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कुमाऊँनी भाषा

कुमाऊँनी
    कुमाऊँ की बोली कुमाऊँनी के नाम से जानी जाती है। कुमाऊँ का सम्बन्ध कूमाँचल या, कू्माचल से है. कुमाऊँ क्षेत्र के अन्तर्गत नैनीताल पिथौरागढ़ तथा अल्मोड़ा जनपद सम्मिलित हैं.

    कुमाऊँनी देव नागरी लिपि में लिखी जाती है. कुमाऊँनी बोली व भाषा के जन्म के विषय मतभेद हैं.
वैज्ञानिक इसे दरद-खस प्राकृत से सम्बन्धित मानते हैं तथा अन्य भाषा वैज्ञानिक शोरसैनी अपभ्रंश से इसका उद्भव
स्वीकार करते हैं.

    डॉ. केशवदत्त रूवाली के अनुसार-"इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि कुमाऊँनी पर एक ओर आग्नेय दरद. खस प्राकृत का प्रभाव लक्षित होता है, तो दूसरी ओर उसमें अर्द्ध मागधी की विशेषताएँ भी विद्यमान हैं.
पर भी रूपात्मक गठन की दृष्टि से वर्तमान कुमाऊँनी में  सौरसेनी  अपभ्रंश के प्रायः सभी भाषिक तत्वों की स्थिति  दृष्टिगत होती है."

कुमाऊँनी का विकास
कुमाऊँनी के प्राचीनतम नमूने शक संवत् 1266 अर्थात्चौ दहवीं शती के पूर्वार्द्ध से मिलते हैं, शिलालेखों और
जामपत्रों में उपलब्ध प्राचीन कुमाऊँनी के नमूनों में संस्कृत शब्दों के प्रयोग की प्रवृत्ति लक्षित होती है. कुमाऊँनी की
विकास यात्रा को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
1. आदिकाल (14वीं सदी से 1800 ई.)
2. मध्यकाल (1800 ई. से 1900 ई.)
3. आधुनिक काल (1900 ई. से वर्तमान तक)

आदिकाल
    आदिकाल की कुमाऊँनी बोली में संस्कृत शब्दों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग होता था, परन्तु अठाहरवीं शती तक आते-आते संस्कृत निष्ठता के स्थान पर तद्भव शब्दों की ओर झुकाव बढ़ा और कहीं-कहीं अरवी, फारसी के शब्द भी प्रयुक्त होने लगे. शाके 1555 के बाँसगाड़ी विषयक ताम्रपत्र की भाषा इस प्रकार है-श्री महाराजाधिराज "श्री राजा
विमलचन्द्र देव ने यागीश्वर क्षेत्र अद्भ्धादय पर्व संकल्पूर्वक. पादार्थ करी भूमि दीनी-माल परगना बोगसाड़ी माँ मोयेठारज्यू एक नेठनाली बेट वेगार दोपाड़ी पयादो सर्वकर, अकर सर्वद्न्वि शुद्धकारी धुराडौँडा समेत पायो" (डॉ. केशवदत रुवाली कुमाऊँनी हिन्दी व्युत्पत्ति कोष).

मध्यकाल
    इस काल में गुमानी पंत जैसे प्रतिष्ठित कवि कुमाऊँनी में काव्य रचना करने लगे थे. सन् 1815 में कुमाऊँ को अंग्रेजों ने अपने अधीन कर लिया और इसी भाषा से पत्राचार प्रारम्भ हुआ. अंग्रेजों ने भी इसी बोली को पत्राचार हेतु अपनाया. प्रवाना वाहाली रोज मंदर गोपीचंद देवता शहर अल्मोड़ा का जिले कुमाऊँ का (11) आठ आना रोज गोस्सालि वास्ते पर्च मन्दर के गो्षा के वखत से पाउते रहे हो इसके वास्ते 17 मई को साहबान सदर को लिखा था. आज प्रवानगी ऊन की विच चीटी साहब सकतरी की लिखी हुई 11 जून, 1896 के बिच मुकघ्मे जारी कन रोज तुमारे के आई उसके माफिक तुमको वहाँ से भी प्रवानी बहाली का मिलता है.
(डॉ. केशवदत्त रुवाली : कुमाऊँनी हिन्दी व्युत्पत्ति कोष)
 इस काल में गुमानी, कृष्ण पाण्डे, चिन्तामणि जोशी, गंगादत्त उप्रेती, शिवदत्त शरती, ज्वालादत जोशी, लीलाधर जोशी इत्यादि ने कुमाऊँनी बोली में साहित्य लिखकर इस बोली के विकास में सहायता प्रदान की. इस काल की कुमाऊँनी में अरवी, फारसी, अंग्रेजी भाषा के बहुत से शब्दों का प्रयोग होने लगा था.

