्याग्रह में कूद पड़ेनमक आन्दोलन में इनको 14  दिन की जेल की सजा हुई.  पत्रकारिता के प्रति समर्पित श्रीदेव सुमनजी का साहित्य  से विशेष लगाव थादेहरान निवास के समय वच्चों के लिए  हिन्दी पत्रबोध बाल पत्रिका प्रकाशित कीइसी प्रकार  दिल्ली निवास के समय युवक युवतियों के मन  साहित्य के प्रति रुचि पैदा करने के उद्देश्य से ' सुमन सौरभ'  नाम से कविता संग्रह प्रकाशित कियापत्रकारिता के क्षेत्र में  हिन्दूसाप्ताहिक पत्रिका का सम्पादन कियाइसके अलावा  जगत्गुरु शंकराचार्य के अंग्रेजी साप्ताहिक 'धर्मराजमें भी  कार्य किया.  हिन्दी  दिल्ली में कुछ मित्रों के सहयोग से 'देवनागरी महा-  विद्यालयकी स्थापना कीजिससे इनका सम्पर्क भारतीय  नेताओं तथा साहित्यकारों से हुआइसके अलावा दिल्ली में  इन्होंने 'गढ़ देश सेवा संघकी स्थापना कीजो बाद में  हिमालय सेवा संघके नाम से प्रसिद्ध हुआइलाहाबाद में  राष्ट्रमतमें सहकारी सम्पादक का कार्य कियाइस प्रकार  सुमन का प्रारम्भिक जीवन वैविध्यपूर्ण और साहित्य के प्रति  अनुरागपूर्ण था

     1939 में इस राज्य के (टिहरी गढ़वालराजा के निरंकुश  शासन से मुक्ति दिलाने के लिए देहरादून में 'प्रजामण्डल'  नामक संस्था की स्थापना हुई जिसमें श्रीदेव सुमन ने अग्रणी  भूमिका अदा कीश्रीदेव सुमन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से भी  सम्बद्ध थेजवाहरलाल नेहरू से इनका विशेष सम्पर्क था . 

 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में श्रीदेव सुमन को  देवप्रयाग में कैद कर लिया गया तथा टेहरी जेल में बंद कर  दिया गयाजेल में अमानवीय व्यवहार के कारण उन्हें 3 मई,1944 को भूख हड़ताल करनी पड़ी जिसके कारण श्रीदेव  न्यूमोनिया से पीड़ित हो गये तथा परलोक सिधार गये.  मृत्यु  की सूचना इनके सगे सम्बन्धियों को नहीं दी गई तथा शव  को भागीरथी नदी में गुप्त रूप से डूबो दिया गया.  1 अगस्त,1949 को टिहरी राज्य का विलिनीकरण होने  के साथ ही श्रीदेव सुमन  उनकी पत्नी का विनय लक्ष्मी का  सपना पूरा हुआउनका त्याग  साहस उत्तराखण्ड के  इतिहास में सदैव पूजनीय एवं अविस्मरणीय रहेगा.

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