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कुंभ मेला क्या है, इसका आयोजन कैसे होता है, इसकी तिथियां कैसे निकाली जाती है, यह कहा कहा होता है, इसकी क्या मान्यताएं है, इसका इतिहास क्या है, हिंदु धर्म पर क्या प्रभाव पड़ता है

 


कुंभ मेला हिन्दू धर्म का एक प्रमुख धार्मिक मेला है, जो विशेष रूप से चार स्थानों पर आयोजित किया जाता है: प्रयागराज (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक। यह मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है, और इन चार स्थानों पर कुंभ मेला प्रत्येक स्थान पर हर 12 वर्ष में एक बार विशेष रूप से मनाया जाता है, जो किसी एक स्थान पर हर 12 साल में और बाकी स्थानों पर हर 3 साल में घूमता है।

कुंभ मेला का आयोजन कैसे होता है:

कुंभ मेला का आयोजन साधारणत: हिन्दू धर्म के साधुओं और भक्तों के विशाल जमावड़े के रूप में होता है। इसमें श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए जुटते हैं, ताकि वे अपने पापों से मुक्त हो सकें और मोक्ष की प्राप्ति हो सके। प्रत्येक स्थान पर इस आयोजन की तिथियां हिंदू पंचांग और नक्षत्रों के आधार पर निर्धारित की जाती हैं, खासकर माघ मास में।

कुंभ मेला की तिथियां कैसे निकाली जाती हैं:

कुंभ मेला की तिथियों की गणना विशेष रूप से ज्योतिष शास्त्र और नक्षत्रों के आधार पर की जाती है। इसे "मकर संक्रांति" से जोड़ा जाता है, जो माघ माह के दौरान होती है। इसके अतिरिक्त ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति पर आधारित गणना से कुंभ मेला की तिथियां निर्धारित होती हैं।

कुंभ मेला कहाँ होता है:

कुंभ मेला चार स्थानों पर आयोजित होता है:

  1. प्रयागराज (इलाहाबाद) – यहाँ गंगा, यमुन और सरस्वती नदियों का संगम होता है।
  2. हरिद्वार – यहाँ गंगा नदी के किनारे।
  3. उज्जैन – यहाँ सिंहस्थ कुंभ का आयोजन होता है, जो काली सिंध नदी के किनारे होता है।
  4. नासिक – यहाँ गोदावरी नदी के किनारे कुंभ मेला आयोजित होता है।

कुंभ मेला की मान्यताएँ:

  1. पवित्र स्नान: कुंभ मेला में स्नान करने को पापों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना जाता है। यह मान्यता है कि कुंभ मेला के दौरान पवित्र नदियों में स्नान से आत्मा को शुद्धि मिलती है।
  2. भगवान ब्रह्मा द्वारा अमृत कुंभ: हिन्दू धर्म के अनुसार, देवों और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन से अमृत कुंभ प्रकट हुआ था, और जब राक्षसों ने उसे प्राप्त करने का प्रयास किया, तब भगवान विष्णु ने कुछ अमृत कलश देवों को दिए। इस घटना से जुड़े विभिन्न स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।

कुंभ मेला का इतिहास:

कुंभ मेला का इतिहास वेदों और पुराणों में मिलता है। यह मेला धार्मिक यात्रा और महोत्सव का हिस्सा है, जो प्राचीन समय से ही आयोजित हो रहा है। यह मुख्य रूप से हिंदू धर्म के सिद्धांतों और आध्यात्मिक साधना से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि इस मेले की शुरुआत भगवान राम के समय से हुई थी, जब उन्होंने अपने अनुयायियों को पवित्र नदियों में स्नान करने की सलाह दी थी।

हिंदू धर्म पर कुंभ मेला का प्रभाव:

कुंभ मेला हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यधिक महत्व रखता है। यह एक अवसर है जब लाखों लोग एकत्रित होते हैं और धार्मिक अनुष्ठान, ध्यान, साधना, और पूजा करते हैं। यह मेला न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह लोगों को एक मंच पर लाता है, जिससे वे धार्मिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान कर सकते हैं। कुंभ मेला भारतीय संस्कृति और धार्मिक पहचान का एक प्रतीक बन चुका है।

इस प्रकार, कुंभ मेला हिन्दू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण आयोजन है, जो न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर पर भी अत्यधिक प्रभाव डालता है।