आधुनिककाल
    बीसवीं सदी की कुमाऊँनी पहले की कुमाऊँनी से एकदम अलग हो गयी. 'अल्मोड़ा अखवार' अंचल आदि समाचार- पत्रों के प्रकाशन ने इसके विकास में महत्वपूर्ण सहयोग दिया. हिन्दी की एक उपयोली होने के कारण इसके लिखित स्वरूप एवं वोलचाल में हिन्दी का वहुत प्रभाव पड़ा है. अब तो यह सरल से सरलतम हो गयी है.

कुमाऊँनी की विविध बोलियाँ
    लगभग 20,000 वर्ग किलोमीटर में विस्तीर्ण कुमाऊँ क्षेत्र में उच्चारण और भाषिक संरचना की दृष्टि अनेक बोलियाँ अस्तित्व में आ गयी हैं. भौगोलिक दृष्टि से यह क्षेत्र अधिकांशतः पर्वतीय और ऊबड़ खावड़ है पन्द्रह- बीस किलो मीटर की दूरी पर स्थित दो ग्रामों के मध्य भी सम्पर्क नहीं हो पाता. ज्यों-ज्यों यह दूरी बढ़ती जाती है. त्यों त्यों वोली विभेद भी वढ़ता जाता है. आतागमन के साधनों की कमी, शिक्षा व समाचार-पत्रों के प्रचार-प्रसार के कारण भी क्षेत्रीय आधार पर बोलियों में विभेद प्रतीत होता है. कुमाऊँनी भाषी क्षेत्र को भैगोलिक दृष्टि से दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-
(क) पश्चिंमी कुमाऊँनी क्षेत्र.
(ख) पूर्वी कुमाऊँनी क्षेत्र.
इस क्षेत्र विशेष के अन्तर्गत आने वाली क्षेत्रीय बोलियाँ इस प्रकार हैं-
(क) पश्चिमी कुमाऊँनी
1. खस पर्जिया, 2. चीगार्खिया, 3. गड़ोई, 4. दनपुरिया, 5. पछाई, 6. रोचोवैसी.
(ख) पूर्वी कुमाऊँनी
1. कुमाई, 2. सौर्याली, 3. सीराली, 4, अस्कोटी.

 कुमाऊँनी भाषा की विशेषताएँ
कुमाऊँनी बोली स्वयं में निम्नलिखित विशेषताएँ समाहित किए हुए है-

1. कुमाऊँनी बोली में 'स' के स्थान पर 'श' का प्रयोग अधिक होता है, जैसे-दस, दश, बस वश, साहब शैबा,
शाबास, शाबाश आदि.
2. कुमाऊँनी में अवधी बोली का प्रभाव बहुत अधिक पाया जाता है, उदाहरणतः अवधी और कुमाऊँनी का अन्य
पुरुष एकवचन का  रूप समान है.
हिन्दी     कुमाऊँनी     अवधी

वह          तु                   उ

3. बहुवचन बनाने के लिए अवधी में कुमाऊँनी की तरह 'न' जोड़ दिया जाता है, यथा-
 हिन्दी           कुमाऊँनी            अवधी

 वाणों की       वाणनकणि        वाणन का

4. कई शब्द ऐसे हैं जो कुमाऊँनी और अवधी में समान अर्थ में प्रयुक्त होते हैं. जैसे-
हिन्दी          कुमाऊँनी         अवधी
कुत्ता           कुकूट               कूकर
माँ               म्हौतारि           ` महतारी
वैल              वल्द                 वर्दा

5. तीन ध्यनि वाले शब्दों के मध्य की ध्वनि यदि 'अ' हो, तो वताघात के समय पूर्व स्तर दीर्घ हो जाता है.

6. कुमाऊँनी में हस्व 'ए' और 'ओ' क्रमशः 'व' और व' में वदल जाते हैं. जैसे-
चेला      च्वाला  ('ए' के स्थान पर 'व')
मेला      म्वाला
खोली     ख्वालो
रोटी       खाटो  (ओ के स्थान पर 'व')

7. हिन्दी के अकारान्त शब्द-पियौरागढ़ की ओर वोली जाने वाली कुमाऊँनी में ओकारान्त हो जाते हैं, यथा-
गया-गयो , खाया-खायो

৪. परसर्ग 'ने' के स्थान पर 'ले' 'ल' से के स्थान पर वै' का प्रयोग होता है. 
जैसे- लड़की से पूछा-च्याली ये पुच्छो.
राम ने कहा-राम लू की.
उपर्युक्त प्रभाव राजस्यानी से कुमाऊँनी में आया.

9. क्रिया रूपों में 'ओ' 'आ' तथा 'इ' भूतकाल के तथा 'ल' वर्तमान तथा भविष्यत काल का घोतक है. उदाहरणतः-
(i) वह खेत में गया-उ खेत में गयो ( भूतकाल)
(ii) वह खेत में जा रहा है-उ खेत में जाड़ लागरो (वर्तमान काल)
(iii) वह खेत में जाएगा-उ खेतम जाल (भविष्यतकाल)

10. 'की' के स्थान पर यै' कणि का प्रयोग होता हुआ भी कुमाऊँनी में मिलता है जैसे-छोटी बहन गाय को चराने के लिए जंगल में ले गयी. इसका परिवर्तन कुमाऊँनी में इस प्रकार होगा- 'नानि वीणी गोरु कणि वरण चराण लिंगे 

11. संख्यावाचक शब्दों के प्रयोग की विशेषता निम्न उदाहरणों से स्पष्ट होती है. एका, तोना, शात, हज्यार आदि.

12. संख्यावाचक शब्दान्त में आने वाले 'ह' वर्ण का कुमाऊँनी में लोप हो जाता है. जैसे-हज्यार, वार, तैर, चौद,
पन्द्र, शोल इत्यादि.

13. बंगाली, मराठी, गुजराती, पंजाबी, राजस्थानी आदि भाषाओं का प्रभाव पर्याप्त मात्रा में है. कुमाऊँनी के एक ही
वाक्य में उपर्युक्त विशेषता स्पष्ट हो जाती है. जैसे-'वहन गाय को चराने के लिए जंगल ले गयी' यह वाक्य कुमाऊँनी
में इस प्रकार कहा जाएगा. "ननि बैणि गोरु कणि वरण चराणे लिए" इस वाक्य में बेनि-वैण (पंजाबी), गौरु-गोरु (वंगला) शेष कर्ण, ननि, वण, चराण, लिए आदि शब्द हिन्दी के ही परिवर्तित रूप हैं.

14. कुमाऊँनी में प्रायः अन्त्य 'न' का 'ण' हो जाता है. यह प्रभाव में इस प्रकार है-
हिन्दी         कुमाऊँनी
वन            वण
वना            वणा
रोना           रोणा
अपना        अपणा

15. 'ढ' ध्वनि कुमाऊँनी में सर्वत्त 'ड़' हो गयी है, जैसे-गढ़वाल-गड़वाल (कुमाऊँनी).

16. कुमाऊँनी में प्रायः प्रयत्न लाघव का प्रभाव अन्य भाषाओं की अपेक्षा अधिक मिलता है.

उदाहरण-
हिन्दी  
भिखारी को पैसे दे दो

कुमाऊँनी
भिखारिन के पैसे दि दे

17. हिन्दी में चन्द्रमा पुल्लिंग में प्रयुक्त होता है, किन्तु कुमाऊँनी में यह स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होता है. चन्द्रमा को
कुमाऊँनी में 'जून दौड़ी' कहा जाता है